हिन्दी माध्यम लेखन का इतिहास,हिन्दी में माध्यम लेखन का इतिहास

हिन्दी माध्यम लेखन का इतिहास,हिन्दी में माध्यम लेखन का इतिहास (hindi madhyam lekhan ka sankshipt itihas) जनसंचार के क्षेत्र में हिंदी की यात्रा पर उल्लेख कीजिए

भारत में जनसंचार माध्यम का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। भारत के पहले समाचार वाचक संदेश वाहक देवर्षि नारद थे। ऐसा कहा जाता है कि धरती और स्वर्ग के बीच संवाद स्थापित करने वाले माध्यम थे। उनके समाचार वाचन या संदेश प्रसारण में संगीत का भी समावेश था। वीणा झंकृत होती थी और समाचार प्रेषण होता था। महाभारत के एक पात्र संजय का उपयोग कथावाचक के रूप में किया गया है। संजय को जीवन्त प्रसारण का माध्यम बनाकर प्रस्तुत किया गया है। धृतराष्ट्र ‘और गंधारी को युद्ध की झलक दिखाने का काम वही करता है । अतीतकालीन समृद्ध भारतीय संचार व्यवस्था की ओर संकेत मिथकीय – पौराणिक चरित्रों की कल्पना के माध्यम से जाता है।

प्रतिमाओं के माध्यम से भी संचार होता रहा और रामलीला कृष्णलीला के द्वारा भी लोकगीतों और नृत्यों के माध्यम से संचार जाने कब से हो रहा है? विभिन्न प्रान्तों की अलग- अलग नृत्य शैलियों का संबंध प्राचीन प्रसिद्ध कथाओं से है। भवाभिव्यक्ति का इन नृत्य शैलियों से अनिवार्य संबंध है।

संतों और सूफी कवियों की वाणी जनसंचार का कार्य सहजता से सम्पन्न करती रही है कबीर जब कहते हैं ‘कबीरा खड़ा बाजार में’ तो वे प्रकारान्तर से जनसंचार ही करते हैं। प्रख्यात रचनाकार अमृतलाल नागर ने अपने उपन्यास मानस की हंस, में तुलसीदास को सिर्फ एक कवि के रूप में नहीं देखा तुलसी कथावाचक भी थे और रामलीला के आायोजक होने के नाते ड्रामा प्रोड्यूसर भी ।

तमाशा लावगी नौटंकी जात्रा बाउल भारत के विभिन्न हिस्सों में इन नाट्य रुपों का प्रचलन रहा है। इनके माध्यम से मनोरंजन संदेश-प्रेषण जनमत निर्माण के कार्य सम्पन्न होते रहे।

इस भूमिका के बाद जनसंचार की आधुनिक माध्यमों की अपेक्षित है। समाचार पत्र रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट ये सब पश्चिम से आये माध्यम है। समय के साथ भारतीय संस्कृति से इन माध्यमों से अंतरंग संबन्ध स्थापित होता चला गया। यह जुड़ाव स्वाभाविक भी है।  मीडिया दुनिया में परिवर्तन का एक बड़ा कारक है। विचारक इस सदी को मीडिया सदी मानते हैं। साहित्य भी मीडिया से कटकर हटकर नहीं रह सकता। साहित्य का संबंध मानव मन से है। दूसरी ओर यह रिश्ता दुनिया से हैं। इस दुनिया को संवारने के लिए मानव मन का परिष्कार आवश्यक है। जनसंचार के माध्यम से जुड़कर साहित्य यह कार्य बड़े पैमाने पर कर सकता है, कर रहा है।

सबसे पहले जनसंचार के मुद्रित माध्यम की बाते करें। हिन्दी के पहले समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन 30 मई 1826 ई० को हुआ था। हिन्दी में मुद्रित माध्यम से संचार का दीर्घ इतिहास है। वैसे इससे पहले गोवा में 1550 ई. में मुद्रण मंत्र स्थापित हुए । बम्बई में 1662 ई. में, मद्रास में 1772 कोलकता में 1779 में प्रेस की स्थापना हुई। भारत में पत्रकारिता के पितामह जेम्स अगस्टस हिकी है। 29 जनवरी 1780 को हिकी ने कलकत्ता से बंगाल गजट का प्रकाशन किया। बाद में राजा राममोहन राय की कोशिशों से 1818 मे बंगाल गजट, 1821 में संवाद कौमुदी का प्रकाशन हुआ ।

राजाराम मोहन राय ने अपना लक्ष्य इन शब्दों में स्पष्ट किया- ‘ मेरा उद्देश्य मात्रा इतना ही है कि जनता के सामने ऐसे बौद्धिक निबंध उपस्थित करूं जो उनके अनुभव को बढ़ाए और सामाजिक प्रगति में सहायक सिद्ध हो।’

1856-1881 के बीच हिन्दी पत्रों के विकास में तेजी आई। सन् 1885 ई० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। राष्ट्रवाद की प्रवृत्ति का विकास विस्तार हुआ । इससे पहले भी इस समय भी भारतेन्दु मंडल के रचनाकार सक्रिय थे ये इन पत्रिकाओं से संबंध है – कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र चन्द्रिका, बाला लोधिनी ( भारतेन्द्र हरिश्चन्द्र ), आनन्द कादम्बिनी (प्रेमधन), हिन्दी प्रदीप (बालकृष्ण भट्ट ), ब्रह्माण (प्रताप नारायण मिश्र), सदादर्श (लाला श्रीनिवास दास, बिहार बंधु ( केशवराम भट्ट ) साहित्य और पत्रकारिता का यह समन्वित रूप समय की आवश्यकता पर आधारित था।

   आगे चढ़कर कर्मवीर से माखनलाल चतुर्वेदी का जुड़ाव रहा और इन्दु से जयशंकर प्रसाद का। 1913 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप का प्रकाशनारंभ किया।

आजादी के बाद हिन्दी के प्रमुख अखबार ये रहे – नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, नई दुनिया, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भाष्कर, दैनिक जागरण, आज और हिन्दुस्तान।

हिन्दी की ये पत्रिकाएं बहुप्रसारित प्रशंसरित, धर्मयुद्ध, सप्ताहिक हिन्दुस्तान, रविवार इंडिया टुडे, हाउ टू लूक।

आजादी के संघर्षो में कम्पनी लेखनी के माध्यम से सक्रिय रहे पत्रकारों के नाम ये है – गणेश शंकर विद्यार्थी, माखन लाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबूराव विष्णुराव पराड़कर, प्रातप नरायण मिश्र भारतेन्दु।

आजादी के बाद के प्रमुख पत्रकार ये है- अज्ञेय, रघुवीर सहाय, रेणु, राजेन्द्र माथुर, धर्मवीर भारती, प्रकाश भारती ।

श्रव्य माध्यम के रुप में रेडियो का विकास बहुत तेज़ी से हुआ। 23 जुलाई 1927 ई० को इंडियन ब्रोडकास्टिंग कम्पनी के बम्बई केन्द्र के पहला प्रसारण ( व्यवसायिक ) हुआ।  8 जून 1936 को इंडियन स्टेट ब्रोडकास्टिंग सर्विस का नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया गया।1943 में ब्रोडकास्टिंग हाउस नई दिल्ली में बनकर तैयार हो गया । 1947 में देश का विभाजन हुआ उस समय तक के 9 केन्द्रों में से 6 भारत में रहे। ये केन्द्र दिल्ली, कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, लखनऊ और तिरुचिरापल्ली के थे।

14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को सत्ता हस्तांतरण का आँखों देखा हाल प्रसरित किया गया। 12 नवम्बर 1947 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का देश के नाम पहला और अंतिम संदेश प्रसारित हुआ। 25 फरवरी 1956 को पहले अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का प्रसारण हुआ। इससे पहले 1958 में रेडियो संगीत सम्मेलन के आतिरिक्त वार्ताओं और रूपकों का प्रसारण शुरू हो चुका था। इसी वर्ष रासलीला पर आधारित गीति नाटक प्रस्तुत किया गया । 26 जुलाई 1956 को नाटकों के अखिल भारतीय कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके अगले ही महीने को 15 तारीख को रुपकों के अखिल भारतीय कार्यक्रम का आरंभ हुआ। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव के पल पर 9 सूत्री आकाशवाणी आचार संहिता (AIR कोड) तैयार हुई। अगस्त 1968 में हिन्दी वार्ताओं के अखिल भारतीय कार्यक्रम आरंभ हुआ। इससे पहले  8 जून 1961 को रेडियो का 25 वीं वर्षगांठ मनाई गई। कुछ रूपकों का प्रसारण हुआ। 21 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने युगवाणी कार्यक्रम की शुरुआत की । 23 सितम्बर 1974 को उत्कृष्ट नाटक रुपक संगीत प्रविष्टियों पर पुरस्कार की योजना शुरु की गई।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद रेडियो जनसंचार के शक्तिशाली और प्रभावशाली माध्यम के रूप में विकसित हुआ। इस माध्यम की पहुँच का दायरा लगातार फैलता चला गया।

1961 में रवीन्द्रनाथ टैगोर की आवाज में दुर्लभ ध्वन्यांकित सामग्री का प्रसारण किया गया । आगे चलकर भगवती चरण वर्मा  के है.‘ थके पांव सत्यकाम विद्यालंकार सोमा’ फणीश्वरनाथ रेणु के मारे गए गुलफाम जैसें रुपको का प्रसारण हुआ। रेडियो नाटकों का उद्देश्य यद्यपि मनोरंजन है लेकिन समाजिक उद्देश्यों की ओर भी इनका ध्यान रहा है। राष्ट्रीय अखण्डता, सांप्रदायिक सहभाव, सामाजिक न्याय, दहेज प्रथा और अन्य सामाजिक प्रश्नों पर आधारित रेडियो नाटकों की रचना होती रही है। रेडियो नाटक के प्रमुख हस्ताक्षर सिद्धनाथ कुमार के अनुसार ”मानवीय कल्पना में जो भी संभव है वह रेडियो नाटक में चित्रित हो सकता है।”  उदयशंकर भट्ट, भगवती चरण वर्मा गिरिजाकुमार माथुर भारतभूषण अग्रवाल की पद्यात्मक नाट्य रचनाओं की रेडियो में प्रभावशाली प्रस्तुति हुई है। धर्मवीर भारती के प्रसिद्ध गीतिनाटक अंधा युग की प्रथम प्रस्तुति रेडियो से ही हुई थी। मोहन राकेश की बहुमंचित नाट्य रचना आषाढ़ का एक दिन भी मूलतः रेडियो के लिए थी। मोहन राकेश के अन्य नाटक लहरों के राजहंस का भी रेडियो से प्रसारित हुआ।

आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से 1956 में 4949 वार्ताओं और परिसंवादों का प्रसारण हुआ था। 1981 मे आकाशवाणी के 40 केन्द्रो से 64010 वार्ताओं प्रसारित की गई। इनमें 45797 व्यक्तियों ने भाग लिया ।

पारिवारिक जीवन पर आधारित तिनका – तिनका सुख हिन्दी क्षेत्र के 27 आकाशवाणी केन्द्र से प्रसारित किया गया। जनकी 1999 से केन्द्रीय फीचर एकांश ने फीचर की तीन नई श्रृंखलाएँ आयोजित की।
१.भारत की परंपरा
२.एक सदी का सफर
३.चिनार के साये में (कश्मीर पर आधारित)

समसामयिक वार्ताओं, भाषणों, जीवनियों, रिपोर्ताजों, कहानियाँ और साक्षात्कारों का प्रसारण आकाशवाणी से होता रहा है। रेडियो माध्यम ने महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनी एकता, उपयोगिता सार्थकता और प्रभाव के प्रमाण प्रस्तुत किए हैं।

भारत में TV की शुरुआत 15 सितम्बर 1959 को हुई। ऐसे यूनेस्को की एक शैक्षिक परियोजना के अन्तर्गत हुआ। दिल्ली में पहला केन्द्र स्थापित हुआ। 8 वें दशक में दूरदर्शन केन्द्रों की स्थापना में तेजी आई। असगर वसाहत के अनुसार आधुनिक संचार पद्धतियों के विकास ने दृश्य श्रव्य माध्यमों को अभिव्यक्ति का केन्द्रीय माध्यम बना दिया है। 1976 में TV को आकाशवाणी से अलग कर दिया गया । दूरदर्शन नाम से नया संगठन बना। 1976 में ही दूरदर्शन में विज्ञापन सेवा का आरंभ हुआ। देश के 7 केन्द्रो (कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई, मद्रास, लखनऊ जलंधर, श्रीनगर) से विज्ञापन सेवा शुरू हुई। यह बाजार की ओर दूरदर्शन का कदम था।

1982 में एशियाई का आयोजन भारत में हुआ। TV लोकप्रियता में वृद्धि हुई। 1983 तक दूरदर्शन पर प्रायोजित कार्यक्रम शुरू हो चुके थे। 7 जुलाई 1984 को पहला दूरदर्शन धारावाहिक शुरू हुआ। – ‘हमलोग’ मनोहर श्याम जोशी इसके लेखक थे। 31 अक्टूबर 1984 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही हत्या उनके सुरक्षाकर्मियों ने कर दी थी। इससे संबंध प्रसंगों का प्रसारण किया गया ।

‘हमलोग’ के बाद ‘बुनियाद’ का प्रसारण हुआ। इसके लेखक भी मनोहर श्याम जोशी थे। रमेश सिप्पी यह धारावाहिक बहुत लोकप्रिय हुआ । रजनी और भारत एक खोज जैसे धारावाहिक क्रमशः सामाजिक ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़े थे। आगे चलकर तानाबाना और सुरभि जैसी कला पत्रिकाओं का प्रसारण हुआ। इसी बीच प्रणय राम और विनोद दुआ ने चुनाव विश्लेषण और बजट विश्लेषण को रोचक आकर्षक बना दिया।
खड़ी युद्ध का CNN ने जीवन प्रसारण किया।
अमीरों की जीवन शैली और कहानी दूरदर्शन पर स्वाभिमान (धारावाहिक) के माध्यम से प्रस्तुत की गई।

फिर केबल टीवी का दौर आया केबल का संजाल फैला। CNN, BCC, STAR TV जैसे चैनल शुरू हुए STAR NEWS और आजतक, 24 घंटे समाचार प्रसारित करने लगे। आज भारत में 200 से अधिक चैनल कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं।
टीवी नहीं देशी विदेशी कथा साहित्य से भी परिचित करने का काम भी किया है। श्रीकांत 13 पन्ने कथा सागर जैसे कार्यक्रम साहित्यिक कृतियों पर आधारित है। अधिकार तमस निर्मला जैसे धारावाहिक भी इसी प्रकार रचनाओं पर आधारित है। एक धारावाहिक मिर्जा गालिब पर प्रस्तुत किया गया।
फिल्मी गीत संगीत कार्यक्रम चित्रहार की प्रस्तुति दूरदर्शन से होती रहे।
आज माध्यमों के लिए किया जाने वाला लेखन माध्यमों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रमों के अनुरूप बदल गया है। अतीत में खाना खजाना जैसे कार्यक्रम पाक कला सिखाने के लिए प्रसारित किए जाते रहे हैं। इन दिनों मास्टर शेफ जैसे कार्यक्रम इसी प्रकार के हैं अंतर यह है कि इसमें प्रतिस्पर्धा का आयाम जोड़ दिया गया है। टीवी पर रियलिटी शो भी आते हैं। इसके लिए लेखन अलग प्रकार का होता है लेकिन यह आवश्यक या नहीं है कि सब कुछ लेखन के अनुरूप हो लेखन से विचलन की संभावना या आशंका बनी रहती है।
इस प्रकार जनसंचार माध्यमों के साथ-साथ इनके लिए लेखन का क्रम विकसित और परिष्कृत पता चला है। रेडियो अब 90 वर्ष का हो चुका है और भारत में टीवी की शुरुआत 6 दशक गुजर चुके हैं। इस पूरी अवधि में कार्यक्रम के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन हुए हैं और लेखन के क्षेत्र में भी परिवर्तन क्रम चलता रहा है। अब संचार माध्यमों के लिए लेखन का पूरा इतिहास है। माध्यम की समझ के लिए इतिहास की सामान्य जानकारी अपेक्षित है।

 

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