कैलाश गौतम का जीवन परिचय ॥ Kailash Gautam Ka Jivan Parichay

कैलाश गौतम का जीवन परिचय ॥ Kailash Gautam Ka Jivan Parichay

कैलाश गौतम का जीवन परिचय और साहित्यिक अवदान

भारतीय साहित्य परंपरा में ऐसे अनेक कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी वाणी और लेखनी से समाज के जनमानस को झकझोरा, प्रेरित किया और सांस्कृतिक चेतना को नई दिशा दी। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिन्दी कविता जगत में एक ऐसा ही नाम उभरकर सामने आया— कैलाश गौतम। वे केवल एक कवि नहीं बल्कि जनकवि, लोककवि और समाज की सच्ची धड़कन थे। उनकी कविता में ग्राम्य संस्कृति की सजीव झलक, जनजीवन की समस्याएँ और आम आदमी का दुख-दर्द बड़े सहज ढंग से अभिव्यक्त होता है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

कैलाश गौतम का जन्म 8 जनवरी, 1944 को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले (तत्कालीन वाराणसी जनपद) के छोटे से गाँव डिग्धी में हुआ। वे एक साधारण किसान परिवार से थे। बचपन से ही वे संवेदनशील और साहित्यप्रेमी प्रवृत्ति के थे। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े होने के कारण उनकी कविताओं में गाँव-घर, खेत-खलिहान, मेले, उत्सव और लोकजीवन का सहज चित्रण मिलता है।

प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई और आगे की पढ़ाई के लिए वे वाराणसी आए। उन्होंने यहाँ से एम.ए. और बी.एड. की पढ़ाई पूरी की। बनारस की सांस्कृतिक धारा और इलाहाबाद का साहित्यिक वातावरण उनके व्यक्तित्व को गढ़ने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

कार्यक्षेत्र और जीवन संघर्ष

शिक्षा पूरी करने के बाद उनका कार्यक्षेत्र इलाहाबाद (प्रयागराज) बना। उन्होंने लंबे समय तक आकाशवाणी इलाहाबाद में कार्य किया और यहीं से सेवानिवृत्त हुए। आकाशवाणी में कार्य करने का अवसर उन्हें साहित्य, संस्कृति और समाज के व्यापक सरोकारों से जोड़े रहा।

सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने हिन्दुस्तानी अकादमी, इलाहाबाद का अध्यक्ष नियुक्त किया। दुर्भाग्यवश इसी पद पर रहते हुए 9 दिसम्बर 2006 को उनका निधन हो गया।

साहित्यिक परिचय

कैलाश गौतम मूलतः गीतकार और कवि थे, लेकिन उन्होंने कविता, गीत, दोहा, निबंध, उपन्यास आदि कई विधाओं में लेखन किया। वे जनवादी परंपरा के कवि थे। उनकी रचनाओं में आम आदमी के सुख-दुख, समाज की विसंगतियाँ और गाँव की संस्कृति का जीवन्त चित्रण है।

उनकी भाषा सरल, सहज और जनभाषा से ओत-प्रोत है। यही कारण है कि वे सिर्फ साहित्यकारों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि गाँव-गाँव के लोग उन्हें अपना कवि मानते थे।

प्रकाशित कृतियाँ

  1. सीली माचिस की तीलियाँ – कविता संग्रह
  2. जोड़ा ताल – कविता संग्रह
  3. सिर पर आग – गीत संग्रह
  4. तीन चौथाई अन्हर – भोजपुरी कविता संग्रह

अप्रकाशित एवं अन्य कृतियाँ

  1. बिना कान का आदमी – दोहा संकलन
  2. चिन्ता नए जूते की – निबंध संग्रह
  3. आदिम राग – गीत संग्रह
  4. तम्बुओं का शहर – उपन्यास
  5. जै जै सियाराम – उपन्यास
  6. कविता लौट पड़ी – काव्य संग्रह

लोकप्रिय रचनाएँ

  • अमौसा का मेला
  • कचहरी और गाँव गया था
  • गाँव से भागा कैलाश

इन रचनाओं ने उन्हें लोकजीवन का कवि बना दिया। उनकी कविताओं में गाँव की चहल-पहल, मेले का उल्लास, किसानों का संघर्ष और आम आदमी की पीड़ा सजीव हो उठती है।

साहित्यिक अवदान

कैलाश गौतम का साहित्य जनवादी चेतना का संवाहक रहा, जहाँ उनकी कविताएँ किसान, मजदूर, गरीब और गाँव के सामान्य जन के जीवन से सीधे जुड़ी दिखाई देती हैं। उन्होंने समाज के हाशिये पर खड़े व्यक्ति की आवाज को साहित्य में स्थान देकर उसे सशक्त बनाया। उनकी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति का यथार्थ चित्रण मिलता है, जिसमें मेले, त्योहार, कचहरी, पंचायत, खेत-खलिहान आदि की सजीव झलक दिखाई देती है; जैसे “अमौसा का मेला” में गाँव के मेले का अत्यंत जीवंत चित्रण मिलता है। उन्होंने भोजपुरी काव्य परंपरा को भी समृद्ध किया और “तीन चौथाई अन्हर” जैसी रचना देकर भोजपुरी साहित्य को नई पहचान दिलाई। वे कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय कवि रहे, जिनकी वाणी और मंचीय प्रस्तुतियाँ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थीं और पूरा वातावरण गूंज उठता था। इसके साथ ही उनकी रचनाओं में विनोद और व्यंग्य का भी तीखा पुट मिलता है, जिसके माध्यम से उन्होंने समाज की विसंगतियों को उजागर किया।

सम्मान और पुरस्कार

कैलाश गौतम को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं–

  • परिवार सम्मान
  • ऋतुराज सम्मान
  • यश भारती सम्मान (मरणोपरांत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा)

साहित्यिक व्यक्तित्व

कैलाश गौतम का व्यक्तित्व बनारस और इलाहाबाद की सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम था। उनकी रचनाओं में बनारस की सहजता, लोकधर्मी जीवन और प्रयाग की साहित्यिक परंपरा का मेल दिखाई देता है। वे सरल, सहज और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे।

उनकी कविता सीधे हृदय से निकलती थी और हृदय तक पहुँचती थी। यही कारण था कि उनकी रचनाएँ विद्वानों के साथ-साथ आम जनता के बीच भी उतनी ही लोकप्रिय रहीं।

निष्कर्ष

कैलाश गौतम हिन्दी साहित्य में उन विरले कवियों में गिने जाते हैं जिन्होंने कविता को जनजीवन से जोड़ा। उन्होंने दिखाया कि कविता केवल उच्च वर्ग या शहरी समाज की नहीं बल्कि गाँव-गाँव के लोगों की भी हो सकती है।

उनका साहित्य न केवल ग्राम्य संस्कृति का दर्पण है बल्कि समाज की विसंगतियों पर व्यंग्य और प्रहार भी है। वे जनवादी चेतना के सशक्त कवि थे, जिनकी वाणी और कलम ने हिन्दी कविता को नई दिशा दी।

आज उनके निधन को लगभग दो दशक हो चुके हैं, लेकिन उनकी कविताएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। उनकी रचनाओं में गाँव, किसान, गरीब और आम आदमी की आवाज है—और यही उनकी सबसे बड़ी साहित्यिक उपलब्धि है।

इस प्रकार, कैलाश गौतम का साहित्यिक अवदान हिन्दी साहित्य में अमिट है। वे न केवल कवि सम्मेलन के लोकप्रिय कवि थे बल्कि जनमानस की सच्ची आवाज थे।

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