संन्यासी का प्रश्न उत्तर Class 7 ॥ Sanyasi Class 7 Question Answer
सुदर्शन का जीवन परिचय
सुदर्शन का जन्म सन् 1895 ई. में अविभाजित पंजाब के स्यालकोट शहर में हुआ था। साहित्य के जगत में उन्होंने कहानी, उपन्यास और नाटक—तीनों ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मूल रूप से वे उर्दू भाषा में लिखते थे, लेकिन बाद में हिन्दी कहानी लेखन की ओर आकर्षित हुए।
सुदर्शन आर्य समाज की विचारधारा से प्रभावित थे, इसलिए उनकी रचनाओं में सामाजिक सुधार और नैतिक मूल्यों की झलक साफ दिखाई देती है। उनकी भाषा बहुत ही सरल, सजीव, सहज और मुहावरेदार है, जिससे पाठक उनसे आसानी से जुड़ पाते हैं।
उन्होंने साहित्य की कई विधाओं में काम किया और अनेक प्रसिद्ध रचनाएँ लिखीं। उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं–
- पुष्पलता
- सुप्रभात
- सुदर्शन सुधा
- सुदर्शन सुमन
- पनघट
- चार कहानियाँ
उनके प्रमुख उपन्यास हैं–
- परिवर्तन
- भागवंती
- राजकुमार
उनके लिखे हुए प्रसिद्ध नाटक हैं–
- अंजना
- सिकदर
- भाग्यचक्र
सुदर्शन की कहानियों में प्रायः आदर्शवाद, मानवीय संवेदनाएँ और सामाजिक सुधार की भावना मिलती है। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
सुदर्शन का देहावसान सन् 1967 ई. में मुंबई में हुआ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए।
1. पालू किस राज्य का निवासी था?
(क) गुजरात
(ख) राजस्थान
(ग) पंजाब
(घ) महाराष्ट्र
उत्तर : (क) गुजरात
2. ‘यह न होगा’ किसका कथन है?
(क) पालू के पिता का
(ख) बालू का
(ग) पालू का
(घ) सुचालू का
उत्तर : (ग) पालू का
3. पालू की स्त्री किस रोग का शिकार होकर मर गई?
(क) मलेरिया
(ख) हैजा
(ग) टाइफाइड
(घ) तपेदिक
उत्तर : (ख) हैजा
4. सुदर्शन जी का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1885
(ख) सन् 1895
(ग) सन् 1905
(घ) सन् 1915
उत्तर : (ख) सन् 1895
लघूत्तरीय प्रश्न: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
क) पालू किस गाँव का रहने वाला था?
उत्तर : पालू लखनवाल गाँव का रहने वाला था।
ख) पालू की भाभी अवाक् क्यों रह गई?
उत्तर : पालू की भाभी को डर था कि पालू संपत्ति बाँटने को लेकर झगड़ा करेगा। लेकिन जब पालू ने बिना किसी विवाद के घर छोड़ने की बात कही और अपने बेटे को भाभी के संरक्षण में दे दिया, तो उसकी यह बात सुनकर भाभी आश्चर्य से अवाक् रह गई।
ग) स्वामी विद्यानंद कौन थे?
उत्तर : पालू ने घर-बार छोड़कर संन्यास ग्रहण कर लिया और ऋषिकेश में रहने लगा। संन्यास लेने के बाद वही पालू आगे चलकर स्वामी विद्यानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
घ) भोलानाथ कैसा पुरुष था?
उत्तर :
भोलानाथ हाँडा का बड़ा सज्जन पुरुष था। उसके मन में स्नेह, दया तथा परोपकार की भावना थी। पालू का वह सच्चा मित्र था। सुक्खू (सुखदयाल) के प्रति उसके मन में सच्चा स्नेह था।
ड़) लोहड़ी क्या है?
उत्तर : लोहड़ी एक प्रमुख भारतीय त्योहार है, जो विशेष रूप से पंजाब और इसके आसपास के क्षेत्रों में बड़े हर्षोल्लास और सामूहिक समारोहों के साथ मनाया जाता है। यह मुख्यतः आग जलाकर, लोकगीत गाकर और नृत्य करके मनाया जाने वाला पारंपरिक पर्व है।
च) पालू अपने पुत्र को किसके आश्रय में छोड़ गया था?
उत्तर : पालू अपने पुत्र को अपनी भाभी के आश्रय में छोड़ गया था।
बोधमूलक प्रश्न: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो:
(क) पालू किस बात में उस्ताद था?
उत्तर : पालू बाँसुरी और घड़ा बजाने में उस्ताद था। हीर-राँझे का किस्सा पढ़ने तथा जोग सहती के प्रश्नोत्तर पढ़ने में भी वह बेजोड़ था।
(ख) पालू मन ही मन क्यों कुढ़ता था?
उत्तर : गाँव के लोग पालू की कला, उसके व्यवहार और उत्सवों में उसकी सहभागिता से प्रभावित होकर उसकी बहुत प्रशंसा करते थे। लेकिन उसके घर वाले उसके गुणों की कोई कदर नहीं करते थे। घर में उसे ठंडी रोटियाँ, माँ की गालियाँ और भाभियों के ताने ही मिलते थे। घर और बाहर के इस अंतर ने ही पालू को मन ही मन कुढ़ने पर मजबूर कर दिया।
(ग) पालू के जीवन में किस तरह का परिवर्तन आ गया?
उत्तर : पालू की तैंतीस वर्ष की आयु में जब शादी हुई, तो उसके जीवन में बड़ा परिवर्तन आ गया। पत्नी के आते ही उसका पूरा संसार बदल गया। वह बाँसुरी, किस्से-कहानियाँ और अपनी पुरानी रुचियों को भूल गया। पहले वह दिन भर घर से बाहर रहता था, पर अब वह घर से निकलना भी नहीं चाहता था। विवाह के बाद उसके स्वभाव, व्यवहार और जीवनचर्या—सबमें एक सकारात्मक और गहरा परिवर्तन आ गया।
(घ) स्वामी प्रकाशानंद के पास स्वामी विद्यानंद क्यों गए?
उत्तर : स्वामी विद्यानंद की भक्ति और ख्याति चारों ओर फैल गई थी, परंतु उनके मन को शांति नहीं मिल रही थी। उन्हें सुख की नींद नहीं आती थी, पूजा-पाठ में मन एकाग्र नहीं होता था और भीतर से एक आवाज आती थी कि वे अपने वास्तविक आदर्श से दूर होते जा रहे हैं। कारण समझ न आने पर वे घबरा जाते, रो पड़ते, फिर भी चित्त शांत नहीं होता था। अपनी इस गहरी मानसिक अशांति के समाधान के लिए ही वे स्वामी प्रकाशानंद के पास गए।
(ङ) सुखदयाल का कलेजा क्यों काँप गया?
उत्तर : भोलानाथ के घर पर सुखदयाल ने बताया था कि उसकी ताई उसे चिमटे से मारती है। यह बात ताई के कानों तक पहुँच गई। ताई का क्रोध भड़क उठा। रात गहरा जाने पर जब मोहल्ले की स्त्रियाँ अपने घर लौट गईं, तो ताई ने अपना सारा गुस्सा सुखदयाल पर उतारना शुरू कर दिया। ताई के रौद्र रूप, कठोर डाँट और तीखे व्यवहार को देखकर सुखदयाल डर गया और उसका कलेजा काँप उठा।
(च) पालू के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
पालू अनपढ़ होने पर भी मूर्ख नहीं था। वह स्वभाव से सरल, गुणवान और प्रतिभाशाली व्यक्ति था। बाँसुरी बजाने, घड़ा बजाने और किस्से-कहानियाँ सुनाने में वह गाँव भर में बेजोड़ माना जाता था। होली, दीपावली और दशहरे जैसे उत्सवों में उसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती थी। घर वाले भले ही उसके गुणों का सम्मान न करते हों, लेकिन गाँव के लोग उसके व्यवहार, कला और स्नेहपूर्ण स्वभाव से बहुत प्रभावित रहते थे।
पालू का रूप-रंग आकर्षक था और उसका शरीर सुडौल था। उसके भीतर स्नेह, दया और सहनशीलता की भरपूर भावना थी। वह अपने छोटे पुत्र और नई पत्नी से अत्यधिक प्रेम करता था। वह अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहने वाला, हठी किन्तु सत्यनिष्ठ व्यक्ति था।
विवाह के बाद उसके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया, परंतु बाद में जब उसने संन्यास ग्रहण किया, तो कष्ट-सहिष्णुता उसकी नई पहचान बन गई। वह पर्वतों पर रहता, पत्थरों पर सोता और कठोर तपस्या करता था। उसमें ईश्वर-भक्ति, आत्मसंयम और अपने गुरु के प्रति गहरी श्रद्धा थी। गुरु के आदेश पर उसने गृहस्थ जीवन में वापस लौटकर अपने कर्तव्य को स्वीकार किया।
इस प्रकार पालू का चरित्र बहुमुखी, आध्यात्मिक, दृढ़निष्ठ, सहनशील और अत्यंत प्रेरणादायी है।
(छ) ‘संन्यासी’ कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर : ‘संन्यासी’ कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि सच्चा संन्यास बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों के निष्पादन में निहित है। गृहस्थ जीवन के उत्तरदायित्वों से भागकर जंगलों में भटकने से मन की शांति नहीं मिलती। अपने परिवार, पुत्र और आश्रित जनों की सेवा करना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है।
कहानी यह संदेश देती है कि कर्तव्य-पालन, सेवा-भाव और जिम्मेदारी से जुड़े रहना ही जीवन का सच्चा धर्म है। यही वास्तविक संन्यास और सच्ची साधना है।
यथा निर्देश उत्तर दीजिए :
(क) मनुष्य सब कुछ सह लेता है, पर अपमान नहीं सह सकता।
1. इस पंक्ति के लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर :
इस पंक्ति के लेखक का नाम सुदर्शन है।
2. सप्रसंग इस पंक्ति का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यह पंक्ति कहानी में पालू की स्थिति पर पूरी तरह लागू होती है। पालू अनपढ़ था, लेकिन मूर्ख नहीं था। उसके पिता अक्सर उसे डाँटते और तरह-तरह की बातें कहते थे, पर पालू स्वभाव से सरल और बेफिक्र था, इसलिए वह उनकी बातों को हँसकर टाल देता था।
लेकिन जब उसके भाई और भाभियाँ भी उसे ताने देने लगीं और उसे घृणा की दृष्टि से देखने लगीं, तब यह व्यवहार पालू को सहन नहीं हुआ। वह अन्य कठिनाइयाँ तो झेल सकता था, पर अपमान उसे बिल्कुल स्वीकार नहीं था। इसलिए स्वयं का अपमान होते देखकर उसने दुखी होकर अपने पिता के पास जाकर इस व्यवहार की शिकायत की।
(ख) सारे गाँव में तुम्हारी मिट्टी उड़ रही है। अभी बताने की बात बाकी रह गई है।
1. ‘तुम्हारी’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है? मिट्टी उड़ने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
यहाँ तुम्हारी’ शब्द का प्रयोग पालू के लिए किया गया है। मिद्टी उड़ने का तात्पर्य है बदनामी होना। पालू के पिता उसे बता रहे हैं कि समस्त गाँव में उसकी बदनामी हो रही है।
2. इस अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: इस अंश में लेखक बताता है कि पालू के पिता उसके व्यवहार से बहुत नाराज़ हैं। वे पालू को डाँटते हुए कहते हैं कि वह हमेशा स्वी के पास बैठा रहता है और उसका विवाह भी अनुभवहीन और मज़ाक का विषय बन गया है। पिता की नाराज़गी इस बात से है कि गाँव के लोग पालू के बारे में गलत बातें कर रहे हैं और उसकी बदनामी फैल रही है।
वे कहते हैं कि अब तो पूरा गाँव पालू की आलोचना कर रहा है, इसलिए उन्हें (पिता को) कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। यानी, गाँव की बातें ही पालू की स्थिति को समझाने के लिए काफी हैं।
(ग) ‘बात साधारण थी, परन्तु हृदयों में गाँठ बँध गई।’
1. यह पंक्ति किस पाठ से उद्धुत है ?
उत्तर: यह पंक्ति संन्यासी पाठ से उद्धुत है।
2. किनके हृदयों में गाँठ बँध गई और क्यों?
उत्तर: पालू और उसके पिता के मन में एक-दूसरे के प्रति गलतफहमी और नाराज़गी बैठ गई। पिता चाहते थे कि पल्नी को उसके घर वापस भेज दिया जाए, लेकिन पालू ने साफ-साफ मना कर दिया। यह सुनकर पिता बहुत गुस्सा हो गए और पालू को घर छोड़ देने को कहा। पर पालू भी दृढ़ होकर बोला कि वह घर नहीं छोड़ेगा, यही रहेगा और यहीं खाएगा—उसे कोई घर से निकाल नहीं सकता।
इन्हीं बातों से दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए मनमुटाव की गाँठ पड़ गई।
(घ) ‘स्वामी विद्यानंद की आँखों में आँसू आ गये।’
1. स्वामी विद्यानंद कौन थे?
उत्तर: स्वामी विद्यानंद कोई और नहीं, बल्कि पालू ही थे। बाद में पालू ने अपना घर-परिवार छोड़ दिया और ऋषिकेश जाकर साधु जीवन अपना लिया। वहाँ वह “स्वामी विद्यानंद” नाम से प्रसिद्ध हो गया।
2. उनकी आँखों में आँसू क्यों आ गये? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: स्वामी विद्यानंद जब घर के अंदर गए, तो उन्होंने देखा कि उनकी भतीजियाँ तो पहले की तरह खुश और खिली हुई थीं, लेकिन उनका प्यारा बेटा सुखदयाल बिल्कुल बदला हुआ था। जो बच्चा पहले मैना की तरह चहकता था, वह अब उदास और कमजोर दिख रहा था। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था, बाल बिखरे हुए थे और कपड़े गंदे थे। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी भिखारी का बच्चा हो। अपने छोटे बेटे की ऐसी बुरी हालत देखकर स्वामी विद्यानंद (पालू) की आँखों में दुख और प्यार से आँसू आ गए।
भाषा-बोध
1. निम्नलिखि शब्दों से उपसर्ग एवं मूल शब्द अलग कीजिए :
- अभिमान – अभि + मान
- असंभव – अ + संभव
- निष्ठुर – निः + ठुर
- निर्लज्ज – निः + लज्ज
- अनपढ़ – अ (अन) + पढ़
- अपमान – अप + मान
- प्रतिक्षण – प्रति + क्षण
2. निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय पृथक कीजिए।
- झांकियों – झांकी + यों
- धीरता – धीर + ता
- नमता – नम + ता
- व्याकुलता – व्याकुल + ता
- प्रसन्नता – प्रसन्न + ता
- सुंदरता – सुंदर + ता
3. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
- विधाता – ब्रह्मा, विरंचि, चतुरानन
- चिड़िया – खग, विहंग, पक्षी
- संसार – विश्व, जगत्, दुनिया
- चित्र – तस्वीर, आकृति, आकार
- वस्त्र – कपड़ा, अम्बर, वसन, पट
- वाटिका – उद्यान, बागीचा, बाग
4. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
- सुन्दर – कुरूप
- मूर्ख – विद्वान
- विष – अमृत
- चंचल – स्थिर
- अशांति – शांति
5. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में कीजिए।
पिंजरा, गृहस्थी, एकाग्र, धर्मशाला, समारोह
- पिंजरा – चिड़िया पिंजरे से बाहर निकलकर पेड़ पर जा बैठी।
- गृहस्थी – माँ बड़ी सलीके से अपनी गृहस्थी संभालती हैं।
- एकाग्र – परीक्षा की तैयारी करते समय हमें मन को एकाग्र रखना चाहिए।
- धर्मशाला – यात्रा के दौरान हम रात को एक धर्मशाला में ठहरे।
- समारोह – स्कूल में वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह धूमधाम से मनाया गया।
संन्यासी कहानी का सारांश
यह कहानी पालू नाम के एक साधारण पर गुणवान इंसान की है, जो गुजरात के लखनवाल गाँव का रहने वाला था। वह पढ़ा-लिखा न होते हुए भी बहुत समझदार था। गाँव की होली, दिवाली, दशहरा जैसे त्यौहारों पर होने वाली तैयारियों में वह सबसे आगे रहता था। बाँसुरी बजाना, किस्से-कहानी सुनाना और लोगों की मदद करना उसकी खासियत थी। गाँव में सब उसे बहुत मानते थे, पर घर में उसे कोई महत्व नहीं दिया जाता था।
पालू का विवाह होने के बाद उसके स्वभाव में बड़ा परिवर्तन आया। वह अपनी पत्नी स्वी के प्रेम में इतना डूब गया कि बाहर जाना, बाँसुरी बजाना और किस्से सुनाना सब छोड़ दिया। यह बात परिवार वालों को अच्छी नहीं लगी और वे हमेशा उसका मज़ाक उड़ाते। एक दिन पिता ने क्रोधित होकर उसकी पत्नी को मायके भेजने की बात कही, जिसे पालू ने साफ़ मना कर दिया। पर दुर्भाग्य से कुछ ही वर्षों में हैजे से उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। तीन महीने के भीतर उसके माता-पिता भी चल बसे। लगातार दुखों से टूटकर पालू का मन संसार से विरक्त हो गया। वह अपने छोटे बेटे सुखदयाल को भाभी के पास छोड़कर संन्यासी बन गया।
दो वर्षों तक कठोर साधना करने के बाद भी पालू के मन को शांति नहीं मिली। उसके गुरु प्रकाशानंद ने समझाया कि उसकी बेचैनी का कारण उसका छोटा बेटा है, जिसे प्रेम और देखभाल की आवश्यकता है। गुरु के आदेश पर पालू स्वामी विद्यानंद बनकर अपने गाँव लौट आया।
घर पहुँचकर उसने देखा कि उसकी भतीजियाँ ठीक-ठाक हैं, लेकिन उसका बेटा सुखदयाल बहुत कमजोर, उदास और उपेक्षित हो चुका है। भाभी उसे गंदे कपड़े पहनाती, डाँटती-मारती और भूखे-प्यासे रखती थी। बेटे की ऐसी दयनीय हालत देखकर पालू की आँखों में आँसू आ गए। उसे समझ आया कि असली शांति भजन-भक्ति में नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य—अपने पुत्र की सेवा—में है।
रात को उसने अनुभव किया कि उसके जीवन की उजड़ी हुई “आनंदवाटिका” फिर से उसी समय हरी हो सकती है, जब वह अपने बेटे को प्यार और सुरक्षा दे। उसने सुखदयाल को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके मुरझाए चेहरे को चूमकर मन ही मन यह निश्चय किया कि अब वही उसका सच्चा धर्म और कर्तव्य है।
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