दीपदान एकांकी के आधार पर सोना का चरित्र चित्रण कीजिए
उत्तर: सोना दीपदान एकांकी के प्रमुख पात्रों में से एक है और इसके माध्यम से कथा को गति प्रदान की गई है। यद्यपि वह बहुत कम समय के लिए एकांकी में आती है लेकिन इतने समय में ही अपना प्रभाव छोड़ जाती है।
सोना का चरित्र चित्रण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-
१. रावल की पुत्री:-
सोना चित्तौड़ के महाराज के अधीन रावल (सरदार) की 16 वर्षीय पुत्री है। राज दरबार से जुड़े होने के कारण वहां के सभी लोगों से उसका संबंध परिवार की तरह हो गया है। वह कुंवर उदय सिंह की मित्र भी है।
२. रूपवती एवं नटखट:-
सोना जितनी रूपवती है उतनी ही नटखट भी है। जितनी देर तक वह एकांकी में उपस्थिति रहती है उसके नटखट पान का अंदाज़ हमे लगता रहता है। वह थोड़ी देर के लिए भी चुप रहना नहीं जानती- ” धाय मां पागलपन कहीं काम होता है? पहाड़ बढ़कर कभी छोटे हुए हैं? नदिया आगे बढ़कर कभी लौटी है? फूल खिलने के बाद कभी कली बने है?”
३. अपनी किस्मत पर इठलाने वाली:-
सोना एक साधारण सरदार की पुत्री होकर भी जिस तरह वह बनवीर की कृपा पात्र बनी है उसे वह अपनी किस्मत ही मानती है। उसकी सोच है कि यह उसका भाग्य ही है, जिसके कारण वह इतना कुछ पा रही है- ” भाग्य तो सबके होते हैं धाय मां! ये नूपुर मेरे पैरों में पड़े हैं तो यह भी इनका भाग्य है। मेरे आगमन का संदेश पहले ही पहुंचा देते हैं तो यह भी इनका भाग्य है।”
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४. बनवीर के प्रेम में पागल:-
सोना बनवीर के प्रेम में पागल है। वह बनवीर की कूटनीति को समझ नहीं पाती तथा उसके प्रेम को सच्चा मानती है। सोना सोचती है कि यदि बनवीर की कृपा होगी तो उसके पिता महाराज बन जाएंगे जबकि पन्ना उसे सावधान करते हुए कहती है- “आंधी में आग की लपट तेज ही होती है सोना! तुम भी इस आंधी में लड़खड़ा कर गिरोगी। तुम्हारे यह सारे नूपुर बिखर जाएंगे। न जाने किस हवा का झोंका तुम्हारे इन गीतों के लहरों को निकल जाएगा।”
५. वाक्पटुता एवं शिष्टाचारी:
सोना राजमहल के शिष्टाचार को भली-भांति जानती है और वह बोलने में भी निपुण है। हमें सोना के शिष्टाचार और वाक्पटु का अनुभव उस समय होता है जब वह दीपदान महोत्सव में कुंवर उदय सिंह को ले जाने के लिए महल में आती है। महल में प्रवेश कर पन्ना धाय को प्रणाम करती है और उससे उदय सिंह के बारे में पूछती है तो पन्ना धाय कहती है – ” वे थक गए हैं, सोना चाहते हैं।” तभी सोना धाय में से कहती है – ” सोना चाहते हैं तो मैं भी तो सोना हूं।” सोना के इस प्रकार के बातों से पता चलता है कि वे बात बतावनी में कितना निपुण है।
६. सीधी-सादी युवती:
राजमहल से संबंधित होते हुए भी वह वहां चलने वाले षड्यंत्र से अनभिज्ञ है। पन्ना के सम्मुख नृत्य करना, बनवीर द्वारा कही गई बातों को पन्ना को खेल-खेल में बता देना, मयूर पक्ष कुंड के उत्सव के बातों को बताना उसके सीधे-सादेपन का ही प्रमाण है।
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७. सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाली:-
सोना का यह विश्वास है कि आगे चलकर शायद उसकी किस्मत भी खुल जाएंगी। वह आने वाले उन दिनों को याद करती हुई पन्ना से कहती है-
” मैं रावल की बेटी हूं, शायद सामंत की बेटी हूं, शायद महाराज की बेटी बनूं। कुछ बढ़कर ही बनूंगी और तुम धाय मां? सिर्फ धाय मां ही रहोगी।”
इस प्रकार हम पाते हैं कि सोना का चरित्र दीपदान एकांकी के ऐसे पात्र का चरित्र है जो बनवीर के प्रेम में पागल है तथा उसकी बातों से बनवीर के षड्यंत्र की गंध आती है।
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