पारिभाषिक शब्दावली निर्माण के सिद्धांत(paribhashikshabdavali ke nirman ke siddhant), पारिभाषिक शब्दावली निर्माण की प्रक्रिया(paribhashik shabdavali ke nirman ki prakriya)
पारिभाषिक शब्दावली किसे कहते हैं
ज्ञान की किसी विशेष शाखा से संबंध रखने वाली विशिष्ट शब्दावली परिभाषिक शब्दावली कहलाती है।
डॉक्टर गोपाल शर्मा के अनुसार परिभाषिक शब्द वह शब्द है जो किसी विशेष क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयोग किया जाए तथा इनका अर्थ एक परिभाषा द्वारा स्थिर किया गया हो। जिस देश या जाति की भाषा में नए अविष्कार शोध खोज एवं तथ्य सबसे पहले सामने आते हैं वहां शब्दावली का विकास एक प्राकृतिक संदर्भ में होता है। परंतु भारत जैसे बहुभाषी देश में जहां अधिकतर ऐसे सब अंग्रेजी अथवा विदेशी भाषा के माध्यम से आते हैं वहां शब्दावली का निर्माण अलग पद्धति से करना पड़ता है। यहां पहले संकल्पना आती है उसके बाद उपयुक्त शब्द गढ़ने या ढूंढने की प्रक्रिया आरंभ होती है। परिभाषिक शब्दों के निर्माण में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि भिन्न अर्थों के लिए मिलते जुलते शब्द नहीं हो अन्यथा भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। हिंदी भाषा में परिभाषिक शब्दावली के निर्धारण के लिए सामान्यतः चार पद्धतियां अपनाई जाती है ये चार पद्धतियां हैं-
१. निर्माण
२. ग्रहण
३. संचयन
४. अनुकूलन
१. निर्माण:-
नए शब्द बनाने के लिए मानक भाषा के शब्दों को आधार बनाकर उपलब्ध स्रोत भाषा के रूपों का उपयोग किया जाता है। ऐसे शब्द जटिला नहीं होते हैं और उनमें मौलिकता भी होती है
कृषि (खेती)
कृष (खींचना)
खींचने की प्रक्रिया जिस क्षेत्र में होती है उसी कृषि कहते हैं।
वनस्पति- पेड़ पौधे से संबंधित
भौतिकी-जिसे देख रहे हैं छू रहे हैं या महसूस कर रहे हैं।
भौतिक- संसार की वस्तुएं।
२. ग्रहण:-
किसी भी भाषा के शब्द को अपनाया जाना शब्दावली के निर्माण में सहायक होता है। इस प्रक्रिया में सटीक शब्द के गढ़ने की कठिनाई उपस्थित ही होती और विदेशी भाषा के शब्द परिभाषिक शब्दावली में स्थान पा जाते हैं।
उदाहरण:- होटल, ट्यूबलाइट, बेंच, स्टेशन, मोटर, टिकट, टाई, स्कूटर, रेलिंग, ग्रील आदि।
३. संचयन:-
इसके अंतर्गत अपने देश की विभिन्न भाषाओं के प्रचलित शब्दों में से उपयुक्त शब्दों को चुनकर परिभाषिक शब्दावली में शामिल किया जाता है इस प्रक्रिया में लोक प्रचलित शब्दों के आधार पर परिभाषिक शब्द बनाए जाते हैं।
उदाहरण:
वाहिनी – बंगला
पावती – महाराष्ट्र
चश्मा
कचहरी
डाक
जमानत
४. अनुकूलन:-
विदेशी भाषाओं से लिए गए शब्दों को जब अपनी भाषा की प्रकृति के अनुकूल ढाल लिए जाए तो शब्दावली निर्माण की प्रक्रिया अनुकूलन कहलाती है। उच्चारण और वर्तनी की सुविधा के अनुसार ऐसे शब्द अपने मूल स्वरूप से अंशत: भिन्न होते हुए भी मूलतः अपने अर्थ का बोध करने में सक्षम होते हैं।
उदाहरण:-
टेक्निक – तकनीक
बॉक्स – बक्सा
ट्रैजडी – त्रासदी
एकेडमी – अकादमी
हॉस्पिटल – अस्पताल
ग्लास – गिलास
पारिभाषिक शब्दावली की विशेषताएं(paribhashik shabdavali ki visheshta)
१. किसी क्षेत्र या किसी विशेष के लिए इन शब्दों के अर्थ एक समान रहते हैं यह कभी नहीं बदलते हैं। जैसे मुद्रा।
२. विभिन्न भारतीय भाषाओं और बोलियों के शब्दों को मान्यता और महत्व मिलता है।
३. उपयुक्त अर्थ प्रस्तुत करने वाले शब्दों के अंतरराष्ट्रीय शब्दकोश में स्थान मिल रहा है जिससे हिंदी की व्यापकता विश्व स्तरीय हो रही है।
उदाहरण:- अवतार, सत्याग्रह, लाठी, हड़ताल, अनंत, घेराव, बंद, चक्का जाम, अहिंसा आदि।
४. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग होने वाले शब्दों को हिंदी की परिभाषिक शब्दावली में स्वीकार कर लिए जाने के कारण विदेशी भाषा भाषियों के लिए इन शब्दों के अर्थ समझ पाना आसान हैं।
उदाहरण:- पेन, बेंच, ट्यूबलाइट, ऑफिस, टीवी, रेडियो, रजिस्टर, कैलेंडर, एंबुलेंस, फ्रिज, कार आदि।
५. किसी भी भारतीय भाषा में हिंदी से अलग अन्य भाषाओं से लिए गए परिभाषिक शब्दों का उच्चारण और अर्थ एक समान होता है।
उदाहरण:- टिकट, पोस्टकार्ड, रजिस्टर, टॉर्च, रेडियो आदि।
६. राष्ट्रीय भाषा के माध्यम से एक मानक रूप स्थापित करना संभव है।
पारिभाषिक शब्दावली निर्माण की समस्या(paribhashik shabdavali ki samasya) पारिभाषिक शब्दावली निर्माण की समस्याएँ
१. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग होने वाले शब्दों का जटिल लिप्यांतरण होना।
२. उच्चारण और वर्तनी की दृष्टि से अनेक शब्दों में अंतर रह जाता है।
३. अन्य भाषाओं के एक समान उच्चारण वाले शब्दों के उपयोग में विशेष सावधानी की आवश्यकता पड़ती हैं। तमिल बांग्ला और हिंदी भाषाओं में अपने मूल स्रोत संस्कृत भाषा के अनेक शब्दों को उसी रूप में स्वीकार किया गया है वर्तनी और उच्चारण की दृष्टि से यह शब्द एक रूप है किंतु अर्थ में होने वाला अंतर समस्या उत्पन्न करता है उदाहरण:- सिद्धांत, आलोचना
कल्याण आलोचना सिद्धांत और प्रयाय जैसे शब्द हिंदी में क्रमशः हित निंदा प्रतिपादित मान्यता और विकल होता है तो तमिल (कल्याण) और बांग्ला विवाह आलोचना का विचार विमर्श सिद्धांत का निर्णय प्रयाय का आधारित। ऐसे में परिभाषिक शब्दावली विभिन्न भाषा भाषियों के मध्य संशय या भ्रम उत्पन्न कर सकती हैं।
४. विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की भाषा के प्रभाव के कारण परिभाषिक शब्दावली की एकरूपता को बनाए रखने में कठिनाई आती है। अनेक परिभाषिक शब्द बोलचाल की भाषा में स्वीकृत और प्रचलित नहीं होने के कारण इनकी उपयोगिता सिद्ध नहीं हो पाती हैं।
५. पहले से ही स्वीकृत और प्रचलित शब्दों के बदले मानक शब्द स्थापित करने में कठिनाई आती हैं। परिभाषिक शब्दावली में रखे गए अनेक शब्द अपने अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर पाते हैं। जिससे हिंदी भाषियों को इन शब्दों को समझने में मुश्किलें आती हैं।
६. उच्चारण की दृष्टि से कठिन शब्दों को पारिभाषिक शब्दावली के अंतर्गत रखना कठिनाई उत्पन्न करता है।
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