जन गीत कविता का व्याख्या क्लास 8 । जनगीत कविता का भावार्थ क्लास 8। जन गीत कविता की व्याख्या। jan geet kavita ka bhavarth। jan geet kavita ki vyakhya ।
आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम जन गीत कविता का व्याख्या क्लास 8, जन गीत कविता की व्याख्या को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 8 के पाठ 4 जन गीत से लिया गया है। तो चलिए जन गीत कविता का व्याख्या क्लास 8, Class 8 को देखें-
कवि परिचय
सुमित्रानंदन पंत हिंदी के प्रसिद्ध और प्रकृति प्रेमी कवि माने जाते हैं। उनका जन्म सन् 1900 ई. में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था। जब असहयोग आंदोलन सन् 1921 में शुरू हुआ, तो उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह साहित्य लेखन में लग गए।
पंत जी अरविंद दर्शन से बहुत प्रभावित थे। उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं — पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा और चिदम्बरा। उन्होंने ज्योत्सना नाम का एक नाटक और पाँच कहानियाँ भी लिखीं।
उनकी काव्य पुस्तक ‘चिदम्बरा’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान भी दिया गया।
पंत जी को छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक माना जाता है। उनकी भाषा शुद्ध खड़ी बोली है और इसमें कोमल और मधुर शब्दों का प्रयोग मिलता है। उन्होंने अपने काव्य में प्रकृति की सुंदरता को बहुत अच्छे ढंग से चित्रित किया है। सन् 1977 में पंत जी का निधन हो गया।
जन गीत कविता का व्याख्या , जन गीत कविता का भावार्थ, जन गीत कविता की व्याख्या
1. जीवन में फिर नया विहान हो,
एक प्राण, एक कंठ गान हो!
बीत अब रही विषाद की निशा,
दिखने लगी प्रयाण की दिशा,
गगन चूमता अभय निशान हो!
शब्दार्थ : विहान = सुबह। विषाद = दु:ख। निशा = रात । प्रयाण = गमन, आगे बढ़ना, प्रस्थान, युद्ध यात्र। गगन = आकाश । अभय = निडर , निर्भय । निशान =लक्षण, ध्वजा।
संदर्भ – यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ में दी गई कविता ‘जन-गीत’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि बताते हैं कि अब हमारे जीवन में एक नया समय आ रहा है जो समृद्धि (खुशहाली) और अच्छे भविष्य से भरा होगा।
व्याख्या – कवि लोगों के मन में नया उत्साह भर रहे हैं। वे कहते हैं कि अब फिर से जीवन में नया सवेरा आए। सब लोगों में एक जैसी ऊर्जा हो और सब एक ही सुर में एकता का गीत गायें। अब दुख और परेशानियों की रात खत्म हो रही है। अब लोगों को आगे बढ़ने की दिशा दिखाई दे रही है। लोग निर्भय होकर आगे बढ़ रहे हैं और प्रगति (विकास) का झंडा ऊँचाई तक पहुँचा रहे हैं।
2. हम विभिन्न हो गये विनाश में;
हम अभिम्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।
शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे,
लोक-कर्म में महान सब लगें,
रक्त मे उफान हो, उठान हो।
शब्दार्थ : विनाश = क्षति, नाश। अभिन्न = घनिष्ठ, एकीकृत। श्रेय = उत्तम, श्रेष्ठ, मंगलदायक धर्म, राश। स्वार्थ = मतलब, गरज । कर्म = काम । उफान = जोश, उमंग ।
संदर्भ – यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ में दी गई कविता ‘जन-गीत’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि बताते हैं कि धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हमें लड़ना नहीं है बल्कि हमें मिलजुल कर रहना चाहिए।
व्याख्या –
हम भारतवासी पहले धर्म, जाति और संप्रदाय के झगड़ों में उलझ कर आपस में बंट गए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि हमारा नुकसान हुआ और हम पिछड़ गए। लेकिन अब हम एकता के रास्ते पर चलकर तरक्की की ओर बढ़ रहे हैं।
अब हमें चाहिए कि हमारा एक ही धर्म हो — भलाई और भलाई के काम करना। सबके मन में आपसी प्रेम और भाईचारा हो। हम स्वार्थ और आराम की नींद से जागें और सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी सोचें। हमें समाज और देश के भले के लिए मेहनत करनी चाहिए। हमारे खून में जोश और उमंग हो, ताकि हम पूरे उत्साह से अच्छे कामों में लग सकें।
3. शोषित कोई कहीं न जन रहें,
पीड़न-अन्याय अब न मन सहे
जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो।
मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो,
गुण ही जन-मन किरीट ताज हो,
नव-युग़ का अब नया विधान हो।
शब्दार्थ : शोषित = शोषण का शिकार । पीड़न = दुख, जुल्म । शिल्पी = कलाकार । मुक्त = स्वतंत्र । व्यथित = दुःखी । संगठित = एक जूथ । किरीट =सिर पर बाँधा जाने वाला एक आभूषण । विधान = नियम ।
संदर्भ – यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ में दी गई कविता ‘जन-गीत’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि बताते हैं कि हमें अपने देश में बदलाव लाने की जरूरत है।
व्याख्या –
कवि हमें यह संदेश दे रहे हैं कि अब हमारे समाज और देश में बड़ा बदलाव आ रहा है। अब ऐसा समय आना चाहिए जब कोई भी व्यक्ति शोषण का शिकार न हो। किसी के साथ ज़ुल्म या अन्याय न हो, और न ही कोई उसे सहने के लिए मजबूर हो।
जो लोग समाज को बनाते हैं, देश के लिए मेहनत करते हैं, उन्हें सबसे ऊपर स्थान मिलना चाहिए। समाज में ऐसे लोगों को सम्मान मिलना चाहिए, ताकि वे और अच्छा काम कर सकें।
एक ऐसा समाज बनना चाहिए जहाँ सब लोग मिल-जुलकर रहें, दुख से मुक्त हों और एक-दूसरे की मदद करें। समाज में अच्छे गुण — जैसे ईमानदारी, सच्चाई, दया और न्याय — को सबसे ऊँचा दर्जा मिलना चाहिए।
अब एक नया युग शुरू हो गया है, इसलिए हमें अपने पुराने और बेकार हो चुके नियमों को छोड़कर नए और अच्छे नियम अपनाने चाहिए।
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