रेडियो फीचर क्या है रेडियो फीचर कैसे किया जाता है
radio feature kya hai
रेडियो फीचर को ही रेडियो रूपक कहा जाता है। वैसे रूपक और उपरूपक संस्कृत के दृश्य काव्य के भेद हैं। रूपक के 10 भेदों में से एक नाटक है। लेकिन रेडियो के संदर्भ में रूपक शब्द किसी अर्थ में प्रयुक्त नहीं होता। रूपाक या फीचर रेडियो के लिए ही समय के साथ विकसित कवि एक विधा है। जो रेडियो लेखन की अन्य विधाओं से अलग है। रूपा को परिभाषित करने के क्रम में आकाशवाणी के एक रिपोर्ट में कहा गया है ‘फीचर एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें प्रसारण की उन प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है जो एक विशिष्ट मनोरंजनात्मक रूप में सूचना परख होती है।’
N.C. पंत फीचर को परिभाषित करते हुए लिखते हैं
फीचर किसी घटना व्यक्ति वस्तु या अस्थान के बारे में लिखा गया ऐसा विशिष्ट आलेख है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है।
एक अन्य विचार यह है कि फीचर में सामयिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश होता है। इसके साथ ही फीचर अतीत की घटनाओं और भविष्य की संभावनाओं से भी जुड़ा होता है।
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इन परिभाषा ओं के आधार पर फीचर को समझने का प्रयास करें तो फीचर यार ऊपर का स्वरूप स्पष्ट होने लगता है। या स्वरूप फीचर के विशेषताओं के आधार पर ही स्पष्ट होता है परिभाषा ओं के आधार पर फीचर की जो विशेषताएं उभरती है वह ये है-
१. मनोरंजन २. सूचना ३. कल्पनाशील ४. सृजनात्मक ५. आकर्षक ६. समसामयिक ७. भावात्मक।
इसके साथ ही फीचर में विचार तत्व होता है। किसे विचार के आधार पर ही फीचर तैयार किया जाता है।
फीचर या रूपक के विषयों पर आधारित हो सकते हैं। आज से आशय यह है कि फीचर के लिए विषय वैद्य के लिए कोई कमी नहीं है। संभावनाएं अनंत है और कल्पनाशील लेखक तत्वों को समेट कर भी रोचक से फीचर लेखन कर सकता है। बल्कि यही उससे अपेक्षित भी है। फीचर विशिष्ट व्यक्तियों पर भी लिखे जा सकते हैं। और ऐतिहासिक स्मारकों पर भी त्योहार, मेला, प्राकृतिक विपदा, महान विभूतियां, साधारण व्यक्तियों के असाधारण कार्य, खेलकूद, अदालत, शिक्षण संस्थान, विषय में सब और इनके अतिरिक्त भी फीचर के विषय हो सकते हैं।
फीचर विषयों के आधार पर के प्रकार का हो सकता है कथा प्रधान, संगीत प्रधान, कल्पना प्रधान वैसे रूपक मुख्यता दो प्रकार के माने जाते हैं।
१. सामान्य रूपक
२. आलेख रूपक
सामान्य रूप किसी भी विषय पर आधारित हो सकता है लेकिन आलेख रूपक रेडियो से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों के सहयोग के बिना तैयार करना कठिन है। आलेख रूपक के लिए एक पूरी कार्ययोजना चाहिए। यह समूह द्वारा किया जाने वाला कार्य है। इसके लिए गहन अध्ययन और शोध भी अपेक्षित है और संदर्भ स्थानों की यात्रा भी है। उदाहरण के रूप में यदि तुलसीदास पर आलेख रूप तैयार करना हो तो इसका एक प्रस्ताव तो यह किया जाएगा प्रसारण संस्थान के अधिकारी कर्मचारी इस पर विचार करेंगे तुलसी के जन्म स्थान, कर्म स्थान, वहां के लोगों, तुलसी साहित्य के विद्वानों रामलीला करने और देखने वालों तक जाकर सामग्री संचयन का कार्य किया जाएगा। इस ग्राम में तुलसी के गीतों का गायन करने वाले तू शामिल होंगे ही तुलसी के पदों और भजनों के अंशों का ध्वन्यांकन भी होगा इसके बाद एकत्र की गई सामग्री का संपादन अपेक्षित है। एक सूत्रधार के माध्यम से तुलसीदास पर रूपक की प्रस्तुति संभव है या आलेख रूपक लेखन का कार्य साध्य हैं।
सामग्री संचयन अध्ययन शोध और संबंध स्थानों तक जाकर ही संभव है लेकिन प्रस्तुति में शोध की गंभीरता नहीं चाहिए। रूपा की तैयारी में जितने भी मेहनत की गई हो रूपक आकर्षक रोचक और मनोरंजक होना ही चाहिए
BBC के नाटक विभाग के 20 वर्षों तक अध्यक्ष रहे
गिलगुड के अनुसार
कोई कार्यक्रम जो मूलतः नाटक के रूप में नहीं है पर जो श्रोताओं के लिए अपनी प्रस्तुति में रेडियो नाटक की तकनीक का इस्तेमाल करता है फीचर है।
वह अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि रूपक तथ्यपरक होते हैं और प्रस्तुति के लिए कई प्रकार की पद्धतियां अपनाई जाती है।
BBC से 1923-24 में नाटकों का प्रसारण शुरू हुआ था तब रेडियो फीचर नाम की कोई विधा नहीं थी लेकिन क्रिसमस जैसे विशेष अवसरों पर विशेष रूप से तैयार किए गए कार्यक्रम का प्रसारण शुरू हो चुका था। इन्हें Featured program कहा जाता था। आगे चलकर d का लोप हो गया और आगे चलकर प्रोग्राम (program) शब्द भी हटा दिया गया। इस प्रकार जो शब्द बचा वह था Feature। प्रस्तुति के लिए प्रयोगशील रचनाएं फीचर है। इसमें तथ्यपरकता और प्रयोगशीलता एक साथ चलती है। वास्तविक जीवन की घटनाएं होती है और उनकी कलात्मक प्रस्तुति की जाती है लेकिन वास्तविक जीवन से सब कुछ नहीं लिया जाता। फीचर लेखन के लिए चयन का विवेक अपेक्षित है। आशय यह है कि सामग्री का नियंत्रित और कलात्मक उपयोग हो।
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लुई मैकनीस ने एक फीचर लिखा था ‘क्रिस्टोफर कोलंबस’ वे रेडियो फीचर के विषय में कहते हैं रेडियो फीचर वास्तविकता का नाटकीकृत रूप है। रेडियो रूपक लेखक को रिपोर्टर और कैमरामैन से कुछ अधिक होना चाहिए।
रूपक लेखक के सामने लेखक का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। पूरे रूपक के माध्यम से क्या और क्यों उभार कर लाना है लेखक से पहले ही यह बात सुलझे हुए ढंग से स्पष्ट होने चाहिए। उद्देश्य के आधार पर अनावश्यक प्रसंगों के समावेश से बचा जा सकता है। अनावश्यक प्रसंग अनावश्यक विस्तार की दिशा में ले जाते हैं और रूपक का समग्र प्रभाव लिखा जाता है।
रूपक के संदर्भ में यह ध्यातव्य है कि उसका एक प्रभाव हो। प्रभावान्विति पर ध्यान केंद्र रूपक लेखक के लिए जरूरी रूपक के नरेटर या सूत्रधार का उपयोग भी किया जाता है। यदि एक से अधिक सूत्रधार हो तो एक स्त्री स्वर और एक पुरुष स्वर का उपयोग रोचकता के विचार से किया जाना चाहिए।
रेडियो फीचर क्या है?
रेडियो फीचर एक प्रकार का रेडियो कार्यक्रम होता है जो किसी सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, या सामयिक विषय पर केंद्रित होता है और इसे रोचक, सूचनात्मक तथा सृजनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें ध्वनि प्रभाव (Sound Effects), संगीत, वार्ता, वर्णन और साक्षात्कार जैसे तत्वों का संयोजन होता है ताकि विषय को श्रोताओं के लिए आकर्षक और प्रभावशाली बनाया जा सके।
यह समाचार या सामान्य वार्ता की तुलना में ज्यादा गहराई से विषय की विवेचना करता है और इसमें कलाकारों की आवाज़ें, संवाद, बैकग्राउंड साउंड आदि भी शामिल हो सकते हैं। इसे रेडियो पर सुनाई जाने वाली डॉक्यूमेंट्री भी कह सकते हैं।
रेडियो फीचर के प्रमुख तत्व
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विषय का चयन: ऐसा विषय चुना जाता है जो रोचक, शिक्षाप्रद और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो।
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स्क्रिप्ट लेखन: रेडियो फीचर की स्क्रिप्ट को इस प्रकार लिखा जाता है कि वह श्रोताओं को बांध सके। इसमें संवाद, कथावाचन, ध्वनि प्रभाव आदि का समावेश होता है।
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ध्वनि प्रभाव (Sound Effects): रेडियो फीचर में प्राकृतिक ध्वनियाँ (जैसे बारिश, ट्रेन, बाज़ार की आवाज़ें आदि) इस्तेमाल की जाती हैं ताकि यथार्थ का अनुभव हो सके।
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संगीत: विषय के भाव को उभारने के लिए पृष्ठभूमि संगीत का उपयोग किया जाता है।
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आवाज़ और अभिनय: संवादों को कलाकारों द्वारा बोलचाल की भाषा और भावनाओं के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
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संपादन (Editing): सभी रिकॉर्ड किए गए हिस्सों को मिलाकर एक बेहतर और प्रवाहमयी कार्यक्रम बनाया जाता है।
रेडियो फीचर कैसे किया जाता है
रेडियो फीचर तैयार करना एक सृजनात्मक और तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें विषय की गहराई के साथ प्रस्तुति की कला भी शामिल होती है। इसे कई चरणों में बांटा जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं:
1. विषय का चयन और गहन शोध (Topic Selection & Research)
रेडियो फीचर की तैयारी का सबसे पहला और महत्वपूर्ण चरण होता है — सटीक और सामयिक विषय का चुनाव।
- यह विषय सामाजिक, ऐतिहासिक, पर्यावरणीय, साहित्यिक या सामयिक मुद्दों पर आधारित हो सकता है।
- विषय का चयन करते समय यह देखा जाता है कि वह श्रोताओं के लिए उपयोगी, आकर्षक और जानकारीपूर्ण हो।
- विषय के चयन के बाद उस पर गहन और व्यापक शोध किया जाता है। इसमें किताबें, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, इंटरनेट स्रोत, रिपोर्ट्स, डॉक्युमेंट्री आदि का उपयोग किया जाता है।
- यदि विषय समकालीन है तो विशेषज्ञों से बातचीत या इंटरव्यू के माध्यम से भी जानकारी एकत्र की जाती है।
उदाहरण: यदि विषय “जलवायु परिवर्तन” है, तो इसके लिए वैज्ञानिक रिपोर्ट, पर्यावरण विशेषज्ञों के विचार, आँकड़े, और ग्राउंड रियलिटी की जानकारी जुटाई जाती है।
2. स्क्रिप्ट लेखन (Script Writing)
शोध के आधार पर अगला चरण होता है — स्क्रिप्ट तैयार करना, जो रेडियो फीचर की रीढ़ होती है।
- स्क्रिप्ट लिखते समय कहानी कहने की शैली (narrative style) अपनाई जाती है ताकि श्रोता उस विषय से भावनात्मक रूप से जुड़ सकें।
- स्क्रिप्ट में नैरेशन (कथावाचन), संवाद (Dialogues), साक्षात्कार (Interviews), ध्वनि प्रभाव (Sound Effects) और पृष्ठभूमि संगीत (Background Music) के स्थानों को स्पष्ट रूप से चिन्हित किया जाता है।
- स्क्रिप्ट को इस प्रकार तैयार किया जाता है कि उसमें प्रस्तुति की प्रवाहशीलता, लयात्मकता और तारतम्यता बनी रहे।
अच्छा फीचर वही माना जाता है जिसकी स्क्रिप्ट कल्पनाशील और सूचनाप्रद हो, और जो सुनने वालों को सोचने पर मजबूर कर दे।
3. रिकॉर्डिंग (Voice Recording)
जब स्क्रिप्ट तैयार हो जाती है, तो अगला कदम होता है — रिकॉर्डिंग।
- स्क्रिप्ट के अनुसार वॉयस ओवर आर्टिस्ट्स या रेडियो कलाकारों द्वारा संवाद रिकॉर्ड किए जाते हैं।
- यदि स्क्रिप्ट में कथावाचक की आवश्यकता है, तो उसकी आवाज़ स्पष्ट, भावनात्मक और प्रभावशाली होनी चाहिए।
- यदि फीचर में इंटरव्यू या ग्राउंड रिपोर्टिंग है, तो उन हिस्सों को वास्तविकता के साथ रिकॉर्ड किया जाता है।
- इस दौरान उच्च गुणवत्ता वाले माइक्रोफोन और ऑडियो रिकॉर्डिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है ताकि आवाज़ साफ़ और प्रोफेशनल लगे।
4. ध्वनि प्रभाव और संगीत का समावेश (Sound Effects & Music Integration)
रेडियो फीचर की प्रभावशीलता का एक बड़ा हिस्सा उसकी ध्वनि प्रस्तुति (audio design) पर निर्भर करता है।
- कहानी के अनुसार प्राकृतिक ध्वनियाँ जैसे — बारिश, झरना, भीड़, सायरन, पक्षियों की आवाज़ आदि डाली जाती हैं।
- पृष्ठभूमि संगीत (Background Score) का चयन भी विषय के अनुरूप किया जाता है। जैसे किसी गंभीर विषय के लिए धीमा और भावनात्मक संगीत, जबकि साहसिक विषयों के लिए उत्साही धुनें।
- ये ध्वनियाँ फीचर में वातावरण रचने और भावनात्मक गहराई लाने का काम करती हैं।
5. एडिटिंग और मिक्सिंग (Editing & Mixing)
रिकॉर्डिंग और साउंड एलिमेंट्स को जोड़ने के बाद अगला चरण होता है — एडिटिंग और मिक्सिंग।
- यह सबसे तकनीकी चरण होता है, जिसमें सभी रिकॉर्डेड हिस्सों को क्रमानुसार जोड़ा जाता है।
- अनावश्यक भाग हटाए जाते हैं, संवादों में टोन, पेस और क्लैरिटी को सुधारा जाता है।
- वॉल्यूम लेवल, साउंड ट्रांजिशन, बैकग्राउंड म्यूजिक और नैरेशन को संतुलित किया जाता है।
- एडिटिंग के लिए Audacity, Adobe Audition, GarageBand जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है।
6. प्रसारण या पब्लिशिंग (Broadcasting or Publishing)
संपूर्ण रेडियो फीचर तैयार होने के बाद उसे रेडियो स्टेशन पर प्रसारित किया जाता है
तब रेडियो फीचर नाम की कोई था लेकिन ऐसा लगता है लोग किस प्रकार से जागरुक होते थे ।
शायद किसी नाटक की तकनीक का इस्तेमाल करते हो ।।