यतीन्द्र मिश्र का जीवन परिचय ॥ Yatindra Mishra Jeevan Parichay

यतीन्द्र मिश्र का जीवन परिचय ॥ Yatindra Mishra Jeevan Parichay

यतीन्द्र मिश्र का जीवन परिचय ॥ Yatindra Mishra Jeevan Parichay

यतीन्द्र मिश्र का जन्म 12 अप्रैल 1977 को उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी अयोध्या में हुआ। वे हिंदी के समकालीन युवा कवि, लेखक, संपादक, और संगीत अध्येता के रूप में विख्यात हैं। उनका परिवार सांस्कृतिक और शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ रखने वाला था, जिससे बचपन से ही उनकी कलात्मक और साहित्यिक रुचि विकसित हुई। उनकी दादी, राजकुमारी विमला देवी, स्वयं एक कुशल संगीतज्ञ थीं जिन्होंने उन्हें संगीत की बारीकियों से परिचित कराया।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

यतीन्द्र मिश्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अयोध्या में प्राप्त की और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में परास्नातक (एम.ए.) की डिग्री स्वर्ण पदक के साथ हासिल की। इसके बाद उन्होंने फैजाबाद के राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से हिंदी में पीएचडी पूरी की। उनकी अकादमिक पृष्ठभूमि ने उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक नजरिए को गहराई प्रदान की।

साहित्यिक आरंभ और रचनाएं

यतीन्द्र मिश्र ने साहित्य की दुनिया में अपने कविताओं के संग्रह “यदा-कदा”, “अयोध्या तथा अन्य कविताएं”, और “ड्योढ़ी पर आलाप” के साथ कदम रखा। इनके माध्यम से उनकी लेखनी में भारतीय संस्कृति, इतिहास, और लोक जीवन की झलक साफ़ देखी जा सकती है। उनकी कविताएं सरल भाषा में गहरी संवेदनाओं और विचारों को व्यक्त करती हैं, जो पाठकों को भावविभोर कर देती हैं।

उनकी रचनाओं में संगीत और संस्कृति का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की महान शख्सियतों पर भी कई महत्वपूर्ण कृतियाँ लिखीं। उदाहरण के लिए, गिरिजा देवी की जीवनी पर “गिरिजा” नामक पुस्तक, जो उनकी संगीत साधना और व्यक्तित्व का कवितात्मक चित्रण है। इसके अलावा, लता मंगेशकर पर लिखा उनकी पुस्तक “लता: सुर-गाथा” ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई और इस पर 64वें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्य और संगीत के प्रति समर्पण

यतीन्द्र मिश्र केवल कवि या लेखक नहीं हैं, बल्कि वे संगीत और कला के गहरे अध्येता भी हैं। उन्होंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे संगीत नायकों पर कई लेख और पुस्तकें लिखीं, जैसे “सुर की बारादरी” जिसमें उन्होंने उनकी जीवन शैली, संगीत की विशिष्टताओं और निजी जीवन को बेहतरीन ढंग से प्रस्तु्त किया। इसी तरह, उन्होंने शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह की जीवनी “देवप्रिया” भी लिखी है, जो कला प्रेमियों के बीच अत्यंत प्रशंसित हुई।

उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान के हिस्से के रूप में, उन्होंने कई बड़ी हस्तियों जैसे कवि कुंवर नारायण, अशोक वाजपेयी, और प्रसिद्ध शायर गुलजार की कविताओं व गीतों के चयन संपादित किए हैं। उन्होंने साहित्य, संगीत, और सिनेमा पर संवेदनशील विमर्श प्रस्तुत किए हैं, जिनसे भारतीय कला और साहित्यिक परंपरा को नई दिशा मिली है।

भाषा शैली और साहित्यिक विशेषताएं

यतीन्द्र मिश्र की भाषा शैली सरल, प्रवाहमयी और संवेदनशील है। वे अपनी रचनाओं में जीवंतता और गहराई ला पाते हैं, जिससे पाठक सहज रूप से जुड़ जाते हैं। उनकी कविता और गद्य दोनों में ही भारतीय संस्कृति, लोकजीवन, संगीत, और इतिहास का सूक्ष्म परिचय मिलता है। वे अपने शब्दों में भावनात्मक उभार के साथ-साथ बौद्धिक गंभीरता भी बनाए रखते हैं।

उनकी साहित्यिक शैली में संगीत का मुखर प्रभाव दिखाई देता है, क्योंकि वे संगीत की लय और ताल को अपने गद्य और पद्य में समाहित करते हैं। उनकी कविताएं जीवन के सामान्य पक्षों को भी अत्यंत भावुक और दर्शनीय बना देती हैं। इसके साथ ही वे समाज की जटिलताओं, सांस्कृतिक प्रश्नों और मानवीय संवेदनाओं को भी सहजता से रेखांकित करते हैं।

पुरस्कार और सम्मान

यतीन्द्र मिश्र को उनकी साहित्यिक और सांस्कृतिक सेवाओं के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 64वें राष्ट्रीय पुरस्कार की प्राप्ति “लता: सुर-गाथा” के लिए एक महत्वपूर्ण पहचान है। इसके अलावा वे कई साहित्यिक संगठनों और सांस्कृतिक न्यासों से जुड़े हैं, जहां वे साहित्य और कला के संवर्धन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

सांस्कृतिक न्यास विमला देवी फाउंडेशन

यतीन्द्र मिश्र वर्ष 1999 से सांस्कृतिक न्यास “विमला देवी फाउंडेशन” के संचालक हैं। यह न्यास साहित्य, संगीत और कला के क्षेत्र में सक्रिय है और अनेक युवा कलाकारों को प्रोत्साहन देता है। इस संस्था के माध्यम से वे सांस्कृतिक जागरूकता और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।

कुल मिलाकर

यतीन्द्र मिश्र हिंदी साहित्य के एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कविता, लेखन, संपादन, तथा संगीत अध्ययन के क्षेत्र में व्यापक योगदान दिया है। वे न केवल साहित्य समाज की चिंताएं और संस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं, बल्कि नयी पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी रचनाएं और कार्य भारतीय साहित्य, संगीत और कला की समृद्ध परंपरा में एक महत्वपूर्ण जोड़ हैं। वे भावुक कवि तथा संस्कृतिकर्मी के रूप में जाने जाते हैं, जिनकी लेखनी भारतीय संस्कृति की आत्मा को वैश्विक पाठकों तक पहुंचा रही है।

इस प्रकार यतीन्द्र मिश्र का जीवन और साहित्यिक यात्रा प्रेरणा और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है, जो साहित्य प्रेमियों और सांस्कृतिक जगत के लिए सदैव स्मरणीय रहेगा।

 

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