कोई नहीं पराया कविता की व्याख्या क्लास 8, कोई नहीं पराया कविता का भावार्थ, Koi Nahi Paraya Ka Vyakhya Class 8
आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम कोई नहीं पराया कविता की व्याख्या क्लास 8, कोई नहीं पराया कविता का भावार्थ को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 8 के पाठ 5 कोई नहीं पराया से लिया गया है जिसके कवि गोपाल दास नीरज है। तो चलिए कोई नहीं पराया कविता का व्याख्या क्लास 8 , koi nahi paraya ka vyakhya Class 8 को देखें-`
कवि परिचय – गोपालदास ‘नीरज’
गोपालदास ‘नीरज’ का जन्म सन् 1926 ई. में उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के पुरावली (या पुराबला) नामक गाँव में हुआ था।
नीरज जी हिंदी साहित्य और फिल्म गीतों के एक बहुत ही लोकप्रिय कवि और गीतकार रहे हैं। वे मंचों पर कविता पाठ करने वाले प्रसिद्ध मंचीय कवि भी थे।
नीरज जी की रचनाओं में जीवन की प्यास, भाग्य का खेल (नियति) और मृत्यु के बोध की झलक देखने को मिलती है। उनकी कविताएँ सरल, सरस और भावपूर्ण होती हैं।
इनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं:
- संघर्ष
- विभावरी
- अन्तर्ध्वनि
- प्राण-गीत
- दर्द दिया है
- आसावरी
- बादल बरस गए
- नदी किनारे
नीरज जी की भाषा सरल, मधुर और प्रवाहपूर्ण है, जो सीधे पाठकों के हृदय को स्पर्श करती है। हिंदी साहित्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
कोई नहीं पराया कविता की व्याख्या, कोई नहीं पराया कविता का भावार्थ
1. कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।
मैं न बाँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं न खड़ा हूँ जाति-पाँति की ऊँची-नीची भीड़ में।
मेरा धर्म न कुछ स्याही-शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है।
मुझसे तुम न कहो मंदिर-मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ,
मेरा तो आराध्य आदमी, देवालय हर द्वार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।
शब्दार्थ :
- पराया – दूसरा, जो अपना न हो
- जंग – लोहे पर लगने वाला मोरचा (जंग)
- जंजीर – बेड़ी, बंधन
- स्याही-शब्दों – लिखे हुए शब्द (किताबी धर्म)
- गुलाम – दास, पराधीन
- घट-घट में – हर प्राणी के भीतर
- आराध्य – पूज्य, जिसको पूजा जाए
- देवालय – मंदिर, पूजा का स्थान
संदर्भ :
यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक की कविता ‘कोई नहीं पराया’ से ली गई हैं। इस कविता के रचनाकार श्री गोपालदास ‘नीरज’ हैं।
प्रसंग :
इस कविता में कवि ने हमें यह प्रेरणा दी है कि हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं। हमें संकुचित सोच, जैसे – जात-पात, धर्म और भेदभाव छोड़कर पूरे संसार को अपना घर समझना चाहिए।
व्याख्या :
इस कविता में कवि स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सारा संसार ही उनका घर है, और इस दुनिया में कोई भी पराया नहीं है।
कवि का मन देश और समय (काल) की सीमाओं में बंधा नहीं है। वे जाति और ऊँच-नीच की भीड़ में खड़े नहीं रहना चाहते।
वे यह मानते हैं कि सच्चा धर्म किताबों में बंद नहीं होता, बल्कि प्रेम में होता है।
उनका विश्वास है कि अगर मन में प्रेम है, अपनापन है, तो हर दिल में ईश्वर (राम) हैं।
कवि यह भी कहते हैं कि उन्हें मंदिर या मस्जिद में जाकर सिर झुकाना जरूरी नहीं लगता। उनके लिए हर इंसान, हर घर, हर द्वार एक मंदिर के समान है।
वे मानते हैं कि ईश्वर इंसान के भीतर रहते हैं, इसलिए हर व्यक्ति ही उनके लिए पूजनीय है।
कवि ने अपने-पराए के भेदभाव को पूरी तरह छोड़ दिया है और पूरे संसार को अपना परिवार माना है। इसलिए वे कहते हैं – “कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।”
2. “कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इंसान है,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है।
अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़ कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी।
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती, सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।”
शब्दार्थ :
- अभिमान – गर्व, स्वाभिमान
- देवत्व – देवता जैसी भावना या स्थिति
- मनुजत्व – इंसान के गुण, इंसानियत
- अमरत्व – अमर होने की अवस्था
- मानवता – इंसानियत, आदमी के गुण
- सुकुमार – कोमल, सुंदर
- धरती – पृथ्वी
संदर्भ :
यह पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवि गोपालदास ‘नीरज’ द्वारा रचित कविता ‘कोई नहीं पराया’ से ली गई हैं। यह कविता कक्षा 8 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल है।
प्रसंग :
इस कविता में कवि ‘नीरज’ जी ने बताया है कि उन्हें पूरी मानवता से प्रेम है। वे मानव जीवन और धरती को सबसे सुंदर और पूजनीय मानते हैं। उनके लिए इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
व्याख्या :
इस कविता में कवि कहते हैं कि मनुष्य चाहे जैसे भी हो, उन्हें इंसान बहुत प्यारा लगता है।
कवि को अपनी इंसानियत पर बहुत गर्व है। वे कहते हैं कि उन्हें देवता बनना पसंद नहीं, बल्कि वे एक अच्छा इंसान बनना ज्यादा जरूरी मानते हैं।
वे कहते हैं कि अगर अमर होने के लिए इंसानियत और प्यार को छोड़ना पड़े, तो वो अमरता भी नहीं चाहिए।
उन्हें अमरता से ज्यादा इंसान होना अच्छा लगता है।
कवि यह भी कहते हैं कि वे स्वर्ग की सुखद कहानियाँ सुनना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें अपनी धरती, अपना जीवन और इंसानों का साथ ही सबसे सुंदर और प्रिय लगता है।
वे मानते हैं कि यह धरती सौ स्वर्गों से भी अधिक सुंदर, कोमल और प्यारी है।
इसीलिए वे अंत में फिर कहते हैं — “कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।” यानी सब इंसान अपने हैं और पूरी दुनिया उनका परिवार है।
3. “मैं सिखलाता हूँ कि जियो और जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को।
हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह घूल भी,
चलो इस तरह कुचल न जाय पग से कोई शूल भी।
सुख न तुम्हारा सुख केवल, जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।”
संदर्भ :
यह पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवि गोपालदास ‘नीरज’ की कविता ‘कोई नहीं पराया’ से ली गई हैं, जो कक्षा 8 की हिंदी पाठ्य पुस्तक में शामिल है।
प्रसंग :
इस अंश में कवि यह बताना चाहते हैं कि हमें केवल अपने सुख की नहीं, बल्कि समस्त संसार की भलाई की सोच रखनी चाहिए। “जियो और जीने दो” का सिद्धांत ही विश्व शांति का मार्ग है।
व्याख्या :
कवि कहते हैं कि मैं सबको यही सिखाना चाहता हूँ कि खुद जियो और दूसरों को भी जीने दो।
जितना हो सके, प्यार बाँटो। ऐसा प्रेम दिखाओ कि तुम्हारी मुस्कान से धूल जैसी तुच्छ चीज़ भी मुस्कुराने लगे।
चलते समय इस तरह चलो कि कोई काँटा भी तुम्हारे पैरों से दबे नहीं।
यानी किसी को भी तुम्हारे कारण कष्ट न हो।
कवि कहते हैं कि तुम्हारा सुख केवल तुम्हारा नहीं, उसमें समाज और दुनिया की भी भागीदारी होनी चाहिए।
जिस तरह कोई फूल पहले बगीचे को सजाता है, फिर वह किसी डाली की शोभा बनता है, उसी तरह व्यक्ति को पहले समाज के लिए उपयोगी बनना चाहिए।
इसलिए कवि का कहना है कि यह सोच छोड़ दो कि कौन अपना है और कौन पराया, क्योंकि पूरी दुनिया ही अपना घर है।
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