उसने कहा था कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए॥ उसने कहा था कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ॥ उसने कहा था शीर्षक की सार्थकता लिखिए
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की ‘उसने कहा था’ हिंदी की अमर कहानियों में से एक है। इसका शीर्षक अत्यंत संक्षिप्त, रहस्यमय और जिज्ञासापूर्ण है। जब पाठक इसे पढ़ना शुरू करता है तो मन में तुरंत प्रश्न उठते हैं—किसने कहा था? क्या कहा था? किससे कहा था? और क्यों कहा था? यही प्रश्न कहानी के प्रति आकर्षण बनाए रखते हैं और अंत तक पाठक को बांधे रखते हैं।
‘उसने कहा था’ शीर्षक बहुत छोटा है, किंतु इसमें गहराई छिपी है। यह शीर्षक पाठक की जिज्ञासा को जीवित रखता है और जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती है, उसका रहस्य धीरे-धीरे स्पष्ट होता जाता है। कहानी के अंत में यह वाक्य संपूर्ण कथानक का सार बनकर सामने आता है।
कहानी का मुख्य केंद्र लहना सिंह और सूबेदारनी होरों का मिलन है। युद्धभूमि पर जाने से पहले लहना सिंह अपने साथी सूबेदार हजारा सिंह के गाँव पहुँचता है, जहाँ उसकी मुलाकात वर्षों बाद बचपन की सखी होरों से होती है। यह मिलन दोनों को पुराने दिनों की यादों में ले जाता है। होरों भावुक होकर उससे प्रार्थना करती है कि जैसे उसने बचपन में ताँगेवाले के घोड़े से उसकी जान बचाई थी, वैसे ही इस बार उसके पति और बेटे की रक्षा करे। यह सुनकर लहना सिंह गहराई से प्रभावित होता है और वचन देता है कि किसी भी परिस्थिति में वह उसकी इस बात को पूरा करेगा। युद्ध के मैदान में वह इसी वचन को याद रखते हुए वीरता से लड़ता है और अंततः अपने प्राणों की आहुति दे देता है। पूरी कहानी का आधार यही वाक्य है—“उसने कहा था”—जो त्याग, वचन और बलिदान की गहरी भावना को दर्शाता है।
यह कहानी त्याग, निष्ठा और कर्तव्य की गाथा है। शीर्षक इन भावनाओं को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। यह वचन केवल एक संवाद नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना, प्रेम और बलिदान का प्रतीक है।
अतः कहा जा सकता है कि ‘उसने कहा था’ शीर्षक कहानी के कथानक, उद्देश्य और वातावरण से सीधा संबंध रखता है। यह संक्षिप्त होते हुए भी प्रभावशाली है, पाठकों की जिज्ञासा को बनाए रखता है और अंत में गहन भावनात्मक प्रभाव छोड़ता है। इस प्रकार, यह शीर्षक हर दृष्टि से सटीक, उपयुक्त और पूर्णतः सार्थक है।
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