संजीव का जीवन परिचय : आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य के प्रमुख रचनाकार
संजीव आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य के एक प्रतिष्ठित और बहुआयामी रचनाकार हैं। उन्होंने अपने साहित्यिक योगदान के माध्यम से हिन्दी साहित्य में गहरी छाप छोड़ी है। उनका जन्म 6 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के बौगरकलाँ गाँव में एक सामान्य परिवार में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने गाँव और आसपास के विद्यालयों से प्राप्त की, और बाद में उनकी शिक्षा-दीक्षा पश्चिम बंगाल में हुई। वहीं से उन्होंने रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर के समकक्ष डिग्री हासिल की।
पेशेवर जीवन और लेखन की ओर झुकाव
संजीव विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षित होने के बावजूद अपनी रचनात्मक ऊर्जा को साहित्य में केंद्रित किया। उन्होंने सेन्ट्रल ग्रोथ वर्क्स (इस्का), कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में वर्षों तक रसायनज्ञ के रूप में कार्य किया। कार्यस्थल पर रहते हुए भी उनकी साहित्यिक रुचि और लेखन की गहरी लगन कभी कम नहीं हुई। वर्तमान में वे स्वतंत्र लेखन से जुड़े हुए हैं और आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य में शोधपरक और चुनौतीपूर्ण विषयों के लिए विख्यात हैं।
साहित्यिक योगदान और रचना संसार
संजीव हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में सक्रिय हैं, परंतु वे मूलतः कहानीकार के रूप में अधिक जाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ समाज के विविध पहलुओं, मानवीय संवेदनाओं और आधुनिक जीवन की जटिलताओं को उजागर करती हैं। उनके लेखन की खासियत यह है कि वे वर्जित या जटिल सामाजिक विषयों को सहज और पठनीय भाषा में प्रस्तुत करते हैं।
संजीव का रचना संसार अत्यंत व्यापक है। उन्होंने आठ उपन्यास और शताधिक कहानियाँ प्रकाशित की हैं। इसके अतिरिक्त वे लगातार निबंध, शोधपरक लेख और अन्य विधाओं में भी सक्रिय हैं।
संजीव: प्रतिबद्ध लेखन और जनवादी कथा-संसार
संजीव हिन्दी साहित्य में साठोत्तरी दौर के बाद जनवादी कथान्दोलन के प्रमुख हस्ताक्षरों में से हैं। वे लंबे समय तक साहित्यिक प्रचार केंद्रों से दूर रहते हुए रचनारत रहे। उनकी पहली प्रकाशित कहानी ‘अपर्णा’ 1962 में परिचय में आई, जबकि बड़ी पत्रिका में प्रकाशित पहली कहानी ‘किस्सा एक बीमा कम्पनी की एजेंसी का’ 1976 में सारिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों में समान दक्षता दिखाई है; अब तक उनके 13 कहानी संग्रह और 11 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं, साथ ही दो बाल उपन्यास और अन्य रचनाएँ भी हैं।
संजीव का लेखन शोध-केंद्रित और प्रतिबद्ध है। वे ‘कला जीवन के लिए’ के सिद्धांत पर विश्वास रखते हैं और कथ्य एवं शिल्प का अद्वितीय संयोजन प्रस्तुत करते हैं। उनके उपन्यास, जैसे सर्कस, धार, जंगल जहाँ शुरू होता है, और रह गईं दिशाएँ इसी पार, समाज, मजदूर और आदिवासी जीवन की विषमताओं और विडंबनाओं का गहन चित्रण करते हैं। डॉ॰ रविभूषण ने उनकी कहानियों को ‘स्वतंत्र भारत की वास्तविक कथा’ करार दिया है।
प्रमुख कृतियाँ
कहानी संग्रह:
- बीस साल का सफरनामा
- प्रेतमुक्ति
- प्रेरणास्रोत और अन्य कहानियाँ
- दुनिया की सबसे हसीन औरत
- गुफा का आदमी
- आरोहण
- ब्लैक होल
उपन्यास:
- किशनगढ़ के अहेरी
- सर्कस
- सावधान! नीचे आग है
- धार
- पाँव तले की दूब
- जंगल जहाँ शुरू होता है
- सूत्रधार
किशोर उपन्यास:
- रानी की सराय
बाल साहित्य:
- डायन और अन्य कहानियाँ
संजीव की रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्य पर आधारित दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास पाठकों को सोचने, समझने और सामाजिक यथार्थ के प्रति संवेदनशील बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
पुरस्कार और सम्मान
संजीव के साहित्यिक योगदान को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया है। उन्हें प्रथम कथाक्रम सम्मान (1997), अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा सम्मान (लंदन) (2001), भिखारी ठाकुर सम्मान (2004), और पहल सम्मान (2005) से नवाजा गया। इसके अतिरिक्त, 2013 में उन्हें श्रीलाल शुक्ल स्मृति सम्मान से भी सम्मानित किया गया। ये पुरस्कार उनके साहित्यिक कौशल, शोधपरक लेखन और समाजिक संवेदनाओं के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण हैं।
संजीव आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य में एक बहुआयामी, शोधपरक और संवेदनशील रचनाकार के रूप में पहचाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ समाज के जटिल पहलुओं, मानवीय संवेदनाओं और आधुनिक जीवन की वास्तविकताओं को उजागर करती हैं। उनका लेखन न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पाठकों को सोचने, समझने और सामाजिक जिम्मेदारी का अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है। आज भी संजीव साहित्य सृजन में सक्रिय हैं और हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ रहे हैं।
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