तुलसीदास का जीवन परिचय tulsidas ka jivan parichay

तुलसीदास का जीवन परिचय in hindi goswami tulsidas ka jivan parichay

तुलसीदास का जीवन परिचय tulsidas ka jivan parichay

तुलसीदास का जीवन परिचय(tulsidas ka jivan parichay)

तुलसीदास जी रामभक्ति शाखा की सगुणोपासक कवि थे। गोस्वामी तुलसीदास के जन्म संवत्, जन्म स्थान आदि के संबंध में विभिन्न विद्वानों के विभिन्न मत हैं। बाबा बेणीमाधव दास के अनुसार उनका जन्म संवत् 1554 वि० माना गया है गोसाईं चरित और तुलसी चरित् में भी इसे ही जन्म संवत बदला या क्या है शिवसिंह के अनुसार उनका जन्म संवत् 1583 माना गया है किंतु कई विद्वानों ने संवत 1589 वि० (सन् 1932ई.) को ही जन्म संवत् माना है। जिस प्रकार से इनके जन्म तिथि को लेकर मतभेद है ठीक उसी प्रकार उसके जन्म स्थान के संबंध में भी विभिन्न मत है। पंडित राम गुलाम द्विवेदी आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि ने तुलसीदास का जन्म स्थान बांदा जिला अंतर्गत राजापुर ग्राम में माना है और कुछ विद्वानों के मतानुसार वे सोरों में पैदा हुए थे और कुछ लोग उनका जन्म स्थान अयोध्या पी सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। जन्म के समय मुंह से राम का नाम निकलने के कारण उन्हें रामबोला कहा गया। अशुभ नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनको इनके माता-पिता ने त्याग दिया तब इनका पालन-पोषण मुनिया नाम की एक दासी ने किया। किंतु कुछ दिन बाद वह मर गई और बेचारे तुलसीदास दर-दर के भिखारी हो गए। संयोग से इनकी भेंट स्वामी नरसिंह दास जी सी हो गई। नरसिंह दास तुलसीदास के गुरु हैं। उन्होंने इन्हें रामकथा का अध्ययन कराया। बाद में महात्मा से सनातन से काशी में गोस्वामी जी ने वेद, शास्त्र दर्शन पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त किया। वहां इनके गुणों पर मुग्ध होकर दीनबंधु पाठक ने अपनी पुत्री रत्नावली का विवाह इनसे कर दिया। उस समय ये पुनः अपने घर लौट आए। तुलसीदास जी अपने पत्नी से बहुत प्यार करते थे एक दिन जब उनकी पत्नी तुलसीदास को बिना बताए अपने मायके चली जाती हैं जब तुलसीदास को इसके बारे में पता चलता है तो वे रात्रि में ही नदी नाले पार करके उसके पास जा पहुंचे हैं। पत्नी विदुषी थी, उसने उनके इस आसक्ति पर उन्हें फटकार ते हुए कहा-

अस्थि चरममय दे मम, ता में ऐसी प्रीति।

ऐसी हो श्रीराम में, होत न तो भवभीति।।

इन शब्दों को सुनकर तुलसीदास के ज्ञान नेत्र खुल गए और उन्होंने गिरस्ती को छोड़कर पुनः काशी में राम भजन करना आरंभ कर दिया। तुलसीदास अयोध्या गए। संवत् 1680 वि० (सन् 1623 ई.) में उनका स्वर्गवास हो गया इस संबंध में एक दोहा प्रसिद्ध है।

सम्वत् सोलह ‌सौ असी, असी गंग के तीर।

श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यौ शरीर।।

 

तुलसीदास जी की कृतियां,तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ

गोस्वामी जी के 37 ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है किंतु उनके 13 ग्रंथों को ही प्रमाणिक माना क्या है। इन ग्रंथों की सूची इस प्रकार है- रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, राम चरित्र मानस, और तुलसी सतसई।

 

 

तुलसीदास की भाषा शैली

तुलसीदास संस्कृत के प्रकांड विद्वान होने के साथ-साथ अन्य के भाषाओं के ज्ञाता भी थे। ब्रज तथा अवधी भाषा पर इनका पूरा अधिकार था। उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस की रचना मोदी भाषण में की तथा शेष ग्रंथों की रचना ब्रज भाषा में की है। इन भाषाओं के प्रयोग में संस्कृत की कोमल कांत पदावली का पुट भी खूब मिलता है। कहीं-कहीं इनकी भाषा प्रौढ़ एवं जटिल बन गई है। तुलसी ने विभिन्न शैलियों को अपनाया है जैसे छप्पय, गीति, सवैया दोहा चौपाई कवित्त आदि। गोस्वामी जीने काव्य रचना में दोहा चौपाई के अतिरिक्त कवित्त सवैया बरवै छप्पय सोरठा आदि विविध छंदों एवं राग रागिनी को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है। उनकी रचनाओं में उपमा रूपक उत्प्रेक्षा अनुप्रास परी संख्या अन्योक्ति संदेह भ्रांतिमान आदि अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है। तुलसी के काव्य में सभी रसों का समावेश है। श्रृंगार रस का जैसे शिष्ट और मर्यादित वर्णन तुलसीदास ने किया है वैसा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता विनय पत्रिका में शांत रस का जितना सुंदर है परिपाक हुआ उतना मानस को छोड़कर साहित्य के अन्य किसी प्रांत में नहीं हो सका।

 

साहित्य में स्थान

तुलसी अपनी विराट प्रतिभा कवित्त शक्ति एवं मंगलमय भक्ति भावना के कारण हिंदी साहित्य में हिमालय के शिखर की भांति अडिग भाव से खड़े रहे। साहित्यकार में तुलसी आज भी मार्तंड की भांति अपने प्रकाश से संसार को आलोकित कर रहे हैं। हिंदी साहित्य में उनका प्रादुर्भाव एवं चमत्कार के समान हैं। वास्तव में वह हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

 

तुलसी की काव्य कला

तुलसी की काव्य में जगत के वास्तविक दृश्य, जीवन की वास्तविक दशा, धर्म पक्षों की वास्तविक अनुभूतियों को मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है। उन्होंने कल्पना वैचित्र्य की अपेक्षा जीवन के मर्मस्पर्शी स्थानों का कथन अधिक किया है। राम के चरित्र का वर्णन करते समय उन्होंने उनके जीवन के सभी मर्मस्पर्शी स्थानों को पहचाना है। उन्होंने अपने काव्य की रचना स्वान्त: सुखाय की है, किंतु आराध्य रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को मानने के कारण उनकी कविता लोक मंगलकारी हो गयी है। मानस में काव्य पक्ष के सौंदर्य के साथ धर्मोंपदेश और नीति की बातें कही गई है। दोहावली में भक्ति और सूक्ति संबंधित दोहे संगृहीत हैं। यह सूक्ति और धर्मोंपदेश निश्चित ही लोक कल्याण की भावना से लिखे गए हैं। गोस्वामी जी के काव्य में मुक्ता का प्रबंध दोनों की ही प्रवृत्ति पाई जाती है। मानस एक प्रबंध काव्य है और शेष मुक्तकों के संग्रह रूप में हैं। तुलसीदास के काव्य में रस, अलंकार और छंद का भी बहुलता से प्रयोग किया गया है। इस प्रकार उनके काव्य में वास्तविकता का जान डाल देता है।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

तुलसीदास का जन्म कब और कहां हुआ था?

तुलसीदास का जन्म संवत् 1589 वि. (सन् 1532 ई.) बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था।

 

तुलसीदास जी का असली नाम क्या था?

तुलसीदास जी का असली नाम रामबोला था।

 

तुलसी जी के माता पिता का क्या नाम था?

तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था।

 

तुलसीदास की पत्नी का क्या नाम है

तुलसी की पत्नी का नाम रत्नावली है।

 

तुलसीदास के गुरु कौन थे?

तुलसी दास के गुरु नरसिंह दास थे।

 

तुलसीदास किस शाखा के कवि थे

तुलसीदास सगुण भक्ति धारा के राम भक्ति शाखा के कवि थे।

 

तुलसीदास जी को राम कथा का अध्ययन किसने कराया था

तुलसीदास जी को रामकथा का अध्ययन नरहरिदास जी ने कराया था।

 

तुलसीदास जी के बचपन का क्या नाम था

तुलसीदास जी के बचपन का नाम राम बोला था।

 

तुलसीदास जी के माता-पिता ने उनका त्याग क्यों किया था

अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण उनके माता-पिता ने उनका त्याग किया था।

 

तुलसीदास जी का पालन पोषण किसने किया था

तुलसीदास जी का पालन पोषण मुनिया नामक दासी ने किया था।

 

तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई

तुलसीदास जी की मृत्यु हो संवत 1680 विक्रम सन 1623 ईस्वी में हुई।

 

तुलसीदास जी की प्रमुख कृतियों के नाम बताइए

रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, राम चरित्र मानस, और तुलसी सतसई।

 

तुलसीदास जी ने कैसे राज्य की कल्पना की है

तुलसीदास जी ने आदर्श रामराज्य की कल्पना की है।

 

किस घटना से तुलसीदास के ज्ञान खुल गए थे

एक बार की घटना है तुलसीदास की पत्नी रत्नावली उनको बिना बताए अपने मायके चली गई थी। जब तुलसीदास जी को यह पता चला तब वह उनसे मिलने उसी रात्रि नदी नाला पार करते हुए वह उनके पीहर पहुंच गए। उनकी पत्नी ने उन्हें इस प्रकार आने पर धिक्कार ते हुए कहा कि हांड़ मांस की देह से आपका जितना प्रीति करते हैं उतना ही आ गया श्रीराम से करे तो आपका परम कल्याण होता। इन शब्दों को सुनकर तुलसीदास जी के ज्ञान नेत्र खुल गए और उन्होंने गृहस्थी छोड़कर राम भजन आरंभ कर दिया।

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