शैशवावस्था में मानसिक विकास (shaishav avastha mein mansik vikas)
शैशवावस्था में शिशु की मानसिक योग्यताओं का विकास अत्यंत तीव्र गति से होने लगता है शैशवावस्था में होने वाले मानसिक विकास का शिशुओं की शारीरिक विकास से घनिष्ठ तथा प्रत्यक्ष संबंध होता है। मानसिक विकास के द्वारा शिशु अपने वातावरण का ज्ञान प्राप्त करता है और उस वातावरण के अनुकूल अपने को समायोजित करने का प्रयास करता है जिससे कि बालक की मानसिक शक्तियों का विकास होने के साथ-साथ भाषा, स्मृति, तर्क, चिंतन, कल्पना, निर्णय जैसे मानसिक योग्यता का विकास हो सके। शैशवावस्था में शिशु के मानसिक विकास किस प्रकार से विकसित होते हैं इसे हम निम्नलिखित रुप में देखेंगे
1. जन्म से प्रथम सप्ताह:-
जन्म से प्रथम सप्ताह में एक नवजात शिशु के व्यवहार मूल प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होती है तथा उसमें बुद्धि प्रयोग करने की क्षमता नहीं होती है। अपनी शारीरिक तुष्टि के लिए कुछ ना कुछ कार्य करता ही रहता है, जैसे भूख लगने पर शिशु रोने लगता है। सर्दी लगने पर कांपने लगता है। गर्मी लगने पर व्याकुल हो उठता है। आराम ना मिलने पर भी रोने लगता है। किसी प्रकार के अचानक तेज़ आवाज होने पर वह चौक जाता है।
2. द्वितीय सप्ताह:-
द्वितीय सप्ताह यानी कि जब बालक या शिशु 9 या 10 दिन का बालक किसी भी प्रकाश चमकने वाली और बड़े आकार की वस्तुओं को एकटक होकर देखने लगता है।
3. प्रथम माह:-
जब शिशु 1 महीने का हो जाता है तो उन्हें भूख लगने पर कष्ट का अनुभव होता है और वह रोने लगता है तथा उसके हाथ में दी जाने वाली वस्तुओं को वह पकड़ने का प्रयास करता है।
4. द्वितीय माह:-
जब शिशु दूसरे महीने में प्रवेश करने लगता है तो उसमें क्रोध की भावना उत्पन्न होने लगती हैं वह किसी भी प्रकार के आवाज को ध्यान से सुनने लगता है तथा जिधर से आवाज आती हैं उधर अपना सिर घुमा देता है और वस्तुओं को अधिक ध्यान से देखने लगता है।
5. तीसरा माह:-
तीसरा महीना का शिशु अपने मां को देखकर खुश होने लगता है और उन्हें देखकर कभी कभी मुस्कुराता भी है साथ ही बालक के सामने से कोई भी वस्तु को जिधर ले जाए जाता है उधर बालक अपना सिर घुमाने लगता है और एक टुक हो कर उन वस्तु को देखने लगता है।
6. चौथा माह:-
चौथे माह का शिशु में इतनी मानसिकता आ जाती है कि खिलौनों को ध्यान से देखने लगता है तथा उन्हें पकड़ने का प्रयास करता है साथ ही वह हंसने और मुस्कुराने भी लगता है। और सभी प्रकार के ध्वनियों को ध्यान से सुनने लगता है।
7. पांचवां माह:
पांचवां माह के बालक अपनी मां को अच्छी तरह से पहचान लेता है और उनके हाथ में दी जाने वाली वस्तुओं को पकड़ने के लिए अपने हाथों को आगे बढ़ाता है।
8. छठा माह:-
छठा माह के बालक में इतनी मानसिकता आ जाती है कि वह प्रेम और क्रोध में अंतर को समझने लगता है तथा सहारा देने पर वह बैठने और किसी की आवाज़ का अनुकरण करने लगता है।
9. सातवां माह:-
सातवां माह हो जाने पर बालक किसी भी वस्तु को या खिलौनों को हाथ में पकड़ कर सीधे अपने मुंह की ओर ले जाता है तथा मुंह से विभिन्न प्रकार के आवाज निकालने भी लगता है।
10. आठवां माह:
आठवां महीना का बालक घुटनों के बल चलने लगता है तथा दूसरें बच्चों के साथ खेलने में उन्हें आनंद आता है साथ ही वे अपनी रुचि के खिलौने के साथ वह खेलने लगता है तथा उनके हाथ से खिलौने छीनने पर वह रोने भी लगता है।
11. नवा माह:-
9 महीने का बच्चा खुद से बैठने लगता है तथा कोई भी कार्य करने का प्रयास करता है।
12. दसवां माह:-
दसवीं माह का बालक किसी भी ढकी हुई वस्तुओं को खोलने का प्रयास करता है तथा खिलौने छीनने पर उसका विरोध भी करता है साथ ही दूसरे शिशुओं की गति तथा विभिन्न प्रकार की आवाज़ों का अनुकरण करता है।
13. बारहवां माह:-
12 माह होने पर बालक धीरे-धीरे चलने का प्रयास करता है तथा माता-पिता या भाई-बहनों की क्रियाओं का अनुकरण करने का प्रयास करता है साथ ही छोटे-छोटे शब्दों को बोलने भी लगता है।
14. दूसरा वर्ष:-
शिशु में इतनी मानसिकता आ जाती है कि वे दो शब्दों के वाक्य को बोलने लगता है तथा चित्रों में कोई चीज पूछने पर वह चित्र के पास जाकर उसे अपने हाथों से दिखाने भी लगता है तथा उसे किसी भी वस्तु को खाने के लिए दिया जाए जैसे कोई बिस्किट या चॉकलेट तो उन्हें कैसे उनके कागज को हटाया जाए उन्हें हटाना भी आ जाता है।
15. तीसरा वर्ष:-
शिशु स्कूल जाने लगता है तथा पांच 7 शब्दों के वाक्य बना लेता है संख्याओं को दोहराना सीख जाता है साथ ही सीधी रेखा खींचने का प्रयास भी करता है।
16. चौथा वर्ष:-
शिशु अब छोटे बड़े को समझने लगता है तथा चित्रों में से प्रश्न पूछने पर उसका उत्तर भी देता है साथ ही उन्हें गिनती भी अच्छी तरीका से याद होने लगता है वह अक्षरों को लिखने लगता है तथा वस्तुओं को सजाकर भी रखता है।
17. पांचवा वर्ष:-
5 वर्ष के बालक या बालिका बड़े वाक्यों को बोलने लगते हैं मुख्य रंगों को पहचानने भी लगते हैं तथा छोटे बड़े या हल्के भारी का ज्ञान उन्हें होने लगता है। उनमें इतनी मानसिकता आ जाती है कि वह किसी भी कार्य का निर्णय खुद ही कर लेते हैं उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि वह सही कह रहे हैं या गलत पर उन कार्यों को करने में उन्हें मज़ा आता है।
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शैशवावस्था में मानसिक विकास के प्रमुख पहलू
शैशवावस्था (Infancy) मानव जीवन की पहली अवस्था होती है, जो जन्म से लेकर लगभग 2 वर्ष की आयु तक होती है। इस दौरान शिशु का मानसिक विकास बहुत तेजी से होता है। मानसिक विकास के अंतर्गत संज्ञानात्मक (Cognitive), भावनात्मक (Emotional), भाषा (Language) और स्मरण शक्ति (Memory) से जुड़े विभिन्न पहलू आते हैं। यह अवस्था व्यक्ति के भविष्य के मानसिक स्वास्थ्य और बौद्धिक क्षमताओं की नींव रखती है। इस लेख में शैशवावस्था में होने वाले मानसिक विकास के विभिन्न पहलुओं, उन्हें प्रभावित करने वाले कारकों और विकास को बढ़ावा देने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है।
1. संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development)
संज्ञानात्मक विकास का अर्थ है बच्चे की सोचने, समझने और सीखने की क्षमता का विकास। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे (Jean Piaget) के अनुसार, इस अवस्था में बच्चा संवेदी-मोटर अवस्था (Sensorimotor Stage) में होता है, जिसमें वह अपनी इंद्रियों और गतिविधियों के माध्यम से दुनिया को समझता है।
इस चरण के प्रमुख लक्षण:
प्रत्यक्ष अनुभव (Direct Experience): शिशु अपनी इंद्रियों (छूने, देखने, सुनने, सूंघने और स्वाद लेने) के माध्यम से सीखता है।
परिवेश की पहचान (Recognition of Surroundings): धीरे-धीरे बच्चा अपने माता-पिता, भाई-बहनों और परिवार के अन्य सदस्यों को पहचानने लगता है।
वस्तु स्थायित्व (Object Permanence): लगभग 8-12 महीने की उम्र में बच्चा यह समझने लगता है कि यदि कोई वस्तु उसकी नजरों से ओझल हो गई है, तो भी वह अस्तित्व में बनी रहती है।
क्रिया-प्रतिक्रिया सीखना (Learning Cause and Effect): बच्चा समझने लगता है कि यदि वह किसी वस्तु को गिराएगा, तो वह नीचे गिरेगी। इस प्रकार वह कार्य और उसके परिणाम को जोड़ने लगता है।
नकल करने की प्रवृत्ति (Imitation Tendency): 6-12 महीने के बीच बच्चा बड़ों की गतिविधियों की नकल करने लगता है, जैसे ताली बजाना या चेहरे के भाव दोहराना।
2. स्मरण शक्ति का विकास (Memory Development)
शैशवावस्था में स्मरण शक्ति का विकास धीरे-धीरे होता है।
🔹 0-6 महीने: इस दौरान बच्चा केवल तात्कालिक चीजों को याद रख सकता है।
🔹 6-12 महीने: बच्चा अपने माता-पिता और नियमित रूप से दिखने वाले लोगों को पहचानने लगता है।
🔹 1 वर्ष के बाद: बच्चा पिछली घटनाओं को याद करने और अपने पसंदीदा खिलौनों या गतिविधियों की पहचान करने लगता है।
स्मरण शक्ति के विकास में माता-पिता का संवाद और दैनिक गतिविधियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
3. भाषा विकास (Language Development)
शैशवावस्था भाषा सीखने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है। बच्चा पहले ध्वनियाँ निकालता है, फिर शब्दों का उच्चारण करता है और बाद में वाक्य बनाने लगता है।
भाषा विकास की प्रमुख अवस्थाएँ:
0-6 महीने:
- बच्चा विभिन्न ध्वनियाँ निकालता है, जिसे कूकिंग (Cooing) कहते हैं।
- यह “अगू”, “गु”, “आह” जैसी ध्वनियाँ होती हैं।
6-12 महीने:
- बच्चा अर्थपूर्ण ध्वनियाँ निकालने लगता है, जिसे बड़बड़ाहट (Babbling) कहते हैं।
- “दा-दा”, “मा-मा”, “पा-पा” जैसे शब्दों का उच्चारण करने लगता है।
12-18 महीने:
- बच्चा सरल शब्द जैसे “मम्मा”, “पापा”, “बॉल”, “नहीं” बोलना सीखता है।
18-24 महीने:
- दो-तीन शब्दों के छोटे वाक्य बनाने लगता है, जैसे “पानी दो”, “मम्मा आओ”।
भाषा विकास को बढ़ावा देने के लिए माता-पिता को बच्चे से लगातार बात करनी चाहिए और उसे नई चीजों के नाम सिखाने चाहिए।
4. भावनात्मक विकास (Emotional Development)
शैशवावस्था में बच्चा धीरे-धीरे भावनाओं को समझना और व्यक्त करना सीखता है।
इस चरण के प्रमुख पहलू:
माता-पिता से लगाव (Attachment to Parents):
- बच्चा 6 महीने की उम्र तक माता-पिता से गहरा लगाव महसूस करता है।
- 8-12 महीने के बीच बच्चा अजनबियों से घबराने लगता है, जिसे Stranger Anxiety कहा जाता है।
अलगाव की चिंता (Separation Anxiety):
- 1 वर्ष की उम्र में बच्चा माता-पिता से दूर होने पर रोने लगता है।
आत्म-चेतना का विकास (Development of Self-awareness):
- 18-24 महीने में बच्चा “मैं” और “मेरा” जैसे शब्दों का उपयोग करने लगता है।
खेल के माध्यम से भावनाओं की अभिव्यक्ति:
- बच्चा खिलौनों से खेलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगता है।
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शैशवावस्था में मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
🔹 आनुवंशिकता (Genetics): मानसिक विकास में जीन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
🔹 पर्यावरण (Environment): बच्चे के आसपास का वातावरण, माता-पिता का व्यवहार और सामाजिक संपर्क उसके मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं।
🔹 पोषण (Nutrition): संतुलित आहार संज्ञानात्मक और स्मरण शक्ति के विकास के लिए आवश्यक होता है।
🔹 संवेदी अनुभव (Sensory Stimulation): देखने, सुनने, छूने और बोलने की गतिविधियाँ मानसिक विकास को तेज़ करती हैं।
मानसिक विकास को बढ़ाने के उपाय
१. बच्चे से अधिक से अधिक बात करें।
२. कहानियाँ और लोरी सुनाएँ।
३. खिलौनों और पहेलियों के माध्यम से सोचने और सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करें।
४. सकारात्मक प्रतिक्रिया दें और बच्चे को प्रोत्साहित करें।
५. सुरक्षित और प्रेमपूर्ण वातावरण प्रदान करें।
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निष्कर्ष
शैशवावस्था में मानसिक विकास व्यक्ति के भविष्य की नींव रखता है। इस दौरान संज्ञानात्मक, भावनात्मक, भाषा और स्मरण शक्ति का तीव्र विकास होता है। माता-पिता और परिवार के सहयोग से इस विकास को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। सही देखभाल, संवाद और प्रोत्साहन से बच्चे की मानसिक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, जिससे वह एक स्वस्थ और आत्मनिर्भर व्यक्ति बन सके।