जरूरतों के नाम पर कविता के प्रश्न और उत्तर क्लास 9 pdf के साथ

जरूरतों के नाम पर कविता के प्रश्न और उत्तर क्लास 9 pdf के साथ महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर  जो अक्सर परीक्षा में पूछे जाते है

जरूरतों के नाम पर कविता के प्रश्न और उत्तर क्लास 9 pdf के साथ

प्रश्न – 1 : ‘जरूरतों के नाम पर’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर:
इस कविता का मूल भाव यह है कि समाज में सच्चे और ईमानदार लोगों को पहचान नहीं मिलती। जो सच बोलता है, लोग उसे अकेला छोड़ देते हैं। वयह कविता समाज की उस सच्चाई को दिखाती है, जिसमें सच्चे और ईमानदार लोगों की कोई खास अहमियत नहीं होती। कवि बताते हैं कि सच्चाई बोलने वाले लोग अक्सर अकेले रह जाते हैं, क्योंकि लोग झूठ और दिखावे को ज़्यादा पसंद करते हैं। जब कोई व्यक्ति समाज की गलत बातों का विरोध करता है, तो लोग उसे समझने की बजाय उससे दूर हो जाते हैं। कवि कहते हैं कि आज के समय में लोग अपनी जरूरतों के नाम पर एक-दूसरे की भावनाओं से खेलते हैं और फिर भी सवाल करते हैं कि ज़िंदगी क्या है? इस कविता में कवि ने एक सच्चे इंसान की पीड़ा को बहुत ही भावुक तरीके से दिखाया है।

प्रश्न – 2 : ‘जरूरतों के नाम पर’ कविता का सारांश लिखें।

उत्तर –
कुँवर नारायण की कविता ‘जरूरतों के नाम पर’ में समाज के उन लोगों की सच्चाई को सामने लाया गया है, जो अपने निजी फायदे के लिए सच्चे और ईमानदार लोगों की उपेक्षा करते हैं। कवि ने यह दिखाया है कि आज के समय में एक सच्चा और ईमानदार व्यक्ति समाज में अकेला पड़ जाता है, क्योंकि वह झूठ के साथ समझौता नहीं करता।

कविता में कवि खुद की बात करते हुए बताते हैं कि उन्होंने कभी किसी गलत बात को सही नहीं कहा। उन्होंने कभी झूठ के साथ मिलकर चलना पसंद नहीं किया। इसी वजह से कई बार लोग उन्हें गलत समझ लेते हैं और उनसे दूरी बना लेते हैं। कवि कहते हैं कि कई लोग खुद तो समाज की गलत व्यवस्था से लड़ नहीं पाए, लेकिन अगर कोई और लड़ता है या जीतता है, तो वे उसकी भी इज्जत नहीं कर पाते।

कवि को यह महसूस होता है कि उन्हें जानबूझकर समाज से अलग कर दिया गया है, जैसे कोई बेकार चीज़ को फेंक दिया जाए। लोग उनकी भावनाओं को नजरअंदाज करते हैं और उन्हें इस लायक नहीं समझते कि वे समाज के लिए जरूरी हैं। कवि कहते हैं कि जैसे किताब के अंत में जुड़ी कोई नैतिक कहानी होती है जिसे कोई नहीं पढ़ता, वैसे ही समाज में साहित्य और साहित्यकार की हालत हो गई है।

कविता में यह भी बताया गया है कि समाज में कुछ लोग जरूरतों का नाम लेकर सच्चाई को दबा देते हैं। वे कहते हैं कि समय की माँग यही है, इसलिए झूठ को अपनाना जरूरी है। लेकिन कवि इस बात को नहीं मानते। वे स्पष्ट कहते हैं कि गलत को गलत ही कहा जाना चाहिए, चाहे लोग कुछ भी कहें।

इस प्रकार, यह कविता हमें यह संदेश देती है कि सच्चाई पर टिके रहना आसान नहीं होता। समाज में बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो सच्चे लोगों को अकेला कर देते हैं। लेकिन फिर भी सच्चे लोगों को अपने रास्ते पर डटे रहना चाहिए, क्योंकि वही समाज के असली सुधारक होते हैं।

प्रश्न – 3 : ‘जरूरतों के नाम पर’ कविता के माध्यम से कुँवर नारायण ने क्या संदेश देना चाहा है, लिखें।

उत्तर:
कुँवर नारायण इस कविता के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि आज की दुनिया में ईमानदारी, सच्चाई और असली भावनाओं की कोई कीमत नहीं रह गई है। लोग सिर्फ अपने फायदे की सोचते हैं और जो सच्चाई की बात करता है, उसे अकेला कर देते हैं। कवि बताते हैं कि समाज ऐसे लोगों को तवज्जो नहीं देता जो सच बोलते हैं, बल्कि उन्हें हाशिए पर डाल देता है। कवि हमें सच और नैतिकता की अहमियत समझाने की कोशिश कर रहे हैं।

प्रश्न – 4 : ‘जरूरतों के नाम पर’ कविता में निहित संदेश को अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर:
इस कविता का संदेश यह है कि समाज में सच्चे और अच्छे लोगों की कद्र नहीं की जाती। जब कोई इंसान ईमानदारी से जीने की कोशिश करता है, तो लोग उसकी भावनाओं को समझने की जगह उसका मज़ाक उड़ाते हैं। वे अपनी ज़रूरतों के लिए उसे नुकसान भी पहुँचा सकते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि आज के समय में हमें सच्चाई और ईमानदारी की कद्र करनी चाहिए और सच्चे लोगों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।

प्रश्न – : कुँवर नारायण की काव्यगत-विशेषताओं को लिखें ।

प्रश्न – : कुँवर नारायण की एक कवि के रूप में उनकी विशेषताओं को लिखें ।

उत्तर :

कुँवर नारायण हिंदी कविता के ऐसे गंभीर और विचारशील कवि हैं जिनकी कविताएँ केवल भावुकता तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं। उनकी कविताओं में दर्शन, इतिहास, राजनीति, समाज और मानवता का सुंदर मिश्रण मिलता है।

1. विचारशील और दार्शनिक दृष्टिकोण के कवि

कुँवर नारायण की कविताओं में गहरा दार्शनिक चिंतन दिखाई देता है। वे जीवन के गूढ़ प्रश्नों से टकराते हैं – जैसे मृत्यु क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या है, मनुष्य की आत्मा कितनी स्वतंत्र है, और समाज की दिशा क्या होनी चाहिए। उनकी कविताएँ केवल भावों को व्यक्त नहीं करतीं, बल्कि एक विचार को जन्म देती हैं। उदाहरण के लिए, वे प्रेम, मृत्यु, पीड़ा जैसे विषयों को भी नए दृष्टिकोण से देखते हैं।

उनकी कविता “आत्मजयी” में वे लिखते हैं –

“मुझे मृत्यु से डर नहीं लगता,
पर जीवन से कभी-कभी डर लगता है…”

यह पंक्ति बताती है कि वे बाहरी दुनिया से ज़्यादा मनुष्य के भीतरी अनुभवों को कविता में स्थान देते हैं।

2. व्यापक मानवीय दृष्टिकोण

उनकी कविताएँ सिर्फ व्यक्तिगत अनुभवों तक सीमित नहीं हैं। वे मनुष्य की पूरी मानवता के लिए सोचते हैं। उनका आत्मबोध (self-realization) केवल “मैं” तक नहीं सिमटा, बल्कि “हम” तक फैला हुआ है। वे व्यक्ति और समाज के बीच का गहरा संबंध स्थापित करते हैं। इसलिए उनकी कविताएँ केवल भारतीय समाज ही नहीं, बल्कि वैश्विक संदर्भों में भी अर्थपूर्ण हो जाती हैं।

कविता “इतना कुछ” में वे कहते हैं –

“इतना कुछ हमारे बीच घटता है
और हम केवल चुप रहते हैं…”

इसमें वे समाज की संवेदनहीनता की ओर इशारा करते हैं, जो सब कुछ देखकर भी मौन है।

3. समकालीन समाज की गहरी समझ

कुँवर नारायण आज़ादी के बाद के भारत के बदलते सामाजिक ढांचे को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। उन्होंने देखा कि आज़ादी के बाद भी आम लोगों के जीवन में बहुत सी समस्याएँ जस की तस बनी रहीं। उनकी कविताओं में सत्ता, समाज और व्यक्ति के बीच की जटिलता दिखाई देती है। वे बताते हैं कि किस तरह व्यक्ति और सत्ता एक-दूसरे को चलाने का भ्रम पैदा करते हैं, लेकिन अंततः सत्ता ही व्यक्ति को नियंत्रित करती है।

“पहियों और पंखों वाली इस बेसिर-पैर की सभ्यता में
यह समझना मुश्किल है
कि आदमी समाज को चला रहा है या समाज आदमी को”

इस तरह की पंक्तियाँ हमारे समय की असलियत को उजागर करती हैं।

4. सच्चाई के पक्षधर और सामाजिक चेतना

उन्होंने उन लोगों की तरफ़दारी की जो सच्चाई के साथ खड़े होते हैं लेकिन उपेक्षित रहते हैं।

उन्होंने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि आज़ादी के बाद जिन नेताओं से देश को उम्मीद थी, वे भी अंततः उसी वर्ग से थे जो पहले से विशेषाधिकार प्राप्त था। समाज का वंचित वर्ग और सच्चाई के साथ खड़ा आम इंसान उपेक्षित रह गया। यह विरोध और पीड़ा उनकी कविताओं में बार-बार सामने आता है।

कविता “जरूरतों के नाम पर” की इन पंक्तियों में देखें –

“वे सब मिल कर
मेरी बहस की हत्या कर डालते हैं
जरूरतों के नाम पर…”

यह सीधे सत्ता की ओर संकेत करती है जो अपनी सुविधाओं के लिए सच्चाई को कुचल देती है।

5. सरल, सजीव और बोलचाल की भाषा

कुँवर नारायण की एक बड़ी विशेषता उनकी भाषा है। उन्होंने कविता को किताबों की कठिन भाषा से बाहर निकालकर आम बोलचाल की भाषा में ढाला। उनकी कविताओं में कोई अलंकारिक भव्यता नहीं होती, बल्कि एक सहजता और संप्रेषणीयता होती है। यही कारण है कि उनकी कविताएँ आम पाठकों के दिलों में भी जगह बना लेती हैं।

“घरेलू उपन्यासों के अंत में
लापरवाही से जोड़ दिया जाता हूँ”

(कविता: जरूरतों के नाम पर)

इसमें वे अपने को इतना महत्वहीन दिखाते हैं जैसे कोई किताब में बिना मतलब का जोड़ हो।

6. कम शब्दों में बड़ी बात कहना

उनकी कविताओं में शब्दों की मितव्ययिता (economy of words) साफ दिखती है। वे बहुत कम शब्दों में बड़ी बातें कह जाते हैं। यह उनकी कविता की शक्ति को और अधिक प्रभावशाली बनाता है। यही विशेषता उन्हें एक सिद्ध कवि बनाती है। हर पंक्ति में अर्थ की गहराई होती है।

कविता “एक चुप्पी”, से –

“एक चुप्पी कई शब्दों से ज़्यादा बोलती है”

यह पंक्ति उनके संक्षिप्त लेकिन मार्मिक लेखन की ताकत को दर्शाती है।

7. नई कविता आंदोलन में योगदान

वे नई कविता के प्रमुख स्तंभों में माने जाते हैं। उन्होंने परंपरागत विषयों से हटकर नए दृष्टिकोण अपनाए। उनकी कविता “आत्मजयी” एक प्रतीकात्मक महाकाव्य है जिसमें आत्मा की स्वतंत्रता और संघर्ष को दर्शाया गया है।

उन्होंने कविता को केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि बौद्धिक और विचारशील माध्यम बनाया। उनकी रचनाएँ नई कविता को विचार, भाषा और शिल्प की दृष्टि से समृद्ध बनाती हैं।

“अपने भीतर एक और दुनिया बसाना
और उसी में जीना
बाहरी दुनिया से लड़ते हुए…”

यह नई कविता की स्वतंत्र शैली और चिंतनशीलता का परिचायक है।

8. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चेतना

उनकी रचनाएँ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं से भी गहराई से जुड़ी होती हैं। उन्होंने महाभारत जैसे ग्रंथों को समकालीन संदर्भों में नए अर्थ दिए।
“वाजश्रवा के बहाने” जैसी रचना इसका उदाहरण है जहाँ वे नचिकेता की कथा के माध्यम से आधुनिक समय की समस्याओं को उजागर करते हैं।

9. मानवीय संवेदना के कवि

उनकी कविताओं में मानवीय संवेदना की झलक हर जगह मिलती है। वे हर उस व्यक्ति की आवाज़ बनते हैं जो पीड़ा में है, जो संघर्ष कर रहा है, जो सच्चाई के साथ खड़ा है। उन्होंने कविता को केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि बदलाव का साधन बनाया।

कविता “आज और अभी” में वे कहते हैं –

“जो बीत गया, वह बीत गया
पर जो आज है, उसे बचाना ज़रूरी है”

यह वर्तमान की अहमियत और मनुष्य की ज़िम्मेदारी को दर्शाता है।

निष्कर्ष :

कुँवर नारायण केवल एक कवि नहीं, बल्कि एक विचारक थे। उन्होंने कविता को जीवन, समाज और आत्मा से जोड़ा। उनकी कविताएँ सोचने, समझने और बदलने की प्रेरणा देती हैं। उनके काव्य में सादगी है, संवेदना है, और सबसे बढ़कर एक सत्य है – जो हर पाठक को छूता है।

“एक अच्छा कवि सिर्फ़ कविता नहीं लिखता,
वह एक बेहतर इंसान बनने की राह दिखाता है।”

 

1. “गलतफहामियों के बीच
बिल्कुल अकेला छोड़ दिया जाता हूँ …”

प्रश्न : इसके रचनाकार कौन हैं? प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर :
इस पंक्ति के रचनाकार कुँवर नारायण हैं।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि जब वे किसी बात को सही ढंग से समझाते हैं और किसी गलत बात को गलत साबित करते हैं, तो लोग उनकी बात का विरोध करने लगते हैं। वे उन्हें समझने के बजाय उन पर ही शक करने लगते हैं। इसी कारण कवि को अकेले छोड़ दिया जाता है और उन्हें ही गलतफहमियों में उलझा दिया जाता है।

कवि महसूस करते हैं कि जब वे सच बोलते हैं और किसी गलती की ओर इशारा करते हैं, तो लोग उल्टा उन्हें ही गलत साबित करने लगते हैं। इस वजह से वे अकेले पड़ जाते हैं और उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया जाता है कि जो वे सोच रहे हैं, वही कहीं गलत तो नहीं। यह स्थिति उनके लिए बहुत अकेली और परेशान करने वाली होती है।

 

2. ” वे जो अपने से जीत नहीं पाते
सही बात का भी जीतना सह नहीं पाते”

प्रश्न :
कवि और कविता का नाम लिखें। पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर :
इस कविता के रचनाकार कुँवर नारायण हैं और कविता का नाम ‘ज़रूरतों के नाम पर’ है।

इन पंक्तियों में कवि यह कह रहे हैं कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अंदर की कमजोरियों और कमियों पर कभी विजय नहीं पा पाते। वे खुद से ही हार जाते हैं। ऐसे लोग न तो सच्चाई का साथ दे पाते हैं और न ही किसी सही बात को स्वीकार कर पाते हैं।

जब कोई सच्चा और ईमानदार व्यक्ति किसी मुद्दे में जीत जाता है, तो ऐसे लोग उसकी जीत को सहन नहीं कर पाते। उन्हें लगता है कि उस व्यक्ति की जीत से उनकी ही हार उजागर हो रही है। इसलिए वे सही की जीत को भी नकारने लगते हैं।

इस पंक्ति में समाज में मौजूद उन लोगों की मानसिकता पर सवाल उठाया गया है जो खुद को सुधारने के बजाय सच्चाई से आँख चुराते हैं।

3. ”घरेलू उपन्यासों के अंत में
लापरवाही से जोड़ दिया जाता हैं।”

प्रश्न :
प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर :
यह पंक्ति ‘ज़रूरतों के नाम पर’ पाठ से ली गई है, जिसके लेखक कुँवर नारायण हैं।

इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि आज के समाज में अच्छे और सच्चे लोगों की कोई विशेष अहमियत नहीं रह गई है। जैसे किसी घरेलू उपन्यास के अंत में केवल दिखावे के लिए कुछ शिक्षाप्रद पुस्तकों के नाम जोड़ दिए जाते हैं—बिना यह सोचे कि कोई उन्हें पढ़ेगा भी या नहीं—वैसे ही समाज भी अच्छे और ईमानदार लोगों को केवल नाम के लिए याद करता है, पर असल में उन्हें कोई महत्व नहीं देता।

कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि समाज अब केवल जरूरतों के हिसाब से लोगों को देखता है। जिनकी सच्चाई और ईमानदारी से उसे कोई लाभ नहीं होता, उन्हें वह एक किनारे कर देता है। यह स्थिति बहुत दुखद है और सोचने पर मजबूर करती है।

4. ”और एक कवि से पूछते हैं कि जिन्दगी क्या है
जिन्दगी को बद्नाम कर।”

प्रश्न :
रचना का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर :
इस पंक्ति की रचना का नाम ‘ज़रूरतों के नाम पर’ है और इसके लेखक कुँवर नारायण हैं।

इस पंक्ति में कवि समाज के एक कड़वे सच को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की ज़िंदगियों को तबाह कर देते हैं, उनके जीवन में दुख और अंधकार भर देते हैं। फिर वही लोग एक कवि से आकर बड़ी सहजता से पूछते हैं – “ज़िंदगी क्या है?”

यह बहुत विडंबनापूर्ण स्थिति है। कवि का आशय है कि जिन लोगों ने ज़िंदगी को बदनाम किया है, जिन्होंने दूसरों के जीवन का महत्व नहीं समझा, वही लोग ज़िंदगी की परिभाषा जानने का ढोंग करते हैं।

कवि इस पंक्ति के माध्यम से समाज की उस मानसिकता की आलोचना करते हैं, जो सच्चाई को दबाता है, सच्चे लोगों को मिटा देता है, और फिर उसी सच्चाई की खोज में सवाल पूछता है।

5. ”मैं किसी अपयानजनक नाते की तरह
बेमुरौवत तोड़ दिया जाता हूँ।’

प्रश्न :
‘मैं’ का प्रयोग किसके लिए किया गया है? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर :
यह पंक्ति कुँवर नारायण की रचना ‘ज़रूरतों के नाम पर’ से ली गई है। इसमें ‘मैं’ का प्रयोग कवि ने स्वयं अपने लिए किया है।

इस पंक्ति में कवि यह कहना चाहते हैं कि जब वे किसी गलत बात का विरोध करते हैं और उसे गलत ठहराने की कोशिश करते हैं, तो समाज के कुछ लोग उनके खिलाफ चालें चलने लगते हैं। वे उन्हें बेवजह की बहसों में उलझा देते हैं और हर संभव प्रयास करते हैं कि कवि को ही गलत साबित कर दें।

ऐसे लोग बहस को अपनी ज़रूरतों का एक साधन बना लेते हैं और जब कवि उनके मतलब का नहीं रहता, तो उसे भी उसी तरह छोड़ देते हैं, जैसे कोई अपमानजनक या बेकार रिश्ता बिना किसी झिझक के, बेरुखी से तोड़ दिया जाता है।

कुल मिलाकर, कवि इस पंक्ति में उस दर्द को प्रकट करते हैं, जब एक सच्चा इंसान समाज की ज़रूरतें पूरी न कर पाने के कारण तिरस्कृत और अकेला छोड़ दिया जाता है।

6. ”वे सब मिलकर
मेरी बहस की हत्या कर डालते हैं”

प्रश्न :
‘वे सब’ कौन हैं? वे किसकी बहस की हत्या कर डालते हैं और क्यों?
अथवा, पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर :
इस पंक्ति में ‘वे सब’ उन लोगों की ओर इशारा है जो समाज में फैली गलत बातों का विरोध करने का साहस नहीं रखते। वे खुद तो सच्चाई के पक्ष में खड़े नहीं होते, लेकिन जब कोई व्यक्ति (यहाँ कवि स्वयं) सच्चाई की बात करता है, तो सब मिलकर उसकी आवाज़ को दबा देते हैं।

कवि कुँवर नारायण इस पंक्ति में बता रहे हैं कि ऐसे लोग समाज की गली-सड़ी व्यवस्था में पूरी तरह ढल चुके हैं। वे यह जानते हैं कि व्यवस्था में बहुत सी बातें गलत हैं, लेकिन वे बदलाव नहीं चाहते। इसलिए जब कोई व्यक्ति बहस के जरिए सच को सामने लाने की कोशिश करता है, तो ये लोग मिलकर उसकी बहस की हत्या कर देते हैं, यानी उसकी बात को महत्व नहीं देते, उसे चुप करा देते हैं।

भावार्थ यह है कि सच्चाई बोलने वाले को समाज में अक्सर दबा दिया जाता है, क्योंकि सच्चाई व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर कर देती है — और यह बात वे लोग सहन नहीं कर पाते जो खुद उस व्यवस्था के हिस्से बन चुके हैं।

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