थार्नडाइक के अधिगम के नियम ।। thorndike lows of learning in hindi ।। thorndikes law of learning ।। थार्नडाइक के सीखने के नियम ।।थार्नडाइक के सीखने का नियम ।।thorndike ke adhigam ke niyam ।।
थार्नडाइक का जन्म अमेरिका में 1874 ईस्वी में हुआ था। थार्नडाइक अधिगम से संबंधित सिद्धांत दिए थे इनके द्वारा दिए गए सिद्धांत से अनेक मनोवैज्ञानिकों को अधिगम को समझने में सहायता मिलेगी।इन्होंने पशुओं पर प्रयोग कर अधिगम के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया इसलिए इसे पशु मनोवैज्ञानिक का पितामह भी कहा जाता है।thorndike ने जितने भी प्रयोग किये वे बिल्ली तथा चूहे पर किया। इनके द्वारा दिए गए सिद्धांत को उद्दीपन अनुक्रिया के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है थार्नडाइक का मृत्यु 1949 ई में हुआ।
थार्नडाइक में अधिगम की क्रिया में प्रभाव को अत्याधिक महत्व दिया है उद्दीपन का प्रभाव प्राणी पर पड़ता है। उद्दीपन के कारण ही वह किसी क्रिया को सीखता है। इनका मानना है कि जिस प्राणी या व्यक्ति को कोई भी कार्य उपयोगी लगता है तो उसे उस कार्य को सीखने में रूचि दिखाता है उनके द्वारा अनेक प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर थार्नडाइक ने दो नियमों की रचना की हैं जो इस प्रकार है-
|
thorndike lows of learning |
१. मुख्य नियम (थार्नडाइक के मुख्य नियम)
मुख्य नियम के अंतर्गत तीन नियम आते हैं-
i. तत्परता का नियम :
थार्नडाइक का यह नियम हमें यह बताता है कि जब कोई प्राणी किसी भी कार्य को करने के लिए तैयार होता है या उस कार्य को करने में उसे आनंद आता है तो उस कार्य को वह जल्दी ही कर लेता है तथा जिस कार्य को करने में उसे रुचिपूर्ण नहीं लगता उस कार्य को करने में उसका मन नहीं लगता तथा वह उस कार्य को कर नहीं पाता। कभी-कभी व्यक्ति के सीखने की इच्छा ना होने पर भी डर के मारे वह उस कार्य को करने तो लगता है पर उसे सीख नहीं पाता। जैसे कोई बालक माता-पिता के डर से पढ़ने तो बैठ जाता है पर वह पढ़कर भी सीख नहीं पाता जब तक की उसका मन ना लगे। 6 माह के शिशु को चला ना इसलिए नहीं सिखाया जा सकता कि वह शारीरिक रूप से चलने के लिए प्रस्तुत नहीं है। फिर भी उसे पकड़ के चला तो सकते हैं। फिर भी वह उसे कर नहीं पाता। अतः थार्नडाइक के इस नियम का आधार परिपक्वता भी है।
ii. अभ्यास का नियम:
थार्नडाइक(thorndike) के नियम के अनुसार किसी कार्य को बार-बार करने या दोहराने से वह उसे जल्दी ही सीख जाता है या याद कर लेता है लेकिन उसे छोड़ देने पर उसे भूल भी जाता है। इस प्रकार या नियम प्रयोग करने तथा ना करने पर आधारित होता है जैसे छोटे बच्चों को पहाड़ा याद कराने के लिए उन्हें बार-बार दोहराने की आवश्यकता होती है बालक बार-बार अभ्यास कर पहाड़ा याद कर लेता है लेकिन उस अभ्यास का उपयोग ना करने पर उसे भूल भी जाता है इसलिए यह नियम बताता है कि अभ्यास के साथ-साथ उसे कार्य में भी लगातार लाना चाहिए तभी सही मायने में अधिगम होगा इस नियम के आधार पर साइकिल चलाना, टाइपिंग करना, संगीत आदि सीखा जा सकता है। बालकों के लिए मौखिक अभ्यास, पुनर्निरीक्षण तथा वाद विवाद करते रहने से उनके अधिगम में वृद्धि होती है। थार्नडाइक द्वारा इस नियम को दो भागों में बांटा गया है उपयोग का नियम अनुपयोग का नियम।
iii. प्रभाव का नियम:
थार्नडाइक का यह नियम बताता है कि जिन कार्यों को करने से व्यक्ति को संतोष मिलता है उससे वह बार-बार करता है। तथा जिन कार्यों से असंतोष मिलता है उन्हें वह नहीं करना चाहता। या जिस कार्य को करने से व्यक्ति को कष्ट होता है और दुखद फल प्राप्त होता है उसे व्यक्ति नहीं दोहराता है। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति उसी कार्य को सीखता है जिससे उसे कुछ लाभ मिले हानि न हो है तथा उसे करने में संतोष की प्राप्ति होता है संक्षेप में जिस कार्य के करने से उसे पुरस्कार मिलता है उसे सीखता हैं और जिस कार्य के करने से कष्ट या दंड की प्राप्ति होती है उसे वह नहीं सीखना चाहता।
२. गौण नियम (थार्नडाइक के गौण नियम)
गौण नियम के अंतर्गत पांच नियम आते हैं-
i. बहु-प्रतिक्रिया का नियम:
अधिगम की उद्दीपन के फलस्वरूप अनेक अनुक्रियायें () या प्रतिक्रियायें होती है। सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि जब व्यक्ति के सामने कोई समस्या आती है तो वह उसे सुलझाने के लिए विभिन्न तरह के तरकीब या क्रियाएं करने लगता है और वह तब तक करता रहता है जब तक कि उसे सही अनुक्रिया की प्राप्ति न हो जाए। असफल होने पर व्यक्ति को हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि एक के बाद एक उपाय करके उस समस्या का सामना करना चाहिए तभी सफलता मिलेगी यह नियम प्रयास एवं त्रुटि पर आधारित है।
इस नियम का मूल, अभ्यास का नियम है। अध्यापक छात्रों को दी गई परिस्थिति अथवा उद्दीपन से अनेक प्रकार की अनुक्रियाएं प्राप्त करता है और सही अनुक्रिया का चयन करता है। किसी विषय का आरंभ करने से पूर्व छात्रों से समस्या से संबंधित प्रश्न है किए जाते हैं। छात्र अनेक उत्तर देते हैं ये उत्तर अनेक होते हैं। इन उत्तरों में व्यर्थ के उत्तर कम होते जाते हैं। छात्राध्यापक की सहायता से सही उत्तर देने लगते हैं। इसमें शिक्षक द्वारा छात्रों को मार्ग प्रदर्शन दिया जाता है।
ii. मानसिक स्थिति का नियम:
इस नियम का संबंध अधिगम की मानसिक स्थिति से है। यह नियम तत्परता के नियम का अंश है। यह नियम इस बात पर बल देता है कि बाह्य स्थिति की ओर प्रतिक्रियायें व्यक्ति की मनोवृत्ति पर निर्भर करती हैं। यदि व्यक्ति मानसिक रुप से सीखने के लिए तैयार है तो नवीन क्रिया को आसानी से सीख लेगा और यदि वह मानसिक रूप से तैयार नहीं है तो वह उस कार्य को नहीं सीख पयेगा।
इस बात को ध्यान में रखकर यदि छात्र मानसिक रूप से किसी क्रिया को सीखने के लिये तैयार नहीं है तो वे नवीन कार्य तथा तत्संबंधी क्रिया को नहीं सीख सकेंगे। अध्यापक को नवीन ज्ञान देते समय छात्रों को मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से तैयार कर देना चाहिए जिससे अधिगम की क्रिया सफलतापूर्वक संपन्न की जा सके।
iii. आंशिक क्रिया का नियम या तत्वों की पूर्व सामर्थ्य:
अधिगम का तीसरा गो नियम तत्वों की पूर्व सामर्थ्य है। सीखने वाला अधिगम या समस्या के विभिन्न तत्वों में से वास्तविक तत्वों का चयन करने में समर्थ होता है। व्यक्ति किसी समस्या को हल करने के लिए आवश्यक पदों का चयन करता है तथा अनुक्रिया करता है इस नियम के अंतर्गत अधिगम की क्रिया को जीवन के साथ जोड़ा गया है।
पाठ को छोटी छोटी इकाइयों में विभाजित करके पढ़ाना आंशिक क्रिया का नियम पर आधारित है। व्यक्ति किसी समस्या के आ जाने पर उसके अनावश्यक या बेकार चीजों को छोड़कर उसके मूल तत्वों पर अपनी अनुक्रिया केंद्रित कर लेता है।
iv. समानता का नियम (आत्मसात):
अधिगम का चौथा गौण नियम है समानता का नियम या आत्मसात। इस नियम के अनुसार व्यक्ति अपने नवीन परिस्थितियों की तुलना पूर्व परिस्थितियों से की जाती है। व्यक्ति नई परिस्थिति या ज्ञान का ग्रहण पूर्व अर्जित ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर करता है। इस नियम का आधार पूर्व अनुभव तथा पूर्व ज्ञान है। पढ़ाते समय विषय की समानता तथा असमानता का जीवन से संबंध बताना आवश्यक है। पढ़ाई के विषयों का संबंध दैनिक जीवन की क्रियाओं से जोड़ने पर पाठ का सात्मीकरण हो जाता है और बालक उसे अच्छी तरह सीख लेते हैं।
v. सहचार्य परिवर्तन का नियम:
अधिगम के गौण नियम का अंतिम या पांचवा नियम सहचार्य परिवर्तन का नियम है इस नियम के अंतर्गत प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य परिस्थितियों में किया जाता है। ऐसा कभी होगा जब अध्यापक छात्रों के समक्ष वैसी परिस्थिति रखेगा। यदि किसी अनुप्रिया को उद्दीप्त परिस्थिति में परिवर्तनों की श्रृंखला के संपर्क में रखा जाता है। इससे पूर्णतः नवीन उद्दीपन का जन्म हो जाता है।थार्नडाइक का बिल्ली को मछली के टुकड़े के साथ खड़ा होना सिखाना। दैनिक जीवन में हम एक चुटकी बजाकर पालतू कुत्ते को खड़ा होना सिखा देते हैं। लेखक की मोटरसाइकिल की आवाज सुनकर उसकी पाली हुई बिल्ली घर से निकल कर गली में आ जाती है।
Tage : थार्नडाइक के नियम, थार्नडाइक के गौण नियम, thorndike ke god niyam,thorndike ke niyam in hindi,thorndike ke mukhya niyam,thorndike ke adhigam ke niyam,thorndike ke gaun niyam ,थार्नडाइक के सीखने के नियम,थार्नडाइक के सीखने का नियम,थार्नडाइक के अधिगम के नियम,
Post Views: 1,162