पर्यावरण संरक्षण निबंध का सारांश क्लास 9 ॥ Paryavaran Sanrakshan Nibandh Ka Saransh Class 9

आज पर्यावरण की सुरक्षा पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। श्री शुकदेव प्रसाद ने अपने निबंध ‘पर्यावरण संरक्षण’ में पर्यावरण पर बढ़ते खतरे और उनके परिणामों को उजागर किया है। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ पर्यावरण की समस्याएँ भी लगातार बढ़ रही हैं। जैसे-जैसे इंसान विज्ञान और तकनीक में आगे बढ़ा, उसकी गतिविधियों ने प्रकृति पर विपरीत प्रभाव डाला। यही कारण है कि आज पर्यावरण विशेष चर्चा का विषय बन गया है।
पर्यावरण की समस्या केवल किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। पृथ्वी एक ही है और इसे घेरे हुए आकाशमंडल भी एक है। इसीलिए एक देश में पैदा हुआ प्रदूषण पूरे विश्व को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, भारत ने पोकरण में परमाणु शक्ति का परीक्षण किया, जिससे उत्पन्न प्रदूषण का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। इसी तरह, अमेरिका द्वारा ईरान और इराक पर प्रक्षेपास्त्र चलाने से समुद्र में तेल फैल गया, जिससे वहां के जीव मर गए और पूरे समुद्री तंत्र पर इसका असर पड़ा। इसका अर्थ यह है कि पर्यावरण में मामूली बदलाव भी पूरे विश्व को प्रभावित कर सकते हैं।
विकासशील देश अपनी आर्थिक और औद्योगिक प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। प्राकृतिक भंडार सीमित हैं और यदि हम इन्हें लगातार अपव्यय करते रहे, तो ये समाप्त हो जाएंगे। वनों की अंधाधुंध कटाई से भूमि क्षरण हो रहा है, जिससे नदियों में बाढ़ जैसी आपदाएँ बार-बार हो रही हैं। प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों का अत्यधिक दोहन वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ा रहा है। इस तरह मानव गतिविधियों के कारण पर्यावरण असंतुलित हो रहा है और इसके खतरनाक परिणाम हमारे सामने दिखाई दे रहे हैं।
प्रकृति हमें जीवन देती है और हम उसकी संतान हैं, फिर भी कई बार मानव लालच और अहंकार के कारण प्रकृति पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करता है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच दूरी पैदा करता है और कई बार विपत्ति का कारण बनता है। उर्जा हमारे जीवन की आधारशिला है और औद्योगिक विकास इससे गहराई से जुड़ा हुआ है। हालांकि उद्योगों का अधिक विकास मानव जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिक उद्योगों से वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है, जिससे पर्यावरण प्रभावित होता है।
आज दुनिया में सभ्यता का मापदंड उद्योग और धंधे से लिया जाता है। इसी वजह से अमेरिका जैसे विकसित देश अपने नागरिकों द्वारा बहुत अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, एक अमेरिकी नागरिक भारत के किसी नागरिक की तुलना में 40 गुना अधिक ऊर्जा का उपयोग करता है। इस असंतुलन का परिणाम भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवन-मरण का सवाल बन सकता है। इसके साथ ही इस बेतहाशा वृद्धि का असर हमारे सामाजिक मूल्यों पर भी पड़ता है।
जनसंख्या में वृद्धि और कल-कारखानों, उद्योगों की संख्या बढ़ने के कारण वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हुई है। ध्वनि प्रदूषण से लोगों की श्रवण शक्ति प्रभावित हो रही है। उद्योगों ने हमारे दैनिक जीवन और प्राकृतिक संसाधनों को प्रदूषित कर दिया है। बिगड़ते पर्यावरण का प्रभाव न केवल मानव जीवन पर पड़ता है, बल्कि मानवेत्तर प्राणियों और वन्य जीवन पर भी पड़ता है। इसके कारण कई प्रजातियों का विलुप्त होना एक गंभीर समस्या बन गई है। स्वीडन के प्राणी विज्ञानी कुरी लिंडहल के अनुसार पृथ्वी की लगभग 300 से अधिक प्रजातियाँ और उपजातियाँ अब अस्तित्व में नहीं हैं।
इसलिए आज पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाए रखना अत्यंत आवश्यक हो गया है। इसके लिए प्रदूषण-रहित तकनीक का विकास, वन संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग पर ध्यान देना जरूरी है। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर चेतना और जागरूकता फैलाना भी महत्वपूर्ण है। यदि हर देश और नागरिक अपने स्तर पर प्रयास करे, तो पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
आज के युग में पर्यावरण एक जटिल समस्या बन गया है। इसे समझने और बचाने के लिए हर साल 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न सभाएँ, गोष्ठियाँ और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें पर्यावरण से संबंधित समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा की जाती है। कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र, पगवाश आंदोलन, विश्व वन्य जीव संरक्षण कोश, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संपदा संघ, और यूनेस्को द्वारा चलायी जा रही “मैन एंड बायोस्फीयर” परियोजनाएँ पर्यावरण सुरक्षा के उपाय खोजने में लगी हुई हैं।
भारत सरकार भी बच्चों में पर्यावरण जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा को लागू कर रही है। यह कदम विशेष रूप से प्रभावशाली है क्योंकि बच्चों में छोटी उम्र से ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी विकसित होती है।
पाठ का सारांश संक्षेप में
पर्यावरण की सुरक्षा आज पूरे विश्व की एक बड़ी समस्या बन गई है। श्री शुकदेव प्रसाद ने अपने निबंध ‘पर्यावरण संरक्षण’ में बताया है कि जैसे-जैसे मानव सभ्यता आगे बढ़ी है, वैसे-वैसे पर्यावरण से जुड़ी समस्याएँ भी गंभीर होती गई हैं। आज पर्यावरण केवल किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है, क्योंकि पृथ्वी और उसका वातावरण एक है। किसी एक देश में होने वाला प्रदूषण पूरी धरती को प्रभावित करता है।
विकासशील देश अपने लाभ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन कर रहे हैं। वन कटाई, ऊर्जा स्रोतों का अत्यधिक उपयोग और औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण असंतुलन बढ़ रहा है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ रही है, जो गंभीर परिणाम ला रही है। प्रकृति हमारा पालन-पोषण करती है, लेकिन उस पर अधिकार जमाने की लालसा मनुष्य और प्रकृति के बीच दूरी पैदा कर रही है।
औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। इससे मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षियों और अन्य जीवों का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। कई प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही हैं। पर्यावरण को प्रदूषण-मुक्त बनाने के लिए तुरंत और लगातार प्रयास आवश्यक हैं। इसके लिए प्रदूषण-रहित तकनीक, वन संरक्षण, जन-जागरूकता और वैश्विक सहयोग जरूरी है।
आज पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझते हुए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थाएँ पर्यावरण की रक्षा के लिए कार्य कर रही हैं। भारत सरकार ने स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा लागू कर बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का सराहनीय प्रयास किया है।
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