भाषा के विकास में अनुवाद की भूमिका (Bhasha ke vikas me Anuvad ki bhumika)
भाषा की प्रकृति बहुत हद तक मानव प्रकृति के समान होती है। मनुष्य वही चीज खा सकता है जो उसकी प्रकृति के अनुकूल हो। भाषा भी वही तत्व ग्रहण करती है जो उसकी प्रकृति के अनुकूल होती है। जिस प्रकार मनुष्य परस्परिक विचार विनिमय से लाभांवित होती है उसी प्रकार भाषा भी अपने विकास के लिए आदान-प्रदान की अपेक्षा रखती है।
बहुभाषिकता आज के समाज की प्रकृति है इस परिवेश में अनुवाद कार्य दो भिन्न भाषा भाषियों के बीच सेतु के समान है वातावरण के परिवर्तन से भी सभी भाषाओं में परिवर्तन आ जाता है। भाषा में इसी परिवर्तन के कारण अनेक शब्दों का आगमन होता है। अन्य भाषाओं के शब्दों का स्वागत होता है और अनेक शब्द ऐसे भी होता है जो प्रयोग से दूर चले जाते हैं अनेक शब्द अनेक अर्थो के साथ भिन्न प्रयोग में आते दिखाई पड़ते हैं। वेद की रचनाओं में ‘उष्ट्र’ शब्द का प्रयोग जंगली बैल के लिए किया गया है। कालांतर में वही शब्द भिन्न माहौल में आकर ऊंट शब्द में परिवर्तित हुआ जिसका जंगली बैल के साथ कोई संबंध नहीं। इस प्रकार विद्यार्थियों के लिए ‘कलम’ शब्द और माली के लिए ‘कलम’ शब्द इन दोनों में बड़ी भिन्नता है भाषा के विकास या उसकी परिवर्तनशीलता का बहुत बड़ा श्रेय सामाजिक वातावरण में परिवर्तन को जाता है। जिसमें ज्ञान बुद्धि और नए विचारों का समावेश भी शामिल है।
यूरोप में अनुवाद क्रम तथा अनुवाद सिद्धांत चिंतन की स्वच्छ एवं सुदीर्घ परंपरा दिखाई पड़ती है। भारत में वैसी परंपरा नहीं है। यूरोपीय समाज में होने वाली धार्मिक और राजनीतिक उथल-पुथल एवं परिवर्तन के दौरान अनुवाद की भूमिका इस रूप में महत्वपूर्ण रही की इसने बाइबल को जिन भाषा में उपलब्ध कराया और ईश्वर तथा मनुष्य के बीच मध्यस्थता को खत्म करने का काम किया।
कोई भाषा तब तक विकसित नहीं हो सकती जब तक उसे साहित्य की घेरे से बाहर ना निकल जाए। यदि कोई भाषा सिर्फ साहित्य की भाषा बनी रहेगी तो उसे भाषा का साहित्य विकसित होगा लेकिन उसे भाषा का दूसरा पक्ष पिछड़ा हुआ रहेगा निश्चित रूप से भाषा के स्वर्णिम विकास के लिए अनुवाद नितांत जरूरत है पश्चिम के नए ज्ञान के जब भारत परिचित हुआ तब अनुवाद ही एकमात्र ऐसा माध्यम बना जिससे वह ज्ञान जन सामान्य तक पहुंचे लक्ष्य भाषा उन्नति हो ज्ञान की भंडार बढ़े और उसकी शब्दावली और अभिव्यक्ति क्षमता का विस्तार हो।
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रीतिकाल में अनुवाद की परंपरा बनती गहराती दिखाई पड़ती है। रीतिकालीन काव्य शास्त्रियों ने संस्कृत काव्य शास्त्री ग्रंथों का छायानुवाद और भावानुवाद प्रस्तुत किया भानूदंत की ‘रसमंजरी’ मम्मट का ‘काव्य प्रकाश’ विश्वनाथ का ‘साहित्य दर्पण’ आदि ग्रंथों के अनुवाद रीतिकाल में ही हुआ। अनेक रीतिकालीन आचार्यों ने रसनायक नायिका भेद अलंकार चांद आदि के लक्षण ग्रंथों को हिंदी में प्रस्तुत किया और इससे निश्चित रूप से हमारी भाषा समृद्ध और विकसित हुई।
मध्य कालीन भाषा में अनुवाद की भूमिका दिशा क्षेत्र एवं स्वरूप परिवर्तित होता दिखाई देता है मुगल काल में प्रशासनिक काम काज की भाषा फारसी थी। दूरदर्शी सम्राट अकबर ने अनुवाद के कार्य को गहराई से समझा और इसके लिए अलग से स्वतंत्र अनुवाद विभाग की स्थापना की तथा संस्कृति एवं अरबी फारसी के विद्वानों को नियुक्त किया संस्कृत ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद किया गया। अबुल फजल, फासीम वेग, दरासिकोह प्रमुख हस्ताक्षर रहे। जिन्होंने अनुवाद के जरिए महत्वपूर्ण कार्य किया अनुवाद के जरिए वैदिक साहित्य का यूरोप में प्रचार प्रसार बढ़ता गया राजा राममोहन राय ने भी इससे प्रभावित होकर उपनिषदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अनूदित उपनिषद का प्रभाव जर्मनी में इतना ज्यादा पड़ा कि वहां के लोगों में संस्कृत के प्रति रूझान बढ़ी भारतीय साहित्य का विदेशी भाषाओं में अनुवाद और देशी भाषाओं का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने की परंपरा स्थापित हुई।
अनुवाद की प्राथमिक जरूरत होती है उचित शब्दों का संग्रह और निर्माण यदि किसी भाषा में तकनीकी प्रौद्योगिकी विज्ञान संबंधी शब्द भंडार की परंपरा नहीं है वहां पर शब्द भंडार में वृद्धि एवं संग्रह के लिए प्रयास यह किया जाता है कि विदेशी भाषा को शब्दों को यथासंभव थोड़ा बहुत परिवर्तन या संशोधन कर उसे उसी रूप में अपना लिया जाए। जैसे हिंदी ने इस दिशा में तेजी से अपना कदम बढ़ाया है।
बैंकिंग क्षेत्र में भी हिंदी और अनुवाद से अनेक नए शब्द प्रयोग में आए हैं। बैंक और अन्य सेवा क्षेत्र के लिए ये जरूरी है कि वह बेहतर ग्राहक सेवा का प्रबंध करें बैंकिंग क्षेत्र में अंग्रेजी के भी अनेक शब्द लिपि परिवर्तन के साथ उसी रूप हिंदी में स्वीकार किया गया है बिल, ड्राफ, शेयर बाजार, चेक बुक, स्टाम्प, काउंटर लॉकर, टॉकन आदि। अनुवाद से हिंदी में अंग्रेजी से अनेक शब्द आए हैं। जैसे टग आफ वर – रस्साकसी, ऑडिटोरियम – सभा कक्ष, एयर होस्टेस – विमान परिचारिका, पेयस कॉन्फ्रेंस – शांति सम्मेलन इत्यादि।
कार्यालय भाषा के अनेक पारिभाषिक शब्द हिंदी में अनेक स्रोतों से आए हैं। जैसे अरबी फारसी से हल्फ नमा, सुलह, दाखिल, खारीज, कानूनी कारवाई इत्यादि।
जिस प्रकार कविता के अर्थ संप्रेषण एवं अर्थ विश्लेषण के लिए कविता में प्रयुक्त बिंबो एवं प्रतीकों का विश्लेषण करना आवश्यक है उसी प्रकार बिंबो और प्रतीकों के अनुवाद में अनुवादक को अपनी विशिष्ट योग्यता का परिचय देना पड़ती है। अनुवादक के लिए यह चुनौती भरा काम है। अब हिंदी के अनुवादकों ने इस कठिन काम के चुनौती को स्वीकार किया है और बिम्बात्मक कविताओं को रोचक अनुवाद किए जा रहे हैं। इन अनुवादों से हिंदी में नई अभिव्यक्तियां उभर रही है नए पद विन्यास और नई शब्दावलियों से हिंदी भाषा का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है।
भाषा एवं साहित्य की समृद्धि में अनुवाद की नितांत आवश्यकता है विविधता में एकता स्थापित करने का माध्यम अनुवाद ही है विश्व की सभी भाषाओं को आत्मसात करना किसी एक व्यक्ति के लिए संभव नहीं है परंतु अनुवाद के जारी सभी भाषाओं एवं बोलियों में अभिव्यक्ति सभ्यता संस्कृति सामाजिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।