बालक के विकास पर वातावरण का प्रभाव (balak par vatavaran ka prabhav)

बालक पर वातावरण का प्रभाव(balak ke vikas mein vatavaran ka kya yogdan hai), balak par vatavaran ka prabhav

पश्चिमी मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है।

१. शारीरिक विकास पर प्रभाव:-

मनोवैज्ञानिकों का यह मत है कि विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक अंतर का कारण वातावरण होता है उन्होंने यह सिद्ध किया है कि अमेरिका में अनेक पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं जापानी और यहूदियों की लंबाई भौगोलिक वातावरण के कारण बढ़ गई है।

गरीब परिवारों में अर्थ के आभाव (धन की कमी) एवं संतुलित भोजन नहीं मिल पाने के कारण बच्चों का संतुलित विकास नहीं हो पा रहा है। वे कुपोषण या कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। वही समृद्ध परिवारों के बच्चे उचित एवं संतुलित भोजन मिलने के कारण स्वस्थ एवं निरोग होते हैं।

शिक्षक वातावरण के ज्ञान द्वारा बच्चे के शारीरिक विकास संपूर्ण योगदान दे सकता है।

 

२. मानसिक विकास पर प्रभाव:-

बालक अपने पास पड़ोस मोहल्ले और खेल के मैदान में पर्याप्त समय व्यतीत करता है और इसे प्रभावित भी होता रहता है जिसका अच्छा या बुरा प्रभाव उसके मानसिक विकास पर पड़ता है।

शिक्षक ऐसे वातावरण को ध्यान में रखकर बच्चे के मानसिक विकास को बढ़ा सकता है।

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३. बुद्धि पर प्रभाव:-

बुद्धि के विकास में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का प्रभाव अधिक पड़ता है। शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि में प्रशंसनीय योगदान देते हैं। बाल सुधार ग्रह के बच्चे भी पढ़ लिख कर अच्छे इंसान बन जाते हैं।

मानव तस्करी ट्रैफिकिंग की शिकार दाई का काम करने वाली लड़कियां शिक्षा का उत्तम वातावरण पाकर पढ़कर अपने पैरों में खड़ी हो जाती है।

इस बात की जानकारी रखने वाले शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने का प्रयास कर सकता है।

 

४. व्यक्तित्व पर प्रभाव:-

व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम से कई गुणा अधिक प्रभाव वातावरण का  पड़ता है

अनाथालय की किसी बच्चे को संपन्न या समृद्ध माता-पिता गोद में लेते हैं तो उत्तम वातावरण के कारण ऐसे बच्चे अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके ऊंचे ऊंचे पदों को प्राप्त कर लेते हैं।

शिक्षक शिक्षा के उत्तम वातावरण का निर्माण करके बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहयोग दे सकते हैं।

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५. संस्कृति पर प्रभाव:-

संस्कृतिक वातावरण की विभिनता के कारण व्यक्ति के आचरण रहन सहन खानपान आदर्शों और मान्यताओं में अंतर होता है जैसे विभिन्न संस्कृतिक वातावरण के कारण ही हिंदू एवं मुस्लिम समाज में अनेक विभिन्नताएं पाई जाती हैं जैसे एक ही माता-पिता की दो संतानों को अलग-अलग देशों में रख दिया जाए तो दोनों की संस्कृति में अंतर आ जाता है।

 

६. योग्यताओं पर प्रभाव:- 

अनुकूल वातावरण में जीवन का विकास होता है और व्यक्ति उन्नति की ओर बढ़ता है और प्रतिकूल वातावरण में व्यक्ति जीवन में संघर्षों का सामना करना पड़ता है।

इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचियां प्रवृत्तियों और क्षमताओं के अनुकूल वातावरण प्रदान करके उनमें विशिष्ट योग्यताओं का विकास कर उन्हें उन्नति की ओर बढ़ने में सहायता दे सकता है।

 

७. भावनाओं का प्रभाव:-

यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वातावरण का बालकों के भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है जैसे वैसे परिवार जहां हमेशा लड़ाई झगड़ा होते हैं वहां के बच्चे क्रोधी और झगड़ालू हो जाएंगे वही खुशहाल परिवार के बच्चों में प्रेम और भाईचारा की भावना विकसित होगी।

अतः शिक्षक बच्चों के वातावरण का ज्ञान करके ऐसे वातावरण का निर्माण करने में सहयोग दे सकता है जिससे बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो सके।

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८. चरित्र पर प्रभाव:-

वातावरण ही निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा चरित्रवान या चरित्रहीन देश प्रेमी या देशद्रोही बनेगा। इस तथ्य पर मनन करने वाले शिक्षक उचित वातावरण का सृजन करके बच्चों के विकास की उचित दिशा का निर्धारण कर सकते हैं

९. स्वस्थ पर वातावरण का प्रभाव :

एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण में रहना बालक के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। शुद्ध वातावरण में रहने से उनका शारीरिक विकास सुचारु रूप से होता है और उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहित किया जाता है।

१०. शिक्षा के अवसर पर प्रभाव : 

एक पर्यावरण जहां शिक्षा के अवसर उपलब्ध होते हैं, वहां बालक के विकास को बढ़ावा मिलता है। अच्छे शिक्षा संसाधन, स्कूलों की उपस्थिति और अध्यापकों की गुणवत्ता उन्हें सही दिशा में प्रगति करने में मदद करती हैं।

११. सामाजिक वातावरण पर प्रभाव : 

सही सामाजिक वातावरण में रहना बालक के व्यक्तित्व और सामाजिक सम्बंधों को प्रभावित करता है। सही वातावरण में रहकर वे सामाजिक कौशल विकसित करते हैं, सहयोग करते हैं और सामाजिक जीवन के नियमों को समझते हैं।

१२. प्रेरणा और सृजनशीलता पर प्रभाव :

संगीत, कला, और साहित्य में समृद्ध वातावरण में रहकर बालक को प्रेरित किया जा सकता है। उन्हें सृजनशीलता के अवसर मिलते हैं और वे नए विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रेरित होते हैं।

१३. सामरिक विकास पर प्रभाव : 

खेल और खेलों के अवसर वाले वातावरण में रहकर बालक का सामरिक विकास होता है। खेलने से उनकी शारीरिक क्षमता और संतुलन सुधारते हैं, जो उन्हें आत्मविश्वास देता है और उन्हें एक स्वस्थ जीवनशैली के मार्ग पर ले जाता है।

१४. नैतिक मूल्यों का विकास पर प्रभाव : 

अच्छा वातावरण नैतिक मूल्यों के विकास को प्रोत्साहित करता है। सही मूल्यों और नैतिकता के माध्यम से बालक अच्छे नागरिक बनते हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

१५. भाषाई विकास पर प्रभाव:

बालक के भाषाई विकास के लिए एक अच्छे वातावरण का होना भी आवश्यक हैं  बालक जैसे वातावरण में रहता हैं वैसे ही उसकी  भाषाई विकास तीव्र या धीमा होता है। बालक के भाषाई  विकास के लिए सबसे उत्तम उसका परिवेश ही होता है बालक अनुकरण के माध्यम से भाषा सीखता है अतः बालक के भाषाई विकास के लिए अच्छे  होना आवश्यक है।

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