अनुवाद की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए (Anuvad ki Prakriya Ko Spasht Kijiye hu)
अनुवाद अब समय की बड़ी जरूरत है। जीवन के सभी क्षेत्रो में इसकी अनिवार्यता असंदिग्ध है सृजन का पुनर्सृजन अनुवाद है निश्चित रूप से हमारी बहुविध अभिव्यक्ति भी कही न कही अनुवाद का ही अहम हिस्सा बन जाती है। सृजन कार्य चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो उसके मूल धारातल में प्राथमिक स्थल पर उसकी संकल्पना जन्मे होती है। संकल्पना के उपरांत मस्तिष्क में विचारों का उदय होता है और हम विविध माध्यमो से उत्पन्न हुए विचारो को अभिव्यक्त करते है और अछूते अनुवाद से सफल अनुवाद की यात्रा के लिए अनुवादक को जिन-जिन पड़ावो से जूझना पड़ता है। और अपनी इस दुरुह यात्रा के अंत में जो आत्मिक सुख या सफलता मिलती है वही अनुवाद की प्रक्रिया कहलाती है अर्थात अनुवाद ‘आरंभ करने से सफलतापूर्वक सम्पन्न करने की संपूर्ण प्रक्रिया को अनुवाद की प्रक्रिया कहते है।
भारतीय और विदेशी विद्वानों ने अनुवाद प्रक्रिया के कई सोपान बताए है –
नाइडा के अनुसार तीन प्रक्रिया है-
१. पाठ विश्लेषण
२. अन्तरण
३. पुनर्गठन भषि जिला एक किला दीक
रूसी विद्वानों के अनुसार
१. पाठ-पठन
२. विश्लेषण
३. अन्तरण
४. संयोजन
भारतीय विद्वानों के अंतर्गत
१. पाठ-पाठन
२. पाठ विश्लेषण
३. भाषान्तरण
४. समायोजन
५. मूल से तुलना (मिलना)
इन सभी विव्दानों की दृष्टि में अनुवाद प्रक्रिया समान है। उनकी दृष्टियों में हम इस रूप में भी रख सकते है-
=> स्रोत भाषा में लिखित सामग्री का मनन पूर्वक पठन करना
=> मूल सामग्री का विवेक अनुसार वर्गीकरण और विश्लेषण करना
Read more: अनुवाद किसे कहते हैं अनुवाद की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए
=> अनुवाद करने के लिए अनुवादक के पास से छूट रहती है कि वह सहायता तथा संदर्भ ग्रंथ की मदद ले।
=> पूर्ण अनुवाद के पूर्व अनुदया सामग्री विश्लेषण करते हुए कच्चा अनुवाद करें।
=> अनुदया सामग्री यदि किसी विशेष प्रकार की है तो उसका विश्लेषण करने के लिए अनुवादक के पास खुला दिल और खुली दृष्टि हो ताकि वह विषय विशेषज्ञों से तालमेल स्थापित कर उनसे विचार विमर्श कर सामग्री को समझ सके और उनका सच्चा अनुवाद कर सके।
=> स्रोत भाषा के अर्थ का अंतरण लक्ष्य भाषा में करना अनुवाद की अनिवार्य प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में अनुवादक मूल भाषा से लक्ष्य भाषा की सामग्री में निकटतम अभिव्यक्तियों को अंतरित करने का प्रयास करता है। अनेक बार ऐसा भी होता है कि अंतरण शब्दों के स्तर पर न होकर अर्थ के स्तर पर या वाक्य के स्तर पर होता है। अंतरण बहुत कुछ अनुवादक की बोध क्षमता एवं स्रोत भाषा में लिखित भाषा की प्रकृति पर निर्भर होती है।
=> अंतरण की प्रक्रिया के बाद पुनः दिए गए संपूर्ण अनुवाद के अंतरण की अनुवादक अपनी आर्थिक दृष्टि से देखता है शब्द चयन से लेकर वाक्य निर्माण की सटीकता एवं औचित्य की जांच वह करता है। उसे इस बात की भी पर परवाह करनी पड़ती है कि किये गये अनुवाद में संप्रेषणीयता के तत्व है अथवा नहीं।
=> अगली चरण में अनुवादक को स्वयं ही अनूदित सामग्री की तुलना मूल सामग्री से करनी पड़ती है काट छांट कर अनुवादक को अनुवादक के स्तर पर अंतिम रूप देना अनुवादक का अंतिम चरण है। जब अनुवादक किए गए अनुवाद से भाषा एवं विषय की दृष्टि से पूर्णतः संतुष्ट हो जाता है तो अनूदित सामग्री को पुनर्सृजन करता है। जांच परख कर जहां आवश्यक सुधार अपेक्षित होता है। वहां सुधार संशोधन कर इसे अंतिम रूप दिया जाता है।