नीड़ का निर्माण फिर-फिर कविता का सारांश

नीड़ का निर्माण फिर-फिर कविता का सारांश

हरिवंश राय बच्चन की कविता नीड़ का निर्माण फिर-फिर कविता का सारांश

हरिवंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य के वे कवि हैं, जिनकी कविताओं में जीवन की सच्चाई, संघर्ष, आशा और आत्मबल की प्रखर चेतना देखने को मिलती है। उनकी कविता “नीड़ का निर्माण फिर-फिर” उनकी रचनाओं की उस जीवनदायिनी शक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें गहन निराशा के अंधकार में भी आशा और पुनर्निर्माण का संदेश छिपा है। इस कविता में कवि ने अपने निजी जीवन की गहन वेदना—विशेषकर पत्नी श्यामा की असमय मृत्यु से उपजे दुःख—को आधार बनाकर जीवन की सार्वभौमिक सच्चाइयों को उजागर किया है।

बच्चन की कविताओं की आत्मा जीवन-शक्ति है। उनकी कविताएँ निराशा, दुःख और संघर्ष से जूझते हुए भी कभी हार मानने का संदेश नहीं देतीं। वे कल्पनाओं की दुनिया में उड़ान नहीं भरतीं, बल्कि ठोस जीवन-स्थितियों से जुड़ी होती हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ पाठक को भीतर से झकझोरते हुए उसमें उत्साह और प्राणों का संचार करती हैं। बच्चन को इसलिए “मस्ती का कवि” भी कहा जाता है, क्योंकि वे विषाद के बीच भी आनंद और आशा का दीप जलाते हैं।

कविता का आरंभ कवि ने प्रकृति के माध्यम से किया है। एकाएक आँधी उठती है, चारों ओर धूल छा जाती है, आकाश अंधकारमय हो उठता है और दिन में ही रात जैसा अनुभव होता है। कवि के लिए यह परिस्थिति उनके जीवन में आई श्यामा की मृत्यु जैसी है, जिसने उनके अस्तित्व को शून्य कर दिया। इस अंधकार में उन्हें ऐसा लगा मानो अब जीवन में कभी नया सवेरा नहीं होगा।

यहाँ कवि केवल व्यक्तिगत पीड़ा का ही नहीं, बल्कि हर उस स्थिति का चित्रण कर रहे हैं जब इंसान अचानक आई विपत्ति से टूटने लगता है।

अचानक आई रात्रि और तूफ़ान से लोग सिहर उठते हैं। प्रकृति का कण-कण भयभीत हो जाता है। लेकिन तभी पूरब से उषा का उदय होता है। उसकी मोहिनी मुस्कान लोगों के मन से भय को दूर कर देती है। कवि यह स्पष्ट करते हैं कि जैसे प्रकृति में न तो रात स्थायी होती है और न ही दिन, वैसे ही जीवन में न तो सुख स्थायी होता है और न ही दुख। उनका आना-जाना एक स्वाभाविक चक्र है। यही समझ इंसान को कठिन समय में धैर्य और आत्मबल प्रदान करती है।

कवि आगे कहते हैं कि आँधी के प्रचंड झोंकों ने विशालकाय वृक्षों तक को जड़ से उखाड़ दिया। जब वृक्षों का यह हाल हुआ तो उन छोटे-छोटे तिनकों से बने घोंसलों पर क्या बीती होगी! यहाँ कवि जीवन की कठोर सच्चाई पर संकेत करते हैं कि जब बड़े-बड़े लोग या मजबूत नींव वाले महल कठिन परिस्थितियों से हिल सकते हैं, तब सामान्य व्यक्ति पर तो और भी अधिक संकट आते हैं।

फिर भी यह स्थिति स्थायी नहीं होती। महलों का डगमगाना या वृक्षों का गिरना जीवन का अंतिम सत्य नहीं है। इनके बाद भी समय बदलता है और उजियारा लौटकर आता है।

जब जीवन में हर ओर निराशा छा जाती है, तब भी एक पक्षी—आशा—आकाश में सीना ताने खड़ा रहता है। यह पक्षी इंसान को यह प्रेरणा देता है कि वह विषम परिस्थितियों में हार न माने, बल्कि पुनः उठकर अपने जीवन को सँवारे। कवि कहते हैं कि यदि आशा न होती तो क्या बादलों की गर्जनाओं के बीच उषा मुस्कुराती? क्या बिजली की कड़क और तूफ़ान के बीच चिड़ियों के कंठ से मधुर संगीत फूट पाता?

इस आशा का संदेश है कि दुख और निराशा चाहे जितने गहरे क्यों न हों, परंतु जीवन में आनंद और सृजन फिर भी संभव है।

कवि कहते हैं कि जीवन में आशा और आत्मबल का महत्व सबसे बड़ा है। जब तूफ़ान से घोंसले उजड़ जाते हैं, तब भी चिड़िया अपनी चोंच में तिनका दबाकर फिर से उनका निर्माण करने लगती है। उसका यह साहस और श्रम इस बात का प्रतीक है कि कोई भी विपत्ति स्थायी नहीं होती।

शक्तिशाली पवन भी उस छोटी-सी चिड़िया की आशा और आत्मबल को हरा नहीं पाता। वह तिनका-तिनका जोड़कर अपने नीड़ का पुनर्निर्माण करती है। यही भाव कविता का केंद्रीय संदेश है—कि जीवन में चाहे कितने ही संघर्ष क्यों न आएँ, हमें पुनः निर्माण के लिए तत्पर रहना चाहिए।

कविता के अंतिम अंश में कवि ने जीवन का गहन दार्शनिक सत्य प्रकट किया है। वे कहते हैं कि विनाश में ही निर्माण के बीज छिपे होते हैं। इसलिए विनाश से घबराना नहीं चाहिए। जब तूफ़ान थम जाता है, चारों ओर निस्तब्धता छा जाती है, तब प्रकृति एक नए संगीत से भर उठती है। यही संगीत पुनर्निर्माण और नए जीवन की घोषणा करता है।

इस प्रकार बच्चन ने स्पष्ट किया कि दुःख और विनाश जीवन का अंत नहीं हैं, बल्कि वे नए सृजन और नई संभावनाओं के द्वार खोलते हैं।

हरिवंश राय बच्चन की कविता “नीड़ का निर्माण फिर-फिर” केवल एक कविता नहीं, बल्कि जीवन का गहन संदेश है। यह निराशा में डूबे व्यक्ति के लिए अमृत-समान है। इसमें कवि ने अपने निजी दुःख को मानव जीवन की सार्वभौमिक सच्चाई से जोड़ा है।

कविता हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी आँधियाँ आएँ, कितने भी महल डगमगाएँ, कितने भी घोंसले उजड़ें—हमें आशा और आत्मबल के सहारे फिर-फिर निर्माण करना चाहिए। जैसे चिड़िया तिनका-तिनका जोड़कर नीड़ बनाती है, वैसे ही इंसान को भी अपने जीवन को पुनः सँवारना चाहिए।

इस कविता का मूल संदेश यही है कि “विनाश अंत नहीं है, बल्कि नए निर्माण की शुरुआत है।”
बच्चन की यह कविता वास्तव में जीवन की अपराजेय जिजीविषा और अटूट आशा की प्रतीक है, जो हर मनुष्य को संघर्ष में भी मुस्कुराकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

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