जेंडर शिक्षा में संस्कृति की भूमिका (gender shiksha mein sanskriti ki bhumika)

जेंडर शिक्षा में संस्कृति की भूमिका (gender shiksha mein sanskriti ki bhumika), लैंगिक विभेद में को दूर करने में संस्कृति की भूमिका(gender shiksha mein sanskriti ki bhumika)

संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा


संस्कृति के अर्थ को विभिन्न रूपों में लिया गया है। संस्कृति शब्द का अर्थ संस्कारों से भी है जिसमें अच्छे विचार तथा व्यवहार का समन्वय मिलता है। संस्कृति शब्द को अंग्रेजी में culture कहते हैं जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के cultra से हुई है जिसका अर्थ है नवीन सृजन तथा व्यवहारों का विकास।
संस्कृति मानव द्वारा निर्मित रहन-सहन, खान-पान, भाषा, साहित्य, कला, संगीत, नृत्य, धर्म आदि है। अतः हम कह सकते हैं कि संस्कृति समाज के जीवन पद्धति पर आधारित है।

जेंडर शिक्षा में संस्कृति की भूमिका (gender shiksha mein sanskriti ki bhumika)

संस्कृति की परिभाषा

A.k.c. ottaway:

“किसी समाज की संस्कृति का अर्थ उस समाज की संपूर्ण जीवन पद्धति से है।”

व्हाइट के अनुसार

“संस्कृति एक प्रतीकात्मक निरंतर संचयी और प्रगतिशील प्रक्रिया है।”

Maciver and page

“संस्कृति हमारे रहन-सहन की विधियां और विचारों हमारे दैनिक कार्य कला, साहित्य, धर्म और आमोद-प्रमोद के साधनों में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।”

 

संस्कृति की विशेषता

संस्कृति एक जटिल प्रक्रिया है


संस्कृति की विशेषता है कि वह जटिलता से परिपूर्ण है क्योंकि इसमें विभिन्न समाज के रीति-रिवाज, कला, नियम आदि सम्मिलित होते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति की आदतें एवं योग्यताएं भिन्न-भिन्न होती है इसलिए संस्कृति को एक जटिल प्रक्रिया माना जाता है।

यह एक सामाजिक वस्तु है


संस्कृति का अस्तित्व समाज के बिना संभव नहीं है इसलिए संस्कृति व्यक्तिगत वस्तु न होकर एक सामाजिक वस्तु है। क्योंकि संस्कृति को समाज के लोग आपस में मिलकर संग्रहित करते हैं तथा लोग उसका अनुसरण तथा अनुपालन अपने जीवन को व्यतीत करते हुए करते हैं।

संस्कृति का हस्तांतरण तथा विकास होता है


जिस प्रकार से शिक्षा औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के होते है ठीक उसी प्रकार संस्कृति की शिक्षा भी औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की होती है। शिक्षा के द्वारा ही संस्कृति का स्थानांतरण तथा विकास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होता है। इस प्रकार संस्कृति का स्थानांतरण तथा विकास होता रहता है।

संस्कृति मानव समाजों में पाई जाती है


संस्कृति की अवधारणा मानव समाज में ही पाया जाता है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो रीति-रिवाज परंपरा तथा नियमों में बांधा हुआ है। इस प्रकार मनुष्य को सभ्य बनाने में संस्कृति का बहुमूल्य योगदान है।

संस्कृति गतिशील है


संस्कृति गतिशील होती हैं इसमें निरंतर परिवर्तन होते रहता है। संस्कृति अन्य संस्कृतियों से आकर्षित होता रहता है जिसके फलस्वरूप संस्कृतियों में परिवर्तन होता आ रहा है।

संस्कृति धरोहर है


प्रत्येक समाज की अपनी एक संस्कृति होती है जिसे वह संरक्षित करके रखता है। संस्कृति नदलातो को समाज आसानी से स्वीकार नहीं करता क्योंकि संस्कृति प्रत्येक समाज की अनमोल धरोहर है क्योंकि संस्कृति नष्ट हो जाएगी तो लोगों में संस्कार तथा अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।

संस्कृति व्यक्तित्व के विकास तथा समाजीकरण में सहायक


संस्कृति के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास करता है संस्कृति रीति-रिवाज, नियमों, परंपराओं आदि से अवगत कराता है जो संस्कृति की प्रमुख विशेषता है यही संस्कृति व्यक्ति को सामाजिक बनाता है तथा व्यक्तित्व का विकास करता है।

जेंडर शिक्षा में संस्कृति की भूमिका (gender shiksha mein sanskriti ki bhumika),लैंगिक विभेद में को दूर करने में संस्कृति की भूमिका

सांस्कृतिक मूल्यों का विकास


लैंगिक शिक्षा हेतु सांस्कृतिक मूल्यों के विकास का बहुत महत्व है। हम देखते हैं कि हमारी संस्कृति में बाहरी संस्कृतियों का भी प्रभाव पड़ रहा है। जिससे हमारी संस्कृति प्रभावित हो रही है। हमें अन्य संस्कृतियों का भी आदर सम्मान करना चाहिए तथा उनसे उतना ही ग्रहण करना चाहिए जिससे हमारी संस्कृति को प्रभावित न हो। वर्तमान में अन्य संस्कृतियों से प्रभावित होकर लैंगिक भेदभाव देखने को मिलता है। परंतु ऐसे में भारतीय समाज को यह बताना होगा कि प्राचीन समय में स्त्रियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था वह पुरुषों के सम्मान ही शिक्षा, अस्त्र-शास्त्र चलाना, पूजा-पाठ आदि कार्यों में शामिल होती थी। एक स्वस्थ संस्कृतिक मूल्यों के विकास में बेटा-बेटी दोनों ही एक समान होते हैं।

नयनीयता तथा उदारता की शिक्षा


संस्कृति एक जटिल प्रक्रिया है। कभी-कभी संस्कृति में अन्य संस्कृतियों को भी शामिल किया जाता हैं तो अन्य संस्कृतियों के प्रति घृणा की दृष्टि न कर उनका आदर और सम्मान करना एक अच्छे संस्कृति की पहचान है। संस्कृति को नयनीयता एवं उदार होना चाहिए क्योंकि संस्कृति में कभी-कभी अन्य संस्कृतियों के तत्व शामिल हो जाती हैं जिसके प्रति नयनीता और उदार भाव रखना आवश्यक है। शिक्षा के द्वारा यही नयनीय और उदार भाव संस्कृति में व्याप्त बुराइयों एवं कुरीतियों को जड़ से खत्म करने लिंगीय भेदभाव को समाप्ति करने में संस्कृति अहम भूमिका निभाता है तथा स्त्री और पुरुष दोनों को सम्मान मानता है।

गतिशीलता


लैंगिक भेदभाव की शिक्षा देने के लिए संस्कृति में गतिशीलता का होना आवश्यक है। अगर संस्कृति गतिशील नहीं होगी तो समय-समय पर जो बुराइयां एवं कुरीतियां आ जाती है वे कभी भी दूर नहीं होगी। इसी प्रकार के एक बुराई हैं लैंगिक भेदभाव जिसमें लड़का-लड़की के बीच भेद-भाव किया जाता है इसे संस्कृति के द्वारा समाप्त किया जा सकता है। संस्कृति ही शिक्षा दे सकता है कि स्त्री पुरुष दोनों सभी जगह सभी क्षेत्रों में समान है और दोनों की सहभागिता से ही एक स्वस्थ समाज का निर्माण तथा उन्नति करते है।

चरित्र निर्माण तथा नैतिकता


संस्कृति ही सभी का चरित्र निर्माण तथा नैतिकता का विकास करता है। जिस संस्कृति में चरित्र निर्माण और नैतिकता का महत्व होता है वहां सभी प्रकार की बुराईयों का अंत हो जाता है। आदर्श चरित्र तथा नैतिकता भ्रूण हत्या, अभद्र भाषा आदि का प्रयोग कभी भी नहीं करेगा तथा स्त्रियों के मान सम्मान पर बल देगा। तथा लैंगिक भेद-भाव को समाप्त करने का प्रयास करेगा।

स्वाभाविक शक्तियों का विकास


संस्कृति ही ऐसी कृति है जो शक्तियों के स्वाभाविक शक्तियों का विकास करता है संस्कृति को ऐसे अवसर देनी चाहिए जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से भाग ले। विभिन्न संस्कृति आयोजन में दोनों को सदा अपने में छोड़ देना चाहिए। ताकि वे अपने स्वाभाविक शक्तियों या गुणों को दर्शा सकें। जिससे दोनों की मदन्ता का सम्मान हो। जिससे लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने हेतु संस्कृति की अहम भूमिका होती है।

सामाजिक नियंत्रण


संस्कृति सामाजिक नियमों तथा रीति-रिवाजों का मार्गदर्शन तथा नियंत्रण का कार्य करता है। लैंगिकता हेतु शिक्षा में संस्कृति का कार्य समाजिक नियंत्रण से है क्योंकि समाज का नियंत्रण स्थापित होगा तो लिंगीय भेदभाव जैसी कुप्रथा को समाप्ति हो जाएगी जिससे स्वस्थ समाज की स्थापना होगी तथा स्त्रियों की स्थिति में सुधार होगा।

Very Important notes for B.ed.: बालक के विकास पर वातावरण का प्रभाव(balak par vatavaran ka prabhav) II sarva shiksha abhiyan (सर्वशिक्षा अभियान) school chale hum abhiyan II शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारक II किशोरावस्था को तनाव तूफान तथा संघर्ष का काल क्यों कहा जाता है II जेंडर शिक्षा में संस्कृति की भूमिका (gender shiksha mein sanskriti ki bhumika) II मैस्लो का अभिप्रेरणा सिद्धांत, maslow hierarchy of needs theory in hindi II थार्नडाइक के अधिगम के नियम(thorndike lows of learning in hindi) II थार्नडाइक का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत(thorndike theory of learning in hindi ) II स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, आधारभूत सिद्धांत II महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार, शिक्षा का उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शैक्षिक चिंतान एवं सिद्धांत II  

Leave a Comment