hindi varnamala, varnamala in hindi वर्ण किसे कहते है
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हेल्लो दोस्तों आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से hindi varnamala, varnamala in hindi, hindi alphabet, hindi alphabet chart, hindi varnamala chart, types of varn के बारे में पढ़ेंगे। हिंदी विषय की शुरुआत वर्ण से ही होती है। वर्ण से संबंधित स्कूली, कॉलेज और बहुत से एग्जाम (परीक्षाओं) में प्रश्न पूछे जाते हैं आज हम इस आर्टिकल में hindi varnamala के हर कांसेप्ट को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे तो चलिए शुरुआत करते हैं-
hindi varnamala को समझने के लिए हमें सबसे पहले ध्वनि को समझना होगा क्योंकि हम जो भी हिंदी में वर्ण का प्रयोग करते हैं वे सभी ध्वनि ही होती है-
ध्वनि (sound)
किसी भाषा का निर्माण वर्ण या ध्वनि की सहायता से ही होता है। भाषा रूपी भवन की बुनियाद ध्वनि से ही बनती है। सभी वर्ण जब मानव वाणी का आधार लेती है तभी ध्वनियों का जन्म होता है। इसका लिखित रूप वर्ण(alphabet) कहलाता है। वर्णों(alphabets) का प्रयोग लिखित भाषा में अधिक होता है जबकि ध्वनि(sound) का प्रयोग बोलने और सुनने में होता है।
वर्ण किसे कहते हैं उदाहरण सहित
वर्ण क्या होता है (varn kya hota hain), alphabet
”आकांक्षा घंटी बजकर पूजा कर रही है।”
इन वाक्यों में शब्द हैं। शब्दों में अनेक ध्वनियाँ हैं इन ध्वनियों से भाषा बनती है। आकांक्षा शब्द की ध्वनियाँ हैं –
आ + कां + क्षा, इन्हें और थोड़ा जा सकता है ।
आ+ क्+आ +न्+क्+ष+आ इन ध्वनियों को और थोड़ा नहीं जा सकता। ये सबसे छोटी ध्वनियाँ हैं। ऐसी ध्वनियाँ वर्ण कहलाती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ‘वर्ण’ वह छोटी-से-छोटी ध्वनि है जिसके और अधिक टुकड़े नहीं हो सकते तथा जिसका संबंध कान से है । इस छोटी इकाई के मिलने से ही शब्द समूह का निर्माण होता है। इस प्रकार वर्ण तथा उच्चारण का बड़ा गहरा संबंध है।
वर्ण किसे कहते है varn kise kahate hain
छोटी से छोटी ध्वनि जिसके और टुकड़े नहीं हो सकते वर्ण कहलाते है।
हिंदी वर्णमाला (hindi varnamala, varnamala in hindi, hindi alphabet)
वर्णमाला किसे कहते है
वर्णों को निश्चित क्रम में लिखना वर्णमाला कहलाता है।
हिंदी में कुल 52 वर्ण है। मूलतः हिन्दी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण (10 स्वर + 35 व्यंजन ) एवं लेखन के आधार पर 52 वर्ण है (13 स्वर + 35 व्यंजन + 4 सयुंक्त व्यंजन ) हैं।
स्वर: अ आ इ ई उ ऊ (ऋ) ए ऐ ओ औ (अं) (अः)
[कुल = 10 + (3)= 13 ]
व्यंजन:
क वर्ग – क ख ग घ ङ
च वर्ग – च छ ज झ ञ
ट वर्ग – ट ठ ड (ड़) ढ (ढ़) ण
(द्विगुण व्यंजन – ड़ ढ़)
(द्विगुण व्यंजन – ड़ ढ़)
त वर्ग – त थ द ध न
प वर्ग – प फ ब भ म
अन्तःस्थ – य र ल व
ऊष्म – श ष स ह
[कुल = 33+(2)= 35]
संयुक्त व्यंजन – त्र(त्+र) ज्ञ(ज्+ ञ)
क्ष(क्+ष) श्र(श्+र)
[ कुल =4]
क्ष(क्+ष) श्र(श्+र)
[ कुल =4]
वर्ण कितने प्रकार के होते हैं
वर्ण दो प्रकार के होते है।
- स्वरवर्ण (vowels)
- व्यंजन वर्ण (consonant)
- अयोगवाह
स्वर वर्ण किसे कहते हैं
जिन वर्णों( ध्वनियों) के उच्चारण में किसी अन्य वर्णों से कोई सहयोग नहीं लिया जाता, उन्हें स्वर वर्ण कहते हैं। हिंदी में 11 मूल स्वर है तथा 1 अन्य स्वर है।
11 मूल स्वर:- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
1 अन्य स्वर:- ऑ (अंग्रेजी शब्द को लिखने के लिए किया जाता है जैसे डॉक्टर, ऑफिस)
अं अँ अः – इन्हें अनुस्वार (अं) अनुनासिक (अँ) और विसर्ग (अ:)कहते हैं। ये भी वर्ण हैं।
स्वर वर्ण को तीन भागों में बांटा गया है-
- हृस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
हृस्व स्वर किसे कहते हैं
ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में सबसे कम समय लगता है उसे ही हस्व स्वर कहा जाता है हृस्व स्वर की संख्या चार हैं- अ इ ई ऋ।
दीर्घ स्वर किसे कहते हैं
ऐसे स्वर जिन का उच्चारण हृस्व स्वर स्वर से दोगुना समय लगता है उसे दीर्घ स्वर कहा जाता है। आ ई ऊ ऋ ए ऐ ओ औ ऑ
प्लुत स्वर किसे कहते हैं
जिन वर्ण का उच्चारण में हृस्व स्वर एवं दीर्घ स्वर से तीन गुणा अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहा जाता है प्लुत स्वर का प्रयोग किसी को पुकारने के लिए तथा मंत्र उच्चारण करने के लिए किया जाता है जिन स्वर का प्लुत के उच्चारण में किया जाता है, उसके आगे हिंदी की गिनती का अंक ३ लगाया जाता है जैसे अरे बेटा३ सुनो३ तो इत्यादि।
नोट्स: स्वरों के ही मात्राएं होती है जो व्यंजन के साथ मिल जाती है जैसे
क् + आ = का
क् + इ = कि
लेकिन ‘ अ ‘ की कोई मात्रा नहीं होती है ये सभी व्यंजन के साथ मिलकर एक पूर्ण व्यंजन या अक्षर का निर्माण करता है जैसे:
क् + अ = क
ट् + अ = ट
स्वरों के लिए एक निश्चित चिह्न निर्धारित किया गया है जिसे ही मात्रा कहा जाता है।
व्यंजन किसे कहते हैं
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं । इनका उच्चारण करते समय हवा मुँह में रुककर बाहर निकलती है । प्रत्येक ऐसे वर्ण के उच्चारण में ‘अ‘ की ध्वनि छिपी रहती है इसके अभाव में व्यंजन का उच्चारण संभव नहीं है; जैसे च्+अ = च बनता है। मूल व्यंजन 33 हैं। ड़ ढ़ भी व्यंजन हैं । वर्णमाला में चार संयुक्त व्यंजनों क्ष त्र ज्ञ श्र को भी शामिल किया गया है। ज़ फ़ भी व्यंजन में स्वीकृत कर लिए गए हैं।
33 मूल व्यंजन:-
क वर्ग – क् ख् ग् घ् ङ्
च वर्ग – च् छ् ज् झ् ञ्
ट वर्ग – ट् ठ् ड् ढ् ण् (द्विगुण व्यंजन – ड़ ढ़)
त वर्ग – त् थ् द् ध् न्
प वर्ग – प् फ् ब् भ् म्
अन्तःस्थ – य् र् ल् व्
ऊष्म – श् ष् स् ह्
4 संयुक्त व्यंजन:- क्ष त्र ज्ञ श्र
4 अन्य व्यंजन:- ज़ ड़ ढ़ फ़
व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं
व्यंजन को तीन भागों में बांटा गया है-
- स्पर्श व्यंजन
- अंत:स्थ व्यंजन
- ऊष्म व्यंजन
स्पर्श व्यंजन किसे कहते हैं
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु कंठ मुर्धा, दांत या होठों का स्पर्श करके मुंह से बाहर निकलता है उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं हिंदी में इनकी संख्या 25 है।
अंत:स्थ व्यंजन किसे कहते हैं
जिन व्यंजनों का उच्चारण स्वर एवं व्यंजन बीच में आती है तो उन्हें अंतर इस व्यंजन कहते हैं इनकी संख्या 4 हैं। अन्तःस्थ – य् र् ल् व्
ऊष्म व्यंजन किसे कहते हैं
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु हमारे मुंह में टकरा कर ऊष्म या गर्मी पैदा करती है उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं इनकी संख्या भी 4 है। ऊष्म – श् ष् स् ह्
संयुक्त व्यंजन किसे कहते हैं
जब दो अलग-अलग व्यंजनों के मिलने से जो व्यंजन बनता है उसे ही संयुक्त व्यंजन कहा जाता है हिंदी के वर्णमाला में 4 संयुक्त व्यंजन को शामिल किया गया है लेकिन इसके अलावा भी हिंदी में बहुत से संयुक्त व्यंजन बनते हैं।
हिंदी वर्णमाला में शामिल 4 संयुक्त व्यंजन है
क् + ष = क्ष (कक्षा, कक्ष)
त् + र = त्र (पत्र, चित्र, क्षेत्र)
ज् + ञ = ज्ञ (अज्ञात, ज्ञानी)
श् + र = श्र (परिश्रम श्रावण)
कुछ अन्य संयुक्त व्यंजन जैसे
श् + च = श्च (निश्चय, पश्चात)
च् + छ = च्छ (कच्छा, बच्छा)
ड् + ढ = ड्ढ (गड्ढा, चड्ढी)
ग् + र = ग्र (ग्रह, ग्रास)
ज् + व = ज्व (ज्वाला, ज्वार)
द्वित्व व्यंजन किसे कहते हैं
ऐसे व्यंजन जो एक ही समान या एक ही जैसे व्यंजनों के मिलने से बनते हैं उसे ही द्वित्व व्यंजन कहा जाता है जैसे
म् + म = म्म (अम्मा, निकम्मा)
क् + क = (पक्का, चक्कर)
च् + च = च्च (बच्चा, सच्चा)
न् + न = ( पन्ना, गन्ना)
प् + प = प्प (पप्पू, चप्पू)
त् + त = त्त (कुत्ता, पत्ता)
अयोगवाह किसे कहते हैं
ऐसे वर्ण जो न तो स्वर होते हैं और न ही व्यंजन ही होते हैं उन्हें अयोगवाह कहते हैं अयोगवाह का अर्थ होता है जो योग न होने पर भी साथ रहता है अयोगवाह भी वर्ण ही है पर इसे स्वर एवं व्यंजन दोनों में ही स्थान नहीं दिया गया है इनकी संख्या 3 है।
- अनुस्वार (अं)
- अनुनासिक (अँ)
- विसर्ग (अ:)
अनुस्वार किसे कहते हैं
अनुस्वार का प्रयोग शिरोरेखा के ऊपर एक बिंदु के रूप में किया जाता है जिसका उच्चारण नाक से किया जाता है। इसका चिह्न होता है . होता है। जैसे डंडा, अंडा, बंगाल, पंजाब, तरंग ।
अनुनासिक किसे कहते हैं
अनुनासिक का भी प्रयोग शिरोरेखा के ऊपर ही किया जाता है इसका चिह्न (अँ) होता है। इसे चन्द्रबिन्दु भी कहा जाता है। इसका उच्चारण नाक एवं मुंह से किया जाता है यह वर्ण के ऊपर लगता है; जैसे गाँव, आँख, चाँदी, खाँसी आदि ।
विसर्ग किसे कहते हैं
विसर्ग का चिह्न : होता है। इसे वर्ण के आगे लगाया जाता है इसका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है; जैसे अतः, प्रातः, नमः आदि।