रेडियो नाटक क्या है तथा रेडियो नाटक कैसे बनता है Kaise Banta Hai Radio Natak

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रेडियो नाटक क्या है तथा रेडियो नाटक कैसे बनता है Kaise Banta Hai Radio Natak

रेडियो श्रव्य माध्यम है। और दृश्य काव्य के अंतर्गत आता है। श्रव्य माध्यम के अंतर्गत श्रव्य काव्य के अंतर्गत आने वाले नाटक का प्रसारण कैसे हो सकता है ? यह बाद का प्रश्न है। ऐसे नाटक की रचना कैसे होगी यह पहला प्रश्न है? नाटक का रंगमंच से सीधा संबंध है लेकिन रेडियो नाटक रंगमंच के लिए या मंचन लिए नहीं लिखा जाता। श्रव्य माध्यम पर श्रोताओं के लिए इस नाटक का प्रसारण होता है। यह दृश्य से वंचित हो जाता है और भी बहुत कुछ इसकी परिधि में नहीं आ सकता।

मंचीय नाटक रंगमंच पर अभीहित होता है और केन्द्र में दर्शक होते हैं। दर्शकों के लिए लोकरंजन की व्यवस्था नाटक के तत्वों और उपकरणों के माध्यम से की जाती है। घटना विन्यास ऐसा होता है कि कौतूहल बना रहे । तनाव का सृजन हो पात्रों का प्रभावशाली अभिनय हो सके। प्रकाश व्यपस्था और संगीत का अतिरिक्त योगदान होता है। प्रस्तुतिक्रम में निर्देशकीय परिकल्पना महत्वपूर्ण होती है लेकिन दर्शकों के सामने अभिनेता हो होता है। उसे त्वरित प्रतिक्रियाएँ मिलती है। इन्ही प्रतिक्रियाओं  के आधार पर नाटक सफल या असफल होता है। रंगमंच पर नाटक कई पात्रों और रंग व्यवस्थापको के माध्यम से प्रस्तुत होता है और दर्शकों को सामूहिक रूप से कलास्वादन का अवसर मिलता है।

मंचीय नाटक उल्लेख इसलिए किया गया कि रेडियो नाटक इससे कब, कितना और कैसे अलग है यह समझा जा सके।रेडियो नाटक मंच की सीमाओं से मुक्त नाटक है।


सिद्धनाथ  कुमार के अनुसार

दृश्य सीमाबद्ध है अदृश्य सीमाहीन । रेडियो नाटक अदृश्य है फलतः इसका क्षेत्र सीमाहीन है।

अदृश्य होने के परिणामसरूप रोडियो नाटक में जहां कुछ कमी रह जाती है वही इसी उन्मुक्त उड़ान की संभावनाएँ बन जाती है।ऊपर मंच के नाटक की बात की गई हैं। रंग अभिकल्प मंच तैयार करता है। नाटक की आवश्यकता के अनुरूप दृश्य कैसे रचा जाए कि कलात्मक भी हो और प्रभावशाली भी मंच सज्जा कार इसका ध्यान रखता है। इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि किसी प्रस्तुति के नाटक की संख्या अत्यधिक न हो इसके विपरीत रेडियो नाटक में दृश्य अतिकल्पना पर आधारित भी हो सकते हैं। फैन्टेसी या रम्यकल्पना रेडियो का प्रिय क्षेत्र है। आशय यह है कि मंच पर जैसे दृश्य दिखाई नहीं जा सकते
श्रव्य नाटक में ऐसे दृश्य बड़ी सहजता से सम्मिलित किए जा सकते हैं।

रेडियो नाटक क्या है? (What is Radio Drama in Hindi)

रेडियो नाटक एक श्रव्य माध्यम द्वारा प्रस्तुत नाट्य विधा है, जिसमें कोई दृश्य (Visual) नहीं होता, बल्कि केवल ध्वनि, संवाद, पृष्ठभूमि संगीत और ध्वनि प्रभावों (Sound Effects) के माध्यम से श्रोताओं को एक कहानी सुनाई और महसूस कराई जाती है। यह एक ऐसा कला रूप है, जो श्रोता की कल्पनाशक्ति को आधार बनाकर उसे नाटकीय अनुभव प्रदान करता है।

रेडियो नाटक को अंग्रेज़ी में “Radio Drama” या “Audio Play” भी कहा जाता है। यह नाटक विशेष रूप से रेडियो प्रसारण के लिए तैयार किए जाते हैं और उनका स्वरूप इस तरह से रचा जाता है कि श्रोता बिना किसी दृश्य के भी पूरी कहानी को समझ सके और उसमें भावनात्मक रूप से जुड़ सके।

रेडियो नाटक किसे कहते हैं

1. डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार:

“रेडियो नाटक ऐसा श्रव्य नाट्य है, जो केवल ध्वनि माध्यम से अपनी सम्पूर्ण प्रभावशीलता के साथ श्रोता को दृश्य की अनुभूति कराता है।”

2. प्रो. महावीर अग्रवाल के अनुसार:

“रेडियो नाटक वह नाट्य रूप है, जिसमें श्रवण योग्य तत्वों के माध्यम से पात्रों की स्थिति, भावनाएँ, घटनाएँ और वातावरण निर्मित किया जाता है।”

3. प्रो. रामनारायण त्रिपाठी के अनुसार:

“रेडियो नाटक एक ऐसा नाट्य रूप है, जिसमें अभिनय दृश्य न होकर श्रव्य होता है और जो पूरी तरह से श्रोताओं की कल्पना पर आधारित होता है।”

4. एडवर्ड पी. जॉन (Edward P. John) के अनुसार:

“A radio drama is a dramatized, purely acoustic performance, broadcast on radio or published on audio media.”

रेडियो नाटक का इतिहास (History of Radio Drama)

रेडियो नाटक की शुरुआत 1920 के दशक में हुई थी, जब दुनिया में रेडियो का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा था। सबसे पहला माने जाने वाला रेडियो नाटक 1924 में BBC द्वारा प्रसारित “Danger” था, जिसे Richard Hughes ने लिखा था।

भारत में रेडियो नाटकों की शुरुआत 1936 में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की स्थापना के साथ हुई। यह नाटक प्रारंभ में मुख्यतः मनोरंजन के लिए बनाए जाते थे, लेकिन बाद में इन्हें शिक्षा, समाज-सुधार, स्वास्थ्य जागरूकता, कृषि, महिला सशक्तिकरण आदि उद्देश्यों से भी जोड़ा गया।

आकाशवाणी द्वारा प्रसारित नाटकों में कई प्रसिद्ध नाटककारों जैसे विष्णु प्रभाकर, मोहन राकेश, शरद जोशी, अमृतलाल नागर आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of Radio Drama)

1. श्रव्य (Audio-Based) माध्यम:

रेडियो नाटक पूरी तरह से ध्वनि पर आधारित होता है। इसमें दर्शकों को कुछ दिखाई नहीं देता, इसलिए संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से ही पूरी कहानी प्रस्तुत करनी होती है।

2. संवादों की महत्ता:

रेडियो नाटक में संवाद न केवल पात्रों की बातें दर्शाते हैं, बल्कि वही दृश्य, मनोभाव और वातावरण का वर्णन भी करते हैं। इसलिए संवाद प्रभावशाली, स्पष्ट और अर्थपूर्ण होने चाहिए।

3. ध्वनि प्रभाव और संगीत:

रेडियो नाटक में वातावरण निर्माण के लिए पृष्ठभूमि संगीत और ध्वनि प्रभावों (जैसे दरवाज़ा खुलने की आवाज, बारिश, गाड़ी की आवाज, भीड़ की हलचल आदि) का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।

4. कल्पनाशक्ति की प्रेरणा:

रेडियो नाटक श्रोता की कल्पनाशक्ति को उत्तेजित करता है। वह अपनी कल्पना के बल पर पात्रों, दृश्यों और घटनाओं को अपने मस्तिष्क में चित्रित करता है।

5. समयबद्ध और संक्षिप्त:

अधिकांश रेडियो नाटक 15 मिनट से 60 मिनट के बीच ही होते हैं। इसलिए कहानी को प्रभावी ढंग से सीमित समय में समेटने की कला आवश्यक होती है।

रेडियो नाटक के तत्व (Radio Natak Ke Tatva) रेडियो नाटक कैसे बनता है 

इसके लिए 3 तत्वों का सहारा लिया जाता है।रेडियो नाटक में ये 3 तत्व महत्वपूर्ण है
● भाषा
●ध्वनि
●संगीत

इन तीनों के कलात्मक संयोजन से विशेष प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। भाषा केंद्र में है और या ध्यातव्य है कि भाषित शब्द की शक्ति लिखित सबसे अधिक होती है और शब्द प्रयोग ऐसे हो जिन का उच्चारण अभिनय संपन्न हो सके। यहां वाचिक अभिनय की ओर संकेत है। प्रसंग वश यहां उल्लेखनीय है कि अभिनय चार प्रकार का माना गया है-
१. अंगिक
२.आहार्य
३.सात्विक
४.वाचिक

केवल वाचिक अभिनय इस श्रव्य माध्यम पर हो सकता है।

   संगीत सामान्यता दृश्य परिवर्तन के लिए उपयोग में आता है। यह संवाद के बीच के अंतराल को भरने के लिए भी होता है। और नाटक की विषय वस्तु और कथ्य के अनुरूप वातावरण के निर्माण के लिए भी। यह वातावरण अदृश्य होता है इसलिए संगीत की आवश्यकता और भूमिका और बढ़ जाती है। शब्दों के माध्यम से तो वातावरण का सृजन होता ही है संगीत का योगदान भी विशिष्ट होता है। चिड़ियों का चहचहाना, सुबह का संकेतक होता है विविध भारतीय की सिगनेचर ट्यून से भी सुबह का आभास कराया जाता है । प्लेटफार्म का शोर गाड़ियों के हॉर्न की आवाज कांच का टूटना या तेज हवाओं का प्रभाव ध्वनि की विशेषताओं के माध्यम से उत्पन्न किया जाता है। भाषा संगीत और ध्वनि तीनों के समन्वित और कलात्मक प्रयोग से श्रोता की कल्पना शक्ति को जागृत करते हुए उसके मानस में दृश्य रचा जाता है। इस प्रकार के दृश्य की रचना श्रोता की कल्पनाशील ग्रहण क्षमता पर भी निर्भर है।
रेडियो नाटक के लेखन क्रम में रचनाकार अत्याधिक कल्पनाशील हो सकता है। उसके लिए कोई सीमा नहीं है, ना दृश्य की, ना समय की और ना स्थान की। इस प्रकार किसे नाटक के अनिवार्य पक्ष के रूप में देखा जाता है वह संकलनत्रय रेडियो नाटक के लिए महत्वपूर्ण नहीं रह जाता।

ऊपर कहा गया है कि रेडियो नाटक के लिए समय की कोई सीमा नहीं है। रचना के संदर्भ में या बात सही है लेकिन प्रसरण अवधि के संदर्भ में सही नहीं है। या माना जाता है कि श्रोताओं के ध्यान केंद्र की सीमा होती है। इसलिए सामान्यतः नाटक 30 मिनट की अवधी का हो बहुत लंबा ना हो।
कल्पना का तत्व महत्वपूर्ण है। कल्पना का महत्व तीन स्तरों पर आवश्यक उपयोगी और कलासृजन में सहायक है। ये तीन मुख्य स्तर है
१. नाटककार का रचनाकर्म
२. प्रस्तुतकर्ता की सृजनात्मकता
३. श्रोता की कल्पनाशीलता
श्रव्य नाटक सबसे पहले नाटक करके मानस के दृश्य रूप में घटित होता है। इसके बिना संवाद क्रम में दृश्य रचना नहीं की जा सकती दूसरा पक्ष प्रस्तुतकर्ता का है संगीत और ध्वनि प्रभाव का पक्ष इसमें शामिल है। प्रस्तुति क्रम में कैसे संगीत और कैसा ध्वनि प्रभाव अपेक्षित है। इसका चयन निर्धारण प्रस्तुतकर्ता के माध्यम से होता है। तीसरा पक्ष अनिवार्यतः श्रोता का है। उसकी कल्पनाशीलता के बिना वंचित प्रभाव का ग्रहण करना संभव नहीं।

    ध्वन्यांकन के क्रम में कई तरह की व्यक्तियों का सहारा लिया जाता है। प्रकारान्तर से यह माइक्रोफोन आवाज ध्वनि और संगीत का रचनात्मक उपयोग है जैसे पात्र का बोलते हुए माइक्रोफोन से दूर हट जाना ऐसा प्रभाव उत्पन्न करता है कि जैसे पात्र दूर या बाहर या कहीं और जा रहा हो। इसे फेड आउट कहा जाता है। इसके विपरीत हैं फेड इन। इसमें पात्र दूर से बोलते हुए माइक्रोफोन के निकट आता है।

       रेडियो नाटक के माध्यम से अनंत की यात्रा संभव है। जैसे देश या स्थान की कोई सीमा नहीं वैसे ही काल की भी सीमा नहीं। 30 मिनट के नाटक में शताब्दियों का अंकन हो सकता है। 1 ईसवी शताब्दी से अकबर के युग तक का सफर संवादों ध्वनि प्रभाव और संगीत के माध्यम से सहज संभव है।

     कम साधनों से अत्याधिक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता रेडियो नाटक में है।

सिद्धानाथ कुमार के अनुसार 

जिस चित्रण के लिए उपन्यासकार को अनेक पृष्ठों की आवश्यकता होती है जिन दृश्यों के लिए दृश्य नाटकों, यथार्थवादी रंगमंच, टीवी और फिल्म को अनेकानेक साधनों की अपेक्षा होती है। उन्हें श्रव्य नाटक न्यूनतम साधनों से चित्रित कर देता है एक वाक्य में कहे तो रेडियो नाटक मितव्ययी नाटक है।

    यह अन्य नाटकों की अपेक्षा गतिशील नाटक है जैसे ऊपर कहा गया है शताब्दियों का सफर संवाद के कुछ टुकड़ों के माध्यम से किया जा सकता है। दूर तक फैली धरती शब्दों के दायरे में है।
श्रव्य माध्यम का यह नाटक नाटक के कार्य व्यापार को मानस के धरातल पर बड़ी सहजता से उतार सकता है। इसके साथ ही से 2 दिशाओं में बड़ी संस्था से की जा सकता है। भाषा के माध्यम से शब्दों के धरातल से बाह्य दृश्य विधान तो होता ही है। आंतरिक मानसिक द्वंद के अंकन में भी उतना ही सफल होता है। यही कारण है कि इससे अंतर्मन का नाटक भी कहा जाता है।
मंच पर स्वागत कथन अटपटा और अस्वीकार्य लगता है। या कला अनुभूति और सौंदर्य अनुभूति का मार्ग और उद् करता है यही स्वागत कथन रेडियो नाटक में स्वाभाविक लगता है।

    व्यक्ति मन के अंकन के लिए मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में चेतना प्रवाह शैली अपनाई जाती है। रेडियो नाटक इस शैली का प्रभावशाली उपयोग करता है। इस शैली के अंतर्गत अतीत वर्तमान भविष्य किसी भी दिशा में यात्रा संभव है।

    जिन रचनाकारों ने रेडियो नाटक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है। उनमें से कुछ ये है- सिद्धनाथ कुमार, उदय शंकर भट्ट, भगवतीचरण वर्मा, गिरिजाकुमार माथुर, भारत भूषण अग्रवाल और धर्मवीर भारती। धर्मवीर भारती का गीतिनाट्य अंधा युग पहली बार रेडियो से ही प्रसारित किया गया।

सिद्धनाथ कुमार के रेडियो नाटकों का संकलन है पर अभी भी कुंवारी है उनका अशोक नाटक भी रेडियो के लिए उपयुक्त है इसमें अशोक का आंतरिक अंकित चित्रित है।

  रेडियो नाटक के आंतरिक अन्विति का पक्ष महत्वपूर्ण है। इस अंतरिक्ष संगठन के बिना वंचित प्रभाव उत्पन्न नहीं किया जा सकता। दृश्य विधान पात्र परिचय वातावरण का निर्धारण कार्य व्यापार की सूचना पात्रों की भावी व्यक्ति यह सारी दिशाएं रेडियो नाटक की वाचिक भाषा के माध्यम से स्पष्ट होती है। शब्दों के माध्यम से सारा प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। इसके साथ ही ध्वनि और संगीत अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।

   रेडियो नाटक में नरेटर या सूत्रधार हो सकता है। ऐसा होता रहा है संवाद से जो नहीं हो सकता वह नरेशन से पूरा होता है वैसे इसे अच्छा तरीका नहीं माना जाता। जो काम नरेटर या सूत्रधार करने वाला है। व पात्रों के संवादों के माध्यम से संपन्न हो जाए तो स्थिति अच्छी मानी जाती हैं। श्रव्य माध्यम से भाषित शब्द की महत्ता की ओर संकेत ऊपर किया जा चुका है।

प्रोफेसर वचर कहते हैं सब अपनी उच्चारित शक्ति से वंचित होने पर अपने मुद्रित रूप में केवल अर्ध्दजीवित रहते हैं।

   इस प्रकार रेडियो नाटक श्रव्य नाटक है। यह गतिशील है। अतीत वर्तमान भविष्य तीनों देशों में इसके माध्यम से गमन किया जा सकता है। या वाचिक भाषा की शक्ति क्षमता का भरपूर उपयोग करता है। कल्पना तत्व से इसका गहरा संबंध है। यह शब्दों के माध्यम से एक पूरा संसार रहता है और दृश्य को दृश्य बनाता है। यह अंतर्मन का नाटक है मितव्ययी भी है। न्यूनतम साधनों से अधिकतम प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता की है ध्वनि और संगीत की रचनात्मक उपयोग इसके प्रभाव वृद्धि करता है।

रेडियो नाटक के प्रकार (Types of Radio Drama)

  1. सामाजिक नाटक – सामाजिक मुद्दों पर आधारित जैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह, लैंगिक समानता आदि।

  2. ऐतिहासिक नाटक – ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं पर आधारित।

  3. पारिवारिक नाटक – घरेलू जीवन, रिश्तों और मूल्यों पर आधारित कहानियाँ।

  4. शैक्षिक नाटक – शिक्षा, विज्ञान, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर आधारित।

  5. हास्य और व्यंग्य नाटक – मनोरंजन के लिए हल्के-फुल्के नाटक।

  6. धार्मिक और आध्यात्मिक नाटक – धार्मिक ग्रंथों या आध्यात्मिक विचारों पर आधारित।

रेडियो नाटक का महत्व (Importance of Radio Drama)

  • यह एक कम लागत वाला सशक्त संचार माध्यम है जो दूरदराज़ क्षेत्रों में भी आसानी से पहुँच सकता है।

  • शिक्षा और सामाजिक जागरूकता के लिए इसका प्रयोग बेहद प्रभावी होता है।

  • नेत्रहीन और दृष्टिहीन लोगों के लिए यह एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

  • यह कला, साहित्य और संस्कृति को जन-जन तक पहुँचाने का ज़रिया बनता है।

  • आज भी आकाशवाणी, सामुदायिक रेडियो, पॉडकास्ट आदि माध्यमों में रेडियो नाटकों की लोकप्रियता बरकरार है

रेडियो नाटक का वर्तमान और भविष्य (Present & Future of Radio Drama)

आज जबकि डिजिटल क्रांति हो चुकी है, फिर भी रेडियो नाटकों की नई रूपों में वापसी हो रही है। जैसे:

  • पॉडकास्ट (Podcast): आजकल बहुत सारे ऑडियो प्लैटफ़ॉर्म जैसे Spotify, JioSaavn, Gaana, Amazon Audible पर रेडियो नाटक की तर्ज़ पर ऑडियो ड्रामा उपलब्ध हैं।

  • कम्युनिटी रेडियो: ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी और मनोरंजन के लिए रेडियो नाटक का प्रयोग अब भी किया जाता है।

  • शैक्षिक संस्थानों द्वारा प्रयोग: स्कूलों और कॉलेजों में अब भी रेडियो नाटक को शिक्षण के एक प्रभावी साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

रेडियो नाटक के लोकप्रिय उदाहरण (Popular Examples in India)

  1. “छाया” – आकाशवाणी का प्रसिद्ध रेडियो नाटक।

  2. “थोड़ा सा आसमान” – महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर आधारित।

  3. “हवा महल” – आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाली नाटकीय श्रंखला।

  4. “संगीत सभा” – जिसमें संगीत के माध्यम से नाटकीय प्रस्तुति दी जाती थी।

 

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