दीपदान एकांकी का सारांश ॥ Deepdan Ekanki Ka Saransh

दीपदान एकांकी का सारांश ॥ Deepdan Ekanki Ka Saransh

दीपदान एकांकी का सारांश ॥ Deepdan Ekanki Ka Saransh

“दीपदान” डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा रचित एक ऐतिहासिक और भावपूर्ण एकांकी है, जो भारतीय इतिहास की वीरता, त्याग, बलिदान और देशभक्ति की भावना को जीवंत करता है। यह नाटक मेवाड़ की ऐतिहासिक घटना पर आधारित है और इसमें मानवीय भावनाओं, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रप्रेम की गहराई को दर्शाया गया है। कहानी महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु से शुरू होती है, जिसके बाद उनके छोटे भाई पृथ्वी सिंह का दासी पुत्र बनवीर चित्तौड़ की सत्ता प्राप्त करने की इच्छा प्रबल हो जाती है। बनवीर की लालसा इतनी प्रबल होती है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। वह रात के अंधेरे में सो रहे विक्रमादित्य की हत्या कर देता है और अब राणा सांगा के छोटे पुत्र कुंवर उदयसिंह की हत्या की योजना बनाता है।

बनवीर अपने षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए मयूर कुंड में दीपदान उत्सव का आयोजन करता है। उसका उद्देश्य केवल उत्सव का आनंद लेना नहीं, बल्कि इस अवसर का लाभ उठाकर उदयसिंह को मारना और चित्तौड़ की सत्ता अपने हाथ में लेना है। उदयसिंह की सुरक्षा की जिम्मेदारी पन्ना धाय पर है, जो न केवल उसकी संरक्षक बल्कि साहसी और निष्ठावान स्त्री भी है। पन्ना धाय बनवीर के षड्यंत्र को भांप जाती है और बालक उदयसिंह को उत्सव में जाने से रोक देती है। इससे उदयसिंह दुखी होकर बिना भोजन किए जमीन पर सो जाता है।

कुछ रातें बीत जाने पर पन्ना धाय को पता चलता है कि विक्रमादित्य की मृत्यु हो चुकी है। इस खबर से वह बहुत दुःखी होती है और उसकी चिंता उदयसिंह की सुरक्षा को लेकर और बढ़ जाती है। पन्ना धाय बालक उदयसिंह की रक्षा के लिए एक सूझबूझ भरी योजना बनाती है। दरबार में काम करने वाले कीरत नामक सेवक की सहायता से वह उदयसिंह को कीरत की टोकरी में छिपाकर महल से बाहर भेज देती है, ताकि बनवीर का षड्यंत्र विफल हो। इसी बीच अपने पुत्र चन्दन को बिना कुछ खिलाए उदयसिंह के स्थान पर पलंग पर सुला देती है। यह दृश्य पन्ना धाय के साहस, समझदारी और मातृत्व भाव को दर्शाता है।

थोड़ी ही देर बाद बनवीर हाथ में नंगी तलवार लेकर उदयसिंह के कक्ष में प्रवेश करता है। वह पन्ना धाय को जागीर देने का लालच देता है और उसे अपने षड्यंत्र में शामिल करने का प्रयास करता है। परंतु पन्ना धाय अपने कर्तव्य और धर्म के पथ पर अडिग रहती है। वह बनवीर की बातों में नहीं फंसती और उसे फटकारती है। क्रोध में आकर बनवीर बालक उदयसिंह को खोजता है, लेकिन पन्ना धाय का साहस उसे रोक नहीं पाता। बनवीर चन्दन को उदयसिंह समझकर अपनी तलवार से मार देता है। इस प्रकार पन्ना धाय अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह और राजवंश की रक्षा करती है।

“दीपदान” न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करता है, बल्कि इसमें दीपक का प्रतीकात्मक महत्व भी है। दीपक केवल प्रकाश का स्रोत नहीं है, बल्कि यह आशा, साहस, प्रेम और जीवन के सकारात्मक पहलुओं का प्रतीक है। दीपक के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और अंधकार क्यों न आएं, हमें अपने अंदर की रोशनी और आशा की किरण को जलाए रखना चाहिए। यह दर्शाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी साहस और धैर्य के साथ सही मार्ग पर चलना आवश्यक है।

इस एकांकी के पात्र भी अपनी-अपनी भूमिका में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पन्ना धाय निष्ठा, साहस और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने अपने पुत्र का बलिदान देकर राज्य और धर्म की रक्षा की, जिससे यह सिद्ध होता है कि कभी-कभी उच्च आदर्शों के लिए व्यक्तिगत दुख सहना पड़ता है। बनवीर लालसा और सत्ता के लिए अंधभक्ति का प्रतीक है, जिसका क्रूर व्यवहार और स्वार्थ अंततः विनाश का कारण बनता है। उदयसिंह निर्दोष और भविष्य की आशा का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि चन्दन बलिदान और त्याग का प्रतीक है।

“दीपदान” में नाटकीयता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। डॉ. रामकुमार वर्मा की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और भावनात्मक रूप से प्रभावशाली है। पात्रों के संवाद और उनके कार्य नाटकीय रूप से कहानी को जीवन्त बनाते हैं। नाटक का प्रत्येक दृश्य मानवीय भावनाओं, साहस और संघर्ष की गहराई को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। ऐतिहासिक तथ्यों और मानवीय संवेदनाओं का यह मिश्रण इसे विशेष बनाता है।

इस नाटक का मुख्य संदेश यह है कि व्यक्ति को जीवन में कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य और धर्म से विचलित नहीं होना चाहिए। त्याग, बलिदान, देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का महत्व अत्यंत उच्च है। पन्ना धाय के साहस और बलिदान से यह सिद्ध होता है कि स्वार्थ की तुलना में धर्म और राष्ट्र की रक्षा सर्वोपरि है। इसके अतिरिक्त, दीपक का प्रतीक यह सिखाता है कि जीवन में आशा और उजाले को हमेशा बनाए रखना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।

अंततः, “दीपदान” न केवल इतिहास की गौरवशाली घटना को प्रस्तुत करता है, बल्कि यह जीवन के उच्च आदर्शों, मानवीय मूल्यों और नैतिक कर्तव्यों का पाठ भी पढ़ाता है। यह नाटक दर्शकों और पाठकों को प्रेरित करता है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना साहस, धैर्य और निष्ठा के साथ करना चाहिए। यह एकांकी न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भावनात्मक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है।

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