दीपदान एकांकी की समीक्षा कीजिए ॥ Deepdan Ekanki Ki Samiksha

दीपदान एकांकी की समीक्षा कीजिए ॥ Deepdan Ekanki Ki Samiksha

दीपदान एकांकी की समीक्षा कीजिए ॥ Deepdan Ekanki Ki Samiksha

उत्तर – ‘दीपदान’ डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा रचित एक ऐतिहासिक एकांकी है। यह रचना एकांकी कला और इसके विविध तत्वों का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है। इसके माध्यम से लेखक ने सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोणों को सरल एवं प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। ‘दीपदान’ की समीक्षा हम इसके पात्र, कथानक, संवाद, प्रतीकात्मकता और संदेश जैसे प्रमुख शीर्षकों के आधार पर कर सकते हैं। यह एकांकी न केवल मनोरंजन करती है बल्कि विचार और शिक्षा का संवाहक भी है।

1. कथावस्तु

‘दीपदान’ डॉ. रामकुमार वर्मा का प्रसिद्ध ऐतिहासिक एकांकी है। इसकी कथा मेवाड़ राज परिवार और सन् 1536 में चित्तौड़ दुर्ग में घटित घटनाओं पर आधारित है। महाराणा साँगा की मृत्यु के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र कुँवर उदयसिंह की सुरक्षा का जिम्मा पन्ना धाय पर आता है। पन्ना अपने पुत्र चंदन के बलिदान के माध्यम से उदयसिंह की रक्षा करती है। कथा में बनवीर, एक सत्ता-साधक और षड़यंत्रकारी, उदयसिंह को मारने का प्रयास करता है। पन्ना धाय अपने विवेक, साहस और मातृत्व भावना से परिस्थितियों का सामना करती है और उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाती है। अंततः चंदन को कुँवर उदयसिंह समझकर बनवीर मार देता है, जबकि उदयसिंह की रक्षा पन्ना की चतुराई और बलिदान से सुनिश्चित होती है। कहानी मानवीय संवेदना, साहस और ऐतिहासिक संदर्भों का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है।

2. चरित्र-चित्रण

‘दीपदान’ एकांकी में लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा ने पात्रों की संख्या सीमित रखकर उन्हें गहराई और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उभारा है। नायिका पन्ना धाय इस एकांकी का केन्द्रीय पात्र है, जो देश, स्वामी और कर्तव्य के प्रति अपूर्व समर्पण और बलिदान का प्रतीक है। उसकी बुद्धिमानी, साहस, वीरता और त्याग कथा के हर दृश्य में स्पष्ट दिखाई देती है। बनवीर एकांकी का प्रमुख खलनायक है, जो महाराणा संग्राम सिंह के छोटे भाई का दासी पुत्र है। वह षड्यंत्रकारी, क्रूर और धूर्त है; उसकी हर चाल पन्ना के चरित्र को और अधिक उजागर करती है।

सामली, अंतःपुर की परिचारिका, अपनी कर्तव्यनिष्ठा और सजगता से पन्ना को महत्त्वपूर्ण सूचना देती है और कथानक को आगे बढ़ाती है। कीरत, बारी महल का जूठी पत्तल उठाने वाला, अपनी चतुराई और देशभक्ति से कुँवर उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाता है। अन्य पात्र भी स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक और घटनाओं के अनुसार प्रभावशाली हैं।

चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘दीपदान’ एकांकी अत्यंत सफल है। पात्रों के व्यक्तित्व, उनके निर्णय, भाव और कर्म कथा में वास्तविकता और जीवन्तता प्रदान करते हैं। नायिका और खलनायक के विरोधाभासी स्वभाव कथा को उत्कंठा और गहनता देते हैं, जिससे दर्शक/पाठक पूरी तरह कथा में डूब जाता है।

3. संवाद

‘दीपदान’ एकांकी में संवाद इसका अनिवार्य और प्रभावशाली तत्व है। सफल एकांकी के संवाद संक्षिप्त, रोचक, मर्मस्पर्शी, प्रभावोत्पादक और स्वाभाविक होते हैं, और ‘दीपदान’ में ये सभी गुण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। इस एकांकी में पात्रों की मानसिक स्थितियाँ और घटनाओं की गतिशीलता संवादों के माध्यम से पाठक या दर्शक तक पहुँचती है। मुख्य संवाद पन्ना धाय, कुँवर उदयसिंह और बनवीर के बीच होते हैं। पन्ना धाय अपने पुत्र चंदन के साथ उदयसिंह की सुरक्षा की योजना बनाती है, जबकि बनवीर अपनी क्रूर षड़यंत्रकारी प्रवृत्ति प्रकट करता है।

पन्ना और कीरत के संवाद में बुद्धि, विवेक और साहस का महत्व स्पष्ट होता है: “नहीं, हम बल से नहीं, युक्ति से काम लेंगे। यह समय तलवार का नहीं, बुद्धि का है।” सामली के माध्यम से पन्ना को बनवीर के षड़यंत्र की सूचना मिलती है और पन्ना का दृढ़ संकल्प दिखाई देता है: “मैं उदयसिंह की रक्षा करूँगी।” बनवीर और पन्ना के संवाद पन्ना के बलिदान और बनवीर की क्रूरता को उजागर करते हैं।

संस्कृतनिष्ठ शब्दावली, प्रभावशाली भाषा और संवादों की स्वाभाविकता ‘दीपदान’ को संवाद की दृष्टि से उत्कृष्ट और सफल एकांकी बनाती है।

4. शीर्षक

किसी भी एकांकी का शीर्षक संक्षिप्त, कौतुहलवर्धक और कथानक से जुड़ा होना चाहिए। ‘दीपदान’ शीर्षक इस कसौटी पर पूर्ण रूप से खरा उतरता है। एकांकी को पढ़ते समय पाठक के मन में उत्सुकता बनी रहती है और कथा का भावनात्मक असर शीर्षक से ही प्रारंभ होता है। ‘दीपदान’ शीर्षक इसलिए सार्थक है क्योंकि इसमें पन्ना धाय ने राजघराने के दीपक, यानी राजकुमार उदयसिंह की रक्षा के लिए अपने पुत्र चंदन का बलिदान किया।

शीर्षक व्यक्तिगत त्याग का प्रतीक है, जहाँ पन्ना धाय ने अपने पुत्र को उदयसिंह के स्थान पर सुलाकर उसके प्राण की आहुति दी। यह बलिदान राष्ट्रप्रेम, स्वामीभक्ति और धर्म के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को भी दर्शाता है। ‘दीपदान’ अंधकार में प्रकाश जलाने का प्रतीक भी है, क्योंकि पन्ना ने अपने पुत्र का बलिदान देकर चित्तौड़ में न्याय और सत्य का दीपक जलाया।

इसके अलावा, यह शीर्षक एक महान आदर्श प्रस्तुत करता है—भारतीय नारी की साहसिकता, त्याग और बुद्धिमत्ता। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में घटित इस घटना को ‘दीपदान’ शीर्षक ने संक्षिप्त, सार्थक और प्रेरणादायक रूप में व्यक्त किया है। इसलिए शीर्षक की दृष्टि से यह एकांकी अत्यंत सफल है।

5. देशकाल एवं वातावरण

‘दीपदान’ एकांकी का देश और काल ऐतिहासिक रूप से सटीक रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका देश राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग है, और काल सन् 1536 ईस्वी का है। यह वह समय था जब महाराणा सांगा का देहांत हो चुका था और उनके छोटे पुत्र, राजकुमार उदयसिंह, राज्य का उत्तराधिकारी थे। इस समय चित्तौड़ में सत्ता को हथियाने के लिए बनवीर षड्यंत्र कर रहा था, जिससे उदयसिंह के जीवन को गंभीर खतरा था।

वातावरण की दृष्टि से यह एकांकी द्वैत भाव प्रस्तुत करती है। एक तरफ़ चित्तौड़ में ‘दीपदान’ उत्सव का उल्लास और आनंद झलकता है, जहाँ लोग दीपक जलाकर, नाच-गान और गीतों के माध्यम से उत्सव मनाते हैं। दूसरी ओर, पन्ना धाय जैसे पात्रों के लिए यह समय भय और तनाव से भरा हुआ था, क्योंकि उन्हें राजकुमार को बनवीर के षड्यंत्र से बचाना था। इसके साथ ही एकांकी में कर्तव्य, त्याग और देशभक्ति का वातावरण भी स्पष्ट है, जहाँ पन्ना धाय अपने पुत्र चंदन के मोह और व्यक्तिगत भावनाओं को पीछे रखकर कर्तव्यनिष्ठा और साहस का परिचय देती है।

इस प्रकार ‘दीपदान’ में देश, काल और वातावरण ऐतिहासिक सत्यता और भावनात्मक गहराई के साथ पाठक/दर्शक को कथा में पूरी तरह डुबो देता है।

6. उद्देश्य

‘दीपदान’ एकांकी का मुख्य उद्देश्य भारत के अतीत के गौरव को उजागर करना और समाज के समक्ष स्वामीभक्ति, राष्ट्रभक्ति, त्याग एवं बलिदान का आदर्श प्रस्तुत करना है। लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा ने पन्ना धाय जैसे साधारण नारी के साहस, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रहित के लिए व्यक्तिगत एवं पारिवारिक हितों के बलिदान को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। कथा में महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद दासी पुत्र बनवीर चित्तौड़ की सत्ता हथियाने के लिए उदयसिंह की हत्या का षड़यंत्र करता है। पन्ना धाय अपने पुत्र चंदन को कुर्बान करके उदयसिंह की रक्षा करती है, और अंततः चंदन की हत्या होती है।

इस प्रकार, एकांकी के माध्यम से लेखक ने त्याग और बलिदान की महत्ता को उजागर किया है। स्वार्थ और महत्वाकांक्षा में अंधा बनवीर अपने नीच कर्मों के कारण अपयश का भागी बनता है, जबकि पन्ना धाय के चरित्र से दिखाया गया है कि स्वामीभक्ति और कर्तव्यपरायणता के सामने व्यक्तिगत स्वार्थ का कोई महत्व नहीं है।

‘दीपदान’ के माध्यम से नाटककार ने पाठक/दर्शक में राष्ट्रप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और बलिदान के प्रति जागरूकता उत्पन्न की है। यही इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य है—सच्चे अर्थ में दीपदान करना।

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