स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत skinner theory of learning in hindi
क्रिया प्रसूत अनुबंधन का अर्थ (Operant conditioning)
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skinner theory of learning in hindi |
स्किनर का कबूतर पर प्रयोग (Skinner’s experiment on Pigeon)
स्किनर बॉक्स में चूहे पर किया गया प्रयोग
बी. एफ. स्किनर (B.F. Skinner) ने सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत (Operant Conditioning Theory) को सिद्ध करने के लिए चूहे (Rat) पर एक प्रयोग किया। इस प्रयोग में उन्होंने एक विशेष प्रकार का पिंजरा तैयार किया, जिसे स्किनर बॉक्स (Skinner Box) कहा जाता है।
स्किनर बॉक्स का निर्माण
स्किनर ने एक बंद पिंजरा (Skinner Box) तैयार किया, जिसमें—एक लीवर (Lever) फिट किया गया था। एक भोजन प्लेट रखी गई थी। भोजन की नली थी, जिससे भोजन लीवर दबाने पर प्लेट में गिरता था।
पिंजरे में एक दरवाजा था, जिससे चूहे को अंदर डाला जा सकता था।
स्किनर का प्रयोग (Skinner’s Experiment)
- स्किनर ने एक भूखे चूहे को बॉक्स में बंद किया।
- चूहा अज्ञात वातावरण में उछल-कूद करने लगा।
- उछल-कूद करते हुए अचानक उसका पंजा लीवर पर पड़ गया और भोजन उसकी प्लेट में गिर गया।
- चूहे ने भोजन खा लिया और उसे संतोष मिला।
- कुछ समय बाद जब उसे फिर से भूख लगी, तो उसने फिर से उछल-कूद करना शुरू किया और लीवर पुनः दब गया, जिससे उसे भोजन प्राप्त हुआ।
- बार-बार यह प्रक्रिया दोहराने पर चूहे ने यह सीख लिया कि लीवर दबाने से भोजन मिलता है।
- अंततः, चूहा जैसे ही बॉक्स में प्रवेश करता, वह सीधे लीवर दबाकर भोजन प्राप्त कर लेता।
स्किनर के निष्कर्ष (Findings of Skinner’s Experiment)
- सीखना पुनर्बलन (Reinforcement) पर आधारित होता है – जब चूहे को भोजन मिला, तो उसने सीखने की प्रक्रिया तेज कर दी।
- सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforcement) सीखने को बढ़ावा देता है – भोजन मिलने से चूहे के व्यवहार को मजबूती मिली।
- सीखना प्रयत्न और अनुभव के आधार पर होता है – प्रारंभ में चूहा प्रयास से सीखता रहा, लेकिन धीरे-धीरे उसने स्वचालित रूप से सही क्रिया कर ली।
निष्कर्ष
इस प्रयोग से यह सिद्ध हुआ कि व्यवहार को पुनर्बलन द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। जब किसी व्यवहार के बाद सकारात्मक परिणाम मिलता है, तो उस व्यवहार की पुनरावृत्ति (Repetition) होने लगती है। इस प्रयोग के आधार पर सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत (Operant Conditioning Theory) को शिक्षा और व्यवहार प्रबंधन में लागू किया गया।
सक्रिय अनुकूलन अनुक्रिया सिद्धांत का शैक्षिक महत्व(skinner operant conditioning theory educational implications in hindi)
स्किनर के सिद्धांत की आलोचनाएं
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत की विशेषताएँ
- क्रियाप्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) पर बल
यह सिद्धांत क्रियाप्रसूत अनुबंधन पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति या जीव के व्यवहार को परिणामों के आधार पर नियंत्रित किया जा सकता है। जब किसी कार्य का सकारात्मक परिणाम मिलता है, तो वह व्यवहार अधिक दोहराया जाता है, जिससे सीखना अधिक स्थायी होता है। - क्रिया से अधिक परिणाम को महत्व देना
यह सिद्धांत स्वयं क्रिया (Action) से अधिक उसके परिणामों (Consequences) को महत्व देता है। यदि किसी व्यवहार के बाद सकारात्मक अनुभव होता है, तो व्यक्ति उसे बार-बार दोहराता है, जबकि नकारात्मक परिणाम होने पर वह उस व्यवहार से बचने की कोशिश करता है। - सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforcement) पर बल
यह सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforcement) को आवश्यक मानता है। जब किसी व्यक्ति को सही कार्य करने पर इनाम, प्रशंसा या कोई अन्य सकारात्मक अनुभव मिलता है, तो उसकी सीखने की गति बढ़ जाती है। - सफलता पर विशेष बल
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत सफलता को एक प्रमुख प्रेरक (Motivator) मानता है। जब किसी को प्रयास करने के बाद सफलता मिलती है, तो वह उस कार्य को और अधिक उत्साह से करना चाहता है, जिससे उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है। - अभ्यास (Practice) का महत्व
इस सिद्धांत के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया में अभ्यास (Practice) आवश्यक होता है। जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को बार-बार करता है और हर बार सही प्रतिक्रिया पर सकारात्मक पुनर्बलन प्राप्त करता है, तो वह कार्य उसकी आदत बन जाता है और सीखना स्थायी हो जाता है। - मंदबुद्धि बच्चों की शिक्षा में सहायक
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत मंदबुद्धि (Slow Learners) या विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सिखाने में प्रभावी होता है। यदि ऐसे बच्चों को छोटे-छोटे लक्ष्यों के माध्यम से सही दिशा में प्रोत्साहित किया जाए और हर छोटे प्रयास पर सकारात्मक पुनर्बलन दिया जाए, तो उनकी सीखने की क्षमता में सुधार हो सकता है।
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत व्यवहार और उसके परिणामों के बीच संबंध को स्पष्ट करता है। यह सिद्धांत शिक्षण प्रक्रिया में प्रशंसा, इनाम, अभ्यास और सफलता के महत्व को दर्शाता है, जिससे सीखना अधिक प्रभावी, तेज़ और स्थायी बनता है।
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत की कमियां
- पशु-पक्षियों पर आधारित प्रयोग
यह सिद्धांत मुख्य रूप से पशु-पक्षियों (जैसे चूहे और कबूतर) पर किए गए प्रयोगों के आधार पर प्रतिपादित किया गया है। स्किनर (B.F. Skinner) ने अपने प्रयोगों में देखा कि पुनर्बलन (Reinforcement) के माध्यम से किसी भी जीव के व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन मनुष्य की सीखने की प्रक्रिया अधिक जटिल और बहुआयामी होती है, जिसे यह सिद्धांत पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पाता। - बुद्धिहीन या मंदबुद्धि प्राणियों के लिए अधिक प्रभावी
यह सिद्धांत अधिकतर बुद्धिहीन या मंदबुद्धि प्राणियों (Lower Organisms) पर प्रभावी होता है। यह सीखने की प्रक्रिया को एक सरल उद्दीपन-अनुक्रिया (Stimulus-Response) प्रक्रिया मानता है, लेकिन मनुष्य बुद्धि, चिंतन, तर्क और विवेक के आधार पर भी सीखता है, जिसे यह सिद्धांत उतनी प्रभावी तरह से नहीं समझा सकता। - पुनर्बलन को अति-महत्व देना
स्किनर ने पुनर्बलन (Reinforcement) को ही सीखने की शक्ति का मूल स्रोत माना है, लेकिन वास्तविकता यह है कि मनुष्य कई बार स्वयं की प्रेरणा, रुचि और उद्देश्य प्राप्ति की लगन से भी सीखता है। उदाहरण के लिए, कोई छात्र केवल पुरस्कार के लिए ही नहीं, बल्कि ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा से भी पढ़ाई करता है। - पुनर्बलन के अभाव में सीखने की मंद गति
इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को पुनर्बलन नहीं मिले तो उसकी सीखने की गति मंद हो जाती है। लेकिन मनुष्य कई बार बिना किसी बाहरी पुनर्बलन के भी लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा से प्रेरित होकर सीखता है। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक और खोजकर्ता बिना किसी तत्काल इनाम के भी ज्ञान की खोज में लगे रहते हैं। - सीखने को यांत्रिक प्रक्रिया मानना
यह सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया को एक यांत्रिक (Mechanical) प्रक्रिया मानता है, लेकिन वास्तव में मनुष्य के सीखने में तर्क, विवेक, कल्पना, अनुभव और भावनाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मनुष्य केवल उद्दीपन और पुनर्बलन के आधार पर ही नहीं, बल्कि अंतरदृष्टि (Insight), नवाचार (Innovation) और रचनात्मकता (Creativity) के आधार पर भी सीखता है।
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया को पुनर्बलन और व्यवहारवादी दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास करता है, लेकिन यह मनुष्य के बौद्धिक, तर्कसंगत और रचनात्मक सीखने को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पाता। यह सिद्धांत पशु-आधारित प्रयोगों पर आधारित होने के कारण मनुष्यों के जटिल सीखने की प्रक्रिया की सही व्याख्या करने में सीमित हो जाता है।
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत की शिक्षा में उपयोगिता
- उद्दीपक के स्थान पर प्रेरणा (Motivation) को आवश्यक मानना
यह सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया में उद्दीपक (Stimulus) के बजाय प्रेरणा (Motivation) को अधिक महत्वपूर्ण मानता है। इसलिए, इसे पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को प्रेरित (Motivate) करने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब छात्रों को उनकी उपलब्धियों के लिए प्रोत्साहन (Encouragement) और सकारात्मक प्रतिक्रिया (Positive Feedback) मिलती है, तो वे अधिक सीखने के लिए प्रेरित होते हैं। - पुनर्बलन (Reinforcement) का महत्व
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत शिक्षण प्रक्रिया में पुनर्बलन (Positive & Negative Reinforcement) को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानता है। शिक्षक इस सिद्धांत का उपयोग छात्रों को सही उत्तर देने, अच्छा व्यवहार करने और सीखने में रुचि बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करने में कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि छात्र अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें प्रशंसा (Verbal Praise), पुरस्कार (Rewards) या अतिरिक्त अंक (Extra Marks) देकर पुनर्बलन प्रदान किया जा सकता है। - छात्रों को क्रियाशील बनाए रखना
शिक्षार्थियों को सक्रिय और प्रेरित बनाए रखने के लिए यह सिद्धांत उपयोगी है। जब छात्रों को उनके प्रयासों का सकारात्मक परिणाम मिलता है, तो वे शिक्षा में अधिक रुचि लेने लगते हैं। उदाहरण के लिए, किसी छात्र ने गणित की समस्या हल की और उसे इसके लिए सराहना मिली, तो वह और अधिक समस्याएँ हल करने के लिए प्रेरित होगा। - समस्यात्मक बालकों के व्यवहार में सुधार
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत का उपयोग उन बच्चों के व्यवहार को सुधारने के लिए किया जाता है, जो अनुशासनहीन या समस्याग्रस्त होते हैं। शिक्षक अवांछित व्यवहार को कम करने और वांछित व्यवहार को बढ़ाने के लिए सकारात्मक और नकारात्मक पुनर्बलन का उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा कक्षा में शोर करता है, तो उसे चेतावनी या कुछ समय के लिए खेल गतिविधियों से वंचित किया जा सकता है (Negative Reinforcement), जबकि अच्छे व्यवहार के लिए उसकी प्रशंसा की जा सकती है (Positive Reinforcement)।
सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत छात्रों की प्रेरणा, पुनर्बलन, व्यवहार सुधार और सफलता प्राप्ति के लिए एक प्रभावी शिक्षण तकनीक प्रदान करता है। यह छात्रों को शिक्षण प्रक्रिया में अधिक सक्रिय, प्रेरित और अनुशासित बनाए रखने में सहायक सिद्ध होता है, जिससे उनका सीखने का अनुभव अधिक प्रभावी और सकारात्मक बनता है।