दीपदान एकांकी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण (deepdan ekanki ke pramukh patra ka charitra chitran)
आप सभी पाठकों का इस नए आर्टिकल के साथ स्वागत करता हूं आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से रामकुमार वर्मा द्वारा रचित सुन्दर एकांकी दीपदान के निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर पढ़ने जा रहें हैं इन प्रश्नों का उत्तर एक ही है –
१. दीपदान एकांकी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथवा
२. दीपदान एकांकी के आधार पर पन्नाधाय की चारित्रिक विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए।
अथवा
३. दीपदान एकांकी में पन्ना धाय का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथवा
४. सिद्ध कीजिए कि पन्ना की चरित्र में मां की ममता राजपूतानी का रक्त, राजभक्ति और आत्मात्याग की भावना है।
उत्तर: पन्नाधाय डॉ रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित ‘दीपदान’ नामक एकांकी की प्रमुख नायिका पात्र है। संपूर्ण एकांकी उसके इर्द-गिर्द ही घूमती है। इस एकांकी में उसका चरित्र एक वीरांगना के रूप में प्रस्तुत हुआ है। यह वह भारतीय नारी है जिसके ऊपर प्रसाद जी का कथन बिल्कुल से ठीक बैठता है-
” नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्व रजत पग तल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन की सुंदर समतल में।”
पन्नाधाय में हमें एक साथ पृथ्वी जैसी क्षमता, सूर्य जैसे तेज, समुद्र जैसी गंभीरता, चंद्रमा जैसी शीतलता तथा पर्वतों के समान मानसिक उच्चता दिखाई पड़ती है। वह चित्तौड़ के महाराणा सांगा के 14 वर्षीय पुत्र उदय सिंह की धाय है।
पन्नाधाय की चरित्र की विशेषताओं को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत देख सकते हैं:-
१. ममतामयी मां:-
पन्ना को प्रत्येक मां की तरह अपने पुत्र चंदन से बहुत ही गहरा लगाव है। उसके हृदय में अपने पुत्र चंदन के प्रति ममता का सागर उमड़ता है। वह अपने पुत्र चंदन को बहुत प्यार करती है एक मां के लिए अपने खुद के पुत्र का बलिदान करना कितना कठिन होता है किंतु पन्ना अपने फर्ज के आगे अपने पुत्र चंदन को कुर्बान कर देती है। पन्ना चंदन को खिला-पिला कर उसे बहुत प्यार करती हुई उदय सिंह के पलंग पर सुला देती है।
२. राज भक्ति:
पन्ना के चरित्र के अंदर राज भक्ति का गुण कूट-कूट कर भरा हुआ है। वह अपने मालिक की पूर्ण विश्वासी है। कुंवर उदय सिंह की रक्षा करना वह अपना परम कर्तव्य मानती है। वह अपने कर्तव्य के पालन के लिए अपने पुत्र की रक्षा न करके अपने स्वामी के पुत्र की रक्षा करती है। इसलिए कुंवर उदय सिंह के प्राणों की रक्षा के लिए अपने पुत्र को बनवीर की तलवार की धार पर सुला देती है। इस प्रकार वह अपने प्राण और पुत्र की बाजी लगाकर उदय सिंह के प्राणों की रक्षा कर लेती है।
३. दूरदर्शिता:
पन्ना एक दूरदर्शिता धाय मां है। वह बनवीर की साजिश को जल्द ही समझ जाती है और कुंवर उदय सिंह को कीरत बारी की टोकरी में छिपाकर राजमहल से बाहर निकलवा देता है और उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देती है तथा उसके स्थान पर अपने इकलौते पुत्र चंदन को कुंवर उदय सिंह के पलंग पर सुला देती है।
४. साहस और शौर्य की मूर्ति:
पन्ना एक आदर्श क्षत्राणी है। वह किसी से भी नहीं डरती है और ना ही किसी के सामने घुटने टेकती है। वह अपने कर्तव्य की रक्षा के लिए शत्रु से लड़ना भी जानती है। वह बालवीर पर तलवार से प्रहार भी करती है।
इसे भी पढ़ें: दीपदान एकांकी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए
५. निर्लोभी :
पन्ना में किसी प्रकार का लोभ नहीं है। बनवीर उसे जागीर का लालच देकर अपने तरफ मिलना चाहता है किंतु पन्ना ने बनवीर द्वारा दिए गए लालच को ठुकराते हुए कहती है –
” राजपूतानी व्यापार नहीं करती, महाराज! वह या तो रणभूमि पर चढ़ती है या चिता पर।”
६. त्याग और बलिदान की मूर्ति:
पन्ना के चरित्र के अंदर त्याग और बलिदान का गुण कूट-कूट कर भरा हुआ है। पन्ना का त्याग भारतीय इतिहास में अमर है। उसमें अटूट कर्तव्यनिष्ठा है उसने चित्तौड़ के कुंवर उदय सिंह की रक्षा के लिए अपने पुत्र चंदन को बलिदान कर दिया जो किसी भी मां के लिए आसान कार्य नहीं है।
७. धैर्यवती:
पन्ना में धैर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है। वह अपने कर्तव्य पथ से बिल्कुल भी विचलित नहीं होती है यही कारण वह अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र का वध होते देखती है।
८. निर्भीक:
पन्ना बिना डरे बिना किसी दबाव में आए बहादुरी से काम करती है पन्ना को बनवीर के षड्यंत्र के बारे में पता था बनवीर द्वारा उसे लालच भी दिया गया फिर भी वह अपने कर्तव्य पथ पर चली और अकेले ही निडर होकर बनवीर का प्रतिरोध करती है।
९. कमल सा कोमल और वज्र सा कठोर हृदय:
पन्ना का हृदय कमल से भी अधिक कोमल है और वज्र से भी कठोर है। एक ओर उसके हृदय में अपने प्यारे चन्दन के प्रति ममता का सागर उमड़ रहा है तो दूसरी ओर कर्तव्य के प्रति जागरूक उसके हृदय में वज्र की सी कठोरता भी है।
पन्ना का चरित्र भारतीय इतिहास के पन्नों में उज्जवल नक्षत्र के भांति जगमगाता रहेगा। उसने चित्तौड़ के कुंवर की रक्षा के लिए जिस तरह भक्ति का परिचय दिया है उसका उदाहरण विश्व के इतिहास में मशाल लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगा।