वापसी कविता की व्याख्या क्लास 8, Vapsi Kavita Ki Vyakhya Class 8, वापसी कविता का सारांश

वापसी कविता की व्याख्या क्लास 8, Vapsi Kavita Ki Vyakhya Class 8, Wapsi Summary In Hindi

वापसी कविता की व्याख्या क्लास 8, Vapsi Kavita Ki Vyakhya Class 8, वापसी कविता का सारांश

आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम वापसी कविता की व्याख्या क्लास 8,  वापसी कविता का भावार्थ को पढ़ने जा रहे हैं। जो पश्चिम बंगाल के सरकारी विद्यालय के कक्षा 8 के पाठ 7 वापसी  से लिया गया है जिसके कवि  अशोक वाजपेयी जी  है।  तो चलिए वापसी कविता की व्याख्या क्लास 8 , vapsi kavita ki vyakhya Class 8 को देखें-`

अशोक वाजपेयी का जीवन परिचय

जन्म: 16 जनवरी 1941
जन्म स्थान: दुर्ग, छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश)
मुख्य पहचान: कवि, आलोचक, संपादक और संस्कृतिकर्मी

क्या आपने कभी सोचा है कि एक इंसान एक साथ कवि, आलोचक, शिक्षक, सरकारी अफसर और संस्कृति प्रेमी कैसे बन सकता है? चलिए जानते हैं ऐसे ही एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति अशोक वाजपेयी जी के बारे में, जिनकी जिंदगी खुद एक प्रेरणादायक कहानी है।

अशोक जी का जन्म एक पढ़े-लिखे और समझदार परिवार में हुआ। उनके पिता एक यूनिवर्सिटी में उच्च अधिकारी थे और नाना सरकारी अफसर। पढ़ाई की शुरुआत उन्होंने लालगंज के सरकारी स्कूल से की। फिर सागर यूनिवर्सिटी से इंटर और बी.ए. किया और आगे एम.ए. के लिए दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज गए।

शिक्षक से बने अफसर

एम.ए. के बाद वे कुछ समय तक दिल्ली के दयाल सिंह कॉलेज में पढ़ाने लगे, लेकिन उनका सपना यहीं नहीं रुका। उन्होंने आईएएस परीक्षा पास कर ली और एक बड़े सरकारी अधिकारी बन गए। उन्होंने भोपाल और दिल्ली में संस्कृति से जुड़ी कई बड़ी जिम्मेदारियाँ संभालीं।

कला और संस्कृति के सच्चे प्रेमी

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सरकारी अफसर होते हुए भी अशोक जी ने हज़ारों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाया। उन्होंने भोपाल में प्रसिद्ध ‘भारत भवन’ की स्थापना की, जो कला, संगीत और साहित्य का बहुत बड़ा केंद्र बन गया। बाद में वे रज़ा फाउंडेशन जैसे संस्थानों से भी जुड़े और दिल्ली में भी कला की ज्योत जलाते रहे।

कविता से थी गहरी दोस्ती

अशोक जी की कविता से दोस्ती बचपन में ही हो गई थी। जब वे सिर्फ 16-17 साल के थे, तब ही उनकी कविताएँ पत्रिकाओं में छपने लगी थीं। उनकी पहली कविता पुस्तक “शहर अब भी संभावना है” जब वे 25 साल के थे, तब प्रकाशित हुई थी।

इसके बाद उन्होंने एक से एक बेहतरीन कविताएँ लिखीं जैसे:

  • अगर इतने से,
  • एक पतंग अनंत में,
  • कहीं नहीं वहीं,
  • थोड़ी सी जगह,
  • समय के पास समय,
  • कहीं कोई दरवाज़ा आदि।
कहानी सिर्फ कविता की नहीं

अशोक जी सिर्फ कवि नहीं, आलोचक और संपादक भी हैं। उन्होंने साहित्य पर कई लेख और किताबें लिखीं जैसे:

  • फ़िलहाल,
  • कुछ पूर्वग्रह,
  • कविता का गल्प,
  • समय से बाहर

उन्होंने अनेक प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का अनुवाद भी हिंदी में किया, जिससे दुनिया भर की रचनाएँ हिंदी पाठकों तक पहुँच सकीं।

सम्मान और पुरस्कार

उनकी मेहनत और साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई बड़े पुरस्कार मिले, जैसे:
साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1994) – कविता संग्रह “कहीं नहीं वहीं” के लिए।
कबीर सम्मान, दयावती मोदी सम्मान
फ्रांस और पोलैंड सरकार द्वारा भी सम्मानित।

अशोक वाजपेयी जी की कहानी हमें सिखाती है कि अगर आपके अंदर सच्चा जुनून, मेहनत और समर्पण हो, तो आप एक साथ कई क्षेत्रों में सफल हो सकते हैं। वे एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने कविता, संस्कृति और समाज के बीच एक मजबूत पुल बनाया है।

वापसी कविता की व्याख्या, Vapsi Kavita Ki Vyakhya

1.
जब हम वापस आएंगे
तो पहचाने नहीं जाएंगे –
हो सकता है हम लौटें
एक पक्षी की तरह
और तुम्हारे बगीचे के नीम के पेड़ पर बैठें।
फिर जब हम तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर
घोंसला बनाएंगे,
तो तुम हमें बार-बार भगाओगे।
संदर्भ:

यह पंक्तियाँ ‘वापसी’ नाम की कविता से ली गई हैं। इस कविता के कवि अशोक वाजपेयी हैं।

प्रसंग:

कवि ने इस कविता में यह दिखाया है कि समाज अब पुराने जीवन मूल्यों और परंपराओं को भूलता जा रहा है। जब वही पुरानी चीज़ें किसी नई रूप में लौटती हैं, तो लोग उन्हें पहचानते नहीं और उन्हें अपनाने की जगह, उन्हें दूर करने लगते हैं।

भावार्थ (व्याख्या):

कवि कहते हैं कि जब वे दोबारा लौटेंगे, तो शायद लोग उन्हें पहचान नहीं पाएंगे। संभव है कि वे एक पक्षी के रूप में वापस लौटें और किसी नीम के पेड़ पर अपना घर बना लें। फिर वे बरामदे के पंखे के ऊपर घोंसला बना सकते हैं, लेकिन लोग उन्हें वहाँ से हटाने की कोशिश करेंगे, बार-बार उन्हें भगाएंगे।

यह कविता हमें यह समझाने की कोशिश करती है कि आज के समय में लोग पुराने मूल्यों, परंपराओं और रिश्तों को भूलते जा रहे हैं।

2.
या फिर थोड़ी सी बारिश के बाद
तुम्हारे घर के सामने छा गई
हरियाली की तरह वापस आएं हम
जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें
पर तुम जान नहीं पाओगे कि
उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं।
संदर्भ:

यह पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी द्वारा लिखित ‘वापसी’ नामक कविता से ली गई हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि यह दिखाना चाहते हैं कि मनुष्य आजकल सिर्फ अपने आराम और सुख की परवाह करता है, पर जो लोग या भावनाएँ उसके सुख के पीछे होते हैं, उन्हें वह पहचान नहीं पाता।

व्याख्या: 

कवि कहते हैं कि अगर थोड़ी सी बारिश होगी, तो तुम्हारे घर के सामने हरियाली छा जाएगी। शायद हम भी उसी हरियाली की तरह लौट आएं, जो तुम्हें ठंडक और आराम देगी। लेकिन तुम सिर्फ उस हरियाली का सुख लोगे, पर यह नहीं जान पाओगे कि उसी हरियाली में हम भी बिखरे हुए हैं।

इसका मतलब है कि कभी-कभी हमारे अपने लोग या उनकी यादें किसी और रूप में लौटती हैं, लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पाते और सिर्फ उनके द्वारा मिले सुख पर ध्यान देते हैं, न कि उनके अस्तित्व पर।

3. हो सकता है हम आएं
पलाश के पेड़ पर नयी छाल की तरह
जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में
तुम लक्ष्य भी न कर पाओगे
हम रूप बदलकर आएंगे
तुम बिना रूप बदले भी
बदल जाओगे –
संदर्भ:

यह पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी की कविता ‘वापसी’ से ली गई हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि यह दिखाना चाहते हैं कि जब पुराने मूल्य, परंपराएँ या व्यक्ति किसी नए रूप में लौटते हैं, तो लोग उन्हें पहचान नहीं पाते। वहीं, आज के लोग बिना किसी बाहरी बदलाव के भी अंदर से बदल गए हैं।

व्याख्या :

कवि कहते हैं कि शायद वह पलाश के पेड़ की नई छाल की तरह वापस आएं। लेकिन उस पेड़ पर खिले लाल फूलों की तेज़ चमक में तुम उन्हें देख नहीं पाओगे। इसका मतलब है कि वे जब लौटेंगे, तो किसी नए रूप में होंगे, पर लोग उन्हें पहचान नहीं पाएंगे।

फिर कवि कहते हैं कि मैं तो बदले हुए रूप में आऊंगा, लेकिन तुम तो बिना बदले हुए भी बदल चुके हो — यानी आज के लोग अपनी सोच, व्यवहार और संस्कृति में इतने बदल चुके हैं कि वे अपने पुराने मूल्यों, रिश्तों और पहचान को भूल चुके हैं।

4.  हालाँकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया,
हरियाली, फूल-पेड़ वहीं रहेंगे
हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड कर जाएगा
वह अंत
जिसके बाद हम वापस आएंगे
और पहचाने न जाएंगे।
संदर्भ:

यह पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी की कविता ‘वापसी’ से ली गई हैं।

प्रसंग:

इस कविता में कवि ने यह बताया है कि समय बीतने पर सब कुछ भले ही पहले जैसा दिखाई दे, लेकिन हमारी पहचान और अस्तित्व बदल या खो सकते हैं।

व्याख्या :

कवि कहते हैं कि जब वह दोबारा लौटेंगे, तो उस समय घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया, फूल और पेड़ सब वैसे ही होंगे, पर उनकी पहचान नहीं रहेगी। जो अंत होगा, वह उनकी पहचान को गड्डमड्ड यानी पूरी तरह मिला देगा, जिससे लोग उन्हें पहचान नहीं पाएंगे।

इसका मतलब यह है कि बाहरी दुनिया तो पहले जैसी रह सकती है, लेकिन समय के साथ हमारी पहचान, स्मृति और अस्तित्व बदल जाते हैं या मिट जाते हैं।
लौटने पर भी कोई हमें नहीं पहचानेगा, क्योंकि हम अब पहले जैसे नहीं रहे।

वापसी कविता का सारांश, Wapsi Kavita Ka Saransh, 

कविता ‘वापसी’ में कवि अशोक वाजपेयी यह बताने की कोशिश करते हैं कि समय के साथ इंसान की पहचान और मूल्य बदलते जा रहे हैं। कवि सोचते हैं कि अगर वे कभी दोबारा लौटें, तो लोग उन्हें पहचान नहीं पाएंगे, क्योंकि समाज अब अपने पुराने जीवन मूल्यों, रिश्तों और भावनाओं को भूलता जा रहा है।

वे कल्पना करते हैं कि शायद वे पक्षी बनकर नीम के पेड़ पर लौटें, या बरामदे के पंखे पर घोंसला बनाएँ, लेकिन लोग उन्हें पहचानने के बजाय बार-बार भगाएंगे।
वे यह भी कहते हैं कि हो सकता है वे बारिश के बाद की हरियाली की तरह लौटें, जो लोगों को सुकून और ठंडक दे, लेकिन लोग यह नहीं समझ पाएंगे कि उस हरियाली में भी कवि छिपे हुए हैं।

कवि आगे कहते हैं कि वे अगर पलाश के पेड़ की नई छाल बनकर आएँ, तो भी लाल फूलों की चमक में लोग उन्हें देख नहीं पाएंगे। वे रूप बदलकर लौट सकते हैं, पर आज के लोग तो बिना कोई रूप बदले भी बदल गए हैं।

कविता के अंतिम हिस्से में कवि यह मानते हैं कि घर, बगिया, पेड़-पौधे, पक्षी और हरियाली तो वैसे ही रहेंगे, लेकिन समय का असर ऐसा होगा कि कवि की पहचान खो जाएगी। जब वे लौटेंगे, तो लोग उन्हें पहचान नहीं पाएंगे, क्योंकि अब उनकी पहचान गड्डमड्ड हो चुकी होगी

इस कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि समाज में भावनात्मक बदलाव इतने गहरे हो गए हैं कि अगर कोई हमारे जीवन में नए रूप में लौट भी आए, तो हम उसे पहचान नहीं पाएंगे
हमारी सोच, रिश्तों की गहराई और परंपराओं के प्रति समझ धीरे-धीरे मिटती जा रही है।

इसे भी पढ़ें :

Leave a Comment