भाषा प्रयुक्ति का अर्थ, भाषा प्रयुक्ति की क्या विशेषता है

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भाषा प्रयुक्ति क्या है

भाषा प्रयुक्ति (Language Usage) से तात्पर्य भाषा के वास्तविक और उचित उपयोग से है। यह शब्द, वाक्य, और व्याकरण के नियमों का सही संदर्भ में प्रयोग करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। भाषा का सही और प्रभावी उपयोग संवाद, विचारों की स्पष्टता, और सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में समझ का निर्माण करता है।

भाषा प्रयुक्ति में निम्नलिखित बातें शामिल होती हैं:

  1. शब्द चयन: उपयुक्त शब्दों का चुनाव, जिससे विचारों की सही अभिव्यक्ति हो।
  2. वाक्य संरचना: वाक्यों की सही संरचना, जिससे वाक्य अर्थपूर्ण और स्पष्ट बनें।
  3. व्याकरण: व्याकरणिक नियमों का पालन, ताकि भाषा में त्रुटियाँ न हों।
  4. संदर्भ: भाषा का उपयोग उस संदर्भ में करना जो समाज, स्थिति और श्रोता के लिए उपयुक्त हो।
  5. स्वाभाविकता: भाषा का प्राकृतिक और सहज रूप में प्रयोग, जिससे संवाद प्रभावी हो।

इसका उद्देश्य भाषा के माध्यम से प्रभावी और सटीक संवाद स्थापित करना है।

भाषा प्रयुक्ति का अर्थ

भाषा प्रयुक्ति का अर्थ है भाषा का सही, प्रभावी और संदर्भानुसार उपयोग। इसमें शब्दों, वाक्य संरचना, व्याकरण और शैली का सही ढंग से प्रयोग करना शामिल होता है, ताकि संचार स्पष्ट, सटीक और प्रभावशाली हो।

भाषा प्रयुक्ति के प्रमुख पहलू:

  1. व्याकरणिक शुद्धता – भाषा के नियमों का पालन करना।
  2. संदर्भानुसार प्रयोग – स्थिति, श्रोता और उद्देश्य के अनुसार भाषा का उपयोग करना।
  3. शैली और स्वरूप – लिखित और मौखिक भाषा की उचित शैली अपनाना।
  4. संज्ञानात्मक स्पष्टता – विचारों को स्पष्ट और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना।
  5. संस्कृति और समाज के अनुरूप प्रयोग – भाषा का सामाजिक-सांस्कृतिक मानकों के अनुसार प्रयोग करना।

उदाहरण:

  • औपचारिक भाषा: “कृपया अपनी रिपोर्ट समय पर जमा करें।”
  • अनौपचारिक भाषा: “यार, अपनी रिपोर्ट टाइम पर दे देना!”

इस प्रकार, भाषा प्रयुक्ति संचार को प्रभावी बनाने में सहायक होती है।

भाषा प्रयुक्ति की परिभाषा:

भाषाविज्ञान में, भाषा प्रयुक्ति का तात्पर्य उस ढंग से है, जिससे व्यक्ति किसी विशेष संदर्भ में भाषा का उपयोग करता है। यह न केवल शब्दों और वाक्य संरचना तक सीमित है, बल्कि इसमें उच्चारण, अर्थ, शैली और सामाजिक-सांस्कृतिक कारक भी शामिल होते हैं।

🔹 विभिन्न विद्वानों के अनुसार भाषा प्रयुक्ति:

  1. नोम चॉम्स्की – भाषा की प्रयुक्ति व्याकरण और सामाजिक संदर्भों के बीच संतुलन बनाए रखती है।

  2. डेल हाइम्स – उन्होंने “संचार योग्यता” (Communicative Competence) की अवधारणा दी, जो भाषा के सही और प्रभावी प्रयोग को दर्शाती है।

  3. लैबॉव (Labov) – उनका मानना था कि भाषा प्रयुक्ति सामाजिक वर्ग, स्थान और सांस्कृतिक परिवेश के अनुसार बदलती है।

आदि मानव में अपने भावों एवं विचारों तथा अपनी संवेदनाओं की प्रवृत्ति एवं इनके परस्पर विनियम के लिए आंगिक भाषा का प्रयोग किया होगा इसके बाद ध्वनि प्रतीकों का प्रयोग आरंभ हुआ। ध्वनि प्रतीकों के रूप में अविस्कृत भाषा को वाचिक भाषा कह सकते हैं। सभ्यता के विकास के साथ साथ वाचिक भाषा को स्थूल अथवा दृश्य रूप स्थायित्व प्रदान करने के लिए रेखांकन और चित्रांकन का सहारा लिया गया। भाषा के इसी चित्र रूप का विकास अंतत: लिपि के उद्भव का कारक बना। कलांतर में भाषा का लिपि रूप अस्तित्व में आया। प्रयुक्ति वस्तुतः एक तरह का भाषा रूप है विभिन्न संदर्भ में भाषा के स्वरूप में भी परिवर्तन होता रहता है। स्वाभाविक एवं स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए भाषा की प्रकृति को लचीला होना ही पड़ता उसका यही लचीलापन किसी भी भाषा से कोई भी काम लेने में सहायता करता है हिंदी की प्रयुक्तियों को दो रूपों में समझा जा सकता है-

१. भाषा शैली के संदर्भ में

२. भाषा प्रयुक्ति के संदर्भ में

१. भाषा शैली के संदर्भ में:-

इस दृष्टि से संस्कृतनिष्ठ हिंदी या साहित्यिक हिंदी अरबी फारसी मिश्रित हिंदी और सामान्य बोलचाल की हिंदी या हिंदुस्तानी हिंदी जैसी भाषा शैलियां दिखाई पड़ती है। हिंदी की एक ही विषय क्षेत्र में इन सभी शैलियों का प्रयोग हो सकता है।

उदाहरण के लिए लेखन के किसी भी रूप जैसे कहानी उपन्यास नाटक कविता या लेख आलेख आदि में इनमें से किसी भी शायरी का उपयोग किया जा सकता है। सामान्य बोलचाल में इन सभी रूपों में से किसी एक का यह सभी का मिलाजुला रूप व्यवहार में आ सकता है।

२. भाषा प्रयुक्ति के संदर्भ में

भाषा प्रयुक्ति में भाषा का स्वरूप विषय नियंत्रित करता है इसलिए विषय से संबंधित शब्दावली अभिव्यक्तियां तथा विषयानुरूप वाक्य संरचना होती है। हिंदी प्रयुक्तियों में भाषा का एक विशेष स्वरुप वन एक विषय के संदर्भ में एक शब्द का एक ही अर्थ होता है।

जैसे कार्यालय क्षेत्र में आदेश निर्देश और अनुदेश जैसे परिभाषिक शब्द शब्द अपने निश्चित सन कल्पनाएं लिए हुए कार्यालयों प्रयुक्ति में उपयोग होते हैं। जबकि सामान्य भाषा में इनका उपयोग लगभग एक अर्थ में किया जा सकता है।

जैसे प्रयोग शब्द का अर्थ विज्ञान की भाषा में व्यवहार करना या उपयोग करना नहीं होकर परीक्षण करना क्या जांचना हो जाता है।

कार्यालय की प्रयुक्ति में शब्द या अधूरे वाक्य पूरे वाक्य का अर्थ देते हैं।

जैसे तत्काल गोपनीय हेतु विभाग आवश्यक अति आवश्यक इन अभिव्यक्तियों का प्रयोग अन्य प्रयुक्तियों में नहीं होता।

‘आप को चेतावनी दी जाती हैं’ ‘स्पष्टीकरण दें’ ‘कारण बताओ, आदि अधूरी वाक्यों की प्रयुक्तियां संबंधित व्यक्ति या विभाग के लिए पूरा अर्थ देने वाली होती है।

वृत वाणिज्य या व्यापारिक क्षेत्र में कुछ विशेष शब्दों के अर्थ एवं प्रयोग व्यवसाय के क्षेत्र में सुनिश्चित होते हैं।

जैसे मुद्रा पूंजी उत्पादन दिवालिया आदि व्यापारिक सूचनाओं में भाषा का प्रयोग एक विशेष रूप में किया जाता है।

अन्य प्रयुक्तियों में यह संभव है इनमें अर्थ अथवा संदर्भ में अंतर को व्यापारिक सूचनाओं भाषा का प्रयोग एक विशेष रूप में किया जाता है।

प्रयुक्ति की अवधारणा विविध प्रयुक्ति क्षेत्र क्या है

दिवालिया – खरीदारी की मांग

यदि किसी व्यक्ति की जमा धनराशि समाप्त हो जाती है और वह बैंक से ऋण लेता है तथा बाद में सूद समेत वापस करने की स्थिति में नहीं रहता तब उसका सब कुछ ले लिया जाता है तथा उस व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं रहता।

समाचार पत्रों में बाजार भाव पढ़ते समय सोना उछला, चांदी लुढ़की, गेहूं में तेजी, जीरा भड़का, चावल टूटा जैसे विशेष प्रयोग देखने को मिलते हैं।

भौतिकी क्षेत्र में: उष्मा, ध्वनि, नाभिकीय, ऊर्जा, विद्युत, चुंबक, सुचालक इत्यादि।

रसायन के क्षेत्र में: इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, परमाणु, अणु, कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन इत्यादि।

गणित के क्षेत्र में: वर्ग, धन, जोड़, घटाव, गुणा, भाग, समकोण, त्रिभुज, अनुपात, चतुर्भुज इत्यादि।

इतिहास के क्षेत्र में: हड़प्पा सभ्यता, मुगल काल, सल्तनत नवाब, मोहनजोदड़ो इत्यादि।

कहानी के क्षेत्र में: शिक्षा जगत, परियां, चोर डाकू की कहानी इत्यादि।

भूगोल के क्षेत्र में: मानचित्र, अक्षांश, देशांतर इत्यादि।

बैंक के क्षेत्र में: बजट, रोकड़ा, बचत खाता, मुद्रा, ड्राफ इत्यादि।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में: धूमकेतु, सौर मंडल, ग्रह, उपग्रह इत्यादि।

इन सभी प्रयुक्तियां हैं जो विशिष्ट क्षेत्रों में विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।

इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि हिंदी की प्रयुक्तियों का अपना संदर्भ प्रकार्य एवं प्रयोग निश्चित है इन प्रयुक्तियों की संरचना इतनी स्पष्ट है कि हम उनके प्रयोग द्वारा ही यह कह सकते हैं कि यह किसी क्षेत्र या विषय विशेष की हिंदी हैं वैज्ञानिक या गणितीय भाषा की महत्वपूर्ण विशेषता संकेतों का प्रयोग है। हिंदी अथवा अन्य भाषाओं की वैज्ञानिक या गणितीय भाषा में संकेत प्राय: रोमन या ग्रीक अक्षरों या चिह्नों के रूप में प्रयुक्त होते हैं यद्यपि उच्चरण के समय ये शब्द के रूप में व्यवहार किए जाते हैं। परंतु लिखने में केवल संकेतों या चिन्हों का प्रयोग होता है।

उदाहरण: – , + , %, x

भाषा प्रयुक्ति की विशेषताएँ

भाषा प्रयुक्ति (Language Usage) भाषा के प्रभावी और उचित प्रयोग को संदर्भित करती है। यह संचार की स्पष्टता, सामाजिक संदर्भ और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुसार भाषा के उपयोग को निर्धारित करता है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. संदर्भ-आधारित (Contextual)

भाषा प्रयुक्ति संदर्भ के अनुसार बदलती है। औपचारिक और अनौपचारिक स्थितियों में भाषा के प्रयोग में अंतर होता है। उदाहरण के लिए, कार्यालय में प्रयुक्त भाषा और घर पर प्रयुक्त भाषा अलग होती है।

2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव (Social and Cultural Influence)

भाषा का प्रयोग सामाजिक और सांस्कृतिक मानकों पर निर्भर करता है। अलग-अलग क्षेत्रों, जातियों और समुदायों की भाषा शैली भिन्न होती है।

3. आशयपरकता (Intentionality)

भाषा प्रयुक्ति का उद्देश्य स्पष्ट और प्रभावी संप्रेषण होता है। भाषा का प्रयोग इस बात पर निर्भर करता है कि वक्ता श्रोता को क्या संदेश देना चाहता है।

4. प्रयोजनानुसार परिवर्तनशीलता (Adaptability)

भाषा का प्रयोग विषयवस्तु, माध्यम और श्रोताओं के अनुसार बदलता है। लेखन, भाषण, संवाद, साहित्यिक लेखन आदि में प्रयुक्त भाषा भिन्न होती है।

5. व्याकरणिक शुद्धता (Grammatical Accuracy)

भाषा प्रयुक्ति में व्याकरण, शब्दावली और वाक्य संरचना की सटीकता महत्वपूर्ण होती है, जिससे संचार प्रभावी बनता है।

6. संप्रेषणीयता (Communicability)

भाषा का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि वह श्रोता या पाठक के लिए स्पष्ट और समझने योग्य हो। अस्पष्टता या भ्रम की स्थिति भाषा प्रयुक्ति को कमजोर कर सकती है।

7. माध्ययनुसार भिन्नता (Variation Based on Medium)

मौखिक भाषा और लिखित भाषा में अंतर होता है। उदाहरण के लिए, अनौपचारिक वार्तालाप में संक्षिप्त शब्द और अपभ्रंश शब्दों का प्रयोग अधिक होता है, जबकि औपचारिक लेखन में शुद्ध और व्यवस्थित भाषा का प्रयोग किया जाता है।

8. शैलीगत विविधता (Stylistic Variation)

भाषा प्रयुक्ति साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान, प्रशासन, और तकनीकी क्षेत्रों में अलग-अलग होती है। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट शब्दावली और शैली होती है।

9. लचीलापन (Flexibility)

समय और आवश्यकता के अनुसार भाषा प्रयुक्ति में बदलाव आता है। तकनीकी विकास, सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक प्रभावों के कारण भाषा की शब्दावली और प्रयोग शैली विकसित होती रहती है।

10. भाषागत रचनात्मकता (Linguistic Creativity)

भाषा प्रयुक्ति में नयापन और सृजनात्मकता का समावेश होता है। साहित्यिक कृतियों, विज्ञापनों और संवाद में भाषा की नवीनता देखी जा सकती है।

निष्कर्ष:
भाषा प्रयुक्ति का प्रभावी उपयोग किसी भी संचार प्रक्रिया के लिए आवश्यक है। यह संदर्भ, उद्देश्य, श्रोताओं, और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के अनुसार बदलती है और इसकी विशेषताएँ भाषा को अधिक प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाती हैं।

भाषा प्रयुक्ति के घटक:

  1. आशय (Intention): वक्ता किस उद्देश्य से भाषा का प्रयोग कर रहा है (सूचना देना, आदेश देना, विनती करना, प्रश्न पूछना आदि)।

  2. संदर्भ (Context): भाषा का उपयोग किस संदर्भ में किया जा रहा है (औपचारिक, अनौपचारिक, सामाजिक या व्यावसायिक परिस्थितियां)।

  3. शैली (Style): भाषा की शैली औपचारिक या अनौपचारिक हो सकती है, जैसे साहित्यिक भाषा, बोलचाल की भाषा, तकनीकी भाषा आदि।

  4. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Socio-Cultural Factors): वक्ता और श्रोता की सामाजिक स्थिति, क्षेत्रीय पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक संदर्भ।

  5. वाक्य संरचना और शब्दावली (Syntax & Vocabulary): प्रयुक्त शब्दों और व्याकरणिक संरचना की भिन्नता, जो संदर्भ के अनुसार बदलती है।

भाषा प्रयुक्ति के प्रकार:

  1. औपचारिक भाषा प्रयुक्ति (Formal Language Usage):

    • सरकारी दस्तावेज़, कानूनी भाषा, व्यावसायिक संचार, शैक्षिक भाषा।

    • उदाहरण: “कृपया आवेदन पत्र समय पर जमा करें।”

  2. अनौपचारिक भाषा प्रयुक्ति (Informal Language Usage):

    • मित्रों, परिवार और अनौपचारिक बातचीत में प्रयुक्त भाषा।

    • उदाहरण: “अरे यार, तुने खाना खा लिया?”

  3. साहित्यिक भाषा प्रयुक्ति (Literary Language Usage):

    • कविता, कहानियाँ, नाटक और साहित्यिक लेखन में प्रयुक्त भाषा।

    • उदाहरण: “चंद्रमा की चांदनी में धरती नहा रही है।”

  4. व्यावसायिक भाषा प्रयुक्ति (Professional Language Usage):

    • तकनीकी, चिकित्सा, विज्ञान और व्यापार में प्रयुक्त भाषा।

    • उदाहरण: “यह परियोजना अगले वित्तीय वर्ष में लागू होगी।”

  5. प्रादेशिक भाषा प्रयुक्ति (Regional Language Usage):

    • किसी विशेष क्षेत्र की बोली, लहजा या स्थानीय भाषा का उपयोग।

    • उदाहरण: “भैया, तुम कहाँ जात हऊ?”

  6. मीडिया और विज्ञापन भाषा प्रयुक्ति (Media & Advertisement Language Usage):

    • प्रचार, समाचार और सोशल मीडिया में प्रयुक्त भाषा।

    • उदाहरण: “बस एक क्लिक में घर बैठे ऑर्डर करें!”

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