माँ कविता का प्रश्न उत्तर Class 7 ।। Maa Kavita Ka Question Answer Class 7

माँ कविता का प्रश्न उत्तर Class 7 ।। Maa Kavita Ka Question Answer Class 7

माँ कविता का प्रश्न उत्तर Class 7 ।। Maa Kavita Ka Question Answer Class 7

रंजन श्रीवास्तव का जीवन परिचय

रंजना श्रीवास्तव का जन्म उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जनपद में वर्ष 1959 ई० में हुआ। बचपन से ही पढ़ाई में रुचि रखने वाली रंजना ने अपनी उच्च शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने एम.ए. तथा बी.एड. की डिग्री हासिल की। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक शिक्षिका और प्रधानाचार्या के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन और संपादन के क्षेत्र में कदम रखा और अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अपने लेख और कहानियाँ प्रकाशित कर साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। बीसवीं सदी की महिला कथाकारों में उनका नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।

डॉ. रंजना श्रीवास्तव न केवल हिंदी साहित्य की जानी-मानी कथाकार हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के रूप में पहचानी जाती हैं। वे एक प्रसिद्ध मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, फुलब्राइट स्कॉलर, पुरस्कार-विजेता लेखिका, तथा द गार्जियन की नियमित स्तंभकार (columnist) भी हैं। भारत के बिहार और अमेरिका में पली-बढ़ी रंजना ने आगे चलकर ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी सम्मान के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उत्कृष्ट उपलब्धियों के कारण उन्हें मोनाश विश्वविद्यालय द्वारा विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार (Distinguished Alumni Award) से सम्मानित किया गया। वर्तमान में वे ऑस्ट्रेलिया की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में कार्यरत हैं।

रंजना श्रीवास्तव ने चिकित्सा, मानवता, नैतिकता और रोगी-चिकित्सक संबंधों जैसे विषयों पर व्यापक लेखन किया है। उनके लेख न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन, द लैंसेट, जेएएमए, एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन, टाइम, द एज और ऑस्ट्रेलिया के सर्वश्रेष्ठ विज्ञान लेखन जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। लेखन के लिए उन्हें कैंसर काउंसिल विक्टोरिया पुरस्कार तथा गस नोसल ग्लोबल हेल्थ राइटिंग अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। उनकी पहली पुस्तक “Tell Me the Truth: Conversations with My Patients about Life and Death” एक प्रमुख साहित्यिक पुरस्कार के लिए नामांकित हुई, जबकि उनकी दूसरी पुस्तक “Dying for a Chat: The Communication Breakdown between Doctors and Patients” ने ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार आयोग साहित्य पुरस्कार जीता।

चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में भी रंजना का योगदान उल्लेखनीय है। वे मेलबर्न के असाइलम सीकर रिसोर्स सेंटर, कोलकाता स्थित मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी, और सुनामी के बाद मालदीव में राहत कार्य जैसे कई मानवीय अभियानों से जुड़ी रही हैं। आम जनता को चिकित्सा विज्ञान को सरल भाषा में समझाने की उनकी रुचि ने उन्हें ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (ABC) नेटवर्क पर नियमित रूप से प्रस्तुत होने का अवसर दिलाया है। वर्तमान में रंजना श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में निवास करती हैं और लेखन तथा चिकित्सा—दोनों क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

माँ कविता का व्याख्या ॥ माँ कविता का भावार्थ 

1. ओह माँ! तुम
इतनी पीड़ाओं को
अपने में समाहित कर
कैसे जी लेती हो ?
और बिखरा देती हो
ममता के अनगिनत फूल

शब्दार्थ

1. पीड़ाओं — दुःख, कष्ट, तकलीफ़ें
2. समाहित — अपने भीतर शामिल करना, समेट लेना
3. बिखरा देती हो — फैला देती हो, चारों ओर छिटका देती हो
4. ममता — प्यार, स्नेह, मातृ–स्नेह
5. अनगिनत — असंख्य, बहुत अधिक

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘माँ’ कविता से लिया गया है । इसकी कवययित्री रंजना श्रीवास्तव जी हैं।

प्रसंग: यह पंक्तियाँ कवयित्री द्वारा माँ की अपार सहनशीलता और ममता को दर्शाने के लिए कही गई हैं। यहाँ कवयित्री माँ के त्याग, दुखों को सहने की क्षमता और परिवार पर निरंतर प्रेम लुटाने की भावना को रेखांकित करती है। इन पंक्तियों में माँ के निःस्वार्थ प्रेम और अटूट शक्ति का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या: कवयित्री माँ की अद्भुत सहनशीलता और उसकी ममता को देखकर आश्चर्य और दुख दोनों अनुभव करती है। वह कहती है कि माँ अपने जीवन की कितनी ही कठिनाइयों और दुखों को अपने भीतर समेट लेती है, फिर भी मुस्कराकर जीती रहती है। माँ कभी थकती नहीं, कभी हार नहीं मानती। वह अपनी सारी पीड़ाएँ सहकर भी अपने परिवार, बच्चों और बच्चियों पर प्यार और स्नेह के अनगिनत फूल लुटाती रहती है। माँ अपने ममत्व के धागे में पूरे परिवार को जोड़कर रखती है और सभी के लिए हमेशा एक छाया की तरह खड़ी रहती है।

2. 

अपने
कलेवर से
सहती हो पिता की
डाँट-फटकार
उनके फुफकारते हुए
कुद्ध अभिमान को…
सास को, श्वसुर को
भाई, भतीजों को
लिजलिजे परम्परावादी
बदरंग आदर्शों को
पीढ़ियों से घिसी-पिटी
अपमानजनक बातों को
अपने से जुड़ी छलनामयी
आघातों को

शब्दार्थ: 

1. कलेवर — शरीर, रूप, अपना संपूर्ण अस्तित्व
2. डाँट-फटकार — डाँटना और उलाहना देना
3. फुफकारते हुए — क्रोध में भरे हुए, गुस्से से उफनते
4. कुद्ध — अत्यंत क्रोधित, गुस्से से भरा
5. अभिमान — घमंड, अहंकार
6. लिजलिजे — बहुत कमजोर, ढीले-ढाले, बिना मजबूती वाले
7. परम्परावादी — पुरानी परंपराओं को मानने वाला, रूढ़िवादी
8. बदरंग — फीका, अपनी चमक खो चुका
9. आदर्शों — अच्छे विचार, सिद्धांत
10. घिसी-पिटी — बहुत पुरानी और बार-बार दोहराई जाने वाली
11. अपमानजनक — मानहानि करने वाला, तिरस्कारपूर्ण
12. छलनामयी — धोखा देने वाली, कपटपूर्ण
13. आघातों — चोटें, दुखद घटनाएँ या मानसिक चोटें

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘माँ’ कविता से लिया गया है । इसकी कवययित्री रंजना श्रीवास्तव जी हैं।

प्रसंग: ये पंक्तियाँ कवयित्री द्वारा माँ की सहनशीलता और उसके धैर्यपूर्ण स्वभाव को दर्शाने के लिए कही गई हैं। यहाँ कवयित्री बताती हैं कि माँ परिवार के कठोर व्यवहार, तानों और अपमान को भी बिना शिकायत सह लेती है। इन पंक्तियों में माँ की असाधारण सहनशक्ति और त्यागपूर्ण जीवन का मार्मिक चित्रण किया गया है।

व्याख्या: कवयित्री बताती हैं कि माँ परिवार में मिलने वाले हर तरह के कटु व्यवहार को चुपचाप सहन कर लेती है। पिता की डाँट, गुस्सा और उनके अहंकार भरे शब्द भी माँ अपने शांत और उदार स्वभाव से झेल जाती है। घर की पुरानी परंपराओं को मानने वाले सास–ससुर, भाई–भतीजों के ताने, अपमानजनक बातें और बेढंगे व्यवहार को भी वह बिना विरोध किए सह लेती है।

माँ अपने जीवन में मिलने वाले धोखे, दुख और चोटों को भी धैर्य और सहनशीलता से स्वीकारती रहती है। इस प्रकार कवयित्री ने माँ की अद्भुत सहनशक्ति और सहनशीलता का बहुत सुंदर चित्रण किया है।

3. 

ओह माँ! साहस की जननी
ममता की प्रतिमूर्ति
क्या सूख गये हैं
तुम्हारे आँसू ?
या फिर उन्हें
जज्ब कर लेती हो
सहनशीलता के
दामन में
मौन हो जाती हैं संवेदनाएँ
तुम्हारी विशालता से
टकराकर….

शब्दार्थ: 

1. साहस — हिम्मत, वीरता
2. जननी — जन्म देने वाली, माँ
3. प्रतिमूर्ति — किसी गुण का साक्षात रूप
4. जज्ब कर लेती हो — अपने भीतर समा लेती हो, दबा लेती हो
5. सहनशीलता — सब कुछ सहने की क्षमता, धैर्य
6. दामन — आंचल, गोद या प्रतीक रूप में — संरक्षण का स्थान
7. मौन — चुप, शांत
8. संवेदनाएँ — भावनाएँ, एहसास
9. विशालता — महानता, उदारता, बड़ा हृदय

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘माँ’ कविता से लिया गया है । इसकी कवययित्री रंजना श्रीवास्तव जी हैं।

प्रसंग: ये पंक्तियाँ कवयित्री ने माँ की ममता, उदारता और असाधारण सहनशीलता को उजागर करने के लिए कही हैं। यहाँ कवयित्री माँ के विशाल हृदय पर आश्चर्य प्रकट करती है, जो अपने दुखों को छिपाकर परिवार को प्रेम देती रहती है। इन पंक्तियों में माँ के त्याग और करुणा का संवेदनशील चित्रण किया गया है।

व्याख्या: पंक्तियों में कवयित्री ने माँ के दिल की विशालता और उसकी बड़ी उदारता को बहुत सुंदर तरीके से बताया है। कवयित्री आश्चर्य करती है कि आखिर माँ में इतना साहस और इतनी ममता कैसे होती है। वह सोचती है कि माँ परिवार से मिलने वाले दुखों और पीड़ाओं को हमेशा मुस्कराकर सहन कर लेती है। क्या उसके आँसू सच में सूख गए हैं, या फिर वह अपने आँचल में सारी तकलीफें समेटकर चुपचाप सह लेती है?

कवयित्री कहती है कि माँ की महत्ता और उसकी उदारता इतनी बड़ी है कि उसके सामने हर संवेदना मानो शांत हो जाती है। माँ अपनी सहनशीलता, प्यार और त्याग से सबका जीवन संवार देती है।

4

ओह माँ ! तुम परिवार से
समाज से
कहीं बहुत ऊपर हो
तभी तो तुम्हारे
मन के आकाश में
खिले फूलों पर
तेज धूप पर
हवा के विपरीत रुख का
असर नहीं हो पाता

शब्दार्थ: 

1. आकाश — आसमान; यहाँ प्रतीक रूप में मन या हृदय की व्यापकता
2. खिले फूल — खुशियाँ, अच्छाईयाँ, सकारात्मक भाव
3. तेज धूप — कठिन परिस्थितियाँ, मुश्किलें
4. हवा के विपरीत रुख — प्रतिकूल स्थिति, विरोध, बाधाएँ
5. असर — प्रभाव, प्रभाव पड़ना

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘माँ’ कविता से लिया गया है । इसकी कवययित्री रंजना श्रीवास्तव जी हैं।

प्रसंग: ये पंक्तियाँ कवयित्री ने माँ के विशाल और उदार हृदय का गुणगान करने के लिए कही हैं। यहाँ वह बताती हैं कि माँ का प्रेम, धैर्य और करुणा दुनिया की कठोरता और नकारात्मक परिस्थितियों से भी प्रभावित नहीं होते। इन पंक्तियों में माँ के निर्मल, असीम और अडिग ममत्व का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या: कवयित्री यहाँ बताती हैं कि माँ का हृदय इतना बड़ा और उदार होता है कि दुनिया की कठोरता या बुराई उस पर कोई असर नहीं डाल पाती। माँ के विचार, उसका स्वभाव और उसकी सोच परिवार और समाज की सीमाओं से भी ऊपर उठे होते हैं। इसलिए माँ के दिल रूपी आकाश में खिले प्रेम के फूलों पर तेज धूप, कठिन परिस्थितियाँ या किसी भी तरह की नकारात्मकता का प्रभाव नहीं पड़ता।

माँ का हृदय वास्तव में आकाश जितना विशाल और फूल की तरह पवित्र होता है। समाज की संकीर्ण सोच, तुच्छ बातें, परायापन या जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी माँ के उदार और धैर्यपूर्ण मन को हिला नहीं पातीं। वह हमेशा सबके लिए प्यार, स्नेह और समझ का भाव बनाए रखती है।

5

वन्दनीय हो तुम
अतुलनीय भी
सबसे बिल्कुल अलग
फिर भी सबमें समाहित।

शब्दार्थ

1. वन्दनीय — आदरणीय, सम्मान के योग्य
2. अतुलनीय — जिसकी तुलना न हो सके, अद्भुत
3. समाहित — सबमें शामिल, सबके साथ मिल जाने वाली
4. बिल्कुल अलग — सबसे भिन्न, अपनी अनोखी पहचान रखने वाली

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘माँ’ कविता से लिया गया है । इसकी कवययित्री रंजना श्रीवास्तव जी हैं।

प्रसंग: ये पंक्तियाँ कवयित्री ने माँ की उदारता, उसके पवित्र स्वभाव और महान व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए कही हैं। यहाँ वह बताती हैं कि माँ कठिन परिस्थितियों में भी अपने स्नेह, धैर्य और बड़े दिल को बनाए रखती है। इन पंक्तियों में माँ के आदर्श गुणों और उसकी वंदनीय महानता का भावपूर्ण चित्रण किया गया है।

व्याख्या: कवयित्री यहाँ बताती हैं कि माँ अनगिनत गुणों से भरी होती है। परिवार में कितनी भी कठिनाइयाँ या दुख मिलें, माँ कभी अपनी उदारता, बड़े दिल और अच्छे स्वभाव को नहीं छोड़ती। इसी कारण माँ सम्मान और वंदना करने योग्य मानी जाती है।

माँ परिवार और समाज में सबसे अलग और सबसे महान होती है। वह हर व्यक्ति को अपने स्नेह में समाकर रखती है। उसके मन में किसी के लिए भी नफरत, गुस्सा या बदले की भावना नहीं होती। वह सभी को अपना मानती है और हमेशा सबके भले की कामना करती है। इस प्रकार माँ की महानता और उसके पवित्र मन का सुंदर चित्रण किया गया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर – 

क) माँ किसका फूल बिखरा देती है?

(क) कमल का
(ख) ममता का
(ग) क्रूरता का
(घ) घृणा का

उत्तर :
(ख) ममता का

ख) रचनाकार ने किसे परिवार और समाज से ऊपर माना है?

(क) पिता को
(ख) भाई-भतीजे को
(ग) सास-ससुर को
(घ) माँ को

उत्तर :
(घ) माँ को

ग) ‘माँ’ किस विधा की रचना है ?

(क) कविता
(ख) कहानी
(ग) नाटक
(घ) एकांकी

उत्तर :
(क) कविता

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

क) कवयित्री आश्चर्यचकित क्यों हो जाती है?

उत्तर :
कवयित्री इसलिए आश्चर्यचकित हो जाती है क्योंकि माँ परिवार के सभी दुख, तकलीफ़ें और कष्ट अपने मन में समेट लेती है, लेकिन कभी अपनी पीड़ा को व्यक्त नहीं करती। वह हर परिस्थिति में सभी के प्रति प्रेम और ममता का व्यवहार बनाए रखती है। माँ की यही अद्भुत सहनशीलता और ममत्व कवयित्री को आश्चर्य में डाल देता है।

ख) ‘परम्परावादी’ और ‘बदरंग आदर्श’ से क्या समझते हो?

उत्तर :
परम्परावादी उन लोगों को कहते हैं जो पुरानी रीतियों–नीतियों, परंपराओं और वंशानुक्रम से चली आ रही प्रथाओं को बिना बदले उसी रूप में मानते और अपनाते हैं।

बदरंग आदर्श का अर्थ है ऐसे आदर्श या परंपराएँ जिनका कोई उज्ज्वल स्वरूप नहीं रह गया हो—जो रंगहीन, बेमेल या अशोभनीय हों। यह उन पुरानी और बेढंगी प्रथाओं को दर्शाता है जो समय के साथ अपना महत्व खो चुकी हैं और जिनका पालन अब उचित नहीं लगता।

ग) प्रस्तुत पाठ में किसकी किस दशा का चित्रण हुआ है?

उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में माँ की पीड़ामयी और सहनशील दशा का चित्रण किया गया है। माँ पूरे परिवार के प्रति ममता और स्नेह का व्यवहार करती है, फिर भी उसे कई बार उपेक्षा और तिरस्कार सहना पड़ता है। वह अपनी कोई भी पीड़ा व्यक्त नहीं करती और सब कुछ चुपचाप सह लेती है। उसमें अद्भुत सहनशीलता और त्याग की भावना दिखाई देती है।

घ) माँ वन्दनीय और अतुलनीय कैसे होती है?

उत्तर :
माँ उदारता, ममता और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति होती है। वह परिवार के लोगों से उपेक्षा और तिरस्कार मिलने पर भी कभी शिकायत नहीं करती। घर–परिवार की सभी कठिनाइयों और यातनाओं को चुपचाप सह लेती है। माँ सबसे अलग होते हुए भी सभी को अपने स्नेह में समेट लेती है। उसके मन में किसी के लिए द्वेष नहीं होता।
इन्हीं महान गुणों के कारण माँ वन्दनीय, पूजनीय और अतुलनीय मानी जाती है।

बोधमूलक –

क) माँ परिवार की किन-किन यातनाओं को सहती है? लिखिए।  

उत्तर :
माँ परिवार में मिलने वाली अनेक यातनाओं और कटु व्यवहार को चुपचाप सहन करती रहती है। वह पिता की डाँट–फटकार, उनके क्रोध और अहंकार भरे शब्दों को सह लेती है। सास–ससुर की कठोर बातें, भाई–भतीजों के ताने तथा रूढ़िवादी और बेढंगी परंपराओं का दबाव भी माँ बिना कुछ कहे झेल जाती है। पीढ़ियों से चली आ रही अपमानजनक प्रथाएँ, छल–कपट, धोखे और मानसिक आघात भी वह अपने भीतर समेट लेती है। इन सबके बावजूद वह शांत, धैर्यवान और सहनशील बनी रहती है तथा अपने परिवार को प्रेम और ममता से बाँधकर रखती है।

ख) माँ के अंदर किन गुणों का भंडार है?

उत्तर :
माँ के भीतर अनेक महान गुणों का भंडार होता है। वह ममता, करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति होती है। माँ में अद्भुत साहस, धैर्य और सहनशीलता होती है, जिसके कारण वह अपने ऊपर आने वाली हर पीड़ा को चुपचाप सह लेती है और किसी के सामने व्यक्त नहीं करती। त्याग और उदारता माँ के स्वभाव की अनोखी विशेषताएँ हैं; वह सबको अपने हृदय में समेट लेती है और किसी के प्रति नफरत नहीं रखती। कठिन परिस्थितियों में भी वह सकारात्मकता बनाए रखती है और परिवार को संभालने, जोड़कर रखने और प्रेम बाँटने का काम करती है। इस प्रकार माँ के भीतर ममता, साहस, धैर्य, सहनशीलता, उदारता, करुणा और त्याग जैसे अनगिनत गुण समाए रहते हैं।

ग) प्रस्तुत पाठ के द्वारा भारतीय समाज में स्त्रियों की किस दशा और दुर्दशा का वर्णन हुआ है?

उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में भारतीय समाज में स्त्रियों—विशेषकर माँ और गृहिणी—की दुखद और उपेक्षित दशा का चित्रण किया गया है। स्त्री परिवार में डाँट–फटकार, ताने, अपमान और कठोर व्यवहार सहती है, साथ ही उसे रूढ़िवादी परंपराओं और पुराने आदर्शों का बोझ भी उठाना पड़ता है। वह अपने मन की पीड़ा, आघात और मानसिक तनाव को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाती और सब कुछ मौन रहकर सहन करती है। समाज उससे हमेशा त्याग, सहनशीलता और धैर्य की अपेक्षा करता है, लेकिन उसके योगदान और भावनाओं की अनदेखी करता रहता है। इस प्रकार पाठ में स्त्रियों की उपेक्षित, पीड़ित, त्यागमयी और मौन संघर्षपूर्ण जीवन-दशा का मार्मिक वर्णन हुआ है।

घ) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए- 

1. वन्दनीय हो तुम
अतुलनीय भी
सबसे बिल्कुल अलग
फिर भी सबमें समाहित।

भाव : 
कवयित्री यहाँ यह बताती हैं कि माँ अनगिनत गुणों से भरी होती है। परिवार में कितनी ही कठिनाइयाँ और दुख मिलें, माँ कभी अपनी उदारता, बड़े दिल और अच्छे स्वभाव को नहीं छोड़ती। इसी वजह से माँ सम्मान और वंदना करने योग्य मानी जाती है। वह परिवार और समाज में सबसे अलग, सबसे महान और बेजोड़ होती है। माँ सभी को अपने स्नेह में समा लेती है और उसके मन में किसी के लिए भी नफरत या बुराई की भावना नहीं रहती। वह हर व्यक्ति को अपना मानती है और हमेशा सभी के भले की कामना करती है। इस प्रकार माँ की महानता, उसकी करुणा और उसके पवित्र मन का अत्यंत सुंदर चित्रण प्रस्तुत होता है।

2. लिजलिजे परम्परावादी
बदरंग आदर्शों को
पीढ़ियों से घिसी-पिटी
अपमानजनक बातों को
अपने से जुड़ी छलनामयी
आघातों को

भाव: 

इन पंक्तियों में कवयित्री बताती हैं कि माँ जीवनभर मिलने वाली कमजोर और रूढ़िवादी परंपराओं, फीके पड़ चुके आदर्शों, पीढ़ियों से चले आ रहे अपमानजनक तानों और अपने ही लोगों से मिलने वाले छल-कपट तथा मानसिक आघातों को भी चुपचाप सहन कर लेती है। वह इन सभी दुखद परिस्थितियों को बिना किसी शिकायत के अपने भीतर समेट लेती है। यह माँ की अद्भुत सहनशीलता, त्याग और धैर्यपूर्ण स्वभाव का मार्मिक चित्रण है।

भाषा और बोध – 

क) इस कविता में कुछ उर्दू के शब्दों का प्रयोग हुआ है, उन शब्दों का हिन्दी रूप लिखिए – बदरंग, जज़्ब, दामन, रूख । 

उत्तर:
कविता में आए उर्दू शब्दों के सरल हिंदी रूप इस प्रकार हैं—

  1. बदरंग — फीका, रंगहीन
  2. जज़्ब (जज़्ब करना) — समेटना, अपने भीतर लेना
  3. दामन — आंचल, गोद
  4. रुख — दिशा, ओर

ख) निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए -ममता, अभिमान, प्रतिमूर्ति, वंदनीय, अतुलनीय । 

  1. ममता – माँ की ममता दुनिया की सबसे पवित्र भावना मानी जाती है।
  2. अभिमान – अच्छे काम के बाद भी हमें अभिमान नहीं करना चाहिए।
  3. प्रतिमूर्ति – वह गुरु ज्ञान और विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं।
  4. वंदनीय – हमारे देश के सैनिक अपने साहस के कारण वंदनीय हैं।
  5. अतुलनीय – प्रकृति की सुंदरता वास्तव में अतुलनीय होती है।

ग)) निम्नलिखित शब्दों का पर्याय लिखिए  – फूल, पिता, माँ, भाई, पीड़ा । 

1. फूल – पुष्प, कुसुम, सुमन, अरविन्द ।

2. पिता – जनक, पिता, पितश्री, बाबूजी ।

3. माँ – माता, जननी,अम्मा, मातृश्री।

4. भाई – भ्राता, सहोदर, भैया, अनुज / अग्रज (उम्र के अनुसार)

5. पीड़ा – वेदना, दुख, व्यथा, यातना

घ) अप, प्रति,अ, बद उपसर्गों तथा वादी, ता, नीय इन प्रत्ययों से तीन-तीन शब्द बनाइये। 

उपसर्ग से शब्द

1. अप (उपसर्ग)

  • अपकार
  • अपमान
  • अपशब्द

2. प्रति (उपसर्ग)

  • प्रतिरोध
  • प्रतिक्रिया
  • प्रतिस्पर्धा

3. अ (उपसर्ग)

  • अशांत
  • अलग
  • असत्य

4. बद (उपसर्ग)

  • बदनाम
  • बदगुमान
  • बदलाव

प्रत्यय से शब्द

1. वादी (प्रत्यय)

  • स्वतंत्रवादी
  • धार्मिकवादी
  • राष्ट्रीयवादी

2. ता (प्रत्यय)

  • निष्ठा → निष्ठा ता
  • सरल → सरल ता
  • पवित्र → पवित्र ता

3. नीय (प्रत्यय)

  • पठनीय
  • लेखनीय
  • चिन्तनीय

माँ कविता का सारांश

इस कविता में कवयित्री ने माँ की महानता, उसकी सहनशीलता और उसके निःस्वार्थ प्रेम का बहुत सुंदर चित्रण किया है। माँ अपने जीवन में चाहे जितने दुख, तकलीफें और अपमान झेले, वह उन्हें अपने भीतर समेटकर भी परिवार के लिए हमेशा प्यार और ममता लुटाती रहती है। पिता की डाँट, परिवार के ताने, पुरानी रूढ़ियाँ और अपमानजनक बातें—सब कुछ चुपचाप सहकर भी माँ कभी शिकायत नहीं करती।

कवयित्री कहती हैं कि माँ साहस और ममता की प्रतिमूर्ति है। उसके आँसू जैसे सूख गए हों, क्योंकि वह अपने हर दुख को अपने मन में छिपाकर आगे बढ़ती रहती है। माँ का हृदय आकाश की तरह विशाल होता है, जिस पर कठिन परिस्थितियों, तानों या परेशानियों का कोई असर नहीं पड़ता।

अंत में कवयित्री माँ को वंदनीय और अतुलनीय बताती हैं, क्योंकि वह सबसे अलग होने के बावजूद सबको अपने प्रेम में समेटकर रखती है। यह कविता माँ के त्याग, धैर्य और अनंत प्रेम को समर्पित है।

इसे भी पढ़ें 

Leave a Comment