मीरा के पद क्लास 7 व्याख्या प्रश्न उत्तर ॥ Meera Ke Pad Question Answers Class 7 ॥ Meera Ke Pad Class 7 Question Answer
मीरा बाई का जीवन परिचय
मीरा बाई का जन्म लगभग 1498 ईस्वी में राजस्थान के मेड़ता के पास चौकड़ी ग्राम में हुआ। उनके पिता का नाम रत्नसिंह था और वे जोधपुर-संस्थापक राव जोधा की प्रपौत्री थीं। बचपन में ही उनकी माता का निधन हो गया, अतः मीरा अपने दादाजी राव जोधा के संरक्षण में पली-बढ़ीं। राव दा जी धार्मिक और उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जिनका प्रभाव मीरा के जीवन पर गहरा पड़ा। बचपन से ही मीरा भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं और उनका पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में व्यतीत हुआ। उनका विवाह उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ, लेकिन कुछ समय पश्चात् उनके पति का निधन हो गया। इसके बाद मीरा की भक्ति और भी गहरी होती गई और वे कृष्ण को अपना वास्तविक पति मानने लगीं।
मीरा बाई ने अपना जीवन भक्ति और काव्य रचना में समर्पित कर दिया। वे मंदिरों में जाकर कृष्ण की मूर्तियों के सामने नृत्य करती और भाव-विभोर होकर गीत गाती थीं। उनका यह भक्ति व्यवहार राजपरिवार को स्वीकार्य नहीं था, जिसके कारण कई बार उनके जीवन को संकट में डालने की कोशिश की गई, जैसे विष देने का प्रयास। अंततः परेशान होकर मीरा पहले वृंदावन और फिर द्वारका चली गईं। माना जाता है कि उनकी मृत्यु लगभग 1546 ईस्वी में द्वारका में हुई। उनके जीवन में कठिनाई और विरोध के बावजूद उनका कृष्ण भक्ति के प्रति प्रेम अडिग और निश्छल रहा।
मीरा बाई की रचनाएँ उनके कृष्ण प्रेम की गहन अभिव्यक्ति हैं। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में ‘नरसीजी का मायरा’, ‘राग गोविन्द’, ‘राग सोरठ के पद’, ‘गीतगोविन्द की टीका’, ‘मीराबाई की मल्हार’ और ‘गरवा गीत’ शामिल हैं। उनकी भाषा मुख्यतः शुद्ध ब्रजभाषा पर आधारित थी, जिसमें राजस्थानी, गुजराती, पश्चिमी हिन्दी और पंजाबी का भी प्रभाव स्पष्ट है। उनके काव्य में प्रेम, तन्मयता और आत्म-समर्पण की भावना प्रमुख है। उन्होंने गीति काव्य की शैली अपनाई और उनके पद संगीतबद्ध हैं। मीरा की कविता में श्रंगार रस और वियोगश्रंगार प्रमुख रूप से दिखाई देता है। उनके जीवन और काव्य ने भक्ति साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया और वे आज भी प्रेम और भक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं।
मीरा के पद का भावार्थ ॥ मीरा के पद का व्याख्या ॥ Meera Ke Pad Class 7 Vyakhya
1.बसौ मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहिनी मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिए भाल।
अधर सुधारस, मुरली राजति, उर वैजंती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा के प्रभु सन्तन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।
शब्दार्थ (Glossary)
- नैनन – आँखें
- नंदलाल – नंद के कुमार, अर्थात् कृष्ण
- मोहिनी – मन मोह लेने वाली, आकर्षक
- सूरति – रूप, आकृति
- विशाल – बड़ा, विशाल
- मकराकृत – मकर (मकर राशि) के आकार का
- अरुण – लाल, लालिमा
- भाल – मस्तक, माथा
- बछल (वत्सल) – प्रेम से पूर्ण, स्नेहिल
- अधर – ओठ
- सुधारस – अमृतरस, मधुर रस
- राजाति – सुशोभित होती है, शोभा बढ़ती है
- उर – हृदय
- छुद्र (क्षुंद्रे) – छोटा, नगण्य
- कटि – कमर
- नूपुर – घुँघरू, पायल
- रसाल – मधुर, रसपूर्ण
- गोपाल – गौ पालक, अर्थात् श्री कृष्ण
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता संत कवयित्री मीरा बाई हैं।
प्रसंग:
इस पद में मीरा बाई ने अपने इष्टदेव भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति व्यक्त की है। वे कृष्ण की सुंदर छवि को अपने नेत्रों में बसा लेना चाहती हैं और हर क्षण उनके दर्शन का आनंद लेना चाहती हैं।
व्याख्या:
मीरा अपने प्यारे कृष्ण को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं। वे कहती हैं, “हे प्रभु, आप सदा मेरे नेत्रों में रहिए।” मीरा कृष्ण का वह रूप देखना चाहती हैं जो बहुत सुन्दर और मनभावन है। उनका रंग साँवला है, चेहरा सुंदर और नेत्र बड़े हैं। उनके मस्तक पर मयूर के पंखों वाला मुकुट सजता है। कानों में मकर के आकार के कुंडल हैं और माथे पर लाल टीका है। उनके होंठों पर अमृतरस जैसा मधुरता है और मुरली उनके हाथ में सुशोभित है। वक्षस्थल में वैजयन्ती की माला है और कमर में छोटे-छोटे घुँघरू हैं। उनके पैरों में नुपुर की मधुर ध्वनि सुनाई देती है।
मीरा कहती हैं कि प्रभु कृष्ण सन्तों को आनंद देने वाले और अपने भक्तों के बहुत प्यारे हैं। उनका यह मनभावन रूप मीरा की आँखों में हमेशा बस गया है।
2. हरि तुम हरो जन की पीर।
द्रोपदी की लाज राख्यौ, तुम बढ़ायो चीर।
भक्त कारनरूप नर हरि, धर्यो आप शरीर।
हिरनकस्यप मारि लीन्हों, धर्यो नाहिन धीर।
डूबते गजराज राख्यौ, कियो बाहर नीर।
दासी मीरा लाल गिरधर, हरो मेरी पीर।।
शब्दार्थ (Glossary)
- हरो – दूर करना, हर लेना
- पीर – कष्ट, पीड़ा
- चीर – वस्त्र
- जन – भक्त, सेवक
- धर्यो – धारण किया, पहन लिया
- नरहरि – नृसिंह, भगवान विष्णु का रूप
- नीर – पानी
- राख्यों – रक्षा किया, सुरक्षित रखा
- गिरधर – कृष्ण (गिरि को धारण करनेवाले)
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता संत कवयित्री मीरा बाई हैं।
प्रसंग
इस पद में मीरा बाई ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और स्नेह को प्रस्तुत किया है। वे बताती हैं कि सुबह माता यशोदा अपने प्यारे कन्हैया को प्यार से जगा रही हैं। गाँव में गोपियाँ दही मथ रही हैं और नुपुर की मधुर ध्वनि गूँज रही है। मीरा अपनी भक्ति व्यक्त करते हुए कहती हैं कि हे गिरिराजधारी, आप मेरे स्वामी हैं, कृपया मुझे संसार के दुखों से पार लगाइए।
व्याख्या:
प्रस्तुत पद में माता यशोदा सुबह के समय अपने प्यारे लाल कन्हैया को जगा रही हैं। वे बहुत प्यार से कहती हैं — “हे वंशी बजाने वाले कन्हैया, अब जाग जाओ। रात बीत चुकी है और अब सुन्दर प्रभात (सुबह) हो गई है।”
हर घर के दरवाजे खुल चुके हैं, सभी लोग उठ चुके हैं। गोपियाँ अपने घरों में दही मथने लगी हैं। उनके दही मथने की आवाज और कंगनों की मधुर झंकार पूरे गाँव में गूँज रही है।
यशोदा जी कहती हैं — “प्यारे लाल, उठो! अब सबेरा हो गया है। दरवाजे पर देवता और मनुष्य सब तुम्हें देखने के लिए खड़े हैं। गोप बालक ‘जय’ का नारा लगा रहे हैं और उनकी आवाज सुनाई दे रही है। देखो, मैं तुम्हारे लिए हाथ में मक्खन और रोटी लेकर खड़ी हूँ।”
मीरा आगे कहती हैं — “हे गिरिराजधारी प्रिय कृष्ण, आप मेरे स्वामी हैं। मैं आपकी शरण में आई हूँ। कृपया मुझे इस दुखमय संसार-सागर से पार लगाइए।”
3. जागो वंशी वाले, ललना, जागो मेरे प्यारे।
रजनी बीती भोर भयो है, घर-घर खुले किवारे।
गोपी दधि मथियत सुनियत हैं, कंगन के झनकारे।
उठो लाल जो भोर भयी है, सुरनर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल, जय जय सबद उचारे।
माखन रोटी हाथ में लीनी, गउवन के रखवारे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सरण गहे को तारे।।
शब्दार्थ (Glossary)
- रजनी – रात
- भोर – प्रभात, सबेरा
- किवारे – दरवाजे
- कंगन – कलाई पर पहनने का आभूषण
- तारे – उद्धार करता, बचाता
- सुरनर – देव-मनुष्य, दिव्य व्यक्ति
- कोलाहल – शोर-हल्ला
- गउवन – गायों
- रखवारे – रक्षक
- नागर – चतुर, कुशल
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता संत कवयित्री मीरा बाई हैं।
प्रसंग :
इस पद में मीरा बाई ने सुबह के समय माता यशोदा द्वारा भगवान कृष्ण को जगाने और गाँव के जीवंत दृश्य का वर्णन किया है। मीरा अपनी भक्ति भाव से प्रभु से प्रार्थना करती हैं कि वे उन्हें संसार के दुखों से पार लगाएँ।
व्याख्या:
प्रस्तुत पद में माता यशोदा सुबह के समय अपने प्यारे कन्हैया को जगाने के लिए पुकार रही हैं। वे बड़े प्यार से कहती हैं — “हे प्यारे ललन, वंशी बजाने वाले कन्हैया! अब उठ जाओ। रात बीत गई है और सुन्दर सुबह हो गई है।”
अब पूरे गाँव के घरों के दरवाजे खुल गए हैं, लोग जाग गए हैं। गोपियाँ दही मथने लगी हैं। उनके दही मथने की आवाज और कंगनों की मधुर झंकार पूरे वातावरण में गूँज रही है।
यशोदा जी आगे कहती हैं — “प्यारे लाल, उठो! सबेरा हो गया है। दरवाजे पर देवता और मनुष्य सब तुम्हें देखने के लिए खड़े हैं। गोप बालक ‘जय’ का उच्चारण कर रहे हैं, उनकी आवाज सुनाई दे रही है। देखो, मैं तुम्हारे लिए हाथ में मक्खन और रोटी लेकर खड़ी हूँ।”
अंत में, मीरा कहती हैं — “हे गिरिराजधारी चतुर कृष्ण! आप मेरे स्वामी हैं। मैंने आपकी शरण ली है, इसलिए कृपया मुझे इस संसार-सागर से पार उतार दीजिए।”
4. करम गति टारे नाहिं टरे।
सतबादी हरिश्चन्द्र से राजा नीच घर नीर भरे।
पाँच पाण्डु अरु कुन्ती द्रोपदी, हाड़, हिमालय गरे,
यज्ञ किया बलि लेन इन्द्रासन से पाताल धरे।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, विष से अमृत करे।।
शब्दार्थ (Glossary)
- करम – कर्म, भाग्य
- गति – दशा, परिणाम
- सतबादी – सत्यवादी
- नीर – पानी
- गरे – गल गए, घुल गए
- हाड़ – हड्डी
- अरु – और
- विष – जहर
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता संत कवयित्री मीरा बाई हैं।
प्रसंग:
इस पद में मीरा बाई कहती हैं कि संसार में हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है और इसे टाला या बदला नहीं जा सकता। उन्होंने इसके प्रमाण के रूप में पौराणिक उदाहरण दिए हैं—राजा हरिश्चन्द्र, पाण्डव और राजा बलि के जीवन की घटनाएँ। मीरा अपने जीवन में प्रभु कृष्ण को सर्वशक्तिमान मानती हैं, जिनकी कृपा से विष भी अमृत बन जाता है और विपत्तियाँ भी उन्हें हानि नहीं पहुँचा सकतीं।
व्याख्या:
प्रस्तुत पद में मीरा कहती हैं कि इस संसार में हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कर्म की गति किसी भी प्रकार टाली नहीं जा सकती। इसे रोकना या बदलना संभव नहीं है।
मीरा ने इसके लिए पौराणिक उदाहरण भी दिए हैं। प्राचीन युग में राजा हरिश्चन्द्र बड़े सत्यवादी थे, फिर भी उन्हें अधम (डोम) के घर पानी भरना पड़ा। पाण्डवों ने महाभारत के युद्ध में विजयी होकर भी अंत में अपनी हड्डियाँ हिमालय की बर्फ में गल गईं। राजा बलि ने इन्द्र का आसन और स्वर्ग पाने के लिए यज्ञ किया, पर वे स्वर्ग नहीं पहुँच सके और पाताल में चले गए।
मीरा का कहना है कि उनके जीवन में गिरिधर गोपाल ही सब कुछ हैं। प्रभु कृष्ण ने अपनी कृपा से विष को भी अमृत बना दिया। राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला दिया, लेकिन कृष्ण की कृपा से कुछ भी नुकसान नहीं हुआ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न क: गिरधर का अर्थ है—
(क) गिर कर उठना
(ख) गिरगिट
(ग) कृष्ण
(घ) गिरि को धारण करनेवाला
उत्तर: (ग) कृष्ण
प्रश्न ख: कृष्ण ने किसकी लाज बचाई?
(क) मीरा की
(ख) द्रौपदी की
(ग) धुव की
(घ) प्रहाद की
उत्तर: (ख) द्रौपदी की
प्रश्न ग : राजा हरिश्चन्द्र किसके यहाँ काम किए?
(क) माली के यहाँ
(ख) कुम्हार के यहाँ
(ग) डोम के यहाँ
(घ) बाह्यण के यहाँ
उत्तर: (ग) डोम के यहाँ
प्रश्न घ: इन्द्रासन पाने के चक्कर में पाताल कौन गया?
(क) रावण
(ख) मेघनाद
(ग) बलि
(घ) कुम्भकर्ण
उत्तर: (ग) बलि
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न क : मीरा किसकी भक्तन थी?
उत्तर: मीरा भगवान श्रीकृष्ण की भक्तन थी।
प्रश्न ख : द्रौपदी की लाज किसने और कैसे बचाई?
उत्तर: द्रौपदी की लाज प्रभु कृष्ण ने उसकी चीर (साड़ी) बढ़ाकर बचाई।
प्रश्न ग : कृष्ण के होठों पर क्या सुशोभित हो रहा है?
उत्तर: कृष्ण के होठों पर बाँसुरी (मुरली) सुशोभित हो रही है।
प्रश्न घ : गउवन के रखवारे किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर: गउवन के रखवारे कृष्णाजी को कहा गया है क्योंकि वे गायों के रक्षक (गोपाल) थे।
प्रश्न ड़ : ‘विष से अमृत’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: राणा ने मीरा को मारने के लिए विष का प्याला भेजा था, परंतु प्रभु श्रीकृष्ण की कृपा से वह विष अमृत बन गया। मीरा पर उस विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
बोधमूलक प्रश्नोत्तर
(क) मीरा के नेत्रों में कृष्ण का कौन-सा रूप बस चुका है?
उत्तर :
मीरा के नेत्रों में वह रूप बस चुका है जो मन को बहुत भाता है। कृष्ण का रंग साँवला और रूप सुन्दर है। उनकी आँखें बड़ी हैं। मस्तक पर मोर मुकुट और कानों में मकर के आकार के कुंडल हैं। माथे पर लाल टीका है और अधरों पर मुरली सुशोभित है। वक्षस्थल पर वैजयंती माला है। कमर की करधनी में घुँघरू हैं और पैरों में नुपुर की मधुर ध्वनि गूँज रही है। यही मनभावन रूप मीरा के नेत्रों में बस चुका है।
(ख) कृष्ण ने अपने किन-किन भक्तों की कैसे रक्षा की?
उत्तर:
श्री कृष्ण ने अपने भक्तों की कई बार रक्षा की। उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई, जब उसका चीर हरण हो रहा था, तब उन्होंने चीर को बढ़ा कर। भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान नृसिंह का रूप धारण कर राक्षस हिरण्यकश्यप को मार दिया। जल में डूबते हुए गजराज की रक्षा भी उन्होंने की और उसे पानी से बाहर निकाल दिया।
(ग) गोकुल के प्रभात का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गोकुल में सुबह होते ही हर घर के दरवाजे खुल गए और सभी लोग जाग उठे। गोपियाँ दही मथने लगीं और उनके कंगनों की झंकार सुनाई देने लगी। कृष्ण के घर के बाहर देवता और मनुष्य सब खड़े हो गए। गोप बालक ‘जय-जयकार’ करने लगे।
(घ) ‘करम गति टारे नाहिं टरे’ के सन्दर्भ में मीरा ने किन-किन उदाहरणों को प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
इस सन्दर्भ में मीरा ने उदाहरण दिए हैं कि सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को वाराणसी में डोम के यहाँ काम करना पड़ा। पाण्डवों, कुन्ती और द्रौपदी की हड्डियाँ हिमालय की बर्फ में गल गईं। राजा बलि ने स्वर्ग पाने के लिए यज्ञ किया, पर उन्हें पाताल जाना पड़ा। इससे स्पष्ट होता है कि कर्म का फल अटल है और इसे कोई टाल नहीं सकता।
(ङ) निम्नलिखित पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए।
(अ) ‘उठो लाल जो भोर भयी है, सुरनर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे।’
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता संत कवयित्री मीरा बाई हैं।
व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियों में माता यशोदा सुबह हो जाने पर अपने प्यारे कन्हैया को जगाते हुए कहती हैं — “हे लाल, अब प्रभात वेला हो गई है, इसलिए उठ जाओ।”
दरवाजे पर देवता और मनुष्य खड़े हैं ताकि वे तुम्हें देख सकें और तुम्हारी वंदना कर सकें। सबेरा होते ही गोप बालक जयकार करते हुए कोलाहल कर रहे हैं। सभी कृष्ण के दर्शन के लिए उत्साहित हैं और उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
(ब) ‘यज्ञ किया बलि लेन इन्द्रासन, से पाताल धरे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, विष से अमृत करे।’
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता संत कवयित्री मीरा बाई हैं।
व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा कहती हैं कि भाग्य और कर्म की गति अटल होती है। संसार में हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। राजा बलि ने इन्द्र का साम्राज्य (स्वर्ग) पाने के लिए बड़ा यज्ञ किया, लेकिन कर्म के अनुसार उन्हें पाताल लोक में जाना पड़ा।
मीरा का कहना है कि गिरि धारण करने वाले भगवान कृष्ण ही उनके एकमात्र स्वामी हैं। प्रभु ने अपनी कृपा से विष को भी अमृत बना दिया। जब राणा ने मीरा को मारने के लिए विष भेजा, तब भी कृष्ण ने विष को अमृत बना कर मीरा की रक्षा की।
व्याकरण एवं बोध
(क) निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध रूप लिखिए-
- सोभित → शोभित
- सबद → शब्द
- कारन → कारण
- सरीर → शरीर
- सतबादी → सत्यवादी
- मूरति → मूर्ति
(ख) निम्नलिखित शब्दों का पर्यायवाची शब्द लिखिए –
- नन्दलाल – कृष्ण, श्याम, मोहन, गिरिधर
- नीर – जल, पानी, तोय, वारि
- सरीर – तन, काया, देह, बदन
- रजनी – रात, निशा, रात्रि, रैन, विभावरी
- विष – जहर, गरल, हलाहल, माहुर
(ग) निम्नलिखित शब्दों का विलोम शब्द लिखिए –
- अमृत – विष
- पाताल – आकाश
- भक्त – भगवान
- साँवरी – गोरी
- दधि – दूध
- छुद्र – विशाल
(घ) निम्न शब्दों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए –
- गिरिधर – कृष्ण
- वाक्य: गिरिधर ने गोकुल में सबकी रक्षा की।
- गजराज – श्रेष्ठ हाथी
- वाक्य: भगवान ने जल में डूबते गजराज को बचाया।
- पीर – पीड़ा
- वाक्य: भक्त की पीर देखकर भगवान तुरंत उसकी मदद करते हैं।
- माखन – मक्खन
- वाक्य: बच्चों को माखन और रोटी बहुत पसंद है।
- इन्द्रासन – स्वर्ग का राज्य
- वाक्य: राजा बलि ने इन्द्रासन पाने के लिए यज्ञ किया।
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