बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय (Balkrishna Bhatt Biography)
बालकृष्ण भट्ट का जन्म 3 जून 1844 ई. में प्रयाग में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित वेणी प्रसाद था। बालकृष्ण भट्ट के पूर्वज मालवा के रहने वाले थे, किंतु बाद में वे बेतवा नदी के तट पर बसे हुए जाटकारी नामक ग्राम में रहने लगे थे। पंडित वेणी प्रसाद के पिता पंडित बिहारी लाल जटकारी से प्रयाग आ गये और वही बस गये। यहीं पर बालकृष्ण भट्ट का जन्म हुआ। बालकृष्ण भट्ट के आरंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई। बाद में उन्हें अंग्रेजी शिक्षा के लिए प्रयाग के मिशन स्कूल में दाखिला कराया गया। यहां उन्होंने दसवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की।
मिशन स्कूल छोड़ने के बाद वे जमुना मिशन स्कूल में संस्कृत के शिक्षक नियुक्त हो गए। स्वतंत्र प्रकृति और धर्म के प्रति निष्ठावान होने के कारण वहां वे अधिक दिन तक कार्य नहीं कर सके और वहां से सेवा मुक्त हो गए। कुछ समय तक उन्होंने व्यापार भी किया, किंतु उसमें भी उन्हीं सफलता नहीं मिली। अंत में उन्हें हिंदी की सेवा में पूर्णतः जुट जाने का अवसर मिला। वे तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में निबंधादि प्रकाशनार्थ भेजने लगे। इनके प्रकाशन से उन्हें ख्याति मिली। 1877 में ‘हिंदी प्रदीप’ नामक मासिक पत्र के संपादक हुए। संपादन के क्षेत्र में आने वाली सभी कठिनाइयों को जलते हुए भी उन्होंने 32 वर्ष तक इसका संपादन किया। इसी बीच में कायस्थ पाठशाला में संस्कृत के अध्यापक हो गए। इस पत्र को चलाने के लिए वहां से प्राप्त अपने वेतन को भी वह खर्च कर देते थे। कायस्थ पाठशाला से संबंध विच्छेद हो जाने के पश्चात आर्थिक कठिनाई के कारण उन्हें हिंदी प्रदीप का प्रकाशन बंद करना पड़ा। उन्होंने प्रयाग में ‘भारती भवन पुस्तकालय’ की स्थापना कीी। कुछ समय तक उन्होंने ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ से प्रकाशित होने वाले हिंदी शब्द सागर का भी संपादन किया। उनकी तबीयत ठीक ना होने के कारण उन्हें इस सेवा से भी मुक्ति लेनी पड़ी है। 20 जुलाई सन् 1914 में वे इस दुनिया को छोड़ कर चले गए।
बालकृष्ण भट्ट की रचनाएं
बालकृष्ण भट्ट अपने जीवन काल में पत्र संपादन के अतिरिक्त नाटक, उपन्यास और निबंधों में भी अपना योगदान दिया। वे अपने पत्र के द्वारा हिंदी की उन्नति और प्रचार में पूर्ण योगदान दिया। भारतेंदु मंडल के सदस्यों में बालकृष्ण भट्ट प्रमुख थे। उन्होंने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं को पुष्ट किया। नाटक, कहानीी, उपन्यास और निबंध लिखकर उन्होंने हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाया। भट्ट जी गद्य काव्य और भावात्मक निबंधों के प्रथम लेखक माने जाते हैं।
बालकृष्ण भट्ट की प्रमुख रचनाओं की सूची इस प्रकार है:-
उपन्यास: नूतन ब्रह्माचारी, सौ अजान एक सुजान।
नाटक: शिक्षा दान, पद्मावती, शर्मिष्ठा, दमयन्ती स्वयंवर, रेल का विकट खेल, बाल विवाह, कलिराज की सभा, बृहन्नला, चंद्रसेन, नई रोशनी का विष, आचार विडंबन, पृथु चरित, बेणु- संहार, मृच्छकटिक आदि।
निबंध संग्रह: साहित्य सुमन, भट्ट निबंधावली ( दो भाग)
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बालकृष्ण भट्ट की साहित्यिक योगदान
बालकृष्ण भट्ट उच्च कोटि के साहित्यकार थे। उन्होंने दो प्रमुख पत्र ‘हिंदी प्रदीप और हिंदी शब्द सागर’ की संपादन किया। अपने पत्र के द्वारा हिंदी की उन्नति और प्रचार में अपना पूर्ण योगदान दिया। उन्होंने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं को आगे बढ़ाने मैं काफी मदद की वे नाटक, कहानी, उपन्यास और निबंध लिखकर हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाया।
बालकृष्ण भट्ट ने गद्य काव्य और भावात्मक निबंधों के प्रथम लेखक माने जाते हैं। भावात्मक निबंध की दृष्टि से चंद्रोदय शीर्षक उनके निबंध को विशेष ख्याति मिली। भावात्मक निबंधों के अतिरिक्त उन्होंने विचारात्मक निबंधों की भी रचना की जिसमें आंसू, माता का स्नेह, शब्द की आकर्षण शक्ति, आशा, आत्मनिर्भरता आदि प्रमुख है। उन्होंने छोटी से छोटी विषय पर भी निबंध लिखे हैं और गंभीर से गंभीर विषय पर भी विचार व्यक्त किए हैं। साधारण से साधारण विषय जैसे नाक, कान, आंख पर भी उन्होंने गंभीरता से विचार किए हैं। उनके भावात्मक निबंधों को देखकर विचारक उन्हें हिंदी का चार्ल्स लैम्ब कहते हैं।
उपन्यासकार की दृष्टि से उन्होंने सामाजिक विषय पर दो पुस्तके लिखीं। नाटककार के रूप में उन्होंने विविध विषयों पर नाटक लिखे जैसे स्वयंवर, पृथु चरित, चंद्रसेन, दमयंती आदि इनकी पौराणिक नाटक है। शिक्षा दान, नई रोशनी का विष आदि प्रहसन हैं। पद्मावती तथा शर्मिष्ठा बांग्ला का अनुवाद है। रेल का विकट खेल और बाल विवाह सामाजिक नाटक है। बालकृष्ण भट्ट निबंधकार और संपादक थे और अपनी संपादन कला तथा निबंध कला के लिए विख्यात हैं।
बालकृष्ण भट्ट की भाषा शैली
बालकृष्ण भट्ट की भाषा शुद्ध हिंदी है, किंतु उसमें संस्कृत अरबी फारसी तथा अंग्रेजी के नित्य प्रति के व्यवहार में आने वाले प्रांतीय शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ अरबी फारसी आदि शब्दों से युक्त भाषा ‘कल्पना, आत्मनिर्भरता’ आदि निबंधों में इसी प्रकार की भाषा का प्रयोग भट्ट जी ने किया है। भट्ट जी के भावात्मक निबंधों की भाषा अधिक आलंकारिक है। इसमें उपमाओं का विपुल प्रयोग है। चंद्रोदय में इसी प्रकार का भाषा देखने को मिलता है। उनकी भाषा में कहीं-कहीं पूर्वी प्रयोग और व्याकरण दोष भी दिखाई पड़ता है। गंभीर विषयों के प्रतिपादन के लिए उन्होंने मुहावरे और कहावतों का भी प्रयोग किया है।
शैली की दृष्टि से भट्ट जी ने मुख्यत: समास-शैली को अधिक बल दिया है किंतु उनके निबंधों में कहीं-कहीं ब्यास शैली का भी प्रयोग हुआ है। उनके वाक्य लंबे होते थे। व्यवहारिक तथा सामाजिक विषयों पर लिखते समय उन्होनें वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। उन्होंने भावात्मक शैली का भी प्रयोग अपने रचनाओं में किये है इस प्रकार से लिखें गये रचनाओं की भाषा शुद्ध हिंदी है। भाटी जी के निबंधों की तीसरी शैली व्यंग्यात्मक है।