किशोरावस्था में मानसिक विकास kishoravastha me mansik vikas
किशोरावस्था में बालक का मानसिक विकास उचित परामर्श की अपेक्षा रखता है। अध्यापकों तथा अभिभावकों को इस अवस्था में होने वाले किशोर के मानसिक विकास की जानकारी प्राप्त करके उसे दिशाबोध देने का महत्त्वपूर्ण दायित्व निर्वाह करना चाहिए।
किशोरों में मानसिक विकास इस प्रकार परिलक्षित होता है-
(1) किशोरावस्था में किसी वस्तु या विषय के प्रति ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता विकसित हो जाती है। वह अमूर्त चिन्तन (Abstract thinking) कर सकता है। बाल्यकाल की चंचलता समाप्त हो जाती है। उसके ध्यान की अवधारणा (Concentration) में बाह्य परिस्थितियों की वाधा कम पड़ती है।
(2) किशोर की स्मरण शक्ति विकसित हो जाती है। स्थायी स्मरण योग्यता बढ़ जाती है। लड़कियों में लड़कों की अपेक्षा रटन्त (Cramming) शक्ति बढ़ जाती है।
(3) इस अवस्था में कल्पना-शक्ति विकसित हो जाती है। इन कल्पना शक्तियों के आधार पर ही वह अपनी आंतरिक शक्तियों का विकास करता है। दिवास्वप्न Daydreaming) में भी वृद्धि होती है। कल्पना का विकास लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा अधिक होता है।
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(4) तर्क-शक्ति के विकास के कारण किशोर तर्क के अभाव में किसी बात को स्वीकार नहीं करता। प्रत्येक समस्या के विषय में उसमें प्रश्न करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। वातावरण से ज्ञान प्राप्त करने की प्रवृत्ति का विकास भी होता है।
(5) किशोरावस्था में रुचि का विकास तेजी से होता है और उनकी रुचि विशिष्ट रुचियों की ओर विकसित हो जाती है। ये रुचियाँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं।
(6) इस अवस्था में लड़के तथा लड़कियों के खेल की रुचि भिन्न हो जाती है। लड़के सामूहिक खेल खेलने में रुचि रखते हैं, जैसे फुटबाल, कब्बडी आदि। लड़कियाँ नाचने गाने, ड्रामा, संगीत आदि में अधिक रुचि लेती हैं।
(7) किशोरावस्था में शरीर के प्रदर्शन की भावना भी विकसित होने लगती है। लड़के अपने शरीर की माँसल बनाते हैं एवं लड़कियाँ श्रृंगार-सामग्री का अधिक अच्छी तरह उपयोग करने लगती हैं।
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(8) स्वतन्त्र पठन (Independent reading) की रुचि भी विकसित हो जाती है। लड़के वैज्ञानिक साहित्य, हास्य, देश-प्रेम, रोमांच (Adventure) तथा यौन-साहित्य पढ़ने का प्रयत्न करते हैं। लड़कियाँ प्रेम कहानियाँ तथा लुकछिप कर यौन-साहित्य भी पढ़ती हैं। लड़कों को समाचार पत्रों में खेल के स्तम्भ (Sport column) पढ़ने में भी रुचि हो जाती हैं।
(9) किशोरावस्था में सिनेमा देखने, रेडियो से हास्य वार्तायें, झलकियाँ, फिल्मी गाने आदि सुनने का शौक बढ़ जाता है। लड़के साहित्य, स्टंट चलचित्र देखने में अधिक रुचि लेते हैं तो लड़कियों रोमांसपूर्ण, सुखान्त एवं धार्मिक चित्र देखना पसन्द करती हैं। रेडियो पर भी उनकी रुचि हास्य, रोमांस तथा मनोरंजनात्मक कार्यक्रम सुनने की रहती है।
(10) किशोरावस्था में बातचीत के विषय का निर्धारण होता है। लड़कों की बातचीत का आचार खेल तथा सिनेमा होते हैं। वे सामाजिक कार्यों में भी रुचि लेने लगते हैं। लड़कियों के विषय में भी लड़के बातचीत किया करते हैं। लड़कियाँ अपनी सहेलियों से व्यक्तिगत समस्याओं, लड़कों के सम्बन्ध एवं सामाजिक क्रियाओं के विषय में बातचीत करती हैं। लड़के खेल तथा यात्रा सम्बन्धी बातों में अधिक रुचि लेते हैं।
(11) इस अवस्था में किशोर अपने भविष्य की योजनायें बनाने लगते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि निर्धन परिवारों के किशोर अपने माता-पिता का व्यवसाय अपनाने में रुचि नहीं रखते। धनी परिवारों के किशोर माता-पिता का व्यवसाय अपनाने में रुचि रखते हैं। सामान्यतया डाक्टरी, इन्जीनियरिंग, वकालत, प्रशासनिक व्यवसायों को ग्रहण करने की दिशा में किशोर प्रयत्नशील रहते हैं। लड़कियों की रुचि डाक्टर, नर्स, लेखिका, अध्यापिका, सामाजिक कार्यकत्री, अभिनेत्री आदि बनने की होती है।
(12) बुद्धि का अधिकतम विकास -किशोरावस्था में बुद्धि का विकास अपनी ऊँचाई पर पहुँच जाता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिक बुद्धि के पूर्ण विकास के लिए विभिन्न आयु सीमाएं मानी जाती हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि 16 वर्ष तक, कुछ के अनुसार 18 वर्ष तक बुद्धि का पूर्णरूप से विकास हो जाता है। मनोवैज्ञानिक वुडवर्थ 20 वर्ष की आयु को बुद्धि के पूर्ण विकास की सीमा मानते हैं।
(13) रूचियों में विविधता
किशोरावस्था में रुचियों का विकास अत्यंत तेजी से होता है। यहाँ, बालक और बालिकाओं के बीच कुछ रुचियाँ समान होती हैं, जबकि कुछ अलग होती हैं। जिन रुचियों में समानता होती है, उनमें भावी जीवन और व्यवसाय, फिल्में देखना, गाना सुनना आदि शामिल है। इसके साथ ही, बालकों में खेल और व्यायाम की अधिक रुचि होती है, जबकि किशोरियों को संगीत, नृत्य, साहित्य आदि में अधिक रुचि होती है। शारीरिक स्वास्थ्य, आकर्षण, पौष्टिक आहार, विशेष वेशभूषा, और शिक्षा में भी किशोरों की विशेष रुचि होती है।
(14 )भाषा
किशोरावस्था में भाषा ज्ञान तेजी से बढ़ता है। इस युग में, युवाओं के पास शब्दों का विशाल भंडार होता है, जिसके माध्यम से वे किसी भी विषय पर या कहीं पर भी तर्क, विचार, या बहस कर सकते हैं। किशोर इसके साथ ही समझने लगता है कि किससे, किस तरह की भाषा में बातचीत करनी चाहिए। औपचारिक और अनौपचारिक संदर्भों में भी वह भाषा के प्रयोग में सतर्कता बरतने लगता है।