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भूमिका –
उर्दू भाषा के महकवि इकबाल के द्वारा लिखित यह पंक्ति ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां मारा’ मेरे कानों में गूंजने लगती है जब मैं अपने देश भारत की प्राकृतिक छटा, जलवायु, वन-उपवन, कृषि-उत्पादन, उद्योग-धन्धे, प्राचीन इतिहास, भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विषय में चिन्तन करता हूँ। सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जिसकी सभ्यता और संस्कृति उस समय सर्वोत्तम कोटि की थी. जिस समय सारा संसार असभ्य तथा बर्वर जातियों से भरा था। मेरा देश ही वह देश है, जिसने सबसे पहले संसार को ज्ञान का प्रकाश दिया । यह कोरी राष्ट्रीयता नहीं है, निश्चित सत्य है। भारत की विशालता के कारण इसे उपमहा कीप की संज्ञा दी जाती है । कश्मीर से कन्याकुमारी तथा कामाख्या से गुजरात (कच्छ) तक विस्तृत मेरा देश महान है। उत्तर में हिमालय पर्वतराज, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में ब्रह्म प्रदेश और पश्चिम में पाकिस्तान इसकी सीमा निश्चित करते हैं।
देश की नदियाँ –
यह वह देश है, जहाँ गंगा बहती है। गंगा-जीवनदायिनी गंगा, पतीतों का उद्धार करने वाली गंगा-मेरे देश की महान गौरवशाली नदी है। यमुना, महानदी, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, ताप्ती, सतलज, रावी, व्यास तथा अन्य नदियाँ उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी गंगा । ये सभी नदियाँ देश को सींचकर हरा-भरा बनाती हैं और उनको जीवन दान करती हैं। मेरे देश की माटी चन्दन और अबीर है। यह कवि की भावना नहीं, भौगोलिक सत्य है । सम्पूर्ण देश में एक तरह की मिट्टी नहीं मिलती। काली, कपासी उपजाऊ मिट्टी कपास के रूप में सोना उगलती है। गंगा-यमुना के मैदान की नदियों की काँप से बनी मिट्टी साल में तीन-तीन फसलें देती है।
अनोखी जलवायु –
मेरे देश की जलवायु अनोखी है। हर तरह का मौसम यहाँ मिलेगा। छओं ऋतुएं मेरे देश में आती जाती हैं। वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त, बसन्त और ग्रीष्म जिस किसी ऋतु का आनन्द आप लेना चाहें, ले सकते हैं। भौगोलिक परिस्थितियों की अनेकता होते हुए भी मेरा देश एक है। प्राचीन सभ्यता का मेरा देश महान है और इसकी महानता इसी में है कि जिस समय आज के विकसित देश अमेरिका, यूरोप और रूस जंगली जीवन रहे थे, उस समय मेरे देश में उच्च कोटि की सभ्यता पनप रही थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व गंगा-यमुना के मैदान और सिन्धु घाटी के कछारों में विश्व की प्राचीन सभ्यतायें मोहनजो दड़ो और हड़प्पा पूर्ण विकसित अवस्था में थीं। वैदिक कालीन सभ्यता तो आज तक किसी देश में पनप ही नहीं सकी है। कौन सा ऐसा देश है, जो विश्व में सबको सुखी देखना चाहता है। विश्व में सभी सुखी हो, स्वस्थ । हों किसी को कोई भी दुःख न हो, यही भावना मेरे देश की संस्कृति की है। त्याग, तपस्या, दूसरे का हित करने की इच्छा, सहानुभूति, विश्व-बन्धुत्व हमारी संस्कृति के मूल तत्व वैदिक काल से ही विकसित अवस्था में वर्तमान रहे हैं। विश्वप्रेम ही भारत का दूसरा नाम है।
गौरवशाली इतिहास –
किसी देश की महानता उसके इतिहास में निहित होती है। इतिहास का अर्थ है – ‘ऐसा था’, मेरा देश केवल ऐसा था, वरन अब ऐसा है। मेरे देश में जनक, राम, कृष्ण, चन्द्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्य, पृथ्वीराज चौहान, अकबर जैसे आदर्श राजा हुए, व्यास, नारद, सुकदेव, रामानन्द, कबीर, तुलसी, नामदेव, नानक, विवेकानन्द, अरविंद जैसे सन्त पैदा हुए, कर्ण, भीम, अर्जुन, पोरस, राणा प्रताप, शिवाजी, भगत सिंह, आजाद, सुभाष चन्द्र बोस जैसे योद्धाओं ने जन्म लिया, सीता, सावित्री, दुर्गावती, चाँदबीवी, लक्ष्मीबाई, कस्तूरबा, विजयालक्ष्मी, इन्द्रा गाँधी जैसी ललनाओं ने भारतीय नारी की महिमा उजागर की। योग्य तथा कुशल शासकों, वीर तथा योद्धाओं, ऋषि, मुनि तथा समाज सुधारकों, वीर तथा वीरांगनाओं का मेरा यह देश महान है।
वर्तमान भारत –
भारत का अतीत बड़ा गौरवशाली और शक्तिशाली था। उस समय भारत ज्ञान, दर्शन, शक्ति और शान्ति के क्षेत्र में विश्व में सर्वोपरि था । हम महान थे, हमारा राष्ट्र महान था। इस महानताओं का केवल एक रहस्य था-राष्ट्रीय एकता । हमारी एकता में बदल गयी । हम सदियों तक परतन्त्रता के बन्धन में बंधे रहे। आज हम हजारों वर्षों की दासता से मुक्त हैं। स्वतन्त्रता की सुखद साँस ले रहे हैं । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमने अपने गौरव को पुनः प्राप्त किया । हम अपने पड़ोसी देश श्रीलंका, नेपाल, म्यानमार आदि के साथ शान्ति समझौता करके ही चल रहे हैं । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में भी भारत ने ‘शान्ति निर्माता, की महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । गुटनिरपेक्षता की नीति द्वारा विश्व शान्ति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम भारत ने उठाया । आज हमारा देश आर्थिक दृष्टि से भी समुन्नत है । युवा प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के प्रधान मंत्री बनने के बाद देश की प्रगति में एक नया मोड़ आया। विश्व के सभी प्रगतिशील देशों में देश का गौरव बढ़ गया। दिन प्रतिदिन भारत प्रगति के मार्ग पर विकास करता जा रहा है ।