गद्य शिक्षण के सोपान (gadya shikshan ke sopan)


हिंदी साहित्य के आधुनिक युग को गद्य युग का नाम दिया गया है इसका कारण है गद्य साहित्य की रचना का प्रचार परिणाम एवं उसके विविध रूपों का विकास। गद्य साहित्य की विभिन्न विधाओं एवं शैलियों पर दृष्टि डालने से गद्य की विविधता एवं शक्ति का परिचय अपने आप ही मिल जाता है। गद्य की विभिन्न विधाओं में निबंध, कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, जीवनी, आत्मकथा, यात्रा संस्मरण, रेखाचित्र, आलोचना इत्यादि प्रमुख है। इन सभी साहित्य विधाओं का परिचय गद्य शिक्षण के द्वारा ही संभव है गद्य शिक्षण के सोपान इस प्रकार से हैं –

कहानी कथन विधि या कथात्मक विधि

गद्य शिक्षण के सोपान (gadya shikshan ke sopan)

१. पूर्व ज्ञान :-

पूर्व ज्ञान के आधार पर ही मूल पाठ का प्रस्तुतीकरण किया जाता है शिक्षक को चाहिए कि मूल पाठ में आने से पूर्व छात्रों से उस विषय में उनकी जानकारी का पता लगा ले इसके लिए अध्यापक को छात्रों से कुछ प्रश्न पूछना चाहिए। पूर्व ज्ञान के आधार पर ही प्रस्तावना की सफलता और असफलता निर्भर करती है।

२. प्रस्तावना :-

प्रस्तावना के माध्यम से शिक्षक छात्रों को नयी पाठ से अवगत कराता है पाठ की सफलता के लिए आवश्यक है कि शिक्षक पहले से उसकी तैयारी करें इसके लिए पाठ के प्रारंभ में कुछ प्रश्न बच्चों से किए जाए जिसका संबंध नवीन ज्ञान से हो।

३. उद्देश्य कथन :-

प्रस्तावना के प्रश्नों के द्वारा ही छात्रों को पाठ के उद्देश्य का आभास मिल जाता है परंतु फिर भी शिक्षक को नवीन पाठ के मुख्य उद्देश्य को स्पष्ट कर देना चाहिए।

४. प्रस्तुतीकरण :-

गद्य के पाठ प्राय: लंबे होते हैं अतः उन्हें भाव एवं समानता के आधार पर दो या दो से अधिक भाग में विभाजित करना चाहिए उद्देश्य कथन जैसे ही समाप्त हो वैसे ही पाठ को कक्षा में प्रस्तुत करना चाहिए किसी भी नए पाठ को कई तरीकों से प्रस्तुत किया जा सकता है-
i. शिक्षा के आदर्श पाठ के माध्यम से
ii. शब्दों के अर्थ के द्वारा
iii. मौन वाचन के द्वारा

५. आदर्श वाचन:-

शिक्षक को आदर्श वचन द्वारा पाठ को प्रस्तुत करना चाहिए आदर्श वाचन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
i. पाठ के भाव के अनुसार ही शिक्षक को अपनी मुह मुद्रा (हाव भाव) बनानी चाहिए।
ii. गधे का वचन करते समय विराम इत्यादि चिह्नों का ध्यान रखा जाए तथा उसी के अनुसार ध्वनि का उतार-चढ़ाव भी हो।
iii. वाचन के समय अध्यापक को प्रसन्न मुद्रा में रहना चाहिए।
iv. जिस समय शिक्षक वाचन कर रहा हो उस समय छात्रा इधर-उधर ध्यान ना दें बल्कि पाठ की तरफ ध्यान दें।

६. अनुकरण वाचन :-

आदर्श वाचन के बाद अनुकरण वचन किया जाए छात्रों को अनुकरण वाचन कराने का मुख्य उद्देश्य वाचन कराने का मुख्य उद्देश्य उन्हें वाचन कला में निपुर्ण करना तथा उनके उच्चारण को शुद्ध करना है। छात्रों द्वारा वाचन कराने से संकोच, डर की भावना दूर होती हैं।

७. मौन वाचन :-

मौन वाचन कराने का मुख्य उद्देश्य छात्रों को गद्य पाठ के सार तत्व को समझने तथा मनन करने का अवसर प्रदान करना है।

८. बोध प्रश्न :-

बोध प्रश्न का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है संबंधित पाठ को कहा तक बच्चों ने समझा है इसमें प्रश्न सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिए तथा उसका वितरण पूरे वर्ग समान रूप से किया जाना चाहिए।

९. पुनरावृति :-

बालक को के मस्तिष्क में अर्जित ज्ञान को स्थिर करने के लिए पाठ के अंत में विद्यार्थियों से 3-4 प्रश्न करके संपूर्ण पाठ की जानकारी ली जाए और पढ़ायें गये ज्ञान को स्थाई छात्रों गोगरी कार्य प्रदान किए जाए पूर्णवृत्ति के लिए 34 प्रश्न ही पर्याप्त हैं।

१०. गृह कार्य :-

प्रस्तुत पाठ संबंधी कार्य जैसे शब्द रचना, प्रयोग, भाव अभिव्यक्ति, व्याख्या, सारांश इत्यादि कार्य को छात्र को गृह कार्य के रूप में दिया जा सकता है।

गद्य शिक्षण की विधियां

साहित्य का मुख्य अंग गद्य होता है उसका क्षेत्र व्यापक होता है गद्य शिक्षण के अनेक उद्देश्य है और इसीलिए गद्य शिक्षण की विधियां भी अनेक है परंतु हिंदी शिक्षण का प्रारूप प्रकरण पर निर्भर करता है इस दृष्टि से गद्य शिक्षण को तीन भागों में विभाजित किया गया है और इसमें तीन प्रकार के शिक्षण विधियों को प्रस्तुत किया जाता है –
१. अर्थबोध शिक्षण विधि (प्राथमिक स्तर पर प्रयुक्त)
२. प्रश्नोत्तर विधि (माध्यमिक स्तर पर प्रयुक्त)
३. प्रवचन विधि (उच्च कक्षाओं के लिए प्रयुक्त)

१. अर्थबोध शिक्षण विधि (प्राथमिक स्तर पर प्रयुक्त) :-

इस विधि को उद्बोधन विधि भी कहते हैं इस विधि में कठिन शब्दों का अर्थ बताकर विभिन्न प्रावधान से उद्बोधित इसके लिए शिक्षक प्रत्यक्ष वस्तु, प्रदर्शन प्रक्रिया, चित्र, रेखा चित्र इत्यादि की सहायता लेता है।

२. प्रश्नोत्तर विधि (माध्यमिक स्तर पर प्रयुक्त) :-

इस विधि में प्रवचन विधि की भी सहायता ली जाती है इसमें शिक्षक छात्रों के मुख से ही कठिन शब्दों के अर्थ निकालने का प्रयास करता है किंतु अगर सफलता नहीं मिलती तो वह स्वयं उसका अर्थ बताता है। इस विधि के संपादन में भी अनेक प्रवृत्तियों की सहायता ली जाती है। इस शिक्षण विधि में’शिक्षण सहायक सामग्री’का विशेष महत्व होता है। इसके अतिरिक्त शिक्षक कुछ उदाहरण, पर्यायवाची शब्द, समानार्थी शब्द, अनुवाद और तुलना विधि की भी सहायता ली जाती है।

३. प्रवचन विधि (उच्च कक्षाओं के लिए प्रयुक्त) :-

प्रवचन विधि का प्रयोग उच्च कक्षाओं में किया जाता है इस विधि से शिक्षण का मुख्य उद्देश्य मूल्यांकन अथवा समीक्षा करना है यह शिक्षण विधि अर्थबोध विधि का सुंदर विकसित रूप है।

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