रैदास के पद नामक पाठ का मूल संदेश क्या है
‘रैदास के पद’ नामक पाठ में संत रैदास जी ने भक्ति, मानवता और समाज में समानता का अत्यंत गहरा संदेश दिया है। वे संत परंपरा के ऐसे कवि हैं जिनके लिए भक्ति ही जीवन का आधार थी। रैदास जी मूलतः भक्त हैं, कवि बाद में। उन्होंने कविता को एक साधन बनाया – अपने विचारों, अपने अनुभवों और ईश्वर-प्रेम को जन-जन तक पहुँचाने का। उनकी वाणी में न तो आडंबर है और न ही दिखावा, बल्कि सच्चे हृदय की सरलता और करुणा झलकती है।
रैदास जी का हृदय अत्यंत कोमल और संवेदनशील था। वे दूसरों के दुःख से स्वयं दुःखी हो जाते थे और सभी जीवों में एक ही आत्मा का दर्शन करते थे। उनका मानना था कि जब तक मनुष्य का मन, वाणी और कर्म शुद्ध नहीं होगा, तब तक वह प्रभु की कृपा का अधिकारी नहीं बन सकता। इसीलिए उन्होंने अपने पदों के माध्यम से मनुष्य के भीतर आत्मचेतना जगाने का प्रयास किया।
संत रैदास ऐसे समाज में जन्मे थे जहाँ जाति और ऊँच-नीच का भेदभाव चरम पर था। वे ऐसे वर्ग से आते थे जिसे धर्म और शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था। लेकिन उन्होंने इस भेदभाव को स्वीकार नहीं किया, बल्कि अपने अनुभव और भक्ति से समाज के खोखले आडंबरों को चुनौती दी। उनकी वाणी में मिठास है, पर उसकी चोट गहरी होती है—वे मीठी छुरी की तरह वार करते हैं, ताकि समाज अपनी गलतियों को स्वयं समझ सके।
उनकी भक्ति दास्य भाव पर आधारित है। वे ईश्वर से कहते हैं—“हे प्रभु! आप चंदन हैं, मैं पानी हूँ। आपकी सुगंध मेरे भीतर बस गई है। आप दीपक हैं और मैं बाती हूँ।” यह भाव उनके और ईश्वर के अटूट संबंध को दर्शाता है, जहाँ भक्त पूरी तरह प्रभु में विलीन हो जाता है। वे मानते हैं कि ईश्वर हर हृदय में वास करते हैं, लेकिन अज्ञानता के कारण मनुष्य उन्हें पहचान नहीं पाता।
रैदास जी ने कहा कि मनुष्य को काम, क्रोध, मोह, मद और माया जैसी बुराइयाँ लूट लेती हैं। जब तक व्यक्ति इनसे मुक्त नहीं होता, तब तक उसे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। ठीक वैसे ही जैसे बिना पारस के स्पर्श के लोहा सोना नहीं बन सकता, वैसे ही बिना भक्ति के आत्मा शुद्ध नहीं होती।
उनका संदेश यह भी है कि सच्चा भक्त वही है जो जाति, धर्म, कुल या संप्रदाय के बंधन से ऊपर उठकर सभी में ईश्वर का दर्शन करे। जो मनुष्य सबके प्रति समान भाव रखता है, वही सच्चे अर्थों में धन्य है।
संत रैदास का ईश्वर निर्गुण और निराकार है—वह किसी मूर्ति या मंदिर में नहीं, बल्कि हर प्राणी के भीतर है। वे कहते हैं, “जिनके चरणों से गंगा निकली, जिनकी रोमावली से अठारह पुराण निकले, जिनकी श्वासों में चारों वेद बसे हैं – वे ईश्वर सीमित कैसे हो सकते हैं?”
रैदास जी ने यह भी बताया कि ईश्वर करुणामय हैं – वही जिन्होंने गजेंद्र को मगर के मुख से बचाया और अजामिल जैसी आत्माओं को मोक्ष दिया। ऐसे दयालु प्रभु से वे अपने उद्धार की भी विनम्र प्रार्थना करते हैं।
सार रूप में, रैदास जी के पदों का मूल संदेश यह है कि सच्चा धर्म प्रेम, भक्ति और समानता में निहित है। धर्म के नाम पर दिखावा, जातिगत भेदभाव और पाखंड को उन्होंने सिरे से नकारा। उन्होंने मनुष्य को अपने भीतर झाँकने, अपनी आत्मा को शुद्ध करने और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
उनकी दृष्टि में –
“ईश्वर-प्रेम ही सच्चा धर्म है,
और वही समाज का सर्वोच्च सत्य है।”
यही ‘रैदास के पद’ का मुख्य संदेश है – मानवता, समानता और निष्काम भक्ति की पुकार।
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