जेंडर समानता में धर्म की भूमिका(gender samanta mein dharm ki bhumika)

जेंडर समानता में धर्म की भूमिका(gender samanta mein dharm ki bhumika)

धर्म के कार्य (functions of religion)

धर्म के निम्नलिखित कार्य हैं

१. मानव जीवन को नियंत्रित करना:

धर्म मानव जीवन को नियंत्रित करने का कार्य करता है अगर धर्म को मानव जीवन से अलग कर दिया जाए तो मानव जीवन अनियंत्रित और अव्यवस्थित हो जाएगा महात्मा गांधी के अनुसार “धर्म व शक्ति है जो मानव को बड़े से बड़े संकट में भी ईमानदार रहने की शिक्षा देता है।”धर्म के बिना मनुष्य का जीवन पशु तुल्य बन जाएगा क्योंकि धर्म ही मनुष्य को नियंत्रित करता आ रहा है।

जेंडर समानता में धर्म की भूमिका(gender samanta mein dharm ki bhumika)

२. सामाजिक नियंत्रण संबंधी कार्य:-

धर्म व्यक्तियों में सामाजिकता की भावना का विकास करता है। यह समाज में एकता परोपकार त्याग आदि भावना को विकसित करता है तथा धार्मिक नियमों द्वारा लोगों को नियंत्रित करता है। अतः धर्म का महत्वपूर्ण कार्य सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना है।

३. शैक्षिक कार्य:-

प्राचीन काल में धर्म का प्रमुख कार्य शिक्षा का प्रसार करना था धर्म तथा शिक्षा एक ही सिक्के के दोपहर के रूप में परिचालित थे। धर्म से संबंधित शिक्षकों को क्रमशः वैदिक शिक्षा बौद्ध शिक्षा तथा मुस्लिम शिक्षा के नाम से जाना जाता था। यह मंदिर मठ मस्जिद यह सभी धार्मिक स्थल शिक्षा के केंद्र थे। जहां धर्म के साथ-साथ शिक्षा का भी प्रचार किया जाता था परंतु वर्तमान में धर्म जन तांत्रिक मूल्यों पर आधारित है जहां धर्म विशेष की शिक्षा ना देकर सभी धर्मों की अच्छाइयों के साथ साथ उसका पालन करने की शिक्षा दी जाती है।

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४. जनतांत्रिक मूल्यों के विकास का कार्य:

जनतांत्रिक मूल्य जैसे धर्म निरपेक्षता सामाजिक समता तथा आर्थिक न्याय इत्यादि है। जिसके आधार पर धर्म का प्रचार प्रसार किया जाता है। जो सभी धर्मों तथा उनकी इच्छाओं को महत्व देता है।

 

५. मानव जीवन के विकास का कार्य:-

मनुष्य को ईश्वर विशेष शक्तियों से परिपूर्ण बनाया है। जब कभी व्यक्ति अपनी दैनिक जीवन कथा अन्य परेशानियों से परेशान हो जाता है तब व्यक्ति धर्म के अच्छी बातों को याद करता है जिससे उनमें नवीन शक्तियों का प्रसार होता है तथा सही मार्ग दर्शन करता है। धर्म मनुष्य को सही गलत की पहचान कराता है तथा उसे लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता करता है।

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६. उदारता के दृष्टिकोण का विकास:-

धर्म व्यक्ति में उदारता के दृष्टिकोण का विकास करता है। सभी धर्म का मूल लक्ष्य है प्रेम दया तथा सहिष्णुता जिससे व्यक्ति में उदारता का समावेश होता है। इस प्रकार धर्म व्यक्ति को उदार तथा संवेदनशील बनाता है।

 

७. आध्यात्मिक तथा नैतिक मूल्यों के विकास का कार्य:-

धर्म व्यक्ति में आध्यात्मिकता और नैतिकता का विकास करता है। आध्यात्मिकता से चिंताओं का नाश सकारात्मक सोचता था जीवन के उद्देश्यों का स्पष्टीकरण होता है अतः धर्म नैतिक मूल्यों के विकास में सहायक होता है।

 

८. सर्वधर्म समभाव के विकास का कार्य:-

वर्तमान समय में व्यक्ति व्यक्ति के मध्य एक खाई बनती जा रही है जिससे धर्म की शिक्षा के आधार पर संतुलित किया जा सकता है धर्म की अच्छी बातें सभी व्यक्तियों में आदर के भाव विकसित करता है। अतः सर्व धर्म समभाव की शिक्षा प्रदान करता धर्म के प्रमुख कार्यों में से एक है।

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धर्म की उपयोगिता तथा महत्व Utility and importance of religion

धर्म की उपयोगिता तथा महत्व का क्षेत्र भी व्यापक है जो निम्न प्रकार है-

१. व्यक्तित्व विकास में सहायक:-

धर्म व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन का मार्गदर्शन कर आता है। क्योंकि धर्म व्यक्ति में संयम दया इंद्रियों को नियंत्रित सेवा भाव त्याग करने आदि सिखा देता है। जिसके द्वारा व्यक्ति आदर्श जीवन व्यतीत करता है तथा अपना सर्व मुखी विकास करता है।

 

२. समाज के विकास में सहायक:-

धर्म का महत्व इसलिए भी है कि वह व्यक्तियों को मिलजुल कर रहने तथा धार्मिक कार्यक्रमों में साथ-साथ कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है तथा सामाजिक विकास में सहायता पहुंचाते हैं। धर्म समाज के प्रति प्रेम परोपकार त्याग दया आदि का पाठ पढ़ाता है।

 

३. सांस्कृतिक विकास में सहायक:-

धर्म की उपयोगिता तथा महत्व का पता इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्राचीन काल में इतिहास का ज्ञान धार्मिक साहित्य की ही देन है। धर्म के द्वारा ही सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण किया गया है। धार्मिक ग्रंथ ही ऐसी धरोहर है जिसके द्वारा प्राचीन सभ्यता संस्कृति की झलक मिलती है।

 

४. शैक्षिक गतिविधियों के संचालन में सहायक:-

धर्म शैक्षिक विधियों का संचालन करता है। यह व्यक्ति को चरित्रवान अनुशासित जिम्मेदार बनाता है। जो शिक्षा के लिए उपयोगी है। धर्म मनुष्य के मन में चलने वाले विचारों को नियंत्रित करता है तथा उन्हें सकारात्मक दिशा में ले जाता है जिससे शिक्षा प्राप्त करना आसान हो जाता है।

 

५. विभिन्न धर्मों के सामंजस्य की स्थापना में सहायक:-

धर्म का महत्व इसलिए भी है क्योंकि धर्म अन्य धर्मों के प्रति उदारता का पाठ सिखाता है। धर्म के द्वारा व्यक्ति अन्य धर्मों का भी सम्मान करता है तथा आधार का भाव रखता है। इस प्रकार धर्म व्यक्तियों में नकारात्मक प्रवृत्तियों का अंत कर सकारात्मक प्रवृत्तियों को विकसित करता है।

 

६. आत्मा शक्ति प्रदान करने हेतु:-

धर्म व्यक्ति को आत्मशांति प्रदान करता है। जब भी व्यक्ति आज शांत रहता है तो वह धर्म की शरण में जाता है जिससे उससे आत्म संतुष्टि मिलती हैं।

 

७. नैतिक गुणों के विकास हेतु:

धर्म बच्चों में अच्छे आचरण का पाठ पढ़ाता है। जिससे बच्चे भावी जीवन में इसे अपनाकर जीवन निर्वाह करता है। नैतिक गुणों के विकास में धर्म अहम भूमिका निभाता है। अधर्म की उपयोगिता निरंतर बनी रहती हैं।

 

८. प्रजातंत्र की सफलता हेतु:-

धर्म प्रजातंत्र की स्थापना में विशेष भूमिका निभाता है जिसके साथ का कोई भी विशेष धर्म नहीं होता है। इसमें सभी धर्म समान होते हैं तथा सभी का आदर किया जाता है। या प्रजातंत्र को बनाए रखने में सहायक होता है।

 

लैंगिक शिक्षा हेतु धर्म की भूमिका (gender samanta mein dharm ki bhumika):-

धर्म ईश्वर के साथ-साथ मनुष्य का मनुष्य के साथ संबंध स्थापित करता है जिसे व्यवहार और आचरण में अपनाया जाता है। धर्म व्यक्ति में नैतिकता के गुण चारित्रिक विकास सभी का सम्मान करना तथा व्यक्ति को संभावित बनाए रखना परंतु धर्म को मानने वाले कट्टरपंथियों के द्वारा स्त्री पुरुष के माध्य भेदभाव है जिसमें स्त्रियों को हिंद रिस्टी से देखा जाता है इसकी समाप्ति में धर्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यह निम्नलिखित है:-

१. लोगों को धर्म के मूल तत्वों से परिचित कराना चाहिए।

२. धर्म के अंतर्गत जो अंधविश्वास तथा कुरीतियां है उन्हें समाप्त करना चाहिए।

३. धार्मिक कार्यक्रमों में स्त्रियों का आधार सम्मान तथा समानता का व्यवहार करके भी लैंगिक भेदभाव को दूर किया जा सकता है।

४. धार्मिक कार्यक्रमों में स्त्रियों की सहभागिता द्वारा।

५. लैंगिक भेदभाव को कम करके।

६. कन्या भ्रूण हत्या स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार आदि को धर्म के नैतिक कार्य बता कर लैंगिक दूर्व्यवहारों को दूर किया जा सकता है।

७. बालिका शिक्षा की व्यवस्था करके भी।

८. धर्म को लैंगिक असमानता दूर करने के लिए शिक्षा और समानता का प्रसार करना चाहिए।

९. धर्म को चारित्रिक तथा नैतिक विकास का कार्य करके असमानता के भाव को कम किया जा सकता है।

१०. धर्म के पास कुछ शक्तियां होती है जिसके द्वारा वे लोगों में जागरूकता ला सकता है।

११. धर्म को लैंगिक शिक्षा में समानता लाने के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

१२. धर्म व्यवसायिक शिक्षा तथा कौशल विकास के द्वारा लैंगिक असमानता को कम कर सकता है।

१३. धर्म को परिवार, विद्यालय, समाज तथा राज्य आदि अभिकरणों की सहायता से लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।

इस प्रकार जेंडर समानता में धर्म की भूमिका हैं।

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