करमा पूजा क्यों मनाया जाता है,करमा पूजा कैसे मनाया जाता है, karma puja ki kahani
झारखण्ड की सभ्यता एवं पर्व
आदिवासी बहुल इस राज्य को जंगल झाड़ी की भूमि कहा जाता है साथ ही अपने गर्भ में अनेक धातुओं एवं खनिजों को रखने के कारण इसे रत्नागर्भा भी कहे तो गलत नहीं होगा। झारखंड का गठन भले ही 15 नवंबर 2000 ईस्वी में बिरसा मुंडा जी के जयंती पर हुई हो लेकिन इसका सांस्कृतिक इतिहास बहुत पुराना रहा है। झारखंड की सभ्यता एवं इसका इतिहास बेहद गौरवपूर्ण रहा है। झारखंड में कुल 32 जनजातियां मिलकर रहती है। एक विशाल सांस्कृतिक प्रभाव होने के साथ-साथ झारखंड यहां के मनाए जाने वाले त्योहारों की मेजबनी के लिए जाना जाता है। इसके उत्सव प्रकृति के कारण यह भारत की ज्वलंत आध्यात्मिक कैनवस पर भी कुछ अधिक रंग डालता है।
झारखंड में मनाए जाने वाले सारे पर पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। झारखंड के पर्व में मुख्य आकर्षण आदिवास त्योहारों के उत्सव में होता है। इन सभी में एक पर्व है जो प्रकृति प्रेम एवं भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। क्या पर ‘करमा पर्व’ के नाम से जाना जाता है।
झारखंड के अन्य पर्व जिन्हें धूमधाम से मनाया जाता है उनमें से कुछ बड़े पर निम्नलिखित हैं- सरहुल, सोहराय, पुस पर्व, भगता पर्व आदि।
करमा पूजा कब और क्यों मनाया जाता है? करमा पूजा क्यों मनाया जाता है
यह पर्व सितंबर के आसपास भादो के एकादशी को करमा पर्व मनाया जाता है। भाई की सुख समृद्धि के लिए गांव भर की बहने उपवास करती है। यह पर्व झारखंड के आदिवासी मूलवासी सभी मिलकर मनाते हैं। कर्मा झारखंड के आदिवासियों का एक प्रमुख त्योहार है। इस मौके पर पूजा करके आदिवासी अच्छे फसल की कामना करते हैं। साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती है। करमा के अवसर पर पूजा प्रक्रिया पूरा होने के बाद झारखंड के आदिवासी मूलवासी ढोल मांदर और नगाड़ा के थाप पर झूमते है एवं सामूहिक नृत्य करते हैं। यह पर्व सभी लोगों के लिए परंपरा की रक्षा के साथ-साथ मनोरंजन का भी एक अच्छा साधन है जहां पुरुष रात में पेय पदार्थों का सेवन कर पूरी रात नाचते गाते हैं और यह दृश्य देखना भी आंखों को सुकून देती है। यह पर्व झारखंड के साथ-साथ अन्य राज्यों से छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश उड़ीसा एवं बंगाल के आदिवासियों द्वारा भी धूमधाम से मनाया जाता है।
करमा पूजा कैसे मनाया जाता है? करमा पूजा की प्रक्रिया।
भादो की एकादशी को करमा पर्व मनाया जाता है। यह पर्व झारखंड के आदिवासी सभी मिलकर मनाते हैं। 9 दिन पहले पूजा के लिए टोकरियों में नदी का बालू रखकर उसे सजा कर उसमें सात प्रकार का अन्न बोया जाता है जो पूजा दिन तक अंकुरित हो जाता है। जिसे ‘जावा’ फूल कहा जाता है। पूजा स्थानों को पत्तों फूलों से सजाया जाता है। पूजा में बैठने वाली व्रती स्नान कर शाम में नए वस्त्र धारण कर पूजा में शामिल होती है। शाम को ही करम डाल को काटकर युवा लाते हैं। दाल का स्वागत पुजारी उसे विधि पूर्वक पूजा स्थान में स्थापित करते हैं। पूजा के साथ ही करमा-धरमा कथा सुनाई जाती है।
तत्पश्चात पूजा के बाद जावा फूलों को कानों में खोंस कर युवा युवती और भी अन्य लोग मांदर ढोल और नगाड़ा की धुन पर करमा गीतों पर सामूहिक नृत्य करते हैं और या प्रक्रिया काफी समय तक चलता रहता है।
कर्म पूजा के पीछे की कहानी क्या है? करमा पर्व का इतिहास
कहा जाता है कि करमा-धरमा दो भाई थे। दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे कुछ दिनों बाद करमा की शादी हो गई उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी। यहां तक कि धरती मां के पीड़ा से बहुत दुखी था। और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया उसके जाते ही सभी के कर्म किस्मत भाग्य भी चला गया और वहां के लोग दुखी हो गए और धरमा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गई आसपास कहीं पानी नहीं था। दूर एक नदी दिखाई दिया वहां जाने पर देखा कि उसमें पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा जबसे आपके भाई यहां से गए हैं तब से हमारा कर्म फूट गया है, यहां तक की पेड़ के सारे फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं अगर वे मिले तो उनसे कह दीजिएगा और उनसे उपाय पूछ कर बताइएगा। धर्मा वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला उन्होंने बताया कि जब से करमा यहां से गया है, उनके सर के बोझ तब तक नहीं उतरते हैं जब तक तीन चार लोग मिलकर ना उतारे। ये बात करमा से कहकर निवारण के उपाय बताना, धर्मा वहां से भी बढ़ गया। आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई कि जब से वे गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं, इसके लिए क्या उपाय हैं, आप करमा से पूछ कर बताना। धरमा आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा, वहां उसने देखा कि करमा धूप गर्मी से परेशान हैं उसके शरीर पर फोड़े फुंसी पड़े हैं, और वह व्याकुल हो रहा है। धरमा से उसकी हालत देखी ना जा रही थी। उसने करमा से आग्रह किया कि हुआ घर वापस चले तो कर्मा ने कहा कि मैं उस घर कैसे जाऊं जहां पर मेरी पत्नी जमीन पर माड़ फेंक देती है तब धर्मा ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी महीना जमीन पर माड़ नहीं फेकेगीं, फिर दोनों भाई वापस चले तो उस सबसे पहले वो महिला मिली तो उससे करमा ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ, आगे अंत में नदी मिला तो करमा ने कहा तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया, आगे किसी को गंदा पानी मत पिलाना आगे कभी ऐसा मत करना, तुम्हारे पास कोई आए तो साफ पानी पिलाना।
इसी प्रकार उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में करम का डाल लगाकर पूजा किया। इसके बाद पूरे इलाके में लोग फिर से खुशी से जीने लगे और फिर से खुशहाली लौट आई उसी को याद कर आज करमा पर्व मनाया जाता है।
करमा पूजा पर आधुनिकता का प्रभाव
पिछले कुछ समय में जिस प्रकार से आधुनिकता की हवा वही है उससे कोई अछूता नहीं रहा है सभी संस्कृतियों में इसका प्रभाव देखने को मिली है। आधुनिकता के प्रभाव में आकर ही सभी पर्व को मनाने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है। कुछ दशक पहले सादगी से मनाया जाता था, परंतु पिछले कुछ वर्षों से कर्मा पर धूमधाम और रौनक के साथ मनाया जाने लगा है। विभिन्न सरना समिति एवं मोहल्ले में होने वाली पूजा के दौरान पूजा स्थान की सजावट में भी क्रिएटिविटी देखने को मिलती है। आज करमा गीतों में भी आधुनिकता का रंग चढ़ा है। बड़े-बड़े डीजे बॉक्स के बीच पुराने गीत धीरे-धीरे गुम होते जा रहे हैं। श्रृंगार एवं वस्त्र में भी बदलाव देखने को मिल रहा है।
निष्कर्ष:
झारखंड की धरती हमेशा अपनी संस्कृति व पर्वो को मनाने के अंदाज़ के लिए जाना जाता है। सभी पर्वों में विशेष रुप से देखा गया है अलग-अलग पूजा विधि है। सभी पर्वों में करमा को खास माना जाता है। यह इसलिए खास हो जाता है कि इस पर्व में प्रकृति के पूजा के साथ-साथ भाइयों एवं बहनों के मध्य प्रेम का भी प्रतीक है। करमा में होने वाले नृत्य जो कि समूह में हाथ पकड़ कर एक चैन बनाकर किया जाता है इसे भारत के आने पर वह से अलग बनाता है।