प्रगतिवाद की विशेषताएं।। प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रवृत्तियां लिखिए
प्रगतिवाद का परिचय
छायावाद के घोर व्यक्तिवाद के प्रतिक्रिया स्वरूप प्रगतिवाद का जन्म हुआ। जो विचारधारा सामाजिक क्षेत्र में समाजवाद, राजनीतिक क्षेत्र में साम्यवाद तथा दार्शनिक क्षेत्र में द्वंदात्मक भौतिकवाद के नाम से जानी जाती है, साहित्य क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मार्क्सवादी या साम्यवादी दृष्टि से लिखे हुई काव्यधारा प्रगतिवाद है। छायावाद की सूक्ष्म आकाश में पति काल्पनिक उड़ान भरने वाली या रहस्यवाद के निर्जन अदृश्य शिखर पर विराम करने वाली कल्पना को जन-जीवन का चित्रण करने के लिए एक हरी-भरी ठोस जनपूर्ण धरती की आवश्यकता ए थी। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु ‘रोटी का राग’और’क्रांति की आग’के लिए प्रगतिवाद आगे आया।प्रगतिवाद के उदय के संबंध में तीन प्रकार के मान्यताएं प्रचलित है:-(1) इसके उदय का कारण सन् 1936 ई. में लखनऊ में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ है। (2) इसके उदय का कारण रुसी कम्युनिस्टों का प्रचार-प्रसार है।(3) इसका उदय एकाएक या रूसी प्रस्ताव से नहीं हुआ है। यह बहुत पहले से शोषित समाज में चली आई असंतोष और विद्रोह की भावना का फल है। प्रगतिवाद प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के साथ-साथ एक साहित्यिक आंदोलन अवश्य था , परंतु इसकी जुड़े हमारे देश की आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों में थी। यह प्रगतिवाद केवल कविता तक सीमित न रह कर गद्य की सभी विधाओं में खुलकर उभरा। हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद एक ऐसी विचारधारा है, जो समाज की वास्तविक परिस्थितियों को दर्शाने और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने पर जोर देती है। यह विचारधारा उन प्रवृत्तियों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में उभरी, जो भौतिक जीवन से दूरी बनाए रखती थीं और केवल आत्मचिंतन तक सीमित थीं।
प्रगतिवाद का आधार कार्ल मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद से प्रेरित है। यह विचारधारा मानती है कि समाज में मौजूद आर्थिक असमानता ही सभी समस्याओं की जड़ है। इसलिए, इसे खत्म करके ही एक समान और खुशहाल समाज बनाया जा सकता है।
प्रगतिवाद के मुख्य विचार
- सामाजिक यथार्थ का चित्रण – इसमें समाज की वास्तविक समस्याओं को दिखाया जाता है।
- आर्थिक असमानता का विरोध – समाज में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को खत्म करने की बात की जाती है।
- सर्वहारा (मजदूर) वर्ग के प्रति सहानुभूति – मजदूरों और किसानों के अधिकारों की रक्षा पर बल दिया जाता है।
- कला के बजाय जीवन को महत्व – सुंदरता या भावुकता से अधिक वास्तविकता और विवेक को महत्व दिया जाता है।
- समाज सुधार की भावना – साहित्य का उपयोग केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने के लिए किया जाता है।
प्रगतिवाद और छायावाद का अंतर
छायावाद के समय केवल किसानों की समस्याओं को साहित्य में स्थान दिया जाता था, लेकिन प्रगतिवाद ने मजदूर वर्ग की पीड़ा को भी उजागर किया। छायावादी साहित्य में कल्पनाशीलता और भावुकता अधिक थी, जबकि प्रगतिवादी साहित्य तर्क और सामाजिक यथार्थ पर आधारित है।
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प्रगतिवाद की विशेषताएं |
प्रगतिवाद कविता की प्रमुख विशेषताएं
(1) रूढ़ियों का विरोध:-
प्रगतिवादी साहित्य विविध समाजिक एवं सांस्कृतिक रूढ़ियों एवं मान्यताओं का विरोध प्रस्तुत करता है। उसका ईश्वरीय विधान, धर्म, स्वर्ग, नरक आदि पर विश्वास नहीं है। उसकी दृष्टि में मानव महत्ता सर्वोपरि है।
(2) शोषण का विरोध:-
इसकी दृष्टि में मानव शोषण एक भयानक अभिशाप है। साम्यवादी व्यवस्था मानव शोषण का हर स्तर पर विरोध करती है। यही कारण है कि प्रगतिवादी कवि मजदूरों, किसानों, पीड़ितों कि दीन दशा का कारूणिक चित्र खींचता है। निराला की ‘भिक्षुक’कविता में यही स्वर है। बंगाल के आकार का दुखद चित्र खींचते हुए निराला जी लिखते हैं:-
बाप बेटा भेचता है भूख से बेहाल होकर।
(3) शोषणकर्त्ताओं के प्रति घृणा का स्वर:-
प्रगतिवादी कविता में पूंजीवाद व्यवस्था को बल प्रदान करने वाले लोगों के प्रति घृणा का स्वर है ‘दिनकर’का आक्रोश भरा स्वर देखिए-
श्वानों को मिलता दूध- वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं
(4) क्रांति की भावना:-
वर्गहीन समाज की स्थापना प्रगतिवाद का पहला लक्ष्य है इसलिए वह आर्थिक परिवर्तनों के साथ समाजिक मान्यताओं में भी परिवर्तन की अपेक्षा करता है। इसके लिए वह क्रांति का आव्हान करता है ताकि जीर्ण-शीर्ण रूढ़ियॅं हमेशा के लिए समाप्त हो जाए।
(5) मार्क्सवाद का प्रचार:-
प्रगतिवाद साहित्यकार जीवन के भौतिक पक्ष का उत्थान करना चाहते हैं इसलिए मानवता की प्रतिष्ठा इनका मूल लक्ष्य है। सामाजिकता की प्रधानता के कारण प्रगतिवादी जीवन की स्थूल समस्याओं का विवेचन साहित्य में करते हैं।
(6) नारी भावना :-
प्रगतिवादी कवियों का विश्वास है कि मजदूरों और किसानों की तरह साम्राज्यवादी समाज में नारी भी शोषित है। वह पुरुष की दासताजन्य लौह-श्रृंखला बंदिनी है। वह आज अपना स्वरूप खोकर वासना -पूर्ती का उपकरण मात्र रह गयी है। अतः कवि कहता है-
‘ मुक्त करणारी तन।’
प्रगतिवादी कवि नरेंद्र शर्मा ने वेश्या के प्रति सहानुभूति जताते हुए लिखा है-
गृह सुख से निर्वासित कर दो, हाय मानवी बनी सर्पिणी।
(7) यथार्थ चित्रण:-
लैकिक और यथार्थ धरातल पर स्थित होने के कारण प्रगतिवाद जन-जीवन कैसे क्या है। सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण प्रगतिवाद में दो धरातलों पर प्रकट हुआ है-सामाजिक जीवन का यथार्थ- चित्रण और सामान्य प्राकृतिक परिवेश का चित्रण। डॉ. नामवर सिंह के अनुसार – ‘सामाजिक यथार्थ दृष्टि प्रगतिवाद की आधारशिला है।’
(8) समसामयिक चित्रण:-
प्रगतिवादी कवियों में देश-विदेश मैं उत्पन्न सम-सामायिक समस्याओं और घटनाओं की अनदेखी करने की दृष्टि नहीं है। संप्रदायिक समस्याओं, भारत- पाक विभाजन, कश्मीर समस्या, बंगाल का अकाल , बाढ़, अकाल, दरिद्रता, बेकारी, चरित्रहीनता आदि कॉइन कवियों ने बड़े पैमाने पर चित्रण किया है।
प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
हिंदी साहित्य में प्रगतिवादी आंदोलन ने कई महान कवियों को जन्म दिया, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक यथार्थ, मजदूरों-किसानों के संघर्ष और आर्थिक असमानता को उजागर किया। ये कवि समाज सुधार और सामाजिक न्याय के पक्षधर थे।
1. सुमित्रानंदन पंत (1900-1977)
👉 विशेषता: पंत जी छायावादी कवि थे, लेकिन बाद में वे प्रगतिवाद की ओर झुके। उन्होंने सामाजिक यथार्थ और श्रमजीवियों के संघर्ष को अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- युगांत
- ग्राम्या
- लोकायतन
- रूप-अरूप
2. रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974)
👉 विशेषता: उन्हें “राष्ट्रीय कवि” कहा जाता है। उनकी रचनाएँ क्रांतिकारी भावनाओं और सामाजिक अन्याय के विरोध की अभिव्यक्ति हैं।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- रेणुका
- हुंकार
- रश्मिरथी
- संस्कृति के चार अध्याय
3. नागार्जुन (1911-1998)
👉 विशेषता: वे “जनकवि” के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताएँ आम आदमी, किसानों और मजदूरों के दुःख-दर्द को दर्शाती हैं।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- युगधारा
- सतनाम
- खिचड़ी विप्लव देखा हमने
- हरिजन गाथा
4. केदारनाथ अग्रवाल (1911-2000)
👉 विशेषता: उनकी कविताओं में मजदूर वर्ग के संघर्ष को प्रमुखता दी गई है। वे क्रांतिकारी और समाजवादी चेतना के कवि थे।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- युग की गंगा
- नींद के बादल
- लोक और अलोक
- अपूर्वा
5. त्रिलोचन (1917-2007)
👉 विशेषता: वे एक प्रयोगधर्मी कवि थे, जिन्होंने आम जनता की भाषा में कविता लिखी। उनकी रचनाएँ गाँव, गरीब और श्रमिक वर्ग के जीवन से जुड़ी थीं।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- धरती
- गुलाब और बुलबुल
- अपने लोग
- द्वार
6. शमशेर बहादुर सिंह (1911-1993)
👉 विशेषता: वे प्रेम और यथार्थ के संतुलन के कवि थे। उनकी कविता में क्रांति, समाजवाद और मानवीय संवेदनाएँ प्रमुख रूप से दिखाई देती हैं।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- चुका भी हूँ नहीं मैं
- बात बोलेगी
- कुछ कविताएँ
7. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (1911-1987)
👉 विशेषता: उनकी कविताएँ प्रगतिवादी होते हुए भी प्रयोगवाद की ओर झुकती हैं। वे स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों के पक्षधर थे।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- इंद्रधनुष रौंदे हुए ये
- बावरा अहेरी
- हरी घास पर क्षण भर
8. मुक्तिबोध (1917-1964)
👉 विशेषता: वे हिंदी साहित्य में आधुनिक चेतना और आत्मसंघर्ष के कवि माने जाते हैं। उनकी कविताओं में पूँजीवाद और साम्राज्यवाद के प्रति गहरी असहमति झलकती है।
👉 प्रसिद्ध रचनाएँ:
- चाँद का मुँह टेढ़ा है
- भूरी-भूरी खाक धूल
- अँधेरे में
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निष्कर्ष:
इस प्रकार हम क्या कह सकते हैं कि प्रगतिवादी साहित्यकार जीवन के भौतिक पक्ष का उत्थान करना चाहते हैं। चाहे स्वंय प्रगतिवाद ने कोई विशेष महत्वपूर्ण रचना न दी हो, किंतु इसके प्रभाव से प्राय: सभी वर्गों के साहित्यकारों के दृष्टिकोण में प्राप्त विकास हुआ है।प्रगतिवाद के इन प्रमुख कवियों ने अपनी कविताओं में समाज की वास्तविकता को उजागर किया और मजदूरों, किसानों और शोषित वर्ग की पीड़ा को स्वर दिया। इनके साहित्य ने हिंदी कविता को नए सामाजिक और क्रांतिकारी आयाम दिए।