पत्रकारिता से जुड़े कानून,पत्रकारिता सम्बन्धी कानून (journalism law in hindi)

पत्रकारिता सम्बन्धी कानून, प्रेस कानून और आचार संहिता,प्रेस संबंधी प्रमुख कानून, journalism law in india in hindi

प्रेस कानून क्या है

भारतीय संविधान में पत्रकारिता जगत की स्वतंत्रता का अलग से उल्लेख नहीं किया गया है। पर यह आम नागरिक या संस्थाओं के लिए निर्धारित न्याय संहिता अर्थात कानून के दैरे में लाता है। लोक तंत्रिक व्यवस्था के अनुरूप एक आम आदमी और मीडिया दोनों के लिए लगभग समान अधिकार और कानून है । इसके बावजूद प्रेस या मीडिया के लिए कुल विशेष कानूनों का पालन करना  सक्त जरूरी है क्योंकि यह क्षेत्र सर्वाजनिक है और इसका  प्रभाव एक ही समय में बड़ी संख्या में लोगों पर पड़ता है।

कुछ ऐसी कानून जो पत्रकारिता जगत से सीधे-सीधे जुड़े होते है और उनका पालन जनहित में अनिवार्य होता है। वे प्रेस कानून या पत्रकारिता से जुड़े कानून की श्रेणी में रखी जा सकते हैं ऐसे ही कुछ कानून निम्नलिखित है।

 

1) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 14 (क) 1):

लोकतंत्र में व्यक्ति की स्वतंत्रता पहली शर्त है जिसका अर्थ है बातों को जानने और अपने विचारों को प्रकट करने की

स्वतंत्रता चुकि अभिव्यक्ति का सर्वोतम माध्यम प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया है इस लिए मीडिया को यह अधिकार मिलता है कि वह एक ही समय में विभिन्न तथा विरोधाभासी विचारों जनता के सामने प्रस्तुत कर सकता है संविधान 19 क 1में इसका स्पष्ट उल्लेख है।

इस तरह से पत्रकारिता जगत की स्वतंत्रता के अन्तर्गत किसी भी विषय पर विचार प्रकट करने मत बनाये बिना

सरकारी हस्ताक्षेप के सूचना था समाचार प्राप्त करने और उन्हें प्रकाशित था प्रसारित करने का अधिकार शामिल है। परन्तु अवस्ताविक या प्रभावहीन जानकारी जनता तक पहुँचाने तक संबंधित समाचार और रेडियो या टीवी चैनलो के सम्पादक या मालिक के विरुद्ध कानूनी कारवाई की जा सकती है इसके अन्तर्गत सश्रम करावास, आर्थिक दण्ड या विशेष की पबंदी जैसे दण्ड का प्रावधान है।

 

2) मानहानि – (124 A क)

किसी व्यक्ति संस्था या समूह की दुर्भावना वश मानहानि करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है इसमें व्यक्ति था संस्था से संबंधी समाचार के झूकने अप्रमाणिक और व्देष के कारण प्रसारित या प्रकाशित करने का प्रावधान है।

भारतीय संविधान की धारा 499 में मानहानि से संबंधीत स्थिति की याख्या की गई है ।

जो किहीं शब्दों के द्वारा बोले गये हो पढ़े जाने के लिए हो या संकेत करते हो और जिसमें किसीप्र कार दर्शनीय अभिव्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति के संबंध में कोई ऐसा अभियोग लगाया गया हो जिससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचे तो वह मानहानि का दोषी होगा।

परन्तु यदि किसी व्यक्ति या संस्था पर आरोप सिध्द हो चुका है। तो उसकी प्रतिष्ठा पर आंच लाने वाली बाते जनहीत में प्रकाशित और प्रसारित की जा सकती है तथा उससे मानहानि होने पर भी यह दण्डनीय अपराध नहीं होगा।

मानहानी के लिए दो वर्ष का करावास या आर्थिक दण्ड का प्रावधान है। गलत शिर्षक, गलत नाम, आपतिजानक चित्र अपराधी के साथ संबंध बाताना भी मानहानी के अन्तर्गत आता है मानहानि का दावा मृतकों के मामला किसी के द्वारा उठाया होता है।

न्यायालयों की मानहानि या अवमानना :-

किसी मुकदमे के संबंध में न्यायालय को लेकर गलत,भ्रामक एकपदिय अथवा मानमने दग से लिखी गई कार्यवाही का प्रकाशन या प्रसारण न्यायालय की अवमानना मानी जाती है। इसी तरह किसी भी न्यायाधिश के कार्य अथवा व्यवहार अथवा निर्णय या निर्णय के कारणों पर गलत टिप्पणी करना प्रभाव अलने का प्रयत्न करना भी न्यायालय की अवमानना करने के अन्तर्गत लाता है। गवाही के बयान को तोड़ मोड़कर पेश करना भी न्यायालय के विरुद्ध पत्रकारिता जगत का दोष सिद्ध करता है।

 

(3) संसद विधानसभा तथा विधान परिषद से जुड़े कानून हनन-

क) विशेष अधिकार का हनन (अनुच्छेद 24) 

संसद विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों तथा अधिकारियों के विशेष अधिकार के संरक्षण के लिए यह कानून बनाया गया है। उनके अधिकारी का हनन नहीं हो इसके लिए पहली शर्त है कि इन सांसदों की कार्यावही सही और निष्पक्ष रूप से प्रकाशित और प्रसारित की जाए। इन सदनों की गुप्त कार्यवहीयो और समितियों की अन्य गतिविधियों का अनाधिकृत प्रकाशित और प्रसारण विशेष अधिकर का हनन माना जाता है इसके लिए संबंधित व्यक्ति या संस्था को दण्डित किया जा सकता है।

 

ख) सदन की कार्यावही का प्रकाशन या प्रसारण का संरक्षण 

1954 में बने इस कानून को फिरोज गांधी कानून भी कहा जाता है इसमें संसद और विधानसभाओ की कार्यवाहियों का प्रकाशन और प्रसारण का अधिकार दिया गया है इसका उद्देश्य आम जनता को उनके प्रतिनिधियों के आचरण और उनके कार्यों से प्रत्यक्ष रुप से अवगत कराना है अपतकाल के समय कुछ वर्षों के लिए इस कानून को हटा दिया गया था बाद में इसे पुनः लागू किया गया ।

 

(4) सर्वाधिकार (संरक्षण कानून) कॉपी राइट एक्ट (अनुच्छेद 14) :-

भारतीय सर्वाधिकार संरक्षण कानून में साहित्य, संगीत, नाटक, चित्र या दृश्य, सिनेमा या ग्रामा फोन रिकॉर्ड आदि में निहित लेखक रचनाकार या सर्जक के स्वामीत्व की रक्षा का प्रावधान किया गया है। कॉपी राइट कानून के अन्तर्गत उदाहरण के रूप में किसी अंश के उपयोग करने या रचना या कृति पर आलोचना समालोचना करने की स्वतंत्रता है परन्तु पूरे पृष्ठ या रचना अथवा कृति को बिना प्रकाशन अधिकार के पुन: प्रकाशित या प्रसारित करना दण्डनीय अपराध है रचना के अनुवाद के लिए भी लेखक अथवा प्रकाशक से अनुमति लेना आवश्यक  है। कॉपी राइट में साहित्यिक कृतियों के अलवा उनके अनुवाद अथवा नाटय या काव्य -रूपान्तरण करना भी वर्णित है । कॉपी राइट अधिकार रचनाकार के जीवन काल और उसकी मृत्यु के 50 वर्षों तक मान्य होती है। लेकिन सर्वजानिक भाषण घोषणा समाचार या रिपोतार्ज आदि पर कॉपी राइट आदि कानून लागू नहीं होता। केवल कुछ विशेष समाचारों जिन्हें एक्सक्यूलिसीप कहा जाता है जो किसी चैनाल या समाचार पत्र की नीजी संपति के रूप में होते हैं उनका बिना अनुमति उपयोग दंडनीय अपराध की श्रेणी में जाता है ।

5) आपतिजनक विज्ञापन (अनुच्छेद 21) :

पगलपन, मिग्री और कई असदस्या रोगों और कोढ़, स्त्री
रोगों और गुप्त रोगो साहित कुल 54 रोगों से संबंधित उपचार का दवा करने वाले विज्ञापनो के प्रकाशन और प्रसारण पर कानूनी प्रतिबंध है इसके उलंघन पर करावास और आर्थिक दण्ड का प्रावधान है।
 आपत्तिजनक विज्ञापनो को निम्नलिखित श्रेणीयों में रखा गया है-
क) भ्रामक विज्ञापन : 
ऐसे विज्ञापन जिनसे वास्ताविक स्थिति को लेकर भ्राम होता हो प्रकाशित या प्रसारित नहीं किये जा सकते जैसे:-किसी सौदर्य उत्पाद से त्वाचा का रंग बदलाना, किसी विशेष प्रकार के बर्तन में खाना जल्दी पकना, किसी विशेष कपड़े के उपयोग से गर्मी नहीं लाना ।
        चुकि उपभोवतावाद के इस दौड़  में अपने उत्पाद या सबान को सर्वश्रेष्ठ करने श्रीब की ओड़ में सभी कम्पनियाँ शामिल है अतः ऐसे विज्ञापनों के साथ एक वैधानिक सूचना जारी की जाती है-

उत्पाद के विषय में काल्पनिक प्रस्तुति दी गई है जिसका यथार्थ से मिलना अनिवार्य नहीं है।

ख) चमात्कारी औषधि निदान (संशोधन) अधिनियम अनुच्छेद 42 (3) :
 किसी भी पध्दति की दवा चाहे वह  होमोपथी, आर्युवेदिक, यूनानी, जापानी, प्राकृतिक चिकित्सा या अंध विश्वास पर
आधारित हो यदि यह दवा करती है कि उसके उपयोग मात्र से मन चाही स्थिति मिल जाएगी तो उसके विज्ञापन का प्रकाशन या प्रसारण नहीं किया जा सकता है।
ग) हानिकारक विज्ञापन अनुच्छेद 93 (1) :
किशोरो और युवाओं को दुष्ठप्रभावित और पथभ्रष्ट करने वाले विज्ञापन के पत्रकारिता के माध्यम से प्रस्तुत करने पर प्रतिबंध है। शराब, अफीम या अन्य नशीले पदार्थों से संबंधीत विज्ञापन
प्रकाशित था प्रसारित हो रहा है।
 सिगरेट और सोडा के विज्ञापन अखबारों के लिए पूरी तरह से प्रतिबंध है पर रेडियो, टीबी के माध्यम देर रात इसका प्रसारण किया जा सकता है।
घ) व्यस्क विज्ञापन :-
व्यस्की से जुड़े सभी विज्ञापन प्रकाशित रूप में केवल अलग पर्चे द्वारा ही किये जा सकते हैं समाचार पत्रों में इनका प्रकाशन दण्डनीय अपराध है । रेडियो और टी०वी०  पर देर रात और एक दिन में अधिकतम तीन बार का प्रसारण किया जा सकता है।

6) संख्यिकीय अधिग्रहण अधिनियम (अनुच्छेद 32):

सामान्य जन तक सूचना और जानकारी पहुंचाने के लिए पत्रकारों को आंकड़े जमा करने और, आवश्यकतानुसार उन्हें प्रस्तुत  करने का अधिकार दिया गया है। विभिन्न मंत्रालय और सरकारी विभागों से संख्यिकीय सूचनाएँ केवल पत्रकार ही प्राप्त कर सकते हैं। आम नागरिकों को यह अधिकार नहीं है पर इसके लिए संबंधीत मंबाल मंत्रालय या विभाग से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। बिना औपचारिक और लिखित अनुमति के आंकड़ी के किसी भी अंश का प्रकाशन या प्रसारण दण्डनीय आपराध है।

7) भारतीय सरकारी रहस्य अधिनियम अनुच्छेद 51 (2)

राष्ट्र की सुरक्षा और हित को ध्यान में रखकर कुछ स्थानों में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश संवैधानिक रूप से वर्जित घोषित किया गया है जैसे राष्ट्र के सैन्य ठिकानों रक्षा मंत्रालयो की गोपनिय इकईयों और वृत या संसाधन मंत्रालयो एवं विभागों के निजि प्रकोष्ठ आदि में जाने की अनुमति पत्रकारो को भी नहीं है।
         इस कानून के अन्तर्गत इन स्थानों के चित्र, मनचित्र, संकेत, सरकारी दस्तावेज, गुप्त योजनाएँ और सैन्य गतिविधियों से संबंधित समाचार प्रकाशित या प्रसारित करना दण्डनीय अपराध है राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधीत अन्य गोपनिय सूचना का अनाधीकृत संकलन भी नहीं किया जा सकता है। इन अपराधों के लिए 14 वर्ष की कैद की सजा निर्धारित की गई है, दोषी अखबार या चैनाल को हमेशा के लिए बंध भी किया जा सकता है।

8) विदेश संबंध कानून अनुच्छेद 153 (1) :

 इस कानून के अन्तर्गत मित्र देशों के बीच मित्रता पूर्ण संबंधो को बिगड़ने वाले वक्ताण्यों और विचारों प्रकाशन भी प्रसारण पर प्रतिबंध है दूसरी ओर शत्रु या प्रतिस्पर्धी राष्ट्रों की हमारे देश के विरूद्ध की गई कार्यवाहियों या दिये गये वक्तव्यों का समर्थन करना दण्डनीय अपराध है उस अपराध को राष्ट्र द्रोह के समकक्ष माना गया है इसके लिए आर्थिक दण्ड सहश्राम करावास और प्रकाशन और प्रसारण रद्द करने जैसी सजा का प्रावधान है।

9) समाचार पत्र कानून:

यह कानून केवल समाचार पत्रों के लिए बनाया गया है इसके अन्तर्गत प्रत्येक अखबार का पंजीकरण करना अनिवार्य है अन्यतः उसे मिलने वाले सरकारी लाभ और सुविधाओं से वांचित रहना पड़ता है इसके अतिरिक्त प्रत्येक समाचार पत्र को अपने प्रकाशित पत्र की पाँच प्रतियाँ नि: शुल्क रूप से पाँच सर्वजानिक पुस्तकालयों को भेजना अनिवार्य है इस नियम का उलांघन होने पर अखबारी कागज़ (न्यूज प्रिंट) के कोटे में कटावती की जा सकती है। रेडियो और टीवी के चैनेलो के संबंध में किसी व्यवस्थाय को अराभ्य नियम ही लागू होते है।

10) श्रमजीवी पत्रकारिता कानून:

पत्रकारों के हितों के संरक्षण लिए 1955 में केन्द्र सरकार ने एक कानून बनाया है। जिसका  मुख्य उद्देश्य वेतन मंडलो की नियुक्ति एवं गठन करना और उनके अधिकारों को “सुनिश्चित करना है। इस कानून के अन्तर्गत पत्रकारों काम के घण्टे, वेतन अन्य सुविधाएँ कार्य अवकाश और कि पेंशन आदि की व्यवस्था होती है इसी कानून के अंतर्गत विशेष रिपोर्ट के लिए पत्रकारों को प्रबंधन द्वारा सुरक्षा और संरक्षण दिए जाने का प्रावधान है।
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