अनुशासन का महत्व निबंध (anushasan ka mahatva nibandh bataiye)

अनुशासन का महत्व निबंध (anushasan ka mahatva nibandh bataiye)

परिचय

अनुशासन का अर्थ है अपने को कुछ दृष्टियों से में आबध्द कर लेना और उन्हीं के अनुसार कार्य करना। कुछ व्यक्ति अनुशासन की ‘व्याख्या शासन का अनुगमन’ करने के अर्थ में लगाते हैं। यह है कि आज एक सीमा तक अनुशासन की देखभाल का कार्य बहुत कुछ शासक वर्ग के हाथ में है परंतु यह अनुशासन का संकुचित अर्थ है। व्यापक रूप में अनुशासन सुव्यवस्थित ढंग से और आधारभूत नियमों का पालन ही है जिनके द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के मार्ग में बाधक बने बिना व्यक्ति अपना पूर्ण विकास कर सकें।

अनुशासन का जीवन में महत्व

मानवीय जीवन के आदिकाल में अनुशासन की कोई संकल्पना नहीं थी। मनुष्य जंगलों में रहता था। आज कल की तरह बड़े-बड़े राष्ट्र या नगर नहीं थे। मनुष्य पर किसी का कोई बंधन नहीं था। इतना अधिक स्वतंत्र रहने पर भी मानव सुखी नहीं था। आपस में टकराव होते थे। अधिकारों और कर्तव्यों में संघर्ष होता था। धीरे-धीरे उसे आवास अनुशासन की कमी महसूस होने लगी। उसमें अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए परिवार, समाज व राष्ट्र का निर्माण किया। अनुशासन में रहने का भी एक आनंद है लेकिन आज व्यक्तियों में अनुशासनहीनता की भावना बढ़ रही है। समाचार पत्रों में प्रतिदिन यही पढ़ने को मिलता है कि आज अमुक शहर में 10 दुकान लूटी गई, बसों में आग लगा दी गई। यदि किसी भी कर्मचारी को कोई गलत काम करने से रोका जाए तो वह अपने साथियों से मिलकर काम बंद करा देगा। बहुत दिनों तक हड़तालें चलती रहेगी। कारखानों और कार्यालयों में काम बंद हो जायेंगे। अनुशासन के अभाव में समाज में अराजकता और अशांति का साम्राज्य होता है। वन्य पशुओं में अनुशासन का कोई महत्व नहीं है इसी कारण उनका जीवन अरक्षित, आतंकित एवं अव्यवस्थित रहता है।

वर्तमान में अनुशासन का महत्व

सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ जीवन में अनुशासन का महत्व भी है बढ़ता गया। आज के वैज्ञानिक युग में तो अनुशासन के बिना मनुष्य का एक भी कार्य नहीं हो सकता। कुछ व्यक्ति सोचते हैं कि अब मानव सभ्य और शिक्षित हो गया है। उस पर किसी भी प्रकार के नियमों का बंधन नहीं होना चाहिए। वह स्वतंत्र रूप से जो भी करें उसे करने देना चाहिए। मानव, मानव भी है, देवता नहीं। उसमें सुप्रवृतियां और कुप्रवृतियां दोनों ही होती हैं। मानव सभ्यता भी तक रहता है जब तक वह अपनी सुप्रवृत्तियों की आज्ञा के अनुसार कार्य करें। जैसे ही मनुष्य में कुप्रवृतियां अधिक हो जाती है वह मानव के बदले दानव बन जाता है। इसलिए मानव के पूर्ण विकास के लिए कुछ बंधनों और नियमों का होना आवश्यक है। अनुशासनबध्दता मानव जीवन के मार्ग में बाधक नहीं अपितु उसको पूर्ण उन्नति तक पहुंचने के लिए अनुकूल अवसर प्रदान करती हैं। अनुशासन के बिना तो मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं।

विद्यार्थी जीवन और अनुशासन

विद्यार्थी जीवन में तो अनुशासन का बहुत ही महत्व है। आज अनुशासनहीनता के कारण तोड़फोड़ करना तो विद्यार्थी का कर्तव्य बन गया है। आधुनिक शिक्षा पद्धति भी अनुशासनहीनता के लिए कुछ सीमा तक दोषी है। केवल परीक्षा पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है नैतिक शिक्षा एवं चरित्र निर्माण का इसमें कोई स्थान नहीं होता।

निष्कर्ष

अतः हर मनुष्य का कर्तव्य है कि यथासाध्य अनुशासन का पालन करें। यह भी चित्र होते हुए भी कितने सत्य है कि अनुशासन एक प्रकार का बंधन है परंतु मनुष्य को स्वच्छंद रूप से अपने अधिकारों का पूरा सदुपयोग करने का सुअवसर प्रदान करता है। यदि या एक ओर बंधन है तो दूसरी और मुक्ति भी।

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