अनुवाद की समस्या और समाधान (Anuvad ki Samasya Aur Samadhan)

अनुवाद की समस्या और समाधान (Anuvad ki Samasya Aur Samadhan), अनुवाद की समस्या एवं समाधान

जो लोग अनुवाद को समस्या मानते हैं वे अनुवाद को अपनी से दूर करते हैं और यह दूरी उनके लिए उनकी समस्याओं को जन्म देता है।
           अनुवाद आज व्यक्ति की सामाजिक आवश्यकता बन गया है आज का ज्ञान विज्ञान और साहित्य केवल एक भाषा समाज की वस्तु नहीं है बल्कि संपूर्ण मानव समाज के धरोहर बन गया है। इस धरोहर को तब तक पहुंचने का दायित्व अनुवाद के ऊपर ही आ पड़ा है।
          अनुवाद के संबंध में यह आम धारणा है कि कोई भी व्यक्ति जो मूल भाषा और लक्ष्य भाषा जानता है। अनुवाद कर सकता है। पर यह धारणा पूर्णतः सत्य नहीं है दो भाषाओं की विशेषता एवं विषय का ज्ञान निश्चय ही अनुवाद कर्म एवं प्रक्रिया में उपयोगी एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। परंतु पक्का और सच्चा अनुवाद करने के लिए इतनी जानकारी काफी नहीं है क्योंकि मूल रचना में ऐसे अनेक शब्द प्रयोग भाषिक रूप तथा सामाजिक, सांस्कृतिक मसले आते हैं जिनका लक्ष्य भाषा में अंतरण करना या तो संभव नहीं होता या कठिन होता है।

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अनुवाद की मुख्यत: दो प्रकार की समस्याएं है –
१. भाषा परक समस्याएं
२. सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएं

भाषा परक समस्याएं स्रोत एवं लक्ष्य भाषाओं की विभिन्न संरचनाओं के कारण उठ सकती है किंतु सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएं सर्वाधिक जटिल देवर-भाभी, जीजा-साली का अनुवाद यूरोपीय भाषा में नहीं हो सकता क्योंकि भाव की दृष्टि से इसमें जो सामाजिक संबंध निहित है उसे शब्द के स्तर पर आका नहीं जा सकता। इस प्रकार भारतीय संस्कृति के ऐसे अनेक शब्द है पूजा पाठ एवं धार्मिक रीति रिवाज के ऐसे प्रसंग एवं शब्द है जिन का अनुवाद करना संभव सहज नहीं हो सकता है।
भारतीय संस्कृति में कर्म और काम के अलग-अलग अर्थ है इसलिए इसका अनुवाद Action से बेहतर Performance हो सकता है।
एक भाषा एक व्याकरणिक या शब्दगत रूपों का पूर्णतय रूपांतरण नहीं हो सकता इसीलिए अनुवाद की इन समस्याओं को समतुल्यता के संदर्भ में जोड़ा गया। समतुल्यता के लिए यह भी आवश्यक है कि स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के पाठों के परस्पर संबंध को देखा जाए।

1. भाषा परक समस्या:-

प्रत्येक भाषा की अपनी संरचना होती है इसीलिए ये बहुत संभव है कि स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा के भाषिक रूपों में समान अर्थ लिखने के स्थिति बहुत कम है। स्रोत भाषा की अभिव्यक्तियों के समान लक्ष्य भाषा में अभिव्यक्ति मिले ही कोई जरूरी नहीं है इसलिए इस जटिल समस्या का समाधान करने के लिए भाव परक अनुवादक करने की मजबूरी रहती है।
स्रोत भाषा में लिखित वाक्य में सूक्ष्म अर्थ की प्राप्ति होती है अर्थ की इस सूक्ष्मता को लक्ष्य भाषा में अंतरित करने में कठिनाई होती है; जैसे-
मुझे जाना है। – I have to go.
मुझे जाना चाहिए। –  I should to go.
मुझे जाना तो है। – impossible

प्रत्येक भाषा में शैलीगत भेद होते है हर भाषा में औपचारिक अनौपचारिक लिखित सामाजिक कई प्रकार की शैलियां होती है। स्रोत भाषा में प्रयुक्त इन शैलियों का सटीक अनुवाद करना कठिन है क्योंकि स्रोत भाषा में जो शैली प्रयुक्त है लक्ष्य भाषा में भी वह प्राप्त हो कोई जरूरी नहीं है।
उसकी पत्नी ज्वार ग्रस्त है।
उसकी बीवी को बुखार है।
उसकी बेगम की तबीयत नासाज है।
पत्नी, बीबी, बेगम में तीनों शब्द अलग-अलग सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को प्रतिद्वंदित (रेखांकित) करने वाले शब्द है इनका दूसरी भाषा में अनुवाद करना कठिन है इनके लिए वाइफ (Wife) शब्दों का प्रयोग काम चलाव का ही उदाहरण है।
मनुष्य सामाजिकता के निर्वाह करने के लिए अनेक प्रकार के रिश्तों में बंधता है रिश्तो का ये बंधन जन्मत: होता है और कुछ रिश्ते समाज में बनते पनपते है रिश्तो में जो भाव रहते हैं उन अलग-अलग रिश्तो को लक्ष्य भाषा में अनुवाद करना आसान नहीं होता। निश्चित रूप से भाषा मानव अभिव्यक्ति का कारगर साधन है। भाषा में भौगोलिक, ऐतिहासिक एवं सामाजिक, सांस्कृतिक तत्वों एक भाषा से दूसरी भाषा में भिन्न होते हैं। भाषा समस्या के साथ मूल पाठ में जो सामाजिक सांस्कृतिक सूचनाएं मिलती है उनका अंतरण करना वास्तव में कठिन समस्या है।

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२. सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएं:-

संस्कृति के संदर्भ में देश प्रदेश की वेशभूषा का भी विशिष्ट स्थान होता है हिंदी भाषा क्षेत्र में धोती, साड़ी, लूंगी आदि वस्त्र के संदर्भ परक अर्थ होते हैं। महिलाएं साड़ी पहनते हैं पुरुष धोती जबकि धोती पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग होती है दक्षिण भारत में भी लुंगी पहनने की अलग-अलग तरीके होती है जो पहनने वालों के सामाजिक स्तर को बताते हैं इनका अनुवाद दूसरी भाषाओं में कर पाना कठिन है क्योंकि ये वस्त्र लक्ष्य भाषा के वेशभूषा में नहीं आते हैं। इसी प्रकार पंजाबी वस्त्र सलवार कुर्ता का दूसरी भाषा में अनुवाद करना कठिन है।
मूल रचना में अनेक शब्दों के माध्यम से सामाजिक सूचनाएं दी जाती है चिलम, उभतन, कलश चरणामृत जिनका लक्ष्य भाषा में अनुवाद करना नामुमकिन है। उसी प्रकार खान पान मुहावरों कहावतों का अनुवाद भी बहुत समय कर पाना मुश्किल है।
कुछ प्रयोग ऐसे हैं जो संरचना की दृष्टि से भले एक जैसे लगे पर व्यावहारिक दृष्टि से ये अलग-अलग अर्थ प्रदान करते है। जैसे:-
देखते-देखते मेरे आंखे दुख गई।
देखते-देखते दिन बीत गया।

पाठ की प्रकृति:-

विभिन्न विषयों एवं कार्य क्षेत्र की भाषा विशिष्ट प्रकार की होती है। विशिष्ट विषयों की प्रयुक्तियां भिन्न-भिन्न होती है। साथ ही इसमें ये भी ध्यान दिया जाता है कि उसका मानसिक स्तर कैसा है एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं रचना की प्रकृति के अनुसार रचना का विन्यास विश्लेषण करने के बाद ही शब्द का सही अर्थ प्राप्त कर अनुवाद किया जा सकता है।
एक ही अर्थ वार्ता वाले के शब्दों का प्रयोग करने पर भी अनुवादक के समक्ष कठिनाइयां उत्पन्न हो सकते हैं। द्वितीय इस प्रकार प्रपत्र Form, Proforma, Application, Section के लिए अनुभव धारा श्रेणी खंड कोटि Charge प्रभार, आदेश,दोष, दोषारोपण। इन सारे शब्दों की प्रयोग की निश्चित व्यवस्था है।

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