सूक्ष्म शिक्षण के अंग या तत्व :-
सूक्ष्म शिक्षण के अंग निम्नलिखित है –
1. अध्यापक
2. छात्र समूह ( 4 या 5)
3. पाठ्यक्रम की एक एक छोटी इकाई
4. विशिष्ट सूक्ष्म शिक्षण के उद्देश्य
5. निरीक्षण के द्वारा, ऑडियो टेप रिकॉर्डडर या वीडियो रिकॉर्डडर और सी॰सी॰टी॰वी॰ के उपयोग द्वारा की प्रतिपुष्टि।
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सूक्ष्म शिक्षण के सोपान या सूक्ष्म शिक्षण चक्र :-
सूक्ष्म शिक्षण के सोपान या सूक्ष्म शिक्षण चक्र निम्नलिखित है –
1. सूक्ष्म शिक्षण के बारे सैध्दांतिक ज्ञान देना :-
प्रारंभ में छात्राध्यापक को सूक्ष्म शिक्षण संबंधी आवश्यकता सैध्दांतिक जानकारी की दृष्टि से बातें बतायी जानी चाहिए।
a. सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं संप्रत्यय।
b. सूक्ष्म शिक्षण का महत्व अथवा उपयोग ।
c. सूक्ष्म शिक्षण की कार्य पध्दति।
d. सूक्ष्म शिक्षण तकनीकी को अपनाने के लिए आवश्यक परिस्थितियां एवं साधन ।
2. सूक्ष्म कौशलों की चर्चा :-
इस योगना मेन छात्र अध्यापक की भिन्न भिन्न शिक्षण कौशलों से परिचित कराया जाता है ।
a. शिक्षण कार्य मेन शिक्षण कौशलों का उपयोग तथा महत्व।
b. अध्यापक के व्यवहार संबंधी घटकों की चर्चा।
3. किसी विशिष्ट कौशल का चयन :-
इस विधि मेन एक समय में एक कौशल का ही अभ्यास कराया जाता है। अतः छात्र अध्यापकों को अभ्यास कराने के लिए किसी एक कौशल का चुनाव कर लिया जाता है और उसके विषय में व्यापक जानकारी दी जाती है।
4. आदर्श पाठ प्रदर्शन या प्रस्तुतीकरण :-
चुने हुए शिक्षण कौशल की पूरी जानकारी के बाद आदर्श पाठ छात्र अध्यापक के सामने प्रस्तुत किया जाता है। इस आदर्श पाठ को विभिन्न विधियों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है-
a. सूक्ष्म शिक्षण के आदर्श पाठ की विस्तृत लिखित योगना छात्र अध्यापकों को दी जा सकती है।
b. उस विडियो टेप पर रिकॉर्ड करके फिल्म के रूप में दिखाया जा सकता है।
c. उसे टेप रिकॉर्डर पर रिकॉर्ड करके छात्र अध्यापकों को सुनाया जा सकता है।
d. किसी विशेषज्ञ अथवा शिक्षक प्रशिक्षक के द्वारा वास्तविक रूप में इस पाठ को पढ़ा कर दिखाया जा सकता है।
5. आदर्श पाठ का निरीक्षण एवं समालोचना :-
आदर्श पाठ जिस रूप में भी विद्यार्थियों द्वारा देखा सुना अथवा पढ़ा जाता है। उसका उनके द्वारा सावधानी से विश्लेषण किया जाता है। पर्यवेक्षण करने से संबंधित निरीक्षण अनुसूची अथवा प्रपत्र (ओवजरवेशन रोड्यूल) भी उन्हें पहले ही वितरित कर दिए जाते है और इन प्रपत्र की समुचित प्रगोग विधि भी उन्हें समझा दी जाती है।
6. सूक्ष्म पाठ योजना तैयार करना :-
इस सोपान के अंतर्गत छात्र अध्यापक संबंधित शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए किसी उचित उप विषय का चुनाव करके एक आदर्श पाठ योजना तैयार करे है। इसके लिए वे अपने अध्यापकों से परामर्श भी लें सकते हैं। और शिक्षण प्रशिक्षण पर उपलब्ध सामग्री और पुस्तकों का अध्ययन भी कर सकते हैं।
7. उचित परिस्थितियों का आयोजन :-
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने भारतीय परिवेश के संदर्भ मेन निम्नलिखित प्रारूप सुझाया है –
a. छात्रों को संख्या 5 -10
b. छात्र वास्तविक या सहपाठी
c. पर्यवेक्षण कर्ता शिक्षण प्रशिक्षण और सहपाठी
d. सूक्ष्म पाठ की आवधि 6 मिनट
e. सूक्ष्म शिक्षण चक्र की अवधि 36 मिनट।
इस अवधि का विभाजन इस प्रकार से किया जाता है –
शिक्षण सत्र —- 6 मिनट
प्रतिपुष्टी सत्र —- 6 मिनट
पुनः योजना —- 12 मिनट
पुनः अध्यापन सत्र — 6 मिनट
पुनः प्रतिपुष्टी सत्र — 6 मिनट
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कुल समय — 36 मिनट
8. शिक्षणअभ्यास या शिक्षण सत्र –
इस सोपान के अंतर्गत छात्र अध्यापक 5 -10 विद्यार्थियों अथवा सहपाठी छात्र अध्यापकों की कक्षा में अपने द्वारा तैयार सूक्ष्म पाठ को 5 या 6 मिनट तक पढ़ाता है।
9. प्रतिपुष्टि प्रदान करना :-
सूक्ष्म शिक्षण की सबसे अधिक उपयोगिता उसके इस गुण में हैं कि इसके द्वारा एक अध्यापक को अपने पढ़ाए हुए पाठ के विषय में तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त हो सकती है।
10.
पुनः पाठ योजना बनाना :- विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर छात्र-अध्यापक अपने सूक्ष्म शिक्षण पाठ कि पुनः योजना बनाता है। इस कार्य के लिए 12 मिनट समय मिलता है।
11. पुनः अध्यापन सत्र :- 6 मिनट के सत्र में पुनः निर्मित पाठ योजना के आधार पर पुनः व्यस्थित शिक्षण परिस्थितियों में छात्र-अध्यापक अपने सूक्ष्म शिक्षण पाठ को एक बार फिर पढ़ाता है।
12. पुनः प्रतिपुष्टि प्रदान करना :-
पुनः पढ़ाये गए पाठ का शिक्षण प्रशिक्षण और सहयोगी छात्र अध्यापकों द्वारा एक बार फिर पर्यवेक्षण किया जाता है और परिणाम स्वरूप उनके द्वारा आवश्यक प्रतिपुष्टि प्रदान कि जाती है। यह सत्र 6 मिनट का होता है।