अभिप्रेरणा के सिद्धांत का वर्णन, Theories Of Motivation, अभिप्रेरणा के कार्य, अभिप्रेरणा प्रक्रिया क्या है (Motivation Process in Hindi)

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अभिप्रेरणा (Motivation) एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति को किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है, उसके व्यवहार को दिशा देती है और लक्ष्य प्राप्ति तक उसे क्रियाशील बनाए रखती है। यह एक आंतरिक शक्ति है जो मानव को कुछ पाने, जानने या करने के लिए प्रेरित करती है।

मनुष्य में अभिप्रेरणा की उत्पत्ति कैसे होती है इस संबंध में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से मत दिये है जिन्हें अभिप्रेरणा का सिद्धांत(theory of motivation) के नाम से जाना जाता है मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिया गया सिद्धांत निम्नलिखित है:-

अभिप्रेरणा के सिद्धांत का वर्णन,theories of motivation

अभिप्रेरणा के सिद्धांत का वर्णन, Theories Of Motivation

  1. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत(Stimulus-Response theory)
  2. मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत (Instinct theory)
  3. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत (Psycho-analytic theory)
  4. अन्तर्नोद सिद्धांत (Drive theory)
  5. प्रोत्साहन सिद्धांत (incentive theory)
  6. शारीरिक सिद्धांत(physiological theory)
  7. मांग सिद्धांत (need theory)
  8. सक्रियता सिद्धांत (Activation theory)
  9. संतुलन सिद्धांत (Homeostatic theory)
  10. ऐच्छिक सिद्धांत (Voluntaristic theory)
  11. उपलब्धि अभिप्रेरणा सिद्धांत(Achievement motivation theory)
  12. अभिप्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धांत (Hygeine Motivation theory)

१. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत(Stimulus-Response theory):

यह सिद्धांत व्यवहारवादियों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। यह सिद्धांत अधिगम के सिद्धांत का ही भाग है। इसमें मानव के समस्त व्यवहार शरीर द्वारा उद्दीपन के परिणाम स्वरूप होने वाली अनुक्रिया है। इस सिद्धांत के अनुसार व्यवहार ही स्वयं में विशिष्ट अनुप्रिया है इसमें किसी भी प्रकार की चेतन-अचेतन मन या मानसिकता से कोई संबंध नहीं होता। यह मत संकुचित है और इसमें अनेक अनुभव तथा तथ्यों की अवहेलना की गई है

२. मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत (Instinct theory):

इस सिद्धांत का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिकों मैकडूगल, जेम्स तथा बर्ट ने किया है। मूल प्रवृत्तियों का संबंध जन्म से ही व्यक्ति में निहित प्रवृत्तियों से है। मूल प्रवृत्तियां सभी मनुष्य में समान होती है उनका व्यवहार भी समान होना चाहिए, पर ऐसा नहीं होता। इसलिए यह सिद्धांत अपनी कसौटी पर खरा नहीं उतरता। साथ ही मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए मानव की मूल प्रवृत्तियों में भी समानता दिखाई नहीं देती उनके द्वारा दिए गए संख्या में भी विभिन्नता पाई जाती हैं। मूल प्रवृत्ति पर विभिन्न मनोवैज्ञानिकों का मत भी अलग-अलग है।

३.मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत (Psycho-analytic theory):

इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रॉयड ने किया। फ्रॉयड ने जीवन तथा मृत्यु की दो ही मूल प्रवृत्तियों की चर्चा की। जो उसे क्रमशः संरचनात्मक एवं विध्वंसात्मक व्यवहार की ओर प्रवृत्त करती हैं। साथ ही उसका अचेतन मन उसके व्यवहार को अनजाने में ही प्रभावित करता है। इस सिद्धांत के अनुसार अभिप्रेरणा के दो मूल कारक हैं पहला मूल प्रवृत्तियां तथा दूसरा अचेतन मन। इसलिए यह सिद्धांत पूर्ण रूप से सत्य नहीं है। क्योंकि मनुष्य का व्यवहार केवल उसके अचेतन मन से ही नहीं बल्कि उसके चेतन मन से भी संचालित होती हैं।

४.अन्तर्नोद सिद्धांत (Drive theory):

इस सिद्धांत का प्रतिपादन हल ने किया।इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएं मनुष्य में कम तनाव पैदा करती है,जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में अन्तर्नोद कहते हैं यही किसी भी मनुष्य को विशेष प्रकार के कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं।यह सिद्धांत मानव के उच्च ज्ञानात्मक व्यवहार की व्याख्या नहीं कर सकता इसलिए यह सिद्धांत भी पूरी तरह से मान्य नहीं है।theories of motivation

५.प्रोत्साहन सिद्धांत (incentive theory):

इस सिद्धांत का प्रतिपादन बोल्स तथा काफमैन ने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार मानव इस संसार में स्थित वस्तु, स्थिति तथा क्रिया से प्रभावित होकर क्रिया करता है पर्यावरण के इन सभी तत्व को प्रोत्साहन मना गया है। बोल्स तथा काफमैन के अनुसार प्रोत्साहन दो प्रकार के होते हैं- धनात्मक और ऋणात्मक।धनात्मक में किसी भी मनुष्य को उसके लक्ष्य को पाने के लिए प्रोत्साहित करता है और ऋणात्मक में किसी भी मनुष्य को उसके लक्ष्य को पाने के लिए रूकावट पैदा करता है।यह मनुष्य के केवल बाल कारकों पर ही बल देती है इसलिये यह सिद्धांत अपने आप में अपूर्ण है।

६. शारीरिक सिद्धांत(physiological theory):

इस सिद्धांत को मार्गन ने दिया था। इस मत के अनुसार शरीर में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। किसी कारण से शरीर में प्रतिक्रियाएं भी होती है। किसी भी कार्य की प्रतिक्रिया होने पर अभिप्रेरणा मूल में विद्यमान रहती है। इस सिद्धांत में मनुष्य के पर्यावरणीय कारकों  की अवहेलना की गई है इसलिए यह भी अपने में अपूर्ण है।

७. मांग सिद्धांत (need theory):

यह सिद्धांत मैस्लो ने दिया था। मैस्लो ने कहा कि मनुष्य का व्यवहार उसकी आवश्यकताओं से प्रेरित होती है मैस्लो ने मनुष्य की आवश्यकताओं को एक विशेष क्रम निम्न स्तर से ऊंच स्तर इन दो भागों में बांटा है। उनका कहना है कि जब तक मनुष्य एक स्तर की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर लेता तब तक वह दूसरी स्तर की ओर कदम नहीं रखता। यह बात सही है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्तर पर स्तर करता है पर यह बात सही नहीं है कि वे सभी आवश्यकताओं की पूर्ति एक सही क्रम में करता है इसलिए यह सिद्धांत भी अपूर्ण है।

८. सक्रियता सिद्धांत (Activation theory):

व्यक्ति क्रियाशील होता है। उसका एक भाग कम और दूसरा भाग अधिक क्रियाशील होता है। सोलेसबरी, मैल्को तथा लैडस्ले ने सक्रियता सिद्धांत के आधार पर अभिप्रेरणा की व्याख्या की है।यह सिद्धांत स्वाभाविक तथा दैहिक पक्ष पर आधारित है तथा अभिप्रेरणा की व्याख्या सीमित क्षेत्र में करता है।

९.संतुलन सिद्धांत (Homeostatic theory):

केटलिन के अनुसार प्राणी में एक प्रवृत्ति स्थिरता बनाये रखने की है। शरीर अपनी कमी को अन्य तत्वों से पूरा करता है। दैहिक तथा मनोवैज्ञानिक स्थिरता का मतलब अभिप्रेरणा है।

१०.ऐच्छिक सिद्धांत (Voluntaristic theory):

यह मत सामान्यता संकल्प पर मुख्य बल देता है। इस मत के अनुसार मानव का व्यवहार इच्छा से संचालित होता है। इच्छा को बौद्धिक मूल्यांकन द्वारा अभिप्रेरणा दी जाती है। इस प्रकार संकल्प शक्ति विकसित होती है। यहां पर या जान लेना आवश्यक है की संवेग तथा प्रतिवर्त इच्छा से अभिप्रेरित नहीं होते।

११.उपलब्धि अभिप्रेरणा सिद्धांत(Achievement motivation theory):

इस सिद्धांत का प्रतिपादन ‘डेविल मैक्लीलैंड‘ ने दिया था। इस सिद्धांत के अनुसार अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मनुष्य हर प्रकार के चुनौती या कठिन समस्या का सामना कर अपने उपलब्धियों को पा लेता है जैसे दिन रात मेहनत कर एक अच्छी सरकारी नौकरी प्राप्त करना, छात्रों को परीक्षा में उत्तीर्ण होना।

१२. अभिप्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धांत (Hygeine Motivation theory):

इस सिद्धांत को ‘फेड्रिक हरजबर्ग‘ ने दिया था। इस सिद्धांत के अनुसार बालक अगर मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो वह किसी भी कार्य को करने में रूचि लेगा अगर वह स्वस्थ ही नहीं होगा तो उसे किसी भी कार्य को करने में बिल्कुल भी वह दिलचस्पी या रूचि नहीं लेगा।

अभिप्रेरणा प्रक्रिया क्या है (Motivation Process in Hindi)

अभिप्रेरणा (Motivation) किसी व्यक्ति के व्यवहार को उद्दीप्त करने, बनाए रखने और किसी लक्ष्य की ओर निर्देशित करने की एक मानसिक प्रक्रिया है। यह केवल किसी कार्य को प्रारंभ करने की शक्ति नहीं है, बल्कि उस कार्य में निरंतर लगे रहने का मूल आधार भी है। इस पूरी प्रक्रिया को हम अभिप्रेरणा की प्रक्रिया कहते हैं।

जब भी किसी व्यक्ति के अंदर कोई आवश्यकता या इच्छा उत्पन्न होती है, तो वह उसे पूरा करने के लिए क्रियाशील होता है। यही सक्रियता अभिप्रेरणा कहलाती है और इसकी प्रक्रिया कुछ विशेष चरणों में सम्पन्न होती है।

अभिप्रेरणा प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Stages of Motivation Process)
१. आवश्यकता की उत्पत्ति (Emergence of Need)

यह अभिप्रेरणा प्रक्रिया का पहला चरण है। जब व्यक्ति को किसी चीज की कमी महसूस होती है — चाहे वह भौतिक (जैसे भोजन, वस्त्र), मानसिक (जैसे आत्म-सम्मान), सामाजिक (जैसे मान-सम्मान) या आत्मिक (जैसे आत्म-निर्माण) हो — तो एक आंतरिक आवश्यकता उत्पन्न होती है।

👉 उदाहरण:
एक छात्र को अच्छे अंक प्राप्त करने की जरूरत महसूस होती है, क्योंकि वह आगे किसी अच्छी नौकरी या कॉलेज में प्रवेश पाना चाहता है।

२. उत्तेजना या तनाव की अवस्था (Arousal of Drive/Tension)

जब आवश्यकता लंबे समय तक पूरी नहीं होती, तो व्यक्ति के अंदर एक मानसिक और शारीरिक बेचैनी या तनाव उत्पन्न होता है। यही तनाव व्यक्ति को किसी दिशा में क्रियाशील बनने के लिए प्रेरित करता है।

👉 उदाहरण:
जब छात्र को लगता है कि परीक्षा नजदीक आ गई है और तैयारी नहीं हुई, तो उसके अंदर तनाव या चिंता पैदा होती है।

३. लक्ष्य की दिशा में कार्य करना (Goal-Oriented Behaviour)

तनाव या उत्तेजना की स्थिति में व्यक्ति लक्ष्य की ओर कार्य करना शुरू करता है। अब उसका सारा ध्यान उस कार्य की ओर लग जाता है जिससे वह अपनी आवश्यकता को पूरा कर सके।

👉 उदाहरण:
छात्र समय पर पढ़ाई शुरू करता है, समय सारणी बनाता है और ध्यानपूर्वक तैयारी करता है।

४. लक्ष्य की प्राप्ति (Attainment of Goal)

जब व्यक्ति के द्वारा किया गया कार्य सफल होता है और वह अपनी आवश्यकता या लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, तो वह संतोष की अनुभूति करता है। यह उस मानसिक या शारीरिक तनाव को समाप्त कर देता है जो पहले था।

👉 उदाहरण:
परीक्षा में अच्छे अंक आना, जिससे छात्र को संतोष और आत्म-संतुष्टि मिलती है।

५. तनाव या उत्तेजना का निवारण (Reduction of Tension)

अब व्यक्ति मानसिक रूप से संतुलित हो जाता है क्योंकि उसकी आवश्यकता की पूर्ति हो चुकी होती है। इससे पहले उत्पन्न तनाव या उत्तेजना समाप्त हो जाती है और व्यक्ति शांत और संतुष्ट हो जाता है।

👉 उदाहरण:
परीक्षा में सफल होने के बाद छात्र राहत महसूस करता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।

अभिप्रेरणा प्रक्रिया का चक्र (Motivation Cycle):

यह एक निरंतर चलने वाला चक्र है। एक आवश्यकता की पूर्ति के बाद दूसरी आवश्यकता जन्म लेती है और यह क्रम चलता रहता है।

आवश्यकता की उत्पत्ति 
           ⬇️
उत्तेजना/तनाव की स्थिति
           ⬇️
लक्ष्य की ओर कार्य
           ⬇️
लक्ष्य की प्राप्ति
           ⬇️
तनाव का निवारण और संतुष्टि
           ⬇️
नई आवश्यकता की उत्पत्ति

निष्कर्ष (Conclusion):

अभिप्रेरणा की प्रक्रिया व्यक्ति की आंतरिक इच्छाओं और आवश्यकताओं पर आधारित होती है। यह न केवल कार्य करने की प्रेरणा देती है बल्कि व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने, सीखने, सुधारने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भी प्रेरित करती है। यह एक सतत प्रक्रिया है जो व्यक्ति के विकास और सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अभिप्रेरणा के कार्य, Functions of Motivation in Hindi

अभिप्रेरणा (Motivation) केवल किसी कार्य को शुरू करने का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर क्षेत्र में क्रियाशीलता, दिशा और उद्देश्य का निर्धारण करती है। नीचे विस्तारपूर्वक “अभिप्रेरणा के कार्य” (Functions of Motivation in Hindi) को समझाया गया है:

1. व्यवहार को सक्रिय करना (Activating Behaviour)

अभिप्रेरणा किसी व्यक्ति के भीतर किसी कार्य को करने की प्रेरणा उत्पन्न करती है। जब तक व्यक्ति को किसी कार्य की आवश्यकता का बोध नहीं होता, तब तक वह निष्क्रिय या सुस्त बना रहता है। लेकिन जैसे ही उसे किसी उद्देश्य या आवश्यकता की पूर्ति करनी होती है, उसका व्यवहार क्रियाशील हो जाता है।

उदाहरण: एक छात्र जब यह जानता है कि उसे आगामी परीक्षा में सफल होना है, तभी वह पढ़ाई शुरू करता है।

2. लक्ष्य की ओर निर्देश देना (Directing Towards Goals)

अभिप्रेरणा केवल व्यक्ति को सक्रिय ही नहीं बनाती, बल्कि उसकी ऊर्जा और प्रयासों को एक निश्चित दिशा में केंद्रित भी करती है। यह व्यक्ति को लक्ष्य-निर्धारण में मदद करती है और कार्यों को सही दिशा में मार्गदर्शित करती है।

उदाहरण: नौकरी पाने की इच्छा रखने वाला युवा स्वयं को उस क्षेत्र की पढ़ाई, कोर्स, या कौशल विकास में लगाता है।

3. निरंतर प्रयास बनाए रखना (Sustaining Efforts Over Time)

किसी भी कार्य को केवल शुरू कर देना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उसे लगातार करते रहना भी ज़रूरी है। अभिप्रेरणा ही वह शक्ति है जो व्यक्ति को निरंतर प्रयासरत बनाए रखती है, चाहे रास्ते में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं।

उदाहरण: सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाला विद्यार्थी एक लंबे समय तक प्रेरित रहकर पढ़ाई करता है।

4. उत्पादकता में वृद्धि (Increasing Efficiency and Productivity)

जब व्यक्ति प्रेरित होता है, तो वह कार्य को अधिक उत्साह, ऊर्जा और निष्ठा से करता है, जिससे उसकी उत्पादकता (Productivity) बढ़ जाती है। कार्य की गुणवत्ता भी सुधरती है।

उदाहरण: प्रेरित कर्मचारी कम समय में अधिक कार्य करता है और अच्छे परिणाम देता है।

5. निर्णय लेने की क्षमता को प्रोत्साहित करना (Encouraging Decision Making)

प्रेरणा व्यक्ति को आत्म-निर्भर और आत्म-विश्वासी बनाती है। जब व्यक्ति प्रेरित होता है, तो वह अधिक सजग होता है और सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम होता है।

उदाहरण: कोई विद्यार्थी यह निर्णय लेता है कि उसे विज्ञान के क्षेत्र में जाना है, क्योंकि उसकी रुचि और प्रेरणा वहीं है।

6. रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देना (Promoting Creativity and Innovation)

प्रेरणा व्यक्ति की सोच को सीमाओं से बाहर ले जाती है, जिससे वह नई चीजों की खोज, समाधान और नवाचार के लिए तैयार होता है।

उदाहरण: प्रेरित वैज्ञानिक नये शोध करता है, प्रेरित लेखक नई रचनाएं लिखता है।

7. शिक्षा में गति और गुणवत्ता लाना (Enhancing Learning in Education)

शिक्षण प्रक्रिया में अभिप्रेरणा एक केन्द्रिय भूमिका निभाती है। जो छात्र प्रेरित होते हैं, वे पढ़ाई में अधिक रुचि लेते हैं, ज्यादा तेजी से सीखते हैं और लंबे समय तक ज्ञान को याद भी रखते हैं।

उदाहरण: जिस विषय में बच्चे को रुचि हो, वहाँ उसकी समझ और प्रदर्शन दोनों ही बेहतर होते हैं।

8. आत्मविकास को बढ़ावा देना (Promoting Self Development)

प्रेरित व्यक्ति स्वयं को नियमित रूप से सुधारने और नई योग्यताएं सीखने के लिए तत्पर रहता है। वह आत्म-मूल्यांकन करता है, अपनी कमजोरियों को पहचानता है और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करता है।

उदाहरण: प्रेरित छात्र हर परीक्षा के बाद अपनी कमियों का विश्लेषण करता है और अगली बार उसमें सुधार करता है।

9. सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास (Moral and Social Development)

अभिप्रेरणा व्यक्ति को नैतिकता, अनुशासन, सहानुभूति, सहयोग, और जिम्मेदारी जैसे मूल्यों को समझने और अपनाने के लिए प्रेरित करती है।

उदाहरण: अगर शिक्षक छात्रों को नैतिक कहानियों और व्यवहार से प्रेरित करें, तो छात्र में ईमानदारी, सहयोग और करुणा जैसे गुण विकसित होते हैं।

10. संगठनात्मक सफलता में योगदान (Organizational Growth and Discipline)

किसी भी संस्था, विद्यालय, कंपनी या संगठन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके सदस्य कितने प्रेरित और समर्पित हैं। अभिप्रेरणा एक सकारात्मक वातावरण बनाती है और अनुशासन को बढ़ावा देती है।

उदाहरण: जब स्कूल के शिक्षक और छात्र दोनों प्रेरित होते हैं, तो पूरे विद्यालय का प्रदर्शन बेहतर होता है।

निष्कर्ष (Conclusion):

अभिप्रेरणा के कार्य केवल किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं रहते, बल्कि यह उसके परिवार, समाज, कार्यस्थल और राष्ट्र के स्तर तक असर डालते हैं। यह व्यवहार को दिशा, ऊर्जा और उद्देश्य देती है। शिक्षा, संगठन, समाज और व्यक्तिगत जीवन – हर क्षेत्र में अभिप्रेरणा एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में कार्य करती है।

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