बिहारी को गागर में सागर भरने वाला कवि क्यों कहा जाता है |
बिहारी लाल हिंदी के ऐसे अद्वितीय कवि है जिन्होंने अपने दोहे की नन्ही सी गागर में भाव और अर्थ का लहराता हुआ सागर भर दिया है बिहारी की कविता में श्रृंगार के मादक चित्र हैं, कल्पना का मोहक सौंदर्य है, भाव की गहराई है, अलंकारों का चमत्कारपूर्ण प्रयोग है।
बिहारी की एक ही प्रसिद्ध काव्य कृति है बिहारी सतसई इसमें राजा जयसिंह के दरबार में रहकर लिखे गए बिहारी के 719 दोहे संग्रहित हैं राजदरबार में रहकर बिहारी ने वैभव विलास देखा था उनमें कला की सूक्ष्म पकड़ और वाणी का कौशल प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति तथा दरबारी वातावरण जैसे प्रवृत्ति उनके दोहे में देखी जा सकती हैं
बिहारी ने कुछ दोहे नीति,ज्ञान और वैराग्य पर लिखे हुए हैं पर इनकी कविताओं में श्रृंगार रस की प्रधानता है। कुछ विशेषताएं जो बिहारी के दोहे में गागर में सागर भरने का काम करता है वह इस प्रकार है
श्रृंगार रस की प्रधानता :
बिहारी ने बिहारी सतसई के मंगलाचरण में श्रृंगार रस की नायिका राधा की स्तुति से प्रारंभ किया है-
मेरी भव बाधा हरौं, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाईं परै श्याम हरित दुति होय।।
बिहारी की दोहे में श्रृंगार रस की प्रधानता सबसे अधिक देखने को मिलती है बिहारी रीतिकालीन श्रृंगार रस के प्रमुख कवि है
श्रृंगार, भक्ति और नीति का मिश्रण : बिहारी श्रृंगार रस के कवि है श्रृंगार रस के अलावे उनकी सतसाई में भक्ति और नीति के दोहे भी पाए जाते हैं जिससे उनके छोटे से दोहें में चार चांद आ जाता है।भक्ति से परिपूर्ण उनके दोहे हृदय को छू लेते हैं इसे हम इस दोहे के माध्यम से आंक सकते हैं-
या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय।
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै श्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्ज्वल होय।।
इसी प्रकार के रस नीति संबंधित दोहे में भी देखा जा सकता है इनके नीति संबंधी दोहे जीवन के ठोस अनुभवों पर आधारित हैं जो हृदय को आघात और प्रभाव डालते रहता हैं।धन संचय के संबंध में उन्होंने कितनी सार्थक नीति बतलाई हैं –
मीत न नीत गलीतु ह्वै, जो धरिये धन जोरि।।
खाये खरचै जो जुरै, तो जौरियै करोरि।।
राधा और श्रीकृष्ण की भक्ति :
बिहारी के दोहे में राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम रस देखने को मिलता है जिस राधा से श्री कृष्ण प्रेम करते हैं बिहारी के अनुसार उसी राधा के दर्शन मात्र से सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं और कहते हैं कि
मेरी भव बाधा हरौं, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाईं परै श्याम हरित दुति होय।।
बिहारी श्री कृष्ण से अत्यंत प्रेम करते थे इस के इस दोहे से स्पष्ट होता है-
सीस मुकुट कटि काछनी,कर मुरली उर माल।
यहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।।
रस की प्रधानता-
बिहारी के दोहे में संयोग और वियोग दोनों ही पक्ष देखने को मिलता है । संयोग पक्ष का एक सुंदर दोहा इसे प्रमाणित करता है –
बतरस लालच लाल की, मुरली दरी लुकाई।
सौंहा करें भवानु हंसे, दैन कहे नटि जाय।।
इसी प्रकार वियोग पक्ष में बिहारी के प्रतिभा निखार कर दिखाई पड़ती है
इत आवत चलि जात उत, चली छ: सहायक हाथ।
चढ़ी हिंडोरें सी रहै, लगी उसासन साथ।।
बिहारी की भाषा शैली :
बिहारी की भाषा ब्रजभाषा है ब्रजभाषा का जैसा मंजा और निखरा रूप बिहारी की कविता में पाया जाता है वैसा किसी भी दोहे में नहीं दिखाई देता है इनकी भाषा में शब्दों की तोड़ मरोड़ भी कम पाई जाती है नए नए गढ़े शब्द भी देखने में नहीं आते जहां-तहां बुंदेलखंडी फारसी आदि भाषाओं के शब्द पाए जाते हैं
अलंकार :
अलंकारों की करी गाड़ी देखने में बिहारी अत्यंत पटु है। उनके प्रत्येक दोहे में कोई न कोई अलंकार आवश्यक पाया जाता है किसी किसी दोहे में चार-चार, पांच-पांच अलंकार देखे जाते हैं
अरूण सरोरुह-कर चरन, दृग खंजन मुख चन्द।
समै आइ सुन्दर सरद, काहि न करत अनन्द।।
समै-समै सुंदर सबै, रूपु- कुरूपु न कोइ।
मन की रुचि-जेती जितै, तित तेती रुचि होइ।।
प्रकृति वर्णन :
कवि ने अपने दोहे में प्रकृति का सुंदर वर्णन किया है जैसे आम की मंजरी का सुगंध, विभिन्न ऋतु एवं वातावरण और भैरव का समूह, प्रचंड ग्रीष्म ऋतु जैसे प्राकृतिक चित्रण इनके दोहे में दिखाई पड़ते हैं-
छकि रसाल सौरभ सने मधुर माधवी गंध।
ठौर ठौर झूमत झपत, भौंर-झौंर मधु अंध।।
निष्कर्ष:
बिहारी अपनी बिहारी सतसई में मात्र 719 दोहे से सबके दिलों में राज़ कर रहा है उनके दोहे में सच्चाई दिखाई पड़ती है उनके दोहे देखने में छोटे-छोटे जरूर होते हैं पर उनके अर्थ में गहराई होती हैं जो इस पंक्ति के माध्यम से स्पष्ट हो जाते है-
सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर।।
अर्थात नाविक के नन्हे नन्हे बाणों के समान बिहारी के छोटे-छोटे दोहे भी हृदय को छेद कर देता है इसी कारण बिहारी को गागर में सागर भरने वाला कवि कहा जाता है।