थार्नडाइक का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत ।। थार्नडाइक का सिद्धांत ।। thorndike trial and error theory in hindi।। s-o-r theory in hindi।।thorndikeka uddipan anukriya siddhant।।
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आप ने इसे पढ़: थार्नडाइक का नियम
थार्नडाइक का उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धांत अधिगम के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण है। थार्नडाइक का यह सिद्धांत 1913 में प्रतिपादित हुआ। थार्नडाइक ने इस सिद्धांत का उल्लेख अपने प्रसिद्ध पुस्तक ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ में किया था। थार्नडाइक की मान्यता थी कि प्रत्येक अनुक्रिया के पीछे किसी न किसी उद्दीपन का हाथ होता है। सीखने की परिस्थिति में अनेक तत्व होते हैं। इनमें से एक तत्व या अनेक तत्व मिलकर उत्तेजक का कार्य करते हैं। ये उत्तेजक या उद्दीपन प्राणी पर अपना प्रभाव डालते हैं जिसके परिणाम स्वरूप प्राणी एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया से संबंध स्थापित हो जाता है। इसी संबंध को उद्दीपन अनुक्रिया के द्वारा प्रकट किया जाता है। यह संबंध इतना प्रबल होता है कि भविष्य में जब भी इस उद्दीपन की पुनरावृति होती है तो प्राणी इस उद्दीपन से संबंधित अनुक्रिया करने लगता है। इन संबंधों यह संयोगों का रूप इतना मजबूत हो जाता है कि thorndike ने इनके लिए बंध(Bond) का प्रयोग किया है। और इसलिए इस सिद्धांत को बंध सिद्धांत(Bond Theory) भी कहा जाता है। कुछ लोगों ने इस सिद्धांत को कुछ अन्य नाम भी दिए हैं thorndike theory of learning
१. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत या प्रयास एवं त्रुटि सिद्धांत (Trial and Error Theory)
२. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत (Stimulus Response Theory)
३. सीखने संबंधों का सिद्धांत (Bond Theory of learning)
४. संबंधवाद का सिद्धांत (Theory of Connectionism)
५. अनुबंधन का सिद्धांत
६. सिद्धांतवाद का सिद्धांत
७. एस-आर थ्योरी या S-R Theory (Stimulus-Response Theory)
८.संयोजनवाद का सिद्धांत
सीखने के सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप को थार्नडाइक ने प्रयास एवं त्रुटि द्वारा अधिगम बताया। प्राणी किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए काफी प्रयत्न करता है तथा इस प्रकार वह बार-बार गलतियां करता है तथा समय भी काफी लगता है। बार-बार प्रयास करने पर वह सफल तथा असफल एवं व्यर्थ की क्रियाओं को छोड़ना चाहता है अंत में एक स्थिति ऐसी आ जाती है प्राणी के हर बार के प्रयास के साथ उनकी त्रुटियों की संख्या भी कम होती चली जाती हैं और अंततः वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कम समय में ही सफलता प्राप्त कर लेता है। thorndike ने अपने इस सिद्धांत का प्रयोग बिल्ली और चूहे पर किया था। थार्नडाइक ने भूखी बिल्ली को जिस पिंजरे पर रखा था उस पिंजरे को पजल बॉक्स(Pazzle box) के नाम से जाना जाता है। thorndike का यह सिद्धांत संबंधवाद के अन्तर्गत आता है। thorndike theory of learning
थार्नडाइक का प्रयोग(thorndike ka prayog in hindi)
अपने इस सिद्धांत की पुष्टि के लिए थार्नडाइक ने बिल्लियों के ऊपर कई प्रयोग किए हैं एक प्रयोग में उसने एक भूखे बिल्ली को एक जालीदार पिंजरे में बंद कर दिया। इस पिंजरे का दरवाजा इस प्रकार लगाया गया था कि उसकी चिटकनी दबने पर दरवाजा खुल जाता था। इस पिंजरे के बाहर मछली का टुकड़ा एक प्लेट में रख दिया गया। मछली का वह टुकड़ा बिल्ली के लिए उद्दीपक का कार्य करता है मछली का टुकड़ा पिंजरे के जाली में से बिल्ली को दिखाई देता था भूखी बिल्ली उस मछली को देखकर व्याकुल(अनुक्रिया) हो गए और उसने उसे खाने के लिए बाहर निकलने का प्रयास शुरू कर दिए। पिंजरे की स्थिति को न जाने के कारण बिल्ली इधर-उधर हाथ-पैर मारती, कभी वह दरवाजे को अपने पंजों से खरोचती और कभी हिल सकने वाली वस्तुओं को धक्का देती। संयोग वश उसका पंजा चिटकनी पर पड़ गया। बिल्ली ने बाहर आकर मछली के टुकड़ों को खाकर अपनी भूख मिटाई। थार्नडाइक ने यह प्रयोग बिल्ली पर कई बाद दोहराया। हर बार दरवाजा खोलने में होने वाली त्रुटियों की संख्या कम होती गई। अंत में एक ऐसी स्थिति आ गई कि जब बिल्ली बिना किसी त्रुटि किए प्रथम प्रयास में ही दरवाजा खोलने में सफल हो गई और इस प्रकार उत्तेजक और प्रतिक्रिया में संबंध स्थापित हो गया तथा बिल्ली पिंजरे का दरवाजा खोलना सीख गई।
थार्नडाइक का दूसरा प्रयोग:
थार्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व
१. यह सिद्धांत अभ्यास की क्रिया पर आधारित है जिससे सीखा गया कार्य स्थायी बनता है।
२. इस सिद्धांत के अनुसार बालक को लक्ष्य तो मालूम होता है लेकिन वहां तक पहुंचने का मार्ग या सही तरीका उसे मालूम नहीं होता। विभिन्न प्रयासों के द्वारा वह लक्ष्य प्राप्ति का सही तरीका मालूम करता है जिससे उसमें आत्म निर्भर और आत्मविश्वास के गुणों का विकास होता है। जो बालक को भावी जीवन की समस्याओं से लड़ने के लिए तैयार करता है।
३. इस सिद्धांत में निरंतर प्रयास करते रहने से निम्न बुद्धि स्तर वाले विद्यार्थी भी अच्छा प्रदर्शन करने लगते हैं एवं किसी भी पाठ को बार-बार प्रयास या त्रुटि करने से जल्दी ही सीख जाते हैं।
४. इस सिद्धांत के द्वारा बालक आशावादी और असफलता में सफलता देखने वाला होता है।
५. यह सिद्धांत निरंतर प्रयास पर बल देता है।
६. इस सिद्धांत के आधार पर स्पष्ट होता है कि बालकों को अभ्यास का अधिकाधिक अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
७.थार्नडाइक का यह सिद्धांत करके सीखने (Learning by doing) पर अधिक बल देता है।
८. इस सिद्धांत के द्वारा यह भी स्पष्ट होता है कि बालकों के सिखाने के लिए उनके व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
थार्नडाइक के सिद्धांत की आलोचना
थार्नडाइक द्वारा किया गया प्रयोग से अनेक मनोवैज्ञानिकों को अधिगम को समझने में सहायता मिली वही उनके सिद्धांतों की आलोचनाएं भी हुई। थार्नडाइक के सिद्धांत की आलोचना के कुछ प्रमुख आधार इस प्रकार हैं-
१. व्यर्थ के प्रयत्नों पर बल:
कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि थार्नडाइक जिस अधिगम के बारे में बातें कर रहे हैं वह व्यर्थ के प्रयत्नों पर अधिक बल दे रहे हैं ऐसी क्रियाएं जिन्हें एक बार में ही अधिगम (सीखा) जा सकता है वहां समय अधिक लग रहा है या समय की बर्बादी हो रही है
२.विवरणात्मक:
कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि थार्नडाइक द्वारा दिया गया सिद्धांत समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं करता। बल्कि अधिगम का विवरण मात्र प्रस्तुत करता है। इनका कहना है कि यह केवल किसी भी कार्य को किस प्रकार सीखते हैं यही बतलाता है परंतु क्यों सीखते हैं इसके विषय में नहीं बदलाता।
३. यांत्रिक:
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मानव किसी भी कार्य को अपने विवेक एवं चिंतन शक्ति के आधार पर ही करता है लेकिन थार्नडाइक द्वारा दिया गया सिद्धांत यांत्रिक है और मनुष्य मशीन जैसे कार्य नहीं करता।
४. रटने पर बल:
थार्नडाइक का यह सिद्धांत रटने पर बल देता है और रटने का प्रभाव क्षणिक होता है और भावी जीवन पर उसका प्रभाव नहीं पड़ता।
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