मनुष्य और सर्प पाठ के आधार पर कवि की भावनाओं को स्पष्ट करें

मनुष्य और सर्प पाठ के आधार पर कवि की भावनाओं को स्पष्ट करें

मनुष्य और सर्प पाठ के आधार पर कवि की भावनाओं को स्पष्ट करें

उत्तर :
‘मनुष्य और सर्प’ कविता में कवि दिनकर ने कर्ण के आदर्श, उसकी नैतिकता और धर्मनिष्ठा को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। कर्ण का चरित्र आत्मगौरव, वीरता और सच्चाई के प्रति दृढ़ विश्वास का प्रतीक है। जब सर्पराज अश्वसेन अर्जुन को मारने के लिए सहायता करना चाहता है, तब कर्ण उसका प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा देता है कि वह मनुष्य है और उसका शत्रु अर्जुन भी मनुष्य है, अतः किसी सर्प की सहायता लेकर विजय प्राप्त करना उचित नहीं होगा।

कवि की भावना यह है कि सच्चा योद्धा छल, कपट और अनैतिक साधनों से विजय नहीं चाहता। वह पराजय स्वीकार कर सकता है, परंतु अपकीर्ति नहीं। कर्ण के इस आदर्श से यह शिक्षा मिलती है कि संघर्ष में सत्य, ईमानदारी और धर्म का पालन करना ही वास्तविक साहस है।

वर्तमान युग से जोड़ते हुए कवि यह भी इंगित करते हैं कि आज के समाज में सर्प जैसे लोग मानव वेश में छिपे रहते हैं। ऐसे लोग छिपकर वार करते हैं और किसी भी साधन से अपने शत्रु का विनाश करना चाहते हैं। सीधे शत्रु से सामना करना संभव है, लेकिन छिपा हुआ शत्रु सबसे बड़ा खतरा बनता है। कर्ण का चरित्र हमें सिखाता है कि सच्चा योद्धा हमेशा सामने से लड़ता है, कभी छिपकर या अनुचित साधनों से आक्रमण नहीं करता।

इस प्रकार कवि की भावनाएँ स्पष्ट होती हैं कि कर्ण ने अश्वसेन की सहायता अस्वीकार कर मानवतावाद और सत्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत किया। यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है कि विजय से बढ़कर नैतिकता और धर्म का पालन करना आवश्यक है।

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