दीपदान’ एकांकी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए (deepdan ekanki shirshak ki sarthakta)
शीर्षक किसी भी एकांकी का दर्पण होता है जिसमें संपूर्ण एकांकी का छवि झलकता है। जिस प्रकार पुष्प मिलकर एक माला का निर्माण करते हैं ठीक उसी प्रकार एकांकी की विभिन्न घटनाएं मिलकर एक उचित शीर्षक का निर्माण करते है। प्रस्तुत एकांकी का शीर्षक अत्यंत संक्षिप्त आकर्षक एवं सटीक है। एकांकी का नाम पढ़ते ही पाठकों के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दीपदान कौन करता है? दीपदान क्यों करता है? वह दीपदान किस प्रकार करता है? प्रस्तुत एकांकी का शीर्षक दीपदान अत्यंत सार्थक है। इस एकांकी में दीपदान कई अर्थों में हमारे सामने आता है। पहले अर्थ में दीपदान जो चितौड़ का एक सांस्कृतिक उत्सव है तथा इसमें तुलजा भवानी की आराधना कर दीपदान किया जाता है।
दुसरे अर्थ में दीपदान पन्ना धाय के बालक पुत्र चन्दन की मृत्यु के रूप में उसके कुल का दीपक दान है। एक ओर जब सारा चितौड़ तुलजा भवानी के लिए दीपिदान कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर मातृभूमि के रक्षा के लिए पन्ना अपने ही पुत्र चन्दन को मातृभूमि की भेंट चढ़ा देती है-
आज मैंने भी दीपदान किया है दीपदान! अपने जीवन का दीप मैंने एक ही धारा पर तैरा दिया है। ऐसा दीपदान भी किसी ने किया है।
तीसरे अर्थ में बनवीर अपनी राज्य सत्ता को पाने के लिए अपने रास्ते के कांटे कुंवर उदय सिंह के धोखे से चन्दन का दीपदान करता है।
आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीपदान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूंगा। यमराज! लो इस दीपक को। यह मेरा दीपदान है।
निष्कर्ष स्वरूप हम यह कह सकते है कि चाहे विषय की दृष्टि से हो या चाहे चितौड़ की संस्कृति की दृष्टि से हो या अपने कुल के दीप के दान करने की बात हो या फिर बनवीर द्वारा सत्ता पाने के लिए यमराज को दीपदान करने की बात हो हर दृष्टि से इस एकांकी का शीर्षक ‘दीपदान’ बिल्कुल सार्थक एवं उपयुक्त है।