आदर्श विद्यार्थी का प्रश्न उत्तर क्लास 7 ॥ Adarsh Vidyarthi Prashn Uttar Class 7

आदर्श विद्यार्थी का प्रश्न उत्तर क्लास 7 ॥ Adarsh Vidyarthi Prashn Uttar Class 7 ॥ Aadarsh Vidyarthika Question Answer Class 7

आदर्श विद्यार्थी का प्रश्न उत्तर क्लास 7 ॥ Adarsh Vidyarthi Prashn Uttar Class 7 ॥ Aadarsh Vidyarthika Question Answer Class 7

विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जीवन परिचय

विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म 10 मई 1891 को पंजाब के अम्बाला छावनी में एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के दौरान ही उन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और फारसी भाषाओं का अध्ययन किया, जिससे उनकी भाषिक क्षमता अत्यंत समृद्ध हुई। मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने लेखन की शुरुआत उर्दू भाषा से की, परंतु शीघ्र ही वे हिन्दी साहित्य की ओर मुड़ गए। हिन्दी में उनकी लेखनी को विशेष पहचान तब मिली जब उनकी पहली कहानी ‘रक्षाबंधन’ सरस्वती पत्रिका में 1912 (कहीं-कहीं 1913) में प्रकाशित हुई। वे प्रेमचन्द के समकालीन थे और उनकी परम्परा से प्रभावित भी। इसी कारण उनकी रचनाओं में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। भारतीय परिवारों की विविध स्थितियाँ, मनुष्य के आंतरिक मनोभाव तथा सामाजिक रिश्तों का यथार्थ चित्रण उनकी कथाओं की प्रमुख विशेषता है। उनकी भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक और पाठक-अनुकूल मानी जाती है, यही कारण है कि सामान्य पाठक से लेकर विद्वान तक सभी उनकी कहानियों से जुड़ाव महसूस करते हैं।

कौशिक जी ने केवल कहानियाँ ही नहीं लिखीं, बल्कि उपन्यास, व्यंग्य, संस्मरण और संपादन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कुछ समय तक ‘हिन्दी मनोरंजन’ पत्रिका का संपादन भी किया, जिसके माध्यम से वे हिन्दी साहित्य की उन्नति से जुड़े रहे। उनकी कहानियों के प्रमुख संग्रहों में ‘गल्प मंदिर’, ‘चित्रशाला’, ‘मणिमाला’, ‘कल्लोल’, ‘प्रेम प्रतिज्ञा’, ‘खोटा बेटा’, ‘बन्ध्या’, ‘अप्रैल फूल’, ‘साध की होली’ आदि शामिल हैं। इन रचनाओं में सामाजिक जीवन का विविध रूप, मानव-स्वभाव की जटिलताएँ और पारिवारिक संघर्षों का गहन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण मिलता है। उनके ‘माँ’, ‘भिखारिणी’ और ‘संघर्ष’ जैसे उपन्यास भारतीय समाज की वास्तविकताओं का मार्मिक रूप प्रस्तुत करते हैं। इसके साथ ही उनकी व्यंग्यात्मक कृतियाँ ‘दुबेजी की चिट्ठियाँ’ और ‘दुबेजी की डायरी’ आज भी हास्य-व्यंग्य साहित्य की उल्लेखनीय उपलब्धियाँ मानी जाती हैं। इन व्यंग्यों में समाज के मिथ्या व्यवहार, पाखंड और छोटे-छोटे मानवीय दोषों पर तीखी, परंतु मनोरंजक चोट देखने को मिलती है।

विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ द्विवेदी युग के सफल और लोकप्रिय कथाकार थे। उनकी रचनाएँ केवल मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि जीवन के सत्य और मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती हैं। वे पात्रों के मनोविज्ञान में गहराई से उतरकर उन्हें जीवंत रूप देते हैं। यही कारण है कि उनकी कहानियों के चरित्र पाठकों को अपने आसपास के लोगों जैसे प्रतीत होते हैं। हिन्दी साहित्य में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है; विशेषकर कहानी और व्यंग्य विधा में उन्होंने नई दिशा प्रदान की। 10 दिसम्बर 1945 को उनका निधन हो गया, परन्तु उनकी साहित्यिक विरासत आज भी हिन्दी साहित्य को समृद्ध करती है और पाठकों को संवेदनशील दृष्टि प्रदान करती है। कौशिक जी आज भी प्रेमचन्द परम्परा के प्रमुख एवं विश्वसनीय रचनाकारों में गिने जाते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनिए – 

क) लेखक किस दिन खिलौने खरीदने बाजार पहुँचा?
(क) होली
(ख) दीपावली
(ग) दशहरा
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर : (ख) दीपावली

ख) लेखक को किस बात पर आश्चर्य हुआ?
(क) नवयुवक के साहस पर
(ख) बाजार में खिलौने की बड़ी-बड़ी दुकानें देखकर
(ग) नवयुवक के हाथों में साधारण आकार की डालिया देखकर
(घ) इनमें से काई नहीं

उत्तर : (क) नवयुवक के साहस पर

ग) लेखक किस महीने में अपने पुत्र को स्कूल में भर्ती कराने के लिए ले गया?

(क) मई
(ख) जून
(ग) जुलाई
(घ) मार्च

उत्तर : (ग) जुलाई 

घ) नवयुवक कितने रुपये मासिक पर अध्यापक का पद प्राप्त किया?

(क) दो सौ रुपये
(ख) सौ रुपये
(ग) पचास रुपये
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर : (ख) सौ रुपये 

ड़) आदर्श विद्यार्थी किस प्रकार की कहानी है?

(क) मनोवैज्ञानिक
(ख) सामाजिक
(ग) पौराणिक
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर : (ख) सामाजिक 

लघूत्तरीय प्रश्नः

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1) एक नवयुवक को बाजार में खिलौने बेचते देखकर लेकर के मन में क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर :
नवयुवक को बाज़ार में खिलौने बेचते देखकर लेखक के मन में सहानुभूति और चिंता दोनों उत्पन्न हुईं। उसे लगा कि जहाँ चारों ओर बड़ी–बड़ी खिलौनों की आकर्षक दुकानें मौजूद हैं, वहाँ इस गरीब नवयुवक के साधारण खिलौने कैसे बिक पाएँगे। लेखक को उसके संघर्षपूर्ण जीवन और कठिनाईयों का एहसास हुआ।

2) नवयुवक की किस बात पर लेखक को आश्वर्य हुआ?

उत्तर :
नवयुवक के साहस और आत्मविश्वास पर लेखक को आश्चर्य हुआ।

3) लेखक द्वारा नौकरी खोजने में मदद करने का प्रस्ताव देने पर नवयुवक ने क्या कहा?

उत्तर :
लेखक के द्वारा नौकरी खोजने में मदद करने के प्रस्ताव पर नवयुवक ने इंकार करते हुए कहा कि उचित समय आने पर वह स्वयं नौकरी कर लेगा।

4) नवयुवक खिलौने बेचना छोड़कर क्या बेचने लगा?

उत्तर :
नवयुवक ने खिलौने बेचना छोड़कर किताब, कलम, पेंसिल बेचना शुरू कर दिया।

5) नवयुवक दशहरे के दिन चिंतित क्यों था?

उत्तर :
नवयुवक दशहरे के दिन इसलिए चिंतित था क्योंकि उसके पिता के निधन के बाद जीवन निर्वाह और पढ़ाई का खर्च बंद हो गया था। इस कारण उसका वर्तमान और भविष्य अंधकारमय प्रतीत होने लगा और उसे भविष्य की अनिश्चितताओं की चिंता सताने लगी।

बोधमूलक प्रश्नोत्तर

1) लेखक नवयुवक को देखकर क्यों महसूस करता है कि यह साधारण व्यक्ति नहीं है।

उत्तरः लेखक नव युवक की आकृति उसका रंग रूप बात व्यवहार आदि देख समझ गए कि वह किसी अच्छे परिवार का व्यक्ति है। इसके साथ ही उसके बाद के तौर तरीकों से भी भांप गया कि वह पढ़ा लिखा व्यक्ति है।

2) नवयुवक ने लेखक को जो राम कहानी सुनाई उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तरः नवयुवक एक साधारण खाते पीते परिवार से था, लेकिन उसकी मुसीबत तब बढ़ गई जब उसके पिता का देहांत हुआ। ऐसा लगा जैसे कि उसकी पढ़ाई लिखाई बंद होगी जाएगी। वह बी०ए० के अंतिम वर्ष में पढ़ाई करता था और पढ़ाई छोड़ कर अपना भविष्य खराब नहीं करना चाहता था। इसी वजह से उसने खिलौने बेचने का काम शुरू किया, जब तक कि उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो गई। उसके इस लगन से प्रश्न होकर उसके प्रिंसिपल ने अपने खर्च पर बी०एड० करवाई और उसके बाद 100 रुपए मासिक पर नवयुवक ने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया।

3) आदर्श विद्यार्थी के किन्हीं दो चारित्रिक गुणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तरः  आदर्श विद्यार्थी के चारित्रिक गुण-

1. अध्ययनशीलताः अध्ययनशीलता के कारण उसने अपने बुरे परिस्थितियों में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी और अपनी बी०ए०, बी०एड० की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पेशे के रूप में शिक्षा का ही चयन किया।

ii. परिश्रमी : आदर्श विद्यार्थी में दूसरा गुण उसका परिश्रम था। इसी गुण के कारण ही उसने मुसीबत आने पर भी अपना जीवन निर्वाह और आगे की पढ़ाई करने के लिए खिलौने तक बेचा। एक ओर पढ़ाई और एक ओर खिलौने भेजना उसके परिश्रमी होने का ही परिचायक है।

4) आदर्श विद्यार्थी कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः आदर्श विद्यार्थी कहानी के द्वारा लेखक यह संदेश देना चाहता है कि जीवन में शिक्षा और ज्ञान का मूल्य सबसे ज्यादा है। यह ज्ञान और शिक्षा दृढ़ इच्छा शक्ति मेहनत के दम पर ही प्राप्त हो सकती हैं। आदर्श विद्यार्थी के चरित्र के द्वारा लेखक यहीं स्पष्ट किया है कि विद्यार्थियों को जीवन के बुरे परिस्थितियों में भी घबराना नहीं चाहिए और ना ही शिक्षा को बीच में छोड़ना चाहिए, बल्कि अध्ययन को सतत जारी रखने से सफलता अवश्य मिलती है, आज जिस तरह जल्दी नौकरी पाने के उद्देश्य से की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं पर अधिकांश को नौकरी ना मिल पाने पर निराश होकर जीवन को व्यर्थ समझ लेते हैं वही आदर्श विद्यार्थी का चरित्र एक उत्तम उदाहरण है जो अपनी वास्तविक मंजिल को प्राप्त करता है।

व्याख्यामूलक प्रश्न

क) ‘मैंने सोचा यह बड़ा विचित्र आदमी है।’

i) किसने, किस के विषय में सोचा?

उत्तरः लेखक ने नवयुवक के विषय में सोचा।

ii) वक्ता को संकेतित व्यक्ति विचित्र क्यों प्रतीत हुआ?

उत्तरः नवयुवक ने तीन खिलौने वक्ता के बच्चों को मुफ्त में दे दिया। इसका वास्तविक कारण न समझ पाने के कारण वक्ता को वह विचित्र प्रतीत हुआ।

ख) ‘इसलिए मुझे चिंता हुई।’

i) यह पंक्ति किस पाठ से उद्धृत है? इसके लेखक का नाम लिखिए।

उत्तरः यह पंक्ति आदर्श विद्यार्थी पाठ से लिया गया है। इसके लेखक का नाम विश्वम्भरनाथ नाथ शर्मा ‘कौशिक’ है।

ii) वक्ता को किस लिए चिंता हुई?

उत्तरः पिता की असमय मृत्यु के कारण वक्ता की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। पढ़ाई बीच में रुकने का डर सताने लगा। उसने फीस माफ करा ली लेकिन बिना खाना-पीना के पढ़ाई संभव नहीं था। अतः खाने-पीने की जुगाड़ की चिंता में वह डूबने लगा।

ग) ‘भाई इमानदारी से पैसा कमाने में कुछ शर्म नहीं है।’

i) यह किसने किससे कहा है?

उत्तरः यह बात नवयुवक ने कॉलेज के अपने कुछ साथियों से कहा है।

ii) इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ?

उत्तरः पिता की असमय मृत्यु के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए नवयुवक ने खिलौने बेचने का काम शुरू किया, जिसे देख कर उसके कुछ सहपाठियों ने प्रश्न कर दिया। इस पर उसने सबके सामने स्पष्ट किया कि वह अपनी ईमानदारी और मेहनत से पैसे कमा रहा है वह कोई गलत काम नहीं कर रहा है। अतः उसे किसी बात का शर्म या भय नहीं है।

भाषा-बोध : 

१) निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग एवं मूल शब्द पृथक कीजिए।

[असाधारण, विवश, सदुपयोग, सुअवसर, अनपढ़]

निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग और मूल शब्द इस प्रकार हैं:

  1. असाधारण
    • उपसर्ग: अ-
    • मूल शब्द: साधारण
  1. विवश
    • उपसर्ग: वि-
    • मूल शब्द: वश
  1. सदुपयोग
    • उपसर्ग: सद्
    • मूल शब्द: उपयोग
  1. सुअवसर
    • उपसर्ग: सु-
    • मूल शब्द: अवसर
  1. अनपढ़
    • उपसर्ग: अन-
    • मूल शब्द: पढ़

२) निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय पृथक कीजिए।

आवश्यकता

    • मूल शब्द: आवश्यक
    • प्रत्यय: ता

जीवित

    • मूल शब्द: जीव
    • प्रत्यय: इत 

कठिनाई

    • मूल शब्द: कठिन
    • प्रत्यय: आई 

व्यापारिक

    • मूल शब्द: व्यापार
    • प्रत्यय: इक 

उत्सुकता

    • मूल शब्द: उत्सुक
    • प्रत्यय: ता

3. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए – 

[ अधीर, अशिक्षित, नित्य, जीवित] 

  1. अधीरधीर
  2. अशिक्षितशिक्षित
  3. नित्यअनित्य
  4. जीवितमृत / निर्जीव

4. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में कीजिए। 

[धंधा, व्यवसाय, विचित्र, धनोपार्जन, निरुत्तर] 

  1. धंधा – उसने शहर में नया धंधा शुरू किया और जल्दी ही सफलता पाई।
  2. व्यवसाय – मेरे पिता का व्यवसाय इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने का है।
  3. विचित्र – आज का मौसम बहुत विचित्र है, कभी धूप तो कभी बारिश।
  4. धनोपार्जन – वह मेहनत और ईमानदारी से धनोपार्जन करता है।
  5. निरुत्तर – उस कठिन प्रश्न के सामने छात्र निरुत्तर रह गया।

आदर्श विद्यार्थी का सारांश ॥ आदर्श विद्यार्थी कहानी का सारांश

दीपावली का दिन था, जब लेखक ने बाजार में एक नवयुवक को खिलौने बेचते देखा। उसके पास केवल पन्द्रह-बीस खिलौने थे, लेकिन वह बड़े साहस के साथ बाजार में अपने सामान के साथ खड़ा था। लेखक को देखकर आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी दुकानों के बीच यह युवक किस तरह अपने छोटे-छोटे खिलौने बेच रहा है। लेखक ने देखा कि नवयुवक पढ़ा-लिखा प्रतीत होता है और उसका उच्च परिवार से होने का अंदाजा लगाया जा सकता था। किसी विपत्ति के कारण ही उसे यह धंधा करना पड़ा था।

लेखक ने उसे अपने मकान का पता बताकर कहा कि जब चाहो, घर आकर कुछ खिलौने बेचो। नवयुवक समय-समय पर लेखक के घर आया करता था। उसने कभी पैसे नहीं मांगे और बच्चों को खिलौने देने में खुशी मानता था। लेखक ने उसे नौकरी का प्रस्ताव भी दिया, लेकिन नवयुवक ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर ही वह नौकरी करेगा। लेखक को नवयुवक का यह साहस और आत्मनिर्भरता देखकर आश्चर्य हुआ।

कुछ समय बाद नवयुवक ने केवल खिलौने नहीं, बल्कि किताबें, कलम, पेंसिल और स्कूल के अन्य आवश्यक सामान बेचने शुरू किए। उसकी सोच थी कि ऐसा सामान रखने से ग्राहकों का पैसा सही दिशा में खर्च हो। लेखक ने जरूरत के अनुसार उससे सामान लिया और बच्चों की पढ़ाई में मदद की। यह क्रम लगभग छह-सात महीने तक चला, फिर नवयुवक का आना बंद हो गया। लेखक ने सोचा कि शायद वह बीमार हुआ या अपने घर चला गया।

जुलाई में लेखक अपने पुत्र को स्कूल में भर्ती कराने गया। प्रधानाध्यापक के मार्गदर्शन के बाद जब लेखक कक्षा में गया, तो उसने देखा कि वही नवयुवक अब अध्यापक बनकर आया है। नवयुवक ने लेखक को अपनी कहानी सुनाई। वह साधारण परिवार का था, पिता बैंक में नौकर थे। बीए के अंतिम वर्ष में पिता की मृत्यु के बाद उसके सामने परिवार का पालन-पोषण और पढ़ाई जारी रखने की चुनौती आ गई। उसने ईमानदारी और मेहनत के साथ खिलौने बेचना शुरू किया और धीरे-धीरे बीए पूरा किया। इस लगन और दृढ़ निश्चय के कारण उसे बीएड करने का अवसर मिला और अब वह स्कूल में सौ रुपये मासिक वेतन पर अध्यापक बन गया।

लेखक नवयुवक की ईमानदारी, साहस, लगन और मेहनत देखकर दंग रह गया। उसने नवयुवक के चरण छूकर आभार व्यक्त किया और कहा कि ऐसे बुद्धिमान और परिश्रमी व्यक्ति ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

कहानी से मुख्य सीख यह है कि कठिन परिस्थितियों और विपत्तियों के बावजूद यदि ईमानदारी, मेहनत और लगन का साथ दिया जाए, तो कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। नवयुवक ने यह साबित किया कि साहस, संघर्ष और आत्मनिर्भरता से हर बाधा को पार किया जा सकता है और एक सामान्य व्यक्ति भी समाज में आदर्श बन सकता है।

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