रैदास के पद का उद्देश्य ॥Raidas Ke Pad Ka Uddeshya
‘रैदास के पद’ का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को सच्ची भक्ति, आत्मज्ञान, और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का मार्ग दिखाना है। संत रैदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से बताया कि ईश्वर की प्राप्ति किसी बाहरी आडंबर, जाति-पाँति या ऊँच-नीच के भेदभाव से नहीं, बल्कि शुद्ध मन, सच्चे प्रेम और श्रद्धा से संभव है। उन्होंने सरल, सहज और भावनात्मक भाषा में यह संदेश दिया कि जब तक मनुष्य अपने अहंकार, लोभ, मोह और क्रोध जैसे विकारों से मुक्त नहीं होता, तब तक वह सच्ची भक्ति का अनुभव नहीं कर सकता।
रैदास जी ने अपने पहले पद में ईश्वर और भक्त के संबंध को अत्यंत भावनात्मक रूपकों में व्यक्त किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भक्त का अस्तित्व तभी सार्थक है जब वह ईश्वर में पूरी तरह विलीन हो जाए। दूसरे पद में उन्होंने चंचल मन को नियंत्रित करने और भक्ति में स्थिरता लाने की बात कही है, क्योंकि अस्थिर मन ईश्वर-भक्ति में सबसे बड़ी बाधा है। तीसरे पद में उन्होंने मनुष्य की अज्ञानता और झूठे अहंकार की आलोचना की है, जो उसे सच्चे ज्ञान से दूर ले जाते हैं।
चौथे पद में उन्होंने बताया कि मनुष्य के दुखों का मूल कारण उसके पाँच विकार — काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद हैं। जब तक इन पर नियंत्रण नहीं पाया जाता, तब तक सच्ची शांति संभव नहीं। अंतिम पद में रैदास जी ने आत्मशुद्धि, समानता और मानवता का संदेश दिया है। उन्होंने जाति-पाँति के भेदभाव का विरोध किया और कहा कि ईश्वर हर जीव के हृदय में समान रूप से निवास करते हैं, इसलिए किसी को नीचा या ऊँचा नहीं समझना चाहिए।
‘रैदास के पद’ का उद्देश्य केवल धार्मिक उपदेश देना नहीं है, बल्कि मनुष्य के जीवन को सही दिशा प्रदान करना है। रैदास जी का संदेश है कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बाहरी पूजा-पाठ से नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता, सच्चे प्रेम और विनम्रता से प्रशस्त होता है। उनके पद भक्ति, समानता, आत्मचिंतन और मानवता का ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते हैं, जो आज भी समाज को नैतिकता, शांति और सद्भाव की ओर प्रेरित करता है।
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